पद्मावती मंत्र साधना – भविष्य जानने की विद्या ph.85280 57364
पद्मावती मंत्र साधना – भविष्य जानने की विद्या ph.85280 57364
पद्मावती मंत्र साधना – भविष्य जानने की विद्या ph.85280 57364 आप सभी कैसे हो मैं उम्मीद करता हूं आप लोग सही सलामत से होंगे हम मां भगवती से यही कामना करता हूं आप लोग इधर भी हो उधर खुश रहो चलिए दोस्तों आज पूछा लगाने का कुछ मैं प्रयोग में बताऊंगा दोस्तों क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में जॉन सभी साधक साधिकाएं होंगे तो इसका बारे में मालूम होगा दोस्तों ठीक है यह जो 1 घंटा है ठीक है मुझे का जॉन होता है ना वह है दोस्तों ठीक है क्योंकि हमारे इधर बहुत और आकर दोस्तों पूछा लगता है ठीक है तो यह जो एक तरीका है दोस्तों मुझे बहुत अच्छा लगता है दोस्तों ठीक है इसका एक मंत्र है दोस्तों वैदिक है ठीक है किसी का भी भूत भविष्य वर्तमान जान सकते है सर्व ज्ञान हो जाएगा आपको
साधन विधि – दो वर्ष तक प्रतिदिन १०८ बार इस मन्त्र का जप करने से यह विद्या सिद्ध होती है । विद्या सिद्ध हो जाने पर साधक को सब विषयों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है । जो भक्त योगी शैया पर बैठ कर रात्रि के समय इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता है, वह प्रतिदिन के समस्त हितकर वृतान्त को जान लेता है । तन्त्र शस्त्रों में कहा गया है कि इस मन्त्र के साधक को ब्रह्मा, विष्ण आदि का तथा त्रैलोक्य का वृतान्त भी ज्ञात हो जाता है । शुभदायिनी पद्मावती विद्या उससे स्वप्न में सब वृतान्त कहती हैं ।
चमत्कारी वीर बेताल साधना – Veer Betal sadhna ph .8528057364 वीर बेताल Veer Betal सिद्धि जो जीवन की अद्वितीय साधना है, जो व्यक्ति को रंक से राजा बना देती है, जो साधारण व्यक्ति को अद्वितीय बलशाली बना देती है और उसके द्वारा कठिन और असम्भव कार्य भी चुटकी बजाते सम्पन्न हो जाते हैं।
मैं यह कहूं कि ‘ वीर बेताल Veer Betal स्वयं में सरलता, दयालुता और ठगे जाने की सीमा तक बुद्धि से सरल, किसी दिद्युत शक्ति की ही दूसरी संज्ञा होती है, तो क्या अनेक पाठक मेरा विश्वास कर सकेंगे? केवल पाठक ही नहीं वीर बेताल Veer Betal के नाम से किसी रोमांचक अनुभूति की प्रतीक्षा में दिल थाम कर बैठे रहने वाले साधक मी सहसा मेरी बात पर विश्वास नहीं कर सकेंगे।इस तथ्य से परिचित हूं किन्तु जो सत्यता है वह यही है।
यह सत्यता स्वयं में विरोधाभासी भी है और हतप्रभ कर देने वाली भी. किन्तु निरपेक्ष रूप से सत्यता यही है। विरोधाभासी इस कारणवश, कि एक विद्युत शक्ति की तीव्रता से भरा व्यक्तित्व सरल, दयालु और ठगे जाने की सीमा तक बुद्धि से सरल कैसे हो सकता है? विद्युत का तो गुण ही होता है. आघात दे देना, भस्म कर देना, एक ही क्षण में सब कुछ जलाकर राख कर देना और जरा सा चूके, तो स्वयं सृजनकर्ता को ही दिनष्ट कर देना; किन्तु विद्युत की ऐसी धारणा केवल विज्ञान या साइंस में ही सम्भाव्य हो सकती है, भारतीय ज्ञान में नहीं।
वीर बेताल Veer Betal वस्तुतः ज्ञान पक्ष की एक विद्युत ही है, जिसको नियंत्रित करने वाला विज्ञान ही ‘साधना’ कहलाता है। ‘भारतीय विज्ञान’ जो साइंस नहीं है, नियंत्रण करने के आग्रह से युक्त कोई कला अथवा युक्ति भर ही होती है, क्योंकि नियंत्रित शक्ति ही सृजन कर सकती है, अनियंत्रित शक्ति नहीं।
वीर बेताल Veer Betal क्यों भारतीय चिंतन में जुगुप्सा उत्पन्न करने वाला हो गया? क्यों सामान्य साधक और गृहस्थ साथक उसके नान तक से ही घृणा करने लग जाते हैं? जैसे प्रश्नों के उत्तर में मैं वही कई बार दोहराई बात पुनः नहीं कहना चाहता कि गलत हाथों में पड़ यह साधना भी तंत्र व सावर मंत्रों की ही भांति निम्न दृष्टि से देखी जाने लग गई।
यह तो सत्य है कि ऐसी विलक्षण साधनाएं, जो अपने आप में अचूक थीं. गलत हाथों में पड़कर समाज की सामान्य धारा से बहिष्कृत कर दी गई. किन्तु क्या कभी किसी ने इस बात पर ध्यान देना चाहा है, कि क्यों ये साधनाएं गलत हाथों में जा पड़ी? क्या इसमें केवल उन्ही लोगों का योगदान रहा जिनकी प्रवृत्तिया दूषित थीं अथवा समाज का भी कोई योगदान रहा होगा?
कटु सत्य तो यही है कि ऐसी दुर्लभ विद्याओं के गलत हाथों में पड़ जाने का कारण स्वयं समाज ही होता है। जब समाज के प्रबुद्ध वर्ग के व्यक्ति ललक और गम्भीरता से स्वयं परीक्षण कर सत्यता को परखने की भावना व क्रिया त्याग देते हैं, तभी समाज में ऐसा क्षय होता है।
वस्तुतः कोई भी साधन स्वयमेव जाकर गलत हाथों में नहीं पड़ जाती। बस होता इतना ही है कि विवेचनादान, गम्भीर और प्रबुद्ध साधक अपनी बौद्धिकता के दम्भ में इन साधनाओं के प्रति एक प्रकार का उपेक्षा भाव (अथवा जिसे पूर्वाग्रह कहें तो अधिक उचित रहेगा ) मन में पनपा लेते हैं, जिससे साधना उनके मध्य में वितरित न होकर केवल ऐसे व्यक्तियों के मध्य प्रश्रय पा जाती है, जिनका लक्ष्य येन-केन-प्रकारेण स्वार्थ सिद्धि ही होता है। उग्र साधनाओं अथवा तीव्र साधनाओं के संदर्भ में तो यही बात विशेष रूप से होती है, क्योंकि जितनी उम्र साधना होगी स्वार्थ सिद्धि उतनी ही तीव्रता से हो सकेगी। |
पृथकतः कहना चाहूंगा कि कोई भी साधना अपने मूल स्वरूप में न तो उग्र होती है, न सौम्य केवल उसको प्रयुक्ति और किसी एक क्षेत्र में बार बार प्रयुक्ति ही उसे सौम्य या उग्र की संज्ञा दे जाती है। उदाहरणार्थं बगलामुखी महाविद्या साधना, जिसका केवल एक मात्र प्रयोग शत्रुनाश के लिए विख्यात होने के कारण वह उग्र साधनाओं की श्रेणी में स्थापित कर दी गई, जबकि भगवती बगलामुखी की यह सत्य है, कि वीर बेताल Veer Betal साधना को सम्पन्न करने के लिए साधक के पास अद्भुत बल और बल से भी अधिक मानसिक दृढ़ता का होना आवश्यक है, किन्तु इसमें इतना आश्चर्य क्यों ? इतनी वितृष्णा भी क्यों ? -जबकि इससे अधिक सरल और सहज कोई और साधना है. ही नहीं । एक अन्य सज्ञा पीताम्बरा भी है।
पीताम्बरा अर्थात् भगवान श्रीमन्नारायण की आधारभूत शक्ति पीताम्बर धारी की ही कियाशील शक्ति है पीताम्बरा अर्थात् भगवती बगलामुखी।
वीर बेताल Veer Betal साधना प्राचीन काल में इस हेयता को नहीं प्राप्त हुई थी। यदि ऐसा होता तो क्यों हनुमान इसे सम्पन्न कर, केवल हनुमान ही नहीं वीर हनुमान की संज्ञा पर जाते? एक साधारण वानर से किस प्रकार ‘अतुलित बलधाम, हेमशैलाभदेह’ की स्थिति को प्राप्त कर लेते।
साधको को जिज्ञासा हो सकती है. कि रामचरित मानस अथवा रामायण में तो ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता, कि हनुमान ने दीर वैताल की साधना सम्पन्न की थी? प्रत्युत्तर में इतना ही कहना है कि रामचरित मानस में तो उस कसरत या दंड बैठक का भी वर्णन नहीं मिलता है. जिसे सम्पन्न कर हनुमान ने उपरोक्त स्थिति प्राप्त साधनाओ की चर्चा करना रामचरित मानस का उद्देश्य है ही नहीं यह तो एक भक्ति परक रचना है, जिसमें प्रसंगवश हनुमान को ऐसी विदिध शक्तियां वर्णित होती जाती हैं, जो अष्टादश सिद्धियों के अन्तर्गत आती हैं।
यदि रामचरित मानस अष्टादश सिद्धियों को प्रकारांतर से स्वीकार करती है, हनुमान द्वारा अणिमा लघिमा का प्रयोग अथवा उनका आकाश गमन करना स्वीकार करती है, तो या प्रकारांतर से साधना की महत्ता को ही नहीं वर्णित कर जाती? जिस प्रकार आज ‘वीर’ शब्द किसी बलवान पौरुषवान व्यक्ति के केवल शरीर का ही पर्याय है,
उसी प्रकार प्रारम्भ में यह उस सम्मान का पर्याय था, जो किसी साधक द्वाटरा वीर बेताल Veer Betal साधना करने और उसमें सफल होने पर उसके नाम के साथ सम्मिलित कर उसके साधकत्व का समाज में सम्मान करने की बात होती थी। यह सत्य है कि वीर बेताल Veer Betal साधना को सम्पन्न करने के लिए साधक के पास अदभुत बल और बल से भी अधिक मानसिक दृढ़ता का होना आवश्यक है. किन्तु इसमें इतना आश्चर्य क्यों? इतनी वितृष्णा भी क्यों?
विद्युत नियंत्रण करने वाले व्यक्ति को भी तो कुछ क्षमताएं विकसित करनी पड़ती हैं, कुछ उपकरण या यंत्र साथ रखने पड़ते हैं अपने साथ तभी तो विद्युत की आक्रमणकारी शक्ति का प्रभाव समाप्त कर उसका कल्याणकारी उपयोग कर पाना संभव होता है। वीर बेताल Veer Betal साधना में विद्युत अर्थात इलेक्ट्रिक के दिपरीत प्रारम्भ से ही कोई विपरीत प्रभाव होता ही नहीं. किन्तु जैसा कि प्रारम्भ में कहा, कि वीर बेताल Veer Betal का स्वरूप इस प्रकार का होता है कि निर्णय ले सकता उसकी क्षमता से बाहर होता है और तब साधक, सावना के माध्यम से वस्तुतः उसे निर्देशित करने की कला ही सीखता है।
यह मिथ्या धारणा है, कि वीर बैताल इतर योनि की श्रेणी में आता है। वीर बेताल Veer Betal तो साक्षात् भगवान शिव का ही अंश और गण होता है तथा इसी कारण अपने स्वामी भोलेनाथ की ही भांति भोला भी होता है। वीर बेताल Veer Betal तो प्रत्यक्षीकरण की अपेक्षा समाहितीकरण की साधना ही अधिक होती है। तथा इसी कारणवश प्राचीन काल में गुरुजन अपने समीप रहने वाले शिष्यों को यह साधना अवश्यमेव सम्पन्न करा कर उन्हें दृढ़ता, पौरुषता के गुणों से युक्त करते थे, जिससे वे समाज में जाकर निर्विघ्नता के साथ सक्रिय रह सके। इसी का अत्यन्त सूक्ष्म भेद यह है, कि जहां गुरु यह अनुभव करते थे कि उनका कोई शिष्य सीधे वीर ताल साधना को करने में असमर्थ है, तब वे उसे प्रारम्भ में हनुमान साधना सम्पन्न करवाते हुए वीर बेताल Veer Betal साधना तक ले जाते थे।
वीर बेताल Veer Betal तो हनुमान की ही भांति स्वामी भक्ति और सरलता का उदाहरण होता है, जिस प्रकार हनुमान सही जड़ी न पहचान पाने के कारण पूरा पर्यंत ही उठा लाए थे। प्राय: भोलेपन में वीर बेताल Veer Betal भी सिद्ध होने के बाद ऐसा कुछ कर सकता है। इसीलिए तो कहा कि कठिन वीर साधना नहीं है, कठिन तो है वीर बेताल Veer Betal पर नियंत्रण रखना। पौरुष पर पौरुष ही नियंत्रण कर सकता है। केवल हनुमान या जामवन्त ही नहीं, वीर साधना की सिद्धि करने वाले अनेक राजपुरुष और व्यक्तित्व हुए हैं।
विक्रमादित्य और कर्ण सरीखे ने समझ लिया था, कि यदि ये इतिहास के पन्नों अपना नाम दुर्धर्ष योद्धा के रूप में अंकित कराना हैं तो उन्हें पूर्ण प्रामाणिकता से वीर बेताल Veer Betal साधना सिद्धि प्राप्त करनी ही होगी उन्होंने ऐसा किया भी और कारणवश वीर विक्रमादित्य व वीर कर्ण के नाम से हमें अमर हो गए। क्या यह संभव नहीं, कि कर्ण में देने की जो उदारता थी, इतना भोलापन उतर आया उसके मूल में इसी वीर बेताल Veer Betal साधना का ही कोई कार्य कर रहा हो? तभी तो कर्ण को केवल वीर कर्ण नहीं दानवीर कर्ण भी कहा गया।
कालांतर में ज्यों ज्यों कतिपय कारणों से शिष्यों को धारणा शक्ति घटती गई, तेज व बल को समाहित करने की पात्रता का जो अभाव हो गया और जिसे परिलक्षित कर गुरुजनों ने अपने शिष्यों को बीर वैताल की मूल साधना के स्थान पर उनके भी साधक हनुमान की साधना को कराना आरम्भ करा दिया।
कदाचित वही कारण है वीर बेताल Veer Betal नाका इतिहास के पृष्ठों में सिमट जाने का। हनुमान की स्थापना आज गली-गली, चौराहे-चौराहे पर है। सम्भव है आने वाले दो सौ वर्षों में वीर्य, बल, तेज, ब्रह्मचर्य का इतना भी सम्मान न रह जाए और वीर बेताल Veer Betal साधना की ही भांति लोग हनुमान साधना को भी भय मिश्रित आश्चर्य से देखने लग जाए।
ऐसी स्थिति में दोष किसका होगा? यही कारण है कि साधना की अक्षुण्णता समाज में बनी रहनी चाहिए, जिससे न तो हमारी संतानें उससे वंचित हो न उसके विकृत अथवा कम प्रभावशाली रूप को प्राप्त करने के लिए विवश हो यही मंतव्य है,
सम्भव है आने वाले दो सौ वर्षों में वीर्य, बल, तेज, ब्रह्मचर्य का इतना भी सम्मान न रह जाए और वीर बेताल Veer Betal साधना की ही भांति लोग हनुमान साधना को भी भय मिश्रित आश्चर्य से देखने लग जाएं। ऐसी स्थिति में दोष किसका होगा? साधना का परीक्षण अपने संन्यस्त शिष्यों के माध्यम से करने के बाद, इसे समाज के समक्ष स्पष्ट करना आवश्यक समझा, क्योंकि इस युग धर्म की यही अपेक्षा है तथा गुरुत्व के गुणों से युक्त व्यक्तित्व ही युग की अपेक्षा का वास्तविक आकलन कर सकते हैं।
पुन स्पष्ट करना चाहूंगा कि वीर बेताल Veer Betal साधना केवल पौरुष प्राप्ति की जीवन में निर्भय बनने की तथा साथ ही साथ अतुलित बल के स्वामी बनने की साधना होती है। शेष सब कुछ मूल साधना में सफल हो जाने के उपरांत ही घटित होना संभव हो पाता है, चाहे वह अष्टादश सिद्धियों का विषय हो अथवा दीर वैताल के माध्यम से मनोवांछित कार्य सम्पन्न कराने का इस साधना को सम्पन्न करने के इच्छुक योग्य गम्भीर साधक के लिए आवश्यक है
वीर बेताल Veer Betal साधना विधि
रात्रि में दस बजे के पश्चात् स्नान कर घर के किसी एकांत स्थान पर साधना में प्रवृत्त हो या इस साधना को किसी भी मंगलवार से की जा सकती है। घर के अतिरिक्त इसे किसी प्राचीन एवं निर्जन शिव मंदिर के प्रांगण अथवा किसी नदी, सालाब के किनारे निर्जन तट पर सम्पन्न करना भी शास्त्रोच्ति माना गया है। पहनने के वस्त्र आसन सामने बिछाने वाला वस्त्र सभी गहरे काले रंग के होने आवश्यक हैं।
साधक साधना में प्रवृत्त होने से पूर्व प्रत्येक छोटी से छोटी साधना सामग्री अपने समीप रख लें। साधना के बी में उठना, साधना भंग के समान हो जाता है। इस साधना की आवश्यक सामग्री ताम्रपत्र पर अंकित वीर बेताल Veer Betal यत्र एवं वीर बेताल Veer Betal माला हैं।
यंत्र को साधक अपने सामने बिछे काले वस्त्र पर किसी ताम्र पात्र में रख कर स्नान कराएं और वो-पोंछ कर पुनः (पात्र का जल फेंक दें) पात्र में स्थापित कर, सिंदूर व अक्षत से पूजन करें। पूजन के उपरांत यंत्र के ऊपर एक सुपारी रख कर उसका भी इसी प्रकार से पूजन कर
साधना का उपरोक्त क्रम आगामी चार दिनों तक (कुल पांच दिन ) तक अक्षुण्ण रूप से बनाएं रखें। यदि सम्भव हो, तो प्रत्येक दिन साधना उसी समय प्रारम्भ करे, जिस समय पर प्रथम दिन प्रारम्भ की थी। अंतिम दिन समस्त साधना सामग्री को किसी नदी, सरोवर अथवा शिव मंदिर में भेंट के साथ विसर्जित कर दें। जीवन में अभाव की समाप्ति, विश्वस्त सहायक, पौरुष व बल की यह अनुपम साधना है, जिसका अनुभव साधक स्वयं साधना सम्पन्न करने के उपरांत कर सकते। है। प्रस्तुत साधना में बटुक भैरव का समावेश साधना की अतिरिक्त विशिष्टता है
दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya Deeksha Ph.85280 57364 इस सृष्टि के समस्त जड़-चेतन पदार्थ अपूर्ण हैं, क्योंकि पूर्ण तो केवल वह ब्रह्म ही है जो सर्वत्र व्याप्त है। अपूर्ण रह जाने पर ही जीव को पुनरपि जन्मं पुनरपि मरण’ के चक्र में बार-बार संसार में आना पड़ता है, और फिर उन्हीं क्रिया- कलापों में संलग्न होना पड़ता है।
शिशु जब मां के गर्भ से जन्म लेता है, तो ब्रह्म स्वरूप ही होता है, उसी पूर्ण का रूप होता है, परन्तु गर्भ के बाहर आने के बाद उसके अन्तर्मन पर अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है और इस कारण धीरे-धीरे नवजात शिशु को अपना पूर्णत्व बोध विस्मृत होने लगता है और एक प्रकार से वह पूर्णता से अपूर्णता की ओर अग्रसर होने लगता है। और इस तरह एक अन्तराल बीत जाता है, वह छोटा शिशु | अब वयस्क बन चुका होता है।
नित्य नई समस्याओं से जूझता हुआ वह अपने आप को अपने ही आत्मजनों की भीड़ में भी नितान्त | अकेला अनुभव करने लगता है। रोज-रोज की भाग-दौड़ से एक तरह से वह थक जाता है, और जब उसे याद जाती है प्रभु की, तो कभी कभी पत्थर की मूर्तियों के आगे दो आंसू भी कुलका देता है।
परन्तु उसे कोई हल मिलता नहीं चलते-चलते जब कभी पुण्यों के उदय होने पर सद्गुरु से मुलाकात होती है, तब उसके जीवन में प्रकाश की एक नई किरण फूटती है। ऐसा इसलिए सिद्धाश्रम प्राप्ति के लिए भी दो महाविद्याओं में दक्ष होना एक अनिवार्यता है और यदि साधक को योग्य गुरु से एक-एक कर इन दस महाविद्याओं की दीक्षाएं प्राप्त हो जाएं, तो उसके सौभाग्य की तुलना ही नहीं की जा सकती है। गुरुदेव अपने अंगुष्ठ द्वारा अपनी
उर्जा को साधक के आज्ञा चक्र में स्थापित कर देते हैं। होता है, क्योंकि मात्र सद्गुरु ही उसे बोध कराते हैं, कि वह अपूर्ण था नहीं अपितु बन गया है। गुरुदेव उसे बोध कराते हैं, कि वह असहाय नहीं, अपितु स्वयं उसी के अन्दर अनन्त सम्भावनाएं भरी पड़ी हैं, असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की क्षमता छुपी हुई है, गुरु की इसी क्रिया को दीक्षा कहते हैं, जिसमें गुरु अपने प्राणों को भर कर अपनी ऊर्जा को अष्टपाश में बंधे जीव में प्रवाहित करते हैं। गुरु दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का मार्ग साधना के क्षेत्र में खुल जाता है। साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में एक अलग ही महत्व है।
लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सद्गुरु से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते हैं।
दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya ki Deeksha दीक्षाओं से सम्बन्धित लाभ निम्न हैं-
1 काली महाविद्या दीक्षा – जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते हैं, गुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालीदास में ज्ञान का स्रोत फूटा था, जिससे उन्होंने ‘मेघदूत’, ‘ऋतुसंहार’ जैसे अतुलनीय काव्यों की रचना की, इस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।
2 तारा दीक्षा– इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को अर्थ की दृष्टि से कोई कष्ट नहीं रह जाता। उसके अन्दर ज्ञान, बुद्धि, शक्ति का प्रस्फुटन प्रारम्भ हो जाता है। तारा के सिद्ध साधकों को आकस्मिक धन प्राप्त होता है, ऐसा बहुधा देखने में आया है।
3 षोडशी त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा – गृहस्थ सुख, अनुकूल विवाह एवं पौरुष प्राप्ति हेतु इस दीक्षा का विशेष महत्व है। मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा उपयुक्त है। इस दीक्षा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति होती है।
4 भुवनेश्वरी दीक्षा– यह दीक्षा प्राप्त करना ही साधकों के लिए सौभाग्य का प्रतीक है। भुवनेश्वरी की कृपा से जीवन में ऐश्वर्य एवं सम्पन्नता स्थाई रूप से आती है, गृहस्थ जीवन स्वर्ग तुल्य हो जाता है। भोग एवं मोक्ष को एक साथ प्राप्त करने के लिए भुवनेश्वरी दीक्षा को श्रेष्ठ माना गया है।
5 छिन्नमस्ता दीक्षा प्रायः देखने में आता है, कि व्यक्ति अकारण ही किन्हीं मुकदमे में उलझ गया है, या शत्रु उस पर हावी हो रहे हैं, या बने हुए कार्य बिगड़ जाते हैं, यह सब साधक पर किए गए किसी तंत्र प्रयोग का भी परिणाम हो सकता है, इसके निवारण हेतु छिन्नमस्ता दीक्षा) का प्रावधान है। यह दीक्षा प्राप्त करने के उपरान्त न केवल स्थितियां अनुकूल होती हैं, वरन साधक के लिए तंत्र साधनाओं में आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।
6 त्रिपुर भैरवी दीक्षा भूत-प्रेत एवं इतर योनियों द्वारा बाधा आने पर जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। त्रिपुर भैरवी दीक्षा से जहां प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है, वहीं शारीरिक दुर्बलता भी समाप्त होती है, व्यक्ति का स्वास्थ्य निखरने लगता है एवं उसमें आत्मशक्ति त्वरित गति से जाग्रत होती है, जिससे वह असाध्य कार्यों को भी पूर्ण करने में सक्षम हो पाता है।
7 धूमावती दीक्षा– इस दीक्षा के प्रभाव से शत्रु शीघ्र ही पराजित होते है। उच्चाटन आदि क्रियाओं में सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा आवश्यक है। सन्तान यदि अस्वस्थ रहती हो, नित्य कोई रोग लगा रहता हो, तो धूमावती दीक्षा अत्यन्त अनुकूल मानी गई है।
8 बगलामुखी दीक्षा– यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वी, प्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रुका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो साधक को अजीवन हर खतरे से बचाता रहता है।
9 मातंगी दीक्षा– आज के इस मशीनी युग में जीवन यंत्रवत्, ठूंठ और नीरस बनकर रह गया है। जीवन में सरसता, आनन्द, भोग-विलास, प्रेम, सुयोग्य पति पत्नी प्राप्ति के लिए वाक् सिद्धि के शक्ति मांतगी दीक्षा श्रेष्ठ है। इसके अलावा साधक में गुण भी आ जाते हैं। उसमें आशीर्वाद व श्राप देने की जाती है, और वह एक सम्मोहक व कुशल वक्ता बन जाता है।
10 कमला दीक्षा– दरिद्रता को जड़ से समाप्त कर धन का अक्षय स्रोत प्राप्त करने में कमला दीक्षा अत्यंत प्रभावी होती है। इसके प्रभाव से व्यापार में चतुर्दिक वृद्धि होती है, यदि नौकरी पेशा व्यक्ति है, तो उसकी पदोन्नति होती है। बेरोजगार व्यक्ति को राज्यपद प्राप्त होता है। एक तरह से इस दीक्षा के माध्यम से जीवन में स्थायित्व आ जाता है।
दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya Deeksha प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है, साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थाना भाव के कारण यहां नहीं हुआ है, वस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनाओं में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू | नहीं है,
कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया। दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुसंस्कारों का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है, ज्ञान, शक्ति व सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व प्रसन्नता आ पाती है।
दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है. और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाव ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अंदर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है। जब कोई पूर्ण श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसन्नता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते हैं, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी ईर्ष्या करते हैं।
rakta chamunda रक्तचामुण्डा यक्षिणी सब से तीव्र वशीकरण साधना रक्तचामुण्डा साधना आपार वशीकरण हासिल करने की साधना जिसे से स्त्री पति पत्नी ,प्रेमिका को वश में किया
rakta chamunda रक्तचामुण्डा यक्षिणी साधना साधन विधि – इस रक्तचामुण्डा यक्षिणी मन्त्र से अभिमंत्रित गुड़हल के सहस्र फूलों से हवन करने पर राजा वशीभूत होता है । ( ४४ ) कनेर के सहस्र फूलों से हवन करने पर सब लोग वशीभूत होते हैं । कपूर के साथ सेवती के सहस्र फूलों का हवन करने से द्रव्य-प्राप्ति होती है। जुही के सहस्र फूलों का हवन करने से पुत्र प्राप्ति होती है स्त्री का नाम लेकर हवन करने से स्त्री की प्राप्ति होती है। सेमल के सहस्र फूलों का हवन करने से शत्रु की मृत्यु तथा उच्चाटन होता है ।
निवारी के सहस्र फूलों का हवन करने से शत्रु का नाश होता है । सहस्र कमलों से हवन करने पर अकाल में बादल होकर वर्षा होती है । ‘अमुक रोगी के रोग का नाश हो’ इस प्रकार कहते हुए सहस्र कचनार के फूलों से हवन करने पर रोगी का रोग नष्ट होता है । अलसी के सहस्र फूलों से हवन करने पर सबकी वृद्धि होती है तथा गरा के सहस्र फूलों से हवन करने पर सुभिक्ष होता है और वर्षा होती है । यह ‘ रक्तचामुण्डा यक्षिणी मन्त्र’ अनेक प्रकार की अभि-! लाषाओं को पूर्ण करने वाला है । मन्त्र में जिस स्थान पर ‘अमुक’ शब्द आया है, वहाँ साध्य व्यक्ति के नाम का उच्चारण करना चाहिए ।
साधना में जल्दी सिद्धि कैसे प्रपात करे How to get siddhi fast in sadhna ph.85280 57364
साधना में जल्दी सिद्धि कैसे प्रपात करे How to get siddhi fast in sadhna सिद्धि मिले तो कैसे ? आज जन साधारण में यह चर्चा सुनने में आती है कि सिद्धियां प्राप्त नहीं होती और यह बहुत हद तक सही भी है. इसका मुख्य कारण हम लोगों के संस्कार, शिक्षा, आचार-व्यवहार, ब्रह्मचर्य, रहन सहन इत्यादि है।
सबसे पहले प्रथम संस्कारों को ही लीजिये कि माता-पिता जन्मजात कुमारों के जिनके कि हर प्रकार से सभी संस्कार होने की आवश्यकता है. वर्तमान समय की नई हवा से प्रभावित होने के कारण तथा अधार्मिक शिक्षा के प्रभाव में बड़े होने के कारण किसी भी प्रकार के संस्कार करने में उन्हें कोई सांधे नहीं है। इससे वे जन्मजात ब्राह्मण कुमार भी असंस्कारी शूद्रवत् रह जाते हैं। जैसा स्तुतियों में स्पष्ट लिखा है- जन्मना जायते शूदी. संस्कारात् द्विज् उच्यते ।”
जब वे असंस्कृत रह गये तो फिर मंत्र दीक्षा के वे अधिकारी तो हो ही नहीं सकते. परन्तु फिर भी आचार्य लोग स्वदक्षिणा के लोभ में या धन से प्रभावित होकर ब्राह्मणतत्व का दोष परिहार किये बिना ही कालातिक्रमण हो जाने पर भी जैसे-तैसे उन्हें उपवीती बना ही देते हैं. और बात ही बात में दीक्षित भी कर देते हैं. फलतः ब्राह्मण कुमार उपवीत को गले में इसलिए रख लेते हैं, कि वह ब्राह्मण का प्रतीक चिह्न है. परन्तु मैला हो जाने पर उसे गले से निकालकर साबुन से धोकर सुखा देते हैं। इतना ही नहीं सर्दी के दिनों में तो कई लोग ब्रह्मगांठ को सुखाने में खूंटी पर लटका लेते हैं। भूले भटके जब याद आ जाए तो गले में डाल लेते हैं। स्पष्ट है कि इस प्रकार उस ब्रह्मसूत्र का क्या महत्त्व रह जायेगा?
केवल दिखाऊ यज्ञोपवीत उन द्विज पुत्रों के गले में यदाकदा पड़ा रहता है। इसके बाद ही विवाह संस्कार भी जैसे-तैसे सम्पन्न हो ही जाते हैं। इसके अतिरिक्त जितने भी संस्कार है उनसे पलायन और कहीं-कहीं मौजूद है भी. इसे नकारा नहीं जा सकता। तो विधि-विधान में और बिना विधि में क्या फर्क रहा ? यह तो हुई संस्कारों की वस्तुस्थिति।
आज के युग में स्कूलों व कॉलेजों का अधिकांश भाग दुर्गुणों से पीड़ित है। उनमें अधिकांश जूते पहने खाना, पेन्ट इत्यादि पहिने खड़े-खड़े लघुशंका आदि करना आरम्भ में ही बालक सीख लेते हैं। जहां तक गुरु के सम्मान का प्रश्न है उसकी कल्पना भी व्यर्थ है। गुरु वर्ग को मारना पीटना एक फैशन-सा हो गया है इससे बढ़कर शिक्षा का और क्या हास हो सकता है?
फिर गुरुमुख उच्चारित हो भी तो कहां से? अब आचार-व्यवहार का भी भाव यह है कि जहां भारत वर्ष में “अचारो प्रथमो धर्मः!” माना जाता था वहां स्नान आचमनादि का यह हाल है कि समय पर भूलकर भी कोई शय्या त्याग करता. उठते ही आजकल के लोगों को चाय और नाश्ता चाहिए जिसके धूमावती एवं बगलामुखी तांत्रिक साधनाएं बिना यह कहते सुना गया है. कि चाय बिना स्फूर्ति उपलब्ध नहीं होती यानी कि स्फूर्ति का टॉनिक चाय है।
अब उनके कथनानुसार दूध के गुण तो मारे ही जाते हैं। चाय पीते ही यह सिद्ध होता है, कि चाय इत्यादि पीकर ही शौचादि से निवृत्त होने के लिए कदम उठ है. तथा निवृत होकर समाचार-पत्र पढ़ने के लिए बैठ जाते हैं। स्मृति, वेद, पुराणों का पठन-पाठन इसके आगे समाप्तप्राय हो गया है। समय मिलते ही गर्मी में तो स्नान इत्यादि करेंगे, परन्तु सर्दी हुई तो मुंह हाथ तथा सिर पर जो लम्बी जटा रूपी बाल है, धो लेंगे। मेरा एक मित्र इसी को ड्राइक्लीनिंग होना कहता है उसके बाद भीजन इस प्रकार नित्य कृत्य में अन्याय कर्म रह जाते हैं। संध्यावन्दन तो कल्पना की बात हो गई है।
इसी प्रकार अन्य कुकृत्यों के कारण आचार समाप्त हो गये हैं। झूठ सत्य का नाम-निशान नहीं रहा। हम हर पल में छोटी-छोटी बातों में भी: बोलने से नहीं कतराते । असत्य भाषण, कटु भाषण, निन्दित भाषण, परनिन्दा, छिद्रान्वेषण आदि कर्म करने में नहीं चूकते हैं। फिर धर्म शास्त्रानुसार सिद्धि हो तो कैसे ? ब्रह्मचर्य की तो पराकाष्ठा विपरीत रूप में दिखाई देती है । आज का बालक कल का युवा सभी सिगरेट पीना, पान खाना. तड़कीले भड़कीले वस्त्र पहनना आदि दुर्गुणों से व्याप्त हैं। कुसंगति में पड़कर भावी जीवन पर कत्तई ध्यान न देकर अपरिपक्व अवस्था में नाना प्रकार की बीमारियों के शिकार होकर असमय ही काल के ग्रास हो जाते हैं। रहन-सहन भी आजकल अपरिग्रही के बजाय परिग्रही बनता जा रहा है ।
जिधर देखिये छात्र के आस-पास बनावटीपन दिखेगा। पतलून पाजामा, कमीज, कोट, कुर्ता, बुशर्ट आदि दिखेगा। सत्य तो यह है कि लड़के और लड़की में भेद करना असंभव है। दूसरी और असहनशीलता छात्रों में घर कर गई है। इसका असर कुटुम्ब और परिवार पर भी दिखाई देता है ।
पाठक ही बताये ऐसी विपन्न अवस्था में सिद्धि हो तो कैसे हो ? इसके लिए हमें अपने धर्मशास्त्रों के अनुसार जन्मजात बच्चों के संस्कार तो तत् साक्षीय गृह सुविधानुसार करने चाहिए और प्राचीन परिपाटी के अनुसार गुरुकुलों का संचालन हो जिनमें सांस्कारिक शिक्षा की हो ताकि धर्म क्या है? इसका भली प्रकार भान हो सके और नित्य नियमपूर्वक संस्कारिक शिक्षा-दीक्षा दी जाय ताकि वे गुरुकुल से निवृत्त होकर घर जाने पर नियमों का उल्लंघन न कर सकें । जब वे धर्माचरण में निवृत्त होकर संध्या इत्यादि कर्म करते रहेंगे तो उन्हें सिद्धियां अवश्यमेव प्राप्त होंगी, और उन्हें गुरु-दीक्षा से मंत्र रहस्य इत्यादि भी ज्ञात हो सकेंगे।
तांत्रिकों की इष्ट देवी माँ तारा का रहस्य , Ph. 85280 57364
तांत्रिकों की इष्ट देवी माँ तारा का रहस्य Tara Rahasya, Ph. 85280 57364 तंत्र साधकों, विशेषकर शाक्त सम्प्रदाय से सबंध रखने वाले तांत्रिकों के लिये दस महाविद्याओं की साधनाएं सम्पन्न करना अति आवश्यक है। इन दस महाविद्याओं को पूर्ण रूप से सिद्ध करने के बाद ही वह आगे पथ पर अग्रसर हो पाते हैं और सम्पूर्णता के साथ दिव्य आनन्द की अनुभूति प्राप्त कर पाते हैं। तंत्र साधना की इन दस महाविद्याओं में ‘तारा महाविद्या’ का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। इसलिये तांत्रिकों के लिये तारा महाविद्या की साधना सबसे श्रेष्ठ और अद्भुत एवं प्रभावपूर्ण मानी गयी है।
इस महाविद्या को पूर्णतः से सिद्ध करते ही तांत्रिक महातांत्रिकों की कतार में सम्मिलित हो जाता है। फिर उस साधक के लिये कुछ भी अगम्य और अबोध नहीं रह जाता। प्रकृति उसकी कल्पना और इच्छा मात्र से संचालित होने लग जाती है। यद्यपि तारा महाविद्या को पूर्ण रूप से स्वयं में आत्मसात कर पाना अपवाद स्वरूप ही किसी तांत्रिक के वश की ही बात होती है। इसीलिये बहुत कम साधक ही तंत्र क्रिया के माध्यम से तारा महाविद्या को पूर्ण रूप से साथ साधने में सक्षम हो पाये हैं । भगवान राम के कुल पुरोहित वशिष्ठ जी को इस महाविद्या का प्रथम तंत्र साधक माना जाता है ।
लंकाधिपति रावण ने भी तारा महाविद्या की साधना की थी। वर्तमान युग में बंगाल के प्रख्यात तंत्र साधक वामाक्षेपा, कामाख्या के महातांत्रिक रमणीकान्त देवशर्मन, नेपाल के सुप्रसिद्ध तांत्रिक परमहंस देव आदि ही कुछ ऐसे तांत्रिक हुये हैं, जो तारा महाविद्या की दिव्य अनुभूतियां प्राप्त कर पाने में सफल हो पाये हैं। बंगाल के तांत्रिक वामाक्षेपा के संबंध में तो ऐसी किंवदंतियां प्रचलित रही हैं कि वह माँ की उपासना में इतने अधिक तल्लीन रहते थे कि उन्हें हफ्तों और कभी-कभी तो महीनों तक स्वयं की कोई सुध-बुध नहीं रहती थी।
इस शमशानवासी तांत्रिक की दयनीय हालत जब माँ से सहन नहीं होती थी, वह स्वयं आकर अपने प्रिय भक्त को अपना स्तनपान कराया करती थी । तांत्रिक देवशर्मन के संबंध में भी अनेक अद्भुत बातें प्रचलित रही हैं । शाक्त तांत्रिकों की इन दस महाविद्याओं की साधनाओं में जो साधक गहरी रुचि रखते हैं और जो इन महाविद्याओं को स्वयं में आत्मसात करना चाहते हैं, इन महाविद्याओं को सिद्ध करना चाहते हैं, उन सभी को एक बात ठीक से समझ लेनी चाहिये कि आज के जो तथाकथित तंत्र गुरु इन महाविद्याओं की साधना के संबंध में जो दिवास्वप्न दिखाते हैं, वह सब वास्तविकता से बहुत दूर की चीजे हैं।
वास्तव में तो वह स्वयं भी किसी वास्तविक अनुभूति की प्रक्रिया से नहीं गुजरे होते हैं। उनकी सम्पूर्ण बातें पुस्तकीय पाठन, मानसिक सृजन और काल्पनिक बीज से अंकुरित होती हैं। तंत्र साधकों द्वारा जो मुण्डमाला तंत्र, चामुण्डा तंत्र, शाक्त प्रमोद तारा तंत्र जैसे अनेक ग्रंथ लिखे गये हैं, उनमें दस महाविद्याओं के रूप में माँ तारा का द्वितीय स्थान रखा गया है । इन्हें विश्वव्यापिनी आद्यशक्ति का द्वितीय रूपान्तरण माना गया है, जो स्वयं को अनंत- अनंत रूपों में विभाजित करके सृष्टि की रचना और पोषण का कार्य देखती है ।
इसलिये यह महाविद्या सृजन शक्ति से सदैव सम्पन्न रहती है। तंत्र साहित्य में माँ तारा की साधना, पूजा-उपासना और तांत्रिक अनुष्ठानों पर बहुत विस्तार से प्रकाश डाला गया है। माँ तारा के ऐसे अनुष्ठानों को सम्पन्न करके अनेक प्रकार की पीड़ाओं तथा कष्टों से सहज ही मुक्ति मिल जाती है और माँ के साधक सहज ही विभिन्न प्रकार के भौतिक सुख, साधनों की प्राप्ति कर लेते हैं। इतना ही नहीं, इस महाविद्या की साधना के माध्यम से परमात्मा का सहज साक्षात्कार पाकर मुक्ति लाभ भी सहज एवं सम्भव हो जाता है।
माँ तारा का स्वरूप आद्य जननी महाकाली से बहुत साम्य रखता है । यद्यपि यह कज्जल सी काली न होकर गहरे नीले वर्ण वाली है । इसलिये इन्हें ‘नील सरस्वती’ भी कहा जाता है। माँ का यह नीला रंग अनन्त, असीम सीमाओं और क्षमताओं का प्रतीक है। माँ की इन असीम, अनंत क्षमताओं की वास्तविक अनुभूति इनकी साधना के माध्यम से ही प्राप्त हो पाती है । अतः द्वितीय महाविद्या के रूप में माँ तारा अनंत, असीम संभावनाओं की प्रतीक है। तारा की तंत्र साधना और उनके तांत्रिक अनुष्ठानों के विषय में गहराई से जानने से पहले अगर ‘तंत्र’ और ‘तंत्र की सीमाओं’ के विषय में थोड़ा जान लिया जाये तो अधिक उपयुक्त रहेगा, क्योंकि इससे तंत्र के वास्तविक रूप विशेषकर तांत्रिकों की महाविद्याओं और उनकी अनुकंपा के प्रसाद स्वरूप प्राप्त होने वाले फलों को समझने में सहजता रहेगी।
जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism
जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism
जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism : तारा महाविद्या की साधना तंत्र साधकों के अतिरिक्त बौद्ध भिक्षुओं और जैन साधकों भी खूब प्रचलित रही है । अगर बात जैन धर्म की की जाये तो प्राचीन समय से ही जैन मतावलम्बियों में माँ तारा की उपासना होती आ रही है। दरअसल जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है और उन्हीं के अनुसार चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस शासन देवियां मानी गयी हैं। इन देवियों को जिन शासन में शीर्ष स्थान प्रदान किया गया है। जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को स्वीकार किया गया है और उसी प्रकार भगवान ऋषभदेव के शासन की प्रभाविका देवी चक्रेश्वरी मानी गयी है। जैन धर्म में आठवें तीर्थंकर के रूप में चन्द्रप्रभु की मान्यता है और उनकी शासन देवी ज्वाला मालिनी देवी मानी गयी ।
इसी प्रकार बाइसवें तीर्थंकर की मान्यता भगवान नेमिनाथ को दी गई है और उनकी शासन देवी का स्थान अम्बिका को दिया गया है । तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ माने गये हैं और उनकी शासन प्रभाविका देवी के रूप में ही माँ तारा की प्रतिष्ठा माता पद्मावती के रूप में की गयी है। जैन धर्मावलम्बियों में देवी पद्मावती के रूप में माँ तारा की पूजा, अर्चना, आराधना से इहलोक के साथ-साथ परलोक संबंधी समस्त सुख, वैभवों की प्राप्ति की मान्यता रही है। माता पद्मावती के प्रति भक्ति और उनके आशीर्वाद की गौरव गाथा जैन ग्रंथों में यत्र- तत्र विपुल मात्रा में उपलब्ध है। यहां एक ओर लोकेषणा (सांसारिक इच्छाओं की प्राप्ति) के लिये माँ की पूजा-अर्चना की जाती है, वहीं दूसरी ओर बड़े-बड़े जैन मुनियों ने अलौकिक एवं दिव्य आनन्द की प्राप्ति के लिये कल्याणमयी माँ पद्मावती को अपनी आराधना का अंग बनाया ।
ऐसे उल्लेख मिलते हैं कि प्रसिद्ध जैन मुनि हरिभद्र शूरि ने अम्बिका देवी को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, तो वहीं दूसरी ओर आचार्य भट्ट अकलंक ने माता पद्मावती को प्रसन्न करके उनसे वरदान ग्रहण किया । आचार्य भद्रबाहू स्वामी ने एक व्यंतर (देव) के घोर उपसर्ग से आत्मरक्षा के निमित्त माँ पद्मावती की अभ्यर्थना की थी । एक अन्य जैन श्रुति के अनुसार श्रृणुमान, गुरुदत्त तथा महताब जैसे जैन श्रावकों पर भी मा पद्मावती की सदैव विशेष अनुकंपा बनी रही 1 माता पद्मावती को विभिन्न नामों से स्मरण किया जाता है, जिनमें सरस्वती, दुर्गा, तारा, शक्ति, अदिति, काली, त्रिपुर सुन्दरी आदि प्रमुख हैं। माता पद्मावती की स्तुति, भक्ि के लिये जैन ग्रंथों में विपुल स्तोत्र साहित्य उपलब्ध है ।
इनकी स्तुति एवं भक्ति समस्त दुःखों का शमन करने वाली, प्रभु का सान्निध्य, सामीप्य के साथ-साथ दिव्य आनन्द प्रदान करने वाली संजीवनी मानी गयी है । विभिन्न स्तोत्रों के रूप में माता पद्मावती की पूजा- अर्चना भक्त हृदयों का कंठहार बन गयी है । पार्श्वदेव गणि कृत भैरव पद्मावती कल्प स्तोत्र में कहा गया है कि माता पद्मावती की आराधना से राज दरबार में, शमशान में, भूत-प्रेत के उच्चाटन में, महादु:ख में, शत्रु समागम के अवसर पर भी किसी तरह का भय व्याप्त नहीं रहता । सांसारिक इच्छाओं से अभिभूत होकर बहुत से लोग माँ की पूजा-अर्चना में निमग्न होते हैं, लेकिन जब वह लौकिक भक्ति के साथ विशेष अनुष्ठान (तांत्रिक पद्धति) से करते हैं, तो उनका अनुष्ठान अलौकिक रूप धारण कर लेता है ऐसी अवस्था में साधक की भक्ति मंगललोक में प्रवेश कर जाती है, जैसे सौभाग्य रूप दलित कलिमलं मंगल मंगला नाम अर्थात् माता सौभाग्य रूप है तथा कलियुग के दोष हरण कर उत्कृष्ट मंगल को प्रदान करने वाली है।
तंत्र की भांति ही जैन धर्म भी माता पद्मावती का चतुर्भुजधारी रूप स्वीकार किया गया है। माता पद्मावती की प्रत्येक भुजा में क्रमशः आशीर्वाद, अंकुश, दिव्य फल और चतुर्थ भुजा में पाश (फंदा) माना गया है। माँ की इन भुजाओं का विशेष प्रतीकात्मक अर्थ है। जैसे माँ का प्रथम वरदहस्त समस्त प्राणी जगत को आशीर्वाद का संकेत प्रदान करता है। दूसरी बाजू में अंकुश है जो इस बात का प्रतीक है कि साधक को प्रत्येक स्थिति में अपने ऊपर अंकुश (संयम) बनाये रखना चाहिये। तीसरी बाजू में दिव्य फल भक्ति के फल को प्रदान करने वाला है, जबकि चतुर्थ बाजू में पाश प्रत्येक प्राणी को कर्मजाल से स्वयं को सदैव के लिये बचाये रखने के लिये प्रेरित करता है
जैनधर्म में माता पद्मावती का वाहन कर्कुट नाग माना गया है। यह भी तांत्रिकों की भांति माँ के रौद्ररूप का परिचायक है । कर्कुट नाग का अर्थ विषैले नाग से है। यह पापा चारियों के लिये दण्ड का चिह्न है। माता पद्मावती पार्श्वनाथ की लघु प्रतिमा को अपने शीश पर धारण किये रहती हैं । गुजरात में मेहसाणा के पास मेरी एक जैन मुनि से भेंट हुई थी, जो पिछले लगभग चालीस सालों से माँ पद्मावती की साधना करते आ रहे हैं। उन्होंने तांत्रिक पद्धति से माँ का साक्षात्कार प्राप्त करने में सफल्ता प्राप्त की है । इन जैन मुनि के आशीर्वाद मात्र से चमत्कार घटित होते हुये देखे गये हैं ।
Panchanguli sadhana – चमत्कारी प्राचीन त्रिकाल ज्ञान पंचांगुली साधना रहस्य ph.85280 57364
Panchanguli sadhana – चमत्कारी प्राचीन त्रिकाल ज्ञान पंचांगुली साधना रहस्य ph.85280 57364 गुरुमंत्र साधना। कॉम में स्वागत है ! आज हम फिर तिरकाल ज्ञान साधना के ऊपर वीडियो लेकर आया हु ! जो तिरकाल ज्ञान की सब से मशहूर साधनो में से एक है जिस का नाम पंचागुली विद्या ! तिरकाल ज्ञान की जानकारी के लिए हमारे ऋषि मोनीओ ने बहुत सारे ग्रंथो और साधनाओ की रचना की है !
इस काम में हमारे ऋषि मोनीओ ने बहुत योगदान पाया है महर्षि भृगु और ऋषि पराशर जी ने जी ने ज्योतिष विद्या का निर्माण किया ! भूत भविष्य वर्तमान जानने के बहुत सारे माध्यम है कोई ज्योतिष विद्या से जनता है कोई आज्ञा चक्र के माध्यम से जनता है सब के काल ज्ञान की साधना के अलग अलग माध्यम हसत रेखा देखता है इन सब से श्रेष्ठ माध्यम साधना का है !
पंचांगुली विद्या
पंचांगुली शाबर मंत्र
पंचांगुली मंत्र
पंचगुली साधना विद्या को सिद्ध कैसे करे
पंचांगुली साधना रहस्य
पंचांगुली साधना काल ज्ञान जानने का फायदा
ज्योतिष विद्या डेट ऑफ़ बर्थ पर और आप के जनम समय पर काम करती है जिस के पास अपना सही डेट ऑफ़ बर्थ नहीं है तो उस के लिए समस्या है ! जायदातर लोगो के पास सही डेट ऑफ़ बर्थ नहीं होता ! वहां ज्योतिष विद्या काम नहीं करेगी ! ज्योतिष में यह नहीं बताया जाता है फलानी तरीक को इतने समय में तुम्हारा काम होगा ! ज्योतिष समय और तरीक नहीं बताया जाता ! इस लिए ज्योतिष का ज्ञान कुछ हद तक ही है !
मैं किसी विद्या को श्रेष्ठ साबित करना नहीं है सब विद्या अपनी जग़ह सही है ! सब विद्याऐं भगवन के द्वारा बनी गई है ! सब विद्या श्रेष्ठ है सही है पर हर विद्या की एक लिमिट होते है ! उस के आगे वो विद्या काम नहीं कर सकती ! तंत्र विद्या की कुछ साधनाओ के द्वारा आप जान सकते है और बहुत बारीकी से इन साधनो के बरेव में मैंने बहुत सरे वीडियो और जानकारी अपने यूट्यूब चॅनेल गुरु मंत्र साधना और अपनी वेबसाइटgurumantrasadhna.com में दी है आप मेरे चैनल और मेरी वेबसाइट में देख जिन में मैंने करन पिशाचिनी साधना , मां दुर्गा तिरकाल ज्ञान साधना , वाराही तिरकाल ज्ञान साधना , इन साधनो पर मैंने वीडियो बनाए है ! तो अगर आप ने वो वीडियो नहीं देखा तो आप वो सब वीडियो जरूर देखे ,
आज भूत भविष्य वर्तमान जानने की और विद्या के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे जिस का नाम पंचगुली है विद्या है पंचागुली का अर्थ है पंच उंगली हाथ की पांच उंगलिओ से है ! हमारे इन हाथो में बहुत कुछ छिपा है हमारा अच्छा बुरा इन में बहुत सारी रेखाएँ है जिन में हमारे ज़िंदगी का सब हाल है पर इस सब को हर इंसान नहीं पढ़ सकता है इसे केवल पंचागुली देव्वी की किरपा से जान सकते है !
आप की ज़िंदगी में कब क्या होने वाला है सबा जाना जा सकता है किस वयक्ति को किया रोग है या भविष्य में क्या रोग होगा सब जान सकते है किसी वयक्ति को क्या रोग है या आने वाले टाइम में क्या रोग होगा सब जान सकते है एक संन्यासी फ़्रांस आकर वो भारत में सिद्ध ऋषि मुनिऔ का सान्ध्य में रहे और उन ऋषि मुनीओ से पंचगुली महाविद्या ज्ञान लिया और विश्व में विखायती को प्रपात करा उनका नाम है कीरो और वो किसी का भी भूत भविष्य बता देते थे उन की चर्चा चारो और फेल चुकी थी !
पर्दे में छिपे व्यक्ति के हाथ बाहर निकलवा करके भी कह देते थे अली जावेद का हाथ है यह महारानी विक्टोरिया का हाथ है उसको यह रोग है या यह ररोग होने वाला है और यह दुर्घटना घटित होने वाली है ! उन की लाखों पुस्तकें मार्किट में मिल जाऐगी ! पंचांगुली विद्या की और उसके संपर्क में आने से ही वह विश्वविख्यात हो गए !
पंचांगुली साधना काल ज्ञान जानने का फायदा – काल ज्ञान अगर आप को पता है तो अगर भविष्य होना लिखा है तो आप पहले से सावधान हो जाओगे और उस कर्मी को जायदा सेजयदा पूजा पाठ कर के टाल सकते हो ! इस का यह सबसे पहला फायदा है ! पूजा path से बड़े से बड़ा कर्म काटा जा सकता है !
गुरु जी के चार से पांच शिष्य थे तो हमारे इलावा सुरेश भी था उस की पत्नी भी गुरु जी से दीक्षित थी ! जब भी गुरु जी हमारी शहर में आते तो वो गुरु जी से मिलने के लिए अक्सर आती आते समय कुछ ले कर आती गुरु जी जब चार पांच दिन के लेया ही हमारे शहर में रुकते थे ! उन के शिष्य और उनके सज्जन मित्र मिलने के लेया आते तो उनके चाये पानी का इंतजाम सुरेश की पत्नी करती ! एक दिन सुरेश की पत्नी ने गुरु जी को हाथ देखने के लिए कहा गुरु जी को पंचागुली महाविद्या सिद्ध थी गुरु जे हाथ देख कर बताया के तुम्हारे ऊपर १४ दिन के भीतर एक ऐसा संकट आने वाला है !
जो तुम्हारी ज़िंदगी में पहले भी चूका है वही दुबारा फिर से होगा ! सुनकर घबराई और गुरुदेव से इस का समाधान पूछने लगी तो गुरु जी ने उन को एक लाची दाना दिया जब भी तुम्हे परेशानी हो तो तुम इस से खा लेना ! तो उस का ४ , ५, दिन बाद उस को दिमाग का बुखार हो गया जो सब से खतरनाक था तो गुरु जी की दिया गया लाची दाना खाया वो एक दम ठीक हो गई ! पंचागुली विद्या के माध्यम से आप शरीर के होने वाले रोग और उसका कारन सब जान सकते है ! पंचांगुली साधना का इस्तमाल हमारे ऋषि मुनी आयुर्वेद में भी करते थे पंचागुली विद्या एक बहुत बड़ा सिद्धि है!
पंचगुली साधना विद्या को सिद्ध कैसे करे इस साधना को सिद्ध करने के लेया आपके पास पंचागुली यन्त्र और पंचागुली दीक्षा लेना जरूरी है साथ में अच्छे गुरु का मार्गदर्शन जरूरी है ! और उस बाद आप की मेहनत जरूरी है तब जाकर आप सफल हो सकते है ! साधना करना इतना आसान काम नहीं है ! अगर आप यह साधना करना चाहते है तो आप हम से संपर्क कर सकते है जय महाकाल
इस साधना की जानकारी के लिए या दीक्षा प्रपात करने के लिए फ़ोन करे 85280 57364
पंचांगुली शाबर मंत्र
ॐ नमो पंचांगुली पंचांगुली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोंटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषिणीमध्ये शेकनीमध्ये गुणीमध्ये गरुडीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपर बुरो जो कोई करे करावे जड़े जडावे तत चिन्ते चिन्तावे तस माथे श्री माता श्री पंचांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठं ठं स्वाहा
Panchanguli – काल ज्ञान देवी पंचांगुली रहस्य विस्तार सहित Ph. 85280 57364
Panchanguli – काल ज्ञान देवी पंचांगुली रहस्य विस्तार सहित Ph. 85280 57364 प्रणाम संपूर्ण ब्रह्मांड अज्ञात शक्ति के द्वारा चलता है जिसे हम ब्रह्मा कहते हैं । ब्रह्म आधार ईश्वर सर्वत्र समान व्याप्त होते हुए भी इस समस्त ब्रह्मांड से दूर है । उसी ब्रह्म के विस्तार को हमने माया के रूप में जाना है और माया की निरंतरता कछु प्रतीक है ।
माया का जो प्रथम शस्त्र है उसे काल कहा जाता है । अर्थात समय निरंतर बहता है 3 वर्ष कोई नदी निरंतर बहती रहती हो । निर्वाचन किस समय कभी निश्चित है ब्रम्हांड बना समय की उत्पत्ति हुई पिछले कल भी था अभी भी है और आने वाले कल में भी होगा वही काल कहलाता है । इस कॉल को समझना साधक के लिए परम अनिवार्य तत्व कहा गया है अगम निगम दोनों ही ग्रंथों में काल स्वयंसेवक के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं
महाकाल कौन है प्रथम देव है । स्वयं को इस काल के उस पार जाने का ज्ञान देते हैं । जिनके भीतर एक ऐसी दिव्य शक्ति निहित है । कि वह साधक को त्रिकाल का ज्ञान देने में सर्व समर्थ होते हैं । वर्तमान काल को हमें कैसे जीना चाहिए । पुराना भूतकाल होने लगे तो वह एक उत्तम कार हो जाए आज ऐसा कौन सा कृत्य कर के आने वाले समय में सुबह ही उत्तम भविष्य हो जाए ।
ऐसे ही काल ज्ञान कहा जाता है । और ज्ञान विशेष विधि द्वारा प्राप्त होने वाला क्या है भारतीय ऋषि-मुनियों ने आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक सरकार की पद्धति से साधना की है । काल को जान सके ब्रह्मांड को जान सके । इसके लिए ज्ञान नाम की विद्या प्रदान की गई है । और काल क्या समय जानना है ।अपितु काल ज्ञान का तात्पर्य है होने तक का संपूर्ण चक्र यदि समझना है ।
तो हमें kaal ज्ञान साधना करनी होगी प्रकाश ज्ञान साधना विशेषताओं में से एक साधना है । लेकिन प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक साधक का ज्ञान के विराट स्वरूप और विराट प्रपंच को सरलता से नहीं समझ पाता इतनी इतनी विराट नहीं क्यों संपूर्ण ब्रह्मांड के बारे में सोचें अपने ही बारे में सोचना चाहता है ।
इसीलिए दृश्यों ने इसे बहुत सूक्ष्म निकाय से शुरू किया सामुद्रिक शास्त्र उससे भी छोटे नीचे के स्तर पर उसे कहा गया हस्तरेखा मस्तिष्क विज्ञान अंक विज्ञान प्रदर्शन भविष्य दर्शन और त्रिकाल ज्ञान भूत और भविष्य का और साथ ही साथ वर्तमान का विज्ञान प्राप्त कर सकें ।इसके लिए एक शक्ति की पूजा की गई स्वरूप की वंदना की गई है जिसे त्रिकाल का ज्ञान देने वाली कहा गया और उसे पंचांगुली कह कर संबोधित किया गया शक्ति क्या है
उसी प्रकार ब्रह्मांड में 5 अंगुलियां हैं जिन्हें हम पंचतत्व कहते हैं चित्रों को संचालित करने वाली है और जिसकी अपनी उंगलियों में पंचांगुली नाम की शक्ति है साधक को त्रिकालदर्शी बनाती है । और भविष्य का ज्ञान प्रदान करते हैं । इसीलिए काले होने की महा साधना है तंत्र में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो कम से कम काल ज्ञान और पंचांगुली साधना को संपन्ना करना चाहिए
अत्यंत जटिल और विराट विद्या इस विद्या को प्राप्त करना चाहिए। पंचांगुली देवी की साधना कैसे हो का मंत्र क्या है साधना विधान क्या है । ज्योति प्रकाश समझना चाहिए ब्रह्मांड की बात छोड़ कर यदि हम अपने शरीर को देखें तो यह भी कुछ छुपा है । हर दृष्टि हम कहीं तो हाथों की रेखाएं तो केवल किस लिए बनी है कि मैं हाथों को तोड़ मरोड़ सकूं ।
लेकिन इसके पीछे के हाथों को तोड़ मरोड़ करता है अंगुलियों की बनावट हड्डियों की बनावट त्वचा नाखून और एक रेखा आपके बारे में कुछ बताती है । बहुत बढ़िया तो उन्होंने उन्होंने शरीर पर तिल विज्ञान को ढूंढा शरीर के अंग अंग पर तिल होने पर क्या होगा ।आकृति नाथ की आकृति सर की आकृति शरीर की आकृति हाथों की रेखाओं के साथ-साथ पैरों की रेखाएं के बनावट प्रत्येक तत्वों को देखा पूर्वाभास के क्षमताओं को विचारा ।
अंत में एक महाशक्ति से जुड़ा हुआ पाया जिससे पंचांगुली कहा जाता है ।अर्थात ब्रह्मांड को अपने पांच उंगलियों पर करने वाली ब्रह्मांड को पांच उंगलियों के द्वारा संचालित करने वाले शक्ति ही पंचांगुली नाम की महाशक्ति है। पंचांगुली साधना क्यों आने वाले हैं । साधना से आपको मुद्दा गंभीरता प्रतिवेदन मिलती है कि आप पृथ्वी पर कैसे जीवन जीना हैं इसकी आपको प्राप्त होते हैं । शत्रु तो कहीं मित्र है तो कहीं निरंतर हो रहा है
कभी शब्द के पीछे इतने अधिक पड़ जाते हैं कि व्यक्ति विचलित होकर आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगता है । अध्यात्म के शिखर को पाना चाहता है ।तो कभी राज्य सत्ता के शिखर को प्राप्त करना चाहता है ।पर जाना चाहता है जाना चाहता है तो उनके निमित्त पंचांगुली साधना मौलिक साधना की गई करने वाला भूत वर्तमान और भविष्य की पारीक रखता है । जुड़कर भविष्य लगता है इसलिए गुरुओ का कथन है पंचांगुली साधना से व्यक्ति अपने भूत और वर्तमान को भी देख सकता है अद्भुत भारतीय साधना को कैसे सफल किया जाए ब्रह्मांड को आप जानना चाहते हैं फिर आप जीवन और मरण के बंधन को समझने के योग्य हो जाते हैं । आपके समस्त कष्टों का हरण करने वाली है । क्योंकि यदि आपको आज ही पता हो कि कल आपके साथ पूरा होने वाला है ।तो आप तपोबल और साधना से भविष्य को सुधारने में समर्थ हो सकते हैं । अपने जीवन में मनचाहा परिवर्तन ला सकते हैं । कुंडली में ग्रहों के दर्शाए उत्तर नहीं है तो आप से परिवर्तित कर सकते हैं यदि आपके में कोई भावना हो सकते हैं
और आप इसी कारण पंचांगुली साधना बेहद बेहद और अत्यंत विराट साधना है देने के लिए अति संक्षेप में आपको की पंचांगुली देवी उसका साधना विधान समझाने के लिए प्रेरणादायक बताने के लिए कुछ शब्द आपको कहे । लेकिन शब्दों में इस महाविद्या को नहीं जान सकते। सर्वप्रथम पंचांगुली काल ज्ञान मंत्र लेना चाहिए और इत्यादि सहित अन्य मंत्रों का भी हवन करना चाहिए जिससे पंचांगुली साधना प्राप्त कर सकते हैं
कि शास्त्र सम्मत इसी प्रकार शास्त्र ने प्राचीन समय से ऋषि होने पर गुरुओं ने क्या है तो पंचांगुली साधना आप अपने जीवन में कर सकें आप अपने हाथों की रेखाओं में क्या छुपा है यह जान सके चेहरे की आकृति और बनावट में क्या छुपा है यह जान सकें और भविष्य के आने वाले समय में आपके लिए क्या छुपा सके और आने वाले वक्त को बदल सकें आशीर्वाद आपको देता हूं
मंत्र के माध्यम से आपको देवी माता की स्तुति करनी चाहिए ।और देवी की सिद्धि के लिए प्रथम पात्रता अर्जित करने का की प्रमुख मंत्र है । इसी मंत्र से आपको पात्रता प्राप्त होगी और आप अपने गुरु के पास जाकर इस देवता को प्राप्त कर सकेंगे भूमिका में प्रणाम ।
pachaguli sadhna पंचांगुली साधना सम्पूर्ण रहस्य विस्तार सहित ph.8528057364
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pachaguli sadhna पंचांगुली साधना सम्पूर्ण रहस्य विस्तार सहित प्रणाम संपूर्ण ब्रह्मांड अज्ञात शक्ति के द्वारा चलता है जिसे हम ब्रह्मा कहते हैं । ब्रह्म आधार ईश्वर सर्वत्र समान व्याप्त होते हुए भी इस समस्त ब्रह्मांड से दूर है । उसी ब्रह्म के विस्तार को हमने माया के रूप में जाना है और माया की निरंतरता कछु प्रतीक है ।
माया का जो प्रथम शस्त्र है उसे काल कहा जाता है । अर्थात समय निरंतर बहता है 3 वर्ष कोई नदी निरंतर बहती रहती हो । निर्वाचन किस समय कभी निश्चित है ब्रम्हांड बना समय की उत्पत्ति हुई पिछले कल भी था अभी भी है और आने वाले कल में भी होगा वही काल कहलाता है । इस कॉल को समझना साधक के लिए परम अनिवार्य तत्व कहा गया है अगम निगम दोनों ही ग्रंथों में काल स्वयंसेवक के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं
महाकाल कौन है प्रथम देव है । स्वयं को इस काल के उस पार जाने का ज्ञान देते हैं । जिनके भीतर एक ऐसी दिव्य शक्ति निहित है । कि वह साधक को त्रिकाल का ज्ञान देने में सर्व समर्थ होते हैं । वर्तमान काल को हमें कैसे जीना चाहिए । पुराना भूतकाल होने लगे तो वह एक उत्तम कार हो जाए आज ऐसा कौन सा कृत्य कर के आने वाले समय में सुबह ही उत्तम भविष्य हो जाए ।
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ऐसे ही काल ज्ञान कहा जाता है । और ज्ञान विशेष विधि द्वारा प्राप्त होने वाला क्या है भारतीय ऋषि-मुनियों ने आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक सरकार की पद्धति से साधना की है । काल को जान सके ब्रह्मांड को जान सके । इसके लिए ज्ञान नाम की विद्या प्रदान की गई है । और काल क्या समय जानना है ।अपितु काल ज्ञान का तात्पर्य है होने तक का संपूर्ण चक्र यदि समझना है ।
तो हमें kaal ज्ञान साधना करनी होगी प्रकाश ज्ञान साधना विशेषताओं में से एक साधना है । लेकिन प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक साधक का ज्ञान के विराट स्वरूप और विराट प्रपंच को सरलता से नहीं समझ पाता इतनी इतनी विराट नहीं क्यों संपूर्ण ब्रह्मांड के बारे में सोचें अपने ही बारे में सोचना चाहता है ।
इसीलिए दृश्यों ने इसे बहुत सूक्ष्म निकाय से शुरू किया सामुद्रिक शास्त्र उससे भी छोटे नीचे के स्तर पर उसे कहा गया हस्तरेखा मस्तिष्क विज्ञान अंक विज्ञान प्रदर्शन भविष्य दर्शन और त्रिकाल ज्ञान भूत और भविष्य का और साथ ही साथ वर्तमान का विज्ञान प्राप्त कर सकें ।इसके लिए एक शक्ति की पूजा की गई स्वरूप की वंदना की गई है जिसे त्रिकाल का ज्ञान देने वाली कहा गया और उसे पंचांगुली कह कर संबोधित किया गया शक्ति क्या है
उसी प्रकार ब्रह्मांड में 5 अंगुलियां हैं जिन्हें हम पंचतत्व कहते हैं चित्रों को संचालित करने वाली है और जिसकी अपनी उंगलियों में पंचांगुली नाम की शक्ति है साधक को त्रिकालदर्शी बनाती है । और भविष्य का ज्ञान प्रदान करते हैं । इसीलिए काले होने की महा साधना है तंत्र में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो कम से कम काल ज्ञान और पंचांगुली साधना को संपन्ना करना चाहिए
अत्यंत जटिल और विराट विद्या इस विद्या को प्राप्त करना चाहिए। पंचांगुली देवी की साधना कैसे हो का मंत्र क्या है साधना विधान क्या है । ज्योति प्रकाश समझना चाहिए ब्रह्मांड की बात छोड़ कर यदि हम अपने शरीर को देखें तो यह भी कुछ छुपा है । हर दृष्टि हम कहीं तो हाथों की रेखाएं तो केवल किस लिए बनी है कि मैं हाथों को तोड़ मरोड़ सकूं ।
लेकिन इसके पीछे के हाथों को तोड़ मरोड़ करता है अंगुलियों की बनावट हड्डियों की बनावट त्वचा नाखून और एक रेखा आपके बारे में कुछ बताती है । बहुत बढ़िया तो उन्होंने उन्होंने शरीर पर तिल विज्ञान को ढूंढा शरीर के अंग अंग पर तिल होने पर क्या होगा ।आकृति नाथ की आकृति सर की आकृति शरीर की आकृति हाथों की रेखाओं के साथ-साथ पैरों की रेखाएं के बनावट प्रत्येक तत्वों को देखा पूर्वाभास के क्षमताओं को विचारा ।
अंत में एक महाशक्ति से जुड़ा हुआ पाया जिससे पंचांगुली कहा जाता है ।अर्थात ब्रह्मांड को अपने पांच उंगलियों पर करने वाली ब्रह्मांड को पांच उंगलियों के द्वारा संचालित करने वाले शक्ति ही पंचांगुली नाम की महाशक्ति है। पंचांगुली साधना क्यों आने वाले हैं ।
साधना से आपको मुद्दा गंभीरता प्रतिवेदन मिलती है कि आप पृथ्वी पर कैसे जीवन जीना हैं इसकी आपको प्राप्त होते हैं । शत्रु तो कहीं मित्र है तो कहीं निरंतर हो रहा है
कभी शब्द के पीछे इतने अधिक पड़ जाते हैं कि व्यक्ति विचलित होकर आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगता है । अध्यात्म के शिखर को पाना चाहता है ।तो कभी राज्य सत्ता के शिखर को प्राप्त करना चाहता है ।
पर जाना चाहता है जाना चाहता है तो उनके निमित्त पंचांगुली साधना मौलिक साधना की गई करने वाला भूत वर्तमान और भविष्य की पारीक रखता है । जुड़कर भविष्य लगता है इसलिए गुरुओ का कथन है पंचांगुली साधना से व्यक्ति अपने भूत और वर्तमान को भी देख सकता है अद्भुत भारतीय साधना को कैसे सफल किया जाए ब्रह्मांड को आप जानना चाहते हैं फिर आप जीवन और मरण के बंधन को समझने के योग्य हो जाते हैं ।
आपके समस्त कष्टों का हरण करने वाली है । क्योंकि यदि आपको आज ही पता हो कि कल आपके साथ पूरा होने वाला है ।तो आप तपोबल और साधना से भविष्य को सुधारने में समर्थ हो सकते हैं । अपने जीवन में मनचाहा परिवर्तन ला सकते हैं । कुंडली में ग्रहों के दर्शाए उत्तर नहीं है तो आप से परिवर्तित कर सकते हैं यदि आपके में कोई भावना हो सकते हैं
और आप इसी कारण साधना बेहद बेहद और अत्यंत विराट साधना है देने के लिए अति संक्षेप में आपको की पंचांगुली देवी उसका साधना विधान समझाने के लिए प्रेरणादायक बताने के लिए कुछ शब्द आपको कहे । लेकिन शब्दों में इस महाविद्या को नहीं जान सकते। सर्वप्रथम पंचांगुली काल ज्ञान मंत्र लेना चाहिए और इत्यादि सहित अन्य मंत्रों का भी हवन करना चाहिए जिससे पंचांगुली साधना प्राप्त कर सकते हैं
कि शास्त्र सम्मत इसी प्रकार शास्त्र ने प्राचीन समय से ऋषि होने पर गुरुओं ने क्या है तो पंचांगुली साधना आप अपने जीवन में कर सकें आप अपने हाथों की रेखाओं में क्या छुपा है यह जान सके चेहरे की आकृति और बनावट में क्या छुपा है यह जान सकें और भविष्य के आने वाले समय में आपके लिए क्या छुपा सके और आने वाले वक्त को बदल सकें आशीर्वाद आपको देता हूं
मंत्र के माध्यम से आपको देवी माता की स्तुति करनी चाहिए ।और देवी की सिद्धि के लिए प्रथम पात्रता अर्जित करने का की प्रमुख मंत्र है । इसी मंत्र से आपको पात्रता प्राप्त होगी और आप अपने गुरु के पास जाकर इस देवता को प्राप्त कर सकेंगे भूमिका में प्रणाम ओम नमः शिवाय ।