guru gorakhnath sadhna नाथ पंथ की प्राचीन गुरु गोरखनाथ साधना ph. 8528057364
guru gorakhnath sadhna नाथ पंथ की प्राचीन गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath साधना
guru gorakhnath sadhna नाथ पंथ की प्राचीन गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath साधना जय महाकाल मित्रों कैसे आप सभी आशा करता हूं मित्रों आप सभी अच्छे होंगे स्वस्थ होंगे। मित्रों आज मैं आपको गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी की सिद्धि के विषय में जानकारी दूंगा ,किस प्रकार से आप गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी की सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं । देखिए मित्रों गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी नाथों के नाथ हैं नाथ संप्रदाय के प्रचारक प्रसारक के और गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी शाबरी विद्या के भी बहुत ही सिद्ध सिद्ध ज्ञाता थे और उन्होंने बहुत सारे शाबर मंत्रों की रचना करी है ।
त उन्होंने साबर साबर मंत्रों को जन कल्याण के लिए के लिए दिया है ,तो मित्र यहां पर मैं आपको बताना चाहता हूं कि गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी के साथ में बहुत सारी शक्तियां चलती है । या फिर बहुत सारी शक्तियां गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी की बात मानती है । उनके आधीन चलती एक तरीके से बात करेंगे माता काली चलती है ।
गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी के साथ में और पांच बावरी चलते हैं गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी के साथ में जिसमें सबल सिंह सबल सिंह बावरी चलते हैं केसरमल बावरी चलते हैं । इसके अलावा गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी के साथ में मां ज्वाला चलती है और भी बहुत सारे पीर और पैगंबर बहुत सारी सिद्ध शक्तियां, गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी के साथ में चलते हैं भगवान शंकर शिव अवतारी गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी को कहा जाता है क्योंकि शिवजी के अंश मात्र गुरु गोरखनाथ guru gorakhnath जी और इन्होंने बहुत ही सारी सिद्धियां बहुत ही सारे शाबर मंत्र जनकल्याण के लिए दिए हैं ।
Vindhyavasini – प्राचीन माता विंध्यवासिनी की साधना रहस्य ph 85280 57364
Vindhyavasini – प्राचीन माता विंध्यवासिनी की साधना रहस्य
Vindhyavasini – प्राचीन माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini sadhna की साधना रहस्य और दोस्तों मेरे website गुरु मंत्र साधना में आपका एक बार हार्दिक स्वागत है आज जो मैं आपके सामने साधना देने वाला हूं। माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini भगवान श्री कृष्ण की योग माया है। यह साधना के क्षेत्र में अगर आपके ऊपर किसी ने कोई तंत्र प्रयोग किया है तो उससे तो साधक की रक्षा करती ही करती है।
ग्रस्त जीवन को पूर्णता के साथ जीते हुए जो व्यक्ति आध्यात्मिक की ओर बढ़ना चाहता है यह शक्ति स्वरूप जो है यह प्रहार भी करती है। उल्टा तलवार की धार पर चलने के समान होता है जिस पर चलकर पैर लहूलुहान हो जाते हैं किंतु जो विंध्यवासिनी Vindhyavasini है जो कि अपने दिव्य स्वरूप से पूर्ण रूप से सुशोभित होकर के शक्ति स्वरूपा जो है वह विराजमान होती है ,और साधक या व्यक्ति को उस दिशा की तरफ गतिशील होने में बहुत ही अहम योगदान उसका होता है।
विंध्यवासिनी Vindhyavasini शक्तिपीठ
माँ विंध्यवासिनी Vindhyavasini मंत्र
विंध्यवासिनी Vindhyavasini का इतिहास
विंध्यवासिनी Vindhyavasini पूजा
विंध्यवासिनी Vindhyavasini मंदिर कहा है
मिर्जापुर विंध्यवासिनी Vindhyavasini
विंध्याचल मंदिर Vindhyavasini का रहस्य
विंध्याचल त्रिकोण यात्रा
विंध्यवासिनी Vindhyavasini कौन है क्या है ?
विंध्यवासिनी Vindhyavasini का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य
जीवन की सर्वोच्च साधना है यह कौन है मैं पहले आपको बता देता हूं कि विंध्यवासिनी Vindhyavasini वास्तव में है कौन विंध्यवासिनी Vindhyavasini कौन है क्या है ? लेकिन वह मैं आपको आज पूरा बताता हूं पहले इसमें देखिए हमारा जो भारतवर्ष है वह पर्वतों को देवी-देवताओं का निवास माना जाता है वहां पर बागों में जो नदियों के किनारे मनुष्यों का निवास स्थान है पूरे भारतवर्ष में पांच पर्वत श्रृंखलाएं है जो की प्रसिद्ध है नंबर हिमालय विंध्याचल अरावली ब्रह्मपुत्र और नीलगिरी
अब हिमालय के बारे में तो स्पष्ट है कि यह आपने स्वरूप है ,भगवान शिव का जो कैलाश निवास स्थान है इसमें बताने की आवश्यकता ही नहीं लेकिन विंध्याचल पर्वत की जो श्रंखला है।
उसके बारे में कि विशेष तथ्य यह भी है कि मैदानी क्षेत्रों में भारत को दो भागों में वह बांटती है ठीक है और जिसके कि गंगा के गंगा के किनारे किनारे से लेकर के जो कावेरी कृष्णा गोदावरी नदी अभी बहती है।
अब उनके अनुसार पर्वतों देवी साधना तपस्या संपन्न की है जिनके फलस्वरूप में वरदान भी प्राप्त हुए, और पर्वतों पर देवताओं ने अपना निवास स्थान भी बनाया विंध्याचल पर्वत के बारे में क्या हुआ कि द्वापर युग से पहले एक देवी भागवत में एक विशिष्ट कथा आती है मैं आपको उस कथा के बारे में थोड़ा बताता हूं
सर गंगा के किनारे जो विंध्याचल पर्वत का आकार था वह बराबर लगातार बढ़ता जा रहा था और गंगा के किनारे जो लोग रहते थे उन्हें असुविधा होने लगी क्योंकि विंध्याचल पर्वत ने ऊंचाई बढ़ गई ना तो सूर्य की जो रोशनी कम कर दिया
और उस क्षेत्र के जो निवासी थे उन्होंने सोचा कि यदि विंध्याचल पर्वत इसी प्रकार से बढ़ता रहा तो 1 दिन जो सूर्य की रोशनी बिल्कुल ही नहीं आएगी और इस स्थान पर जो भी वनस्पति है जीव जंतु उनमें कोई भी बच नहीं हो सकेगी
तो ऐसा कोई ना कोई ऐसा उपाय खोज निकाला जाए तो उन्होंने एक महायज्ञ का आयोजन किया और जिसमें यज्ञ के जो पुरोहित के रूप में उन्होंने ऋषि अगस्त जी को आमंत्रित किया अब ऋषि अगस्त्य ने यज्ञ को संपन्न कराया और उनसे कारण पूछा कि
क्यों दुखी दिखाई दे रहे हो तो लोगों ने अपनी व्यथा बताई कहा कि इसका उपाय इस समस्या का तो मेरे पास है ऋषि अगस्त्य ने कहा पर्वत जो है वह विंध्याचल पर्वत था उसके सामने जाकर के वह खड़े हो गए और ऋषि को देख करके विंध्याचल पर्वत ने झुक करके प्रणाम किया
उसके झुकने पर ऋषि ने कहा कि मैं तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करता हूं लेकिन पूरा आशीर्वाद रामेश्वरम में अपनी तपस्या पूर्ण करके आऊंगा तभी प्रदान करूंगा मैं ना आ आउ तब तक तुम ऐसी स्थिति में ही रहोगे
ऋषि कि जो तपस्या पूर्ण कर वह विंध्याचल पर्वत की ओर आए नहीं उसके बाद में पर्वत झुका का झुका ही रह गया विंध्याचल पर्वत पर ऋषि अगस्त के जो आशीर्वाद के स्वरूप विंध्याचल पर्वत पर जगदंबा स्वयं तीर्थ शक्ति के रूप में विराजमान हुई
वहां पर विंध्याचल पर्वत को ऋषियों का भी वरदान प्राप्त हुआ यहां पर जो त्रिशक्ति है वह महाकाली महालक्ष्मी और महासरस्वती चैतन्य रूप में विराजमान है यहां पर और तीन महत्वपूर्ण शक्तिपीठ इसी पर्वत के केंद्र में स्थापित है विंध्याचल पर्वत को यदि वरदान प्राप्त हुआ कि हिमालय की परिक्रमा के समान अगर कोई तुम्हारी परिक्रमा भी करेगा तो वह भी पूर्ण फलदाई मानी जाएगी विंध्याचल पर्वत पर आकर के साधना संपन्न करेगा उसकी समस्त मनोकामनाएं भी पूर्ण किए
जो भगवान श्री कृष्ण की योग माया सकते वही विंध्याचल पर्वत पर विराजमान है वहीं माता जगदंबा विराजमान है माता जगदंबा का तृप्ति स्वरूप वहां पर विराजमान है आपने कथा सुनिए जब कन्या पैदा हुई थी तो कन्या को कंस ने मारने के लिए पत्थर पर पटकना चाहा तो वह योग माया हाथ से टच करके और आकाशवाणी करते हुए निकल गई थी कि वह तेरे मारने वाला तो पैदा हो चुका है जोगमाया शक्ति है जोगी साक्षात जो जगदंबा है
विंध्याचल मंदिर का रहस्य और विंध्यवासिनी Vindhyavasini शक्तिपीठ
अगर आप देखोगे ना विंध्याचल का विंध्यवासिनी Vindhyavasini का जो मंदिर है विंध्यवासिनी Vindhyavasini का मंदिर पूरा समूह पर्वत पर उसके विराजमान है और उस पर अगर तुम ध्यान दोगे तो के जो श्रीयंत्र होता है उसी के रूप में है यह मैं इसके द्वार बने हुए हैं उसी रूप में श्री यंत्र में जहां बीच में वहां पर बिंदु स्वरूप शक्ति स्थित है
विंध्यवासिनी Vindhyavasini मंदिर कहा है
तुम वही ठीक उसी स्थान पर शक्तिपीठ भी है और यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के पास में विंध्याचल पर्वत पर माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini का शक्तिपीठ है वहां पर गुफा में स्थित एक और काली मंदिर है दूसरी ओर अष्टभुजा स्वरूप में जो है सरस्वती माता है और तीसरी तरफ महालक्ष्मी का स्थान है पूरा मंदिर जो है
यह श्री चक्र के रूप में स्थित है वहां पर और विंध्यवासिनी Vindhyavasini देवी को पर्वत निवास ने जो शक्ति स्वरूपा दुर्गा का ही स्वरूप माना जाता है यह त्रिशूल और मुंडमाला धारण किए हुए हैं स्वरूप अत्यंत विशाल है शत्रुओं का संहार करती है तो अपने भक्तों को बुद्धि प्रदान करती है
विन्ध्यवासिनी Vindhyavasini माँ की महिमा इस साधना के क्या लाभ
जो कि एक बहुत ही प्राचीन शक्तिपीठ है और विंध्याचल पर्वत पर निवास करने के कारण जो विंध्याचल है उस पर्वत पर शक्ति का निवास करने के कारण ही इसको विंध्यवासिनी Vindhyavasini कहा गया है विंध्यवासिनी Vindhyavasini माता इसको कहां गया है ठीक है मैंने आपको बता दिया है विंध्यवासिनी Vindhyavasini साधना जो है वह बहुत ही गोपनीय साधना है जो कि अपने आप में पूर्ण है और महाविद्याओं के साधनों से भी उच्चतम शिखर पर है
यह जो साधना है अगर इस साधना को कोई भी व्यक्ति कर लेता है तो उस पर किसी भी प्रकार की तंत्र बाधा का कोई भी प्रकोप या प्रभाव नहीं पड़ता है यहां तक कि अगर कोई तांत्रिक किरया का वार कर भी वो निष्फल हो जाता है उस पर करना चाहे करतिया की जाए वह इस प्रकार की शक्ति होती है उसका बार कभी खाली नहीं जाता उसको भी निष्फल कर कर देती है
इसका साधक उस पर यह शक्ति कृत्या बार का च कभी नहीं चल सकता जिसने विंध्यवासिनी Vindhyavasini की साधना कर रखी हो अरे तांत्रिक प्रयोग उसके ऊपर विफल हो जाते हैं और यह जो तंत्रोक्त साधना है यह साधना मैं आपको बताने वाला हूं और तांत्रिक प्रत्येक तांत्रिक को इसकी महान जो इसके अंदर गूढ़ रहस्य है उसको समझना ही चाहिए
तंत्र का सवरूप जो माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini का है यह पूरी कुंडलिनी शक्ति को भी जागृत करता है और यह साधना जो है सिद्ध आश्रम में भी सीधा संबंध स्थापित करने की सर्वश्रेष्ठ साधना है अब साधना को करना क्या चाहिए मैं आपको इस साधना के विषय में पूर्ण रूप से बता देता हूं इस साधना को करने के लिए मुख्य रूप से आपको विंध्यवासिनी Vindhyavasini यन्त्र और माला की जरूरत होगी
विंध्यवासिनी साधना करने के लिए संपर्क करे 85280 57364
यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के पास में विंध्याचल पर्वत पर माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini का शक्तिपीठ है वहां पर गुफा में स्थित एक और काली मंदिर है दूसरी ओर अष्टभुजा स्वरूप में जो है सरस्वती माता है और तीसरी तरफ महालक्ष्मी का स्थान है पूरा मंदिर जो है
विंध्यवासिनी Vindhyavasini कौन है क्या है ?
माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini भगवान श्री कृष्ण की योग माया है। यह साधना के क्षेत्र में अगर आपके ऊपर किसी ने कोई तंत्र प्रयोग किया है तो उससे तो साधक की रक्षा करती ही करती है।
विन्ध्यवासिनी के क्या लाभ
मैंने आपको बता दिया है विंध्यवासिनी Vindhyavasini साधना जो है वह बहुत ही गोपनीय साधना है जो कि अपने आप में पूर्ण है और महाविद्याओं के साधनों से भी उच्चतम शिखर पर है यह जो साधना है अगर इस साधना को कोई भी व्यक्ति कर लेता है तो उस पर किसी भी प्रकार की तंत्र बाधा का कोई भी प्रकोप या प्रभाव नहीं पड़ता है यहां तक कि अगर कोई तांत्रिक किरया का वार कर भी वो निष्फल हो जाता है उस पर करना चाहे करतिया की जाए वह इस प्रकार की शक्ति होती है उसका बार कभी खाली नहीं जाता उसको भी निष्फल कर कर देती है इसका साधक उस पर यह शक्ति कृत्या बार का च कभी नहीं चल सकता जिसने विंध्यवासिनी Vindhyavasini की साधना कर रखी हो अरे तांत्रिक प्रयोग उसके ऊपर विफल हो जाते हैं और यह जो तंत्रोक्त साधना है यह साधना मैं आपको बताने वाला हूं और तांत्रिक प्रत्येक तांत्रिक को इसकी महान जो इसके अंदर गूढ़ रहस्य है उसको समझना ही चाहिए तंत्र का सवरूप जो माता विंध्यवासिनी Vindhyavasini का है यह पूरी कुंडलिनी शक्ति को भी जागृत करता है और यह साधना जो है सिद्ध आश्रम में भी सीधा संबंध स्थापित करने की सर्वश्रेष्ठ साधना है
Karn Matangi sadhna प्राचीन कर्ण मातंगी त्रिकालदर्शी साधना
Karn Matangi sadhna प्राचीन कर्ण मातंगी त्रिकालदर्शी साधना
Karn Matangi sadhna प्राचीन कर्ण मातंगी त्रिकालदर्शी साधना नमस्कार मित्रों आप सभी लोगों का हमारे वेबसाइट में हार्दिक स्वागत है। कुछ मित्र हमारे वेबसाइट के सदस्य हैं उन्होंने कहा था कि गुरु जी आप कर्ण मातंगी की साधनाKarn Matangi sadhnaकी जानकारी उपलब्ध करवाइए। हमने आपको कर्ण पिशाचिनी साधना Karn Matangi sadhna से संबंधित पोस्ट में उपलब्ध करवाए थे और आज हम आपको जो है माता कर्ण मातंगी के साधन Karn Matangi sadhna उपलब्ध करवा रहे हैं माँ कर्ण मातंगी साधनाKarn Matangi sadhna जो है कर्ण पिशाचिनी साधना की तरह होती है
कर्ण मातंगी देवी महाविद्या
कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna के लाभ
कर्ण मातंगी कौन है
कर्ण मातंगी क्यू की जाती है
कर्ण मातंगी मंत्र
कर्ण मातंगी साधना पूर्ण विधि
लेकिन कुछ साधको कर्ण पिशाचिनी साधना में दिक्कत का सामना करना पड़ता है भी लेकिन माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna के बाद दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता है। कर्ण पिशाचिनी आपको भविष्य नहीं बता सकती लेकर कर्ण मातंगीKarn Matangi आपको भविष्य भी बता सकती है और साथ ही साथ आपको जो भी जानकारी देते हो वह 100% सटीक होती है और कई लोगों के साथ यह भी होता है कि मैं कर्ण पिशाचिनी साधना करने के बाद में पूजा पाठ नहीं कर सकते
लेकिन कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna में ऐसा कुछ भी नहीं है क्योंकि यह माता कर्ण मातंगी देवी महाविद्यादस महाविद्याओं में से एक है और इनकी साधना करना तो जीवन में सौभाग्य की बात है माँ कर्ण मातंगी साधनाKarn Matangi sadhna उपलब्ध करवा रहा हूं अब तक के बहुत सारे लोग ऐसे होंगे जो वेबसाइट के साथ पहले बार जुड़े होंगे पहली बार हमारी पोस्ट पढ़ रहे होंगे तो मैं उन्हें बताओ भाई जी कि मैं वेबसाइट पर साधना प्रदान करता हूं
कई प्रकार के जानकारी आध्यात्मिक से संबंधित उपलब्ध करवाता हूं तो अगर आपको इन सभी चीजों में रूचि है आप धर्म के क्षेत्र में जुड़ना चाहते हैं धर्म को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो आप हमारे वेबसाइट को जरूर सब्सक्राइब कीजिए और जो घंटे का बटन है
उसे जरूर चालू कीजिए नहीं तो हम जो भी जानकारी उपलब्ध करवाएंगे जो भी चीजें उपलब्ध करवाएंगे वह आपको नहीं मिल पाएगी इसलिए आप घंटे के बटन को जरूर चालू कीजिएगा बंटी के बटन को चालू नहीं किया है वह सभी लोग भी घंटी के बटन को आगे की बात करते हैं
कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna के लाभ
कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna के लाभ
हम कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna के पहले हम आपको बताते हैं इस साधना के क्या लाभ है क्यों की जाती है माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna उसको करने से क्या लाभ होते हैं क्योंकि बहुत सारे लोगों को यह नहीं पता होता है भाई कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna क्यों की जाती है क्या इसके लाभ होते हैं तो वह मैं बताता हूं
आपको देखिए अगर कोई भी व्यक्ति बहुत भविष्य की जानकारी प्राप्त करना चाहता है किसी भी क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता है या फिर अगर कोई व्यक्ति ज्योतिष के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है और वह चाहता है कि वह मैं भी लोगों के भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके
तो उसमें यह साधना बहुत ही अच्छी साधना होती है तो उसको हर प्रकार की जानकारी माँ कर्ण मातंगी साधनाKarn Matangi sadhna के द्वारा प्राप्त हो जाती है अगर आप में से कोई भी व्यक्ति अपने भविष्य के बारे में कोई जानकारी प्राप्त करना चाहता है
आप कोई भी कार्य कर रहे हैं और आप यह जानना चाहते हैं सफल होगा या नहीं होगा उसके बारे में भी आप जो है माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और आपको पहले पता चल जाएगा आप जो कार्य करें उसमें आप सफल होगे या नहीं होगे इस का पता चल जाएगा
जिससे इस से अपना समय व्यर्थ नहीं करोगे और दूसरा कार्य करके जिसमें आप सफल होगे अपने जीवन को सुधारो गे अपने वर्तमान को सुधार लेते हो तो भविष्य अपने आप सुरक्षित हो जाता है इसी तरीके से साधना के द्वारा अवश्य की जानकारी प्राप्त करके वर्तमान को सुधार सकते हैं कि आपका भविष अपने आप सुरक्षित हो जाता है अगर किसी पीड़ा से परेशान है और वह उसका इलाज चाहते हैं
उसका निदान चाहते हैं उनके लिए भी यह साधना बहुत ही अच्छी साधना है हर प्रकार की समस्या का हर प्रकार के चीजों के बारे में यह साधना आपको जानकारी उपलब्ध करवा देती है चाहे दुनिया की कोई बड़ी से बड़ी परेशानी क्यों ना हो उसका हल भी माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhnaआपको करवाती है कई प्रकार की सिद्धियां भी अपने आप प्राप्त होने लग जाएंगे आपको दिव्य आभास अपने आप होने लग जाएगा करने लग जाओगे छोड़ दी कि अगर जीवन में कोई परेशानी आएगी
इसलिए आप इस साधना को जरूर कीजिएगा बहुत ही अच्छी साधना है और इसमें आपको जरुर सफलता प्राप्त होगी को जानने के लिए और बहुत अच्छे-अच्छे साधना से पहचान वाले साधको हो गई वह भी भविष्य को जानने के लिए बहुत ही अच्छे और सर्वश्रेष्ठ साधना है लेकिन व आज मैं आपको माँ कर्ण मातंगी साधनाKarn Matangi sadhna के बारे में ही बता रहा हूं
कर्ण मातंगी साधना पूर्ण विधि
जब आप इस साधना को करोगे तो यह साधना आपको शुक्रवार से शुरू करनी होती है शुक्रवार के दिन यह साधना आपको करनी है 21 दिन की साधना होगी है जो आसन और वस्त्र होंगे वह लाल रंग के होंगे इसमें जो माला का प्रयोग करोगे वह हकीक की माला उपयोग मिलोगे हरे रंग की हकीक की माला आपको इसमें उपयोग में लेनी है अगर हरे रंग की हकीक की माला नहीं है तो आप रुद्राक्ष की माला ले सकते हैं लेकिन हरे रंग का की माला लेंगे तो ज्यादा हकीक की माला उत्तम रहेगा
कर्ण मातंगी Karn Matangi कौन है
कर्ण मातंगी कोई अलग देवी नहीं है यह मातंगी महाविद्या ही है जो दस महाविद्या में से एक है इस की एक साधना से भूत भविष्य वर्तमान जान सकते है जिसको सिद्ध करने के बाद देवी आपके भूत भविष्य बताती है कान में आकर कर्ण पिशाचिनी की तरह इस लिए मातंगी को कर्ण मातंगी कहा जाता है।
कर्ण मातंगी Karn Matangi क्यू की जाती है
कर्ण मातंगी साधना भूत भविष्य वर्त्तमान की जानकारी के लिए की जाती है इस से साधक को तिरकाल ज्ञान प्रपात होता है जिस से साधक किसी का भी भूत भविष्य वर्त्तमान जान लेता है
कर्ण मातंगी मंत्र की जानकारी के लिए फ़ोन करो ph 85280 57364
कर्ण मातंगी कोई अलग देवी नहीं है यह मातंगी महाविद्या ही है जो दस महाविद्या में से एक है इस की एक साधना से भूत भविष्य वर्तमान जान सकते है जिसको सिद्ध करने के बाद देवी आपके भूत भविष्य बताती है कान में आकर कर्ण पिशाचिनी की तरह इस लिए मातंगी को कर्ण मातंगी कहा जाता है।
कर्ण मातंगी Karn Matangi क्यों की जाती है
कर्ण मातंगी साधना भूत भविष्य वर्त्तमान की जानकारी के लिए की जाती है इस से साधक को तिरकाल ज्ञान प्रपात होता है जिस से साधक किसी का भी भूत भविष्य वर्त्तमान जान लेता है
कर्ण मातंगी साधना के लाभ
हम कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna के पहले हम आपको बताते हैं इस साधना के क्या लाभ है क्यों की जाती है माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna उसको करने से क्या लाभ होते हैं क्योंकि बहुत सारे लोगों को यह नहीं पता होता है भाई कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna क्यों की जाती है क्या इसके लाभ होते हैं तो वह मैं बताता हूं आपको देखिए अगर कोई भी व्यक्ति बहुत भविष्य की जानकारी प्राप्त करना चाहता है किसी भी क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता है या फिर अगर कोई व्यक्ति ज्योतिष के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है और वह चाहता है कि वह मैं भी लोगों के भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके तो उसमें यह साधना बहुत ही अच्छी साधना होती है तो उसको हर प्रकार की जानकारी माँ कर्ण मातंगी साधनाKarn Matangi sadhna के द्वारा प्राप्त हो जाती है अगर आप में से कोई भी व्यक्ति अपने भविष्य के बारे में कोई जानकारी प्राप्त करना चाहता है आप कोई भी कार्य कर रहे हैं और आप यह जानना चाहते हैं सफल होगा या नहीं होगा उसके बारे में भी आप जो है माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhna से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और आपको पहले पता चल जाएगा आप जो कार्य करें उसमें आप सफल होगे या नहीं होगे इस का पता चल जाएगा जिससे इस से अपना समय व्यर्थ नहीं करोगे और दूसरा कार्य करके जिसमें आप सफल होगे अपने जीवन को सुधारो गे अपने वर्तमान को सुधार लेते हो तो भविष्य अपने आप सुरक्षित हो जाता है इसी तरीके से साधना के द्वारा अवश्य की जानकारी प्राप्त करके वर्तमान को सुधार सकते हैं कि आपका भविष अपने आप सुरक्षित हो जाता है अगर किसी पीड़ा से परेशान है और वह उसका इलाज चाहते हैं उसका निदान चाहते हैं उनके लिए भी यह साधना बहुत ही अच्छी साधना है हर प्रकार की समस्या का हर प्रकार के चीजों के बारे में यह साधना आपको जानकारी उपलब्ध करवा देती है चाहे दुनिया की कोई बड़ी से बड़ी परेशानी क्यों ना हो उसका हल भी माँ कर्ण मातंगी साधना Karn Matangi sadhnaआपको करवाती है कई प्रकार की सिद्धियां भी अपने आप प्राप्त होने लग जाएंगे आपको दिव्य आभास अपने आप होने लग जाएगा करने लग जाओगे छोड़ दी कि अगर जीवन में कोई परेशानी आएगी
इसलिए आप इस साधना को जरूर कीजिएगा बहुत ही अच्छी साधना है और इसमें आपको जरुर सफलता प्राप्त होगी को जानने के लिए और बहुत अच्छे-अच्छे साधना से पहचान वाले साधको हो गई वह भी भविष्य को जानने के लिए बहुत ही अच्छे और सर्वश्रेष्ठ साधना है लेकिन व आज मैं आपको माँ कर्ण मातंगी साधनाKarn Matangi sadhna के बारे में ही बता रहा हूं
विभीषणकृत हनुमद वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra की तंत्र साधना
विभीषणकृत हनुमद वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotraकी तंत्र साधना हनुमानजी को महावीर भी कहा जाता है। महावीर का अर्थ है– अजेय अर्थात् जिसे बल, बुद्धि, विद्या, ज्ञान, नीति में कोई पराजित न कर पाये और जिसने समस्त शक्तियों को जीत लिया है। यह बात हनुमान जी पर बिलकुल सही बैठती है । इसलिये हनुमानजी को शास्त्रों में बल बुद्धि और विद्या का दाता कहा गया है।
हनुमान वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra प्रयोग
हनुमान वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra के तांत्रिक
हनुमान वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra संस्कृत
हनुमान वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra हिंदी में
हनुमान वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra इफेक्ट्स और लाभ
हनुमानजी के संबंध में कुछ बातें विशेष ध्यान देने की हैं। एक बात तो यह है कि हनुमानजी शिव के अंश हैं हनुमानजी को एकादश रुद्र अवतार इसी दृष्टि से कहा गया है। इसलिये हनुमत साधना से हनुमानजी की कृपा दृष्टि तो प्राप्त होती ही है, भगवान शंकर की कृपा भी सहज ही प्राप्त हो जाती है हनुमानजी के संबंध में दूसरी बात यह समझ लेने की है कि यह समस्त देवों की शक्ति को अपने अन्दर संचित करके अवतरित हुये हैं।
इसलिये वे वीरता, पराक्रम, दक्षता, निर्भयता, निरोगता आदि के प्रतीक हैं। जो साधक हनुमानजी की सच्चे मन से साधना करता है, उसे यह समस्त गुण सहज ही प्राप्त हो जाते हैं हनुमानजी शक्ति, पौरुषता, स्फूर्ति, धैर्य, विवेक, वाक्पटुता आदि गुणों से भी सम्पन्न हैं। इसलिये हनुमानजी के साधकों को यह समस्त गुण सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
हनुमानजी राम, लक्ष्मण और सीता की सेवा भक्ति में सदैव समर्पित रहे हैं। उन्हें सेवा और समर्पण का भाव बहुत पसन्द है। इसलिये जो व्यक्ति गहरी आस्था और पूर्ण समर्पण भाव के साथ हनुमानजी की शरण में आ जाता है, वह सहज ही हनुमानजी का कृपापात्र बन जाता है। साधना में पूर्ण समर्पण भाव ही साधक को तत्काल फल प्रदान कराता है।
ऐसी कोई बाधा, ऐसी कोई शारीरिक या मानसिक समस्या नहीं है, जो हनुमानजी की शक्ति के सामने ठहर सके। इसी तरह ऐसी कोई व्याधि और ऐसा कोई संकट नहीं है जो हनुमत साधना से दूर न हो सके। जिस साधक पर एक बार हनुमानजी का वरदहस्त आशीर्वाद स्वरूप रख दिया जाता है, फिर उस पर कोई भी शत्रु प्रभावी नहीं हो सकता।
उसके शत्रु हजारों प्रयास करें, कई तरह की तांत्रिक अभिचार क्रियायें करवा कर उसे परास्त करने का प्रयत्न करें, लेकिन हनुमत कृपा से वह उस साधक का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते हैं। ऐसे हनुमत साधक को भूत, प्रेतादि का डर भी नहीं रहता।
सभी अशरीरी आत्माओं की शक्ति उसके सामने आते ही कमजोर पड़ जाती है। बुरे ग्रहों का प्रभाव भी हनुमत साधना से समाप्त हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को सबसे पापी और संताप देने वाला ग्रह माना गया है।
इसलिये शनि के प्रकोप से कोई नहीं बच पाता। वक्री शनि की दृष्टि, शनि की ढैय्या, शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव तो इतना आक्रांत करता है कि इस अवधि में व्यक्ति महल से उजड़ कर सीधे सड़कों पर आ जाता है। असाध्य व्याधियों के रूप में शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा देने में भी ऐसा शनि पीछे नहीं रहता । पारिवारिक कलह का कारण भी ऐसा शनि ही बनता है।
यह आश्चर्यजनक बात है कि जिस शनि के प्रताप से व्यक्ति कांप जाता है, वह शनि स्वयं हनुमानजी से भय खाते हैं। इसलिये बहुत से ज्योतिषी अपने यजमानों को शनि के पापी प्रभाव से बचने के लिये हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने का परामर्श देते हैं। नियमित रूप से हनुमानजी के मंदिर में जाकर हनुमत कृपा प्राप्त करने का आग्रह करते हैं।
अधिकांश शनि पीड़ित लोगों को हनुमानजी की पूजा-अर्चना का फल शीघ्र ही मिल जाता है। दक्षिण भारत के तमिलनाडू राज्य में अम्बपुर नामक एक प्रसिद्ध स्थान है। उस स्थान पर हनुमानजी के उग्र स्वभाव ( उग्र हनुमान) की स्थापना की गई है। यहां हनुमानजी उग्र आवेश में आकर शनि को अपने पैरों में दबाये हुये हैं। अन्यत्र कहीं भी हनुमानजी के उग्र स्वरूप की स्थापना नहीं की गई है।
विश्व भर में यही एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां हनुमानजी के विकराल स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। मानसिक रूप से कमजोर, मंदबुद्धि और मानसिक व्याधियों से पीड़ित चल रहे लोगों के लिये हनुमान जी की साधना संजीवनी बूटी से कम नहीं होती । हनुमानजी की नियमित साधना, उपासना से शीघ्र ही मानसिक परेशानियों का समाधान हो जाता है तथा साधक स्वयं के अन्दर संतोष, शांति एवं स्फूर्ति का अनुभव करने लग जाता है।
बडवानल वन में लगी भीषण अग्नि को कहा जाता है। यह अनि थोड़े समय में ही विशाल वन को नष्ट करने की सामर्थ्य रखती है। जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु के दौरान वन में वृक्षों के परस्पर घर्षण से उत्पन्न हुई छोटी सी चिंगारी शीघ्र ही भीषण अग्नि का रूप धारणकर लेती है
और जंगल में चहुं ओर फैल कर समस्त जीव-जन्तुओं को पीड़ित करने लगती है, बडवानल की इस तपस से जंगल के जीव-जन्तु ही नहीं, बल्कि सभी तरह की वनस्पतियां तक समाप्त होने लग जाती हैं, ठीक वैसे ही हनुमानजी के इस हनुमद्ववडवानल नामक स्तोत्र के नियमित पठन-पाठन से अनेक प्रकार के संताप स्वतः ही समाप्त होते चले जाते हैं।
हनुमत स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra का प्रभाव
अरिष्टकारक ग्रहों के दोषों को शांत करने, शत्रुओं के संताप से बचने, असाध्य रोगों के चंगुल में फंसने से बचने, भूत-प्रेत आदि के भय से मुक्त रहने के साथ-साथ मानसिक व्याधियों के समाधान के लिये भी किया जाता है। यह हनुमत स्तोत्र जीवन में असमय उत्पन्न होने वाली अनेक प्रकार की भीषण समस्याओं से बचने के लिये बहुत प्रभावशाली सिद्ध होता है।
इसके नियमित पाठ से हनुमानजी की अनुकम्पा सदैव अपने साधक पर बनी रहती है। इसलिये ऐसे साधकों को अपने जीवन में किसी तरह का भय नहीं सताता।
हनुमानजी की साधना हनुमद्ववडवानल स्तोत्र के द्वारा किसी हनुमानजी के मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा के सामने बैठकर की जा सकती है अथवा अपने घर पर भी हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित करके इसका प्रयोग किया जा सकता है।
हनुमत अनुष्ठान के लिये हनुमान प्रतिमा पर गन्धादि चढ़ाने, उन्हें चूरमे का नैवेद्य अर्पित करने एवं उनके सामने घी का दीपक जलाकर रखना ही पर्याप्त होता है। इसी से हनुमानजी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर हनुमत अनुष्ठान के दौरान प्रत्येक मंगलवार के दिन हनुमानजी के मंदिर में जाकर अथवा घर में स्थापित की गई मिट्टी की हनुमान प्रतिमा पर घी – सिन्दूर का चौला चढ़ा दिया जाये, साथ ही हनुमानजी पर लौंग, सुपारी, पान के पांच पत्ते, चांदी के पांच वर्क चढ़ाकर उन्हें धूप, दीप करने के साथ पुष्पों की माला अर्पित करके नैवेद्य चढ़ाया जाये,
साधक की अनेक प्रकार की अभिलाषायें भी पूर्ण होने लगती हैं। इस संक्षिप्त अनुष्ठान के द्वारा साधक की आर्थिक समस्यायें धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं। धन प्राप्ति के नये स्रोत खुलने लगते हैं। हनुमद्ववडवानल स्तोत्र का तांत्रिक अनुष्ठान भी है। हनुमानजी के तांत्रिक स्तोत्र की रचना लंकाधिपति एवं रावण के लघुभ्राता व भगवान श्रीराम के परम् भक्त विभीषण के द्वारा की गई है।
रावण स्वयं तो अपने समय का प्रकांड विद्वान था ही, उसके भाई और पुत्र भी अनेक विद्याओं में पारंगत थे। रावण ने सभी शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। तंत्र, ज्योतिष और कर्मकाण्ड, पूजा-पद्धति का भी रावण सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता था। इसी प्रकार रावण का लघुभ्राता विभीषण भी तंत्र विद्या का श्रेष्ठ विद्वान था । उसने तंत्र से संबंधित अनेक साधनाओं को सिद्ध किया था, साथ ही अपनी क्षमताओं के बल पर अनेक तांत्रिक साधनाओं को संकलित कर उन्हें जनोपयोगी बनाया था।
हनुमद्ववडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra नामक इस विशिष्ट रचना का सूत्रपात विभीषण के द्वारा ही किया गया है। इस स्तोत्र के पीछे एक कथा है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जब राम-रावण का युद्ध समाप्त हो गया, भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण, माँ सीता एवं वानर – भालुओं की अपनी सेना के साथ लंका से वापिस अयोध्या चले गये, तो विभीषण अपने आराध्य देव भगवान राम के विछोह को सहन नहीं कर सके।
विभीषण अपने समस्त परिवार की असमय मृत्यु के कारण एकाएक गंभीर मानसिक संताप की स्थिति में चले गये । विभीषण की वह हालत दयनीय रूप धारण करती जा रही थी। इसी समय एक रात्रि को उन्हें स्वप्न में शिव के दर्शन हुये। भगवान शिव ने उसे हनुमान जी की शरण में जाने और उनसे अपने घर पर अथवा किसी एकान्त स्थान पर बैठकर भी सम्पन्न किया जा सकता है।
हनुमान वडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra तांत्रिक साधना प्रयोग विधि विधान सहित
इसके लिये घर में एक एकांत कक्ष की व्यवस्था कर लें ताकि अनुष्ठान में और इसकी पूरी अवधि तक कक्ष में आपके अतिरिक्त किसी अन्य का प्रवेश नहीं हो। कक्ष को धो-पौंछ कर गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें। पूर्व अथवा दक्षिण की तरफ बैठकर अपने सामने एक चौकी (बाजोट) स्थापित करें। उस पर लाल रंग का सवा मीटर वस्त्र चार तह करके बिछायें।
उस पर मिट्टी की हनुमान प्रतिमा स्थापित करें। अगर हनुमान प्रतिमा बनाना संभव न हो तो यह बाजार से बनी बनाई भी प्राप्त की जा सकती है। इसकी ऊंचाई छ: इंच से अधिक नहीं होनी चाहिये। अब सर्वप्रथम घी – सिंदूर का चौला चढ़ायें। दीपक प्रज्ज्वलित करें। धूप-अगरबत्तियां जलायें ताकि वातावरण सुगंधमय हो जाये । पुष्प एवं नैवेद्य अर्पित करके पूजा करें।
यह सब करते हुये हनुमान के नाम का मानसिक जाप करते रहें । पूजा विधान के पश्चात् एक सुपारी पर रोली लपेट कर एवं कुंकुम आदि का टीका लगाकर श्री गणेशाय नमः मंत्र का एकादश जाप कर हनुमानजी के पास स्थापित कर दें। फिर अपने दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर निम्न विनियोग करें।
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मंत्र बोल कर अपनी अंजलि को खोल कर जल को चौकी के नीचे अपने सामने पृथ्वी पर गिरा दें। आगे लिखे मंत्र का सात बार उच्चारण करते हुये सिन्दूर का एक घेरा अपने चारों ओर रक्षाकवच के रूप में खींच लें। हनुमानजी से सम्बन्धित ऐसे तांत्रिक अनुष्ठानों में | आत्मरक्षा के लिये रक्षा कवच खींच लेना अति आवश्यक है।
हनुमानजी का रक्षा मंत्र इस प्रकार है–
हनुमते रुद्रात्मकाय हूं फट् इसके उपरान्त एक त्रिकोणाकृति का हवन कुण्ड निर्मित करके अथवा किसी मिट्टी के पात्र में ग्यारह आम की लकड़ियां, तीन पीपल की लकड़ियां और तीन उपामार्ग की लकड़ियां रखकर अग्नि को प्रज्ज्वलित करें तथा हनुमानजी के उपरोक्त मंत्र के द्वारा ही 21 आहुतियां देकर स्तोत्र पाठ करें।
हवन में आहुति प्रदान करने के लिये लोबान, कपूर, अगर, तगर, पीली सरसों, पारिजात के पुष्प, सुगन्धबाला, श्वेत चंदन, रक्त चंदन का बुरादा, भूतकेशी की जड़, घी आदि का मिश्रण तैयार कर लें। हनुमद्ववडवानल स्तोत्र का पाठ करते इसे इसक हनुमानजी से अपनी प्रार्थना करें कि उनके दुःख, दर्द को शीघ्रताशीघ्र मिटा मनोकामना को पूर्ण करें।
तत्पश्चात् हनुमानजी की आज्ञा प्राप्त करके उनके निम्न
हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ शुरू कर दें। प्रत्येक दिन साधक को इस स्तोत्र की 21 आवृत्तियां पूरी करने का विधान है। यद्यपि इनकी संख्या को गुरु आज्ञा से घटाया बढ़ाया जा सकता है। 21 आवृत्तियां पूर्ण होने के पश्चात् भी अग्नि को उपरोक्त मंत्र से पुनः 21 आवृत्तियां प्रदान करनी होती है।
स्तोत्र समाप्त होने तथा हनुमते रुद्रात्मकाय हूं फट् की 21 आहुतियां अग्नि को समर्पित करने के पश्चात् हनुमानजी के सामने एक बार पुनः ध्यानमग्न हो जायें तथा मन ही मन अपनी प्रार्थना को दोहराते रहें। तत्पश्चात् हनुमानजी से आज्ञा प्राप्त करके आसन से उठ जायें। हनुमानजी को समर्पित किये गये नैवेद्य का थोड़ा सा अंश स्वयं ग्रहण कर लें तथा शेष प्रसाद को घर, पड़ौस के लोगों में वितरित करवा दें। इस हनुमत अनुष्ठान प्रयोग के दौरान कुछ विशेष बातों का भी ध्यान रखना पड़ता है।
एक तो पूरे अनुष्ठानकाल के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। दूसरे, इस अवधि में तामसिक आहार जैसे मांस, मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि के सेवन से दूर रहें। तीसरे, इस अनुष्ठान को लाल रंग के आसन पर बैठकर और लाल ही रंग के वस्त्र पहन कर करना होता है । अगर लाल रंग के वस्त्र पहनने में परेशानी आये तो एक लाल रंग का जनेऊ गले में धारण किया जा सकता है अथवा लाल रंग की लंगोट पहनी जा सकती है । इसके अतिरिक्त पूरे अनुष्ठान काल में भूमि पर ही सोना चाहिये ।
यह हनुमत अनुष्ठान 31 दिन का है। यद्यपि इसे तीन महीने या अधिक समय तक भी जारी रखा जा सकता। पूरे अनुष्ठान के दौरान साधना का क्रम पहले दिन की भांति रखना होता है। मंदिर में प्रत्येक मंगलवार के दिन अथवा घर में प्रतिदिन हनुमान प्रतिमा को घी – सिन्दूर का चोला चढ़ायें। धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य से पूजा करें। तत्पश्चत् विनियोग, रक्षा कवच के बाद हवन कुण्ड में उपरोक्त मंत्र की 21 आहुतियां प्रदान करें तथा हनुमद्ववडवानल स्तोत्र का अभीष्ट संख्या में पाठ करें।
पाठ की समाप्ति भी पूर्ववत 21 आहुतियां, प्रार्थना एवं हनुमत आज्ञा के साथ ही करें। इस तरह आपका यह हनुमत अनुष्ठान आगे बढ़ता रहता है। इस दौरान आपको कई तरह के अनुभव भी मिल सकते हैं। स्वप्न में आपको कई तरह की आकृतियां दिखाई पड़ सकती हैं। कई तरह के दृश्य दिखाई दे सकते हैं। कई तरह की अद्भुत एवं रोमांच पैदा करने वाली आवाजें सुनाई पड़ सकती है ।
अन्ततः आपका यह अनुष्ठान सम्पन्न हो जाये, तो उस दिन सवा किलो आटे का विशेष चूरमा या रोट तैयार करके हनुमानजी को प्रसाद चढ़ायें। हनुमानजी के सामने पांच घी के दीपक जलायें। हनुमान जी की प्रतिमा पर सामर्थ्य अनुसार वस्त्र चढ़ायें। अनुष्ठान उपरांत पूजा में प्रयुक्त की गई समस्त सामग्री को जल में प्रवाहित करवा दें।
हनुमान जी को अर्पित किये गये ग्यारह सप्तमुखी रुद्राक्ष माला को अपने पूजास्थल में रख दें। इस रुद्राक्ष माला के अलग-अलग कार्यों के निमित्त अलग-अलग उपयोग किये जाते हैं। जैसे कि मानसिक व्याधि से पीड़ित लोगों को अनुष्ठान उपरांत यह रुद्राक्ष माला स्वयं अपने गले में धारण करनी पड़ती है, जबकि अपने परिवार, घर अथवा ऑफिस आदि पर कराये गये तांत्रोक्त प्रयोग को समाप्त करने के लिये इस रुद्राक्ष माला को मुख्यद्वार के बाहर चौखट के बाहर किसी गुप्त स्थान पर रखना होता है।
हनुमानजी का यह स्तोत्र बहुत ही अद्भुत है। इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से शारीरिक, मानसिक निरोगता को प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा भौतिक सुखों के साथ-साथ आध्यात्मिक लक्ष्यों को भी पाया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति को इस अनुष्ठान को किसी कारणवश स्वयं सम्पन्न करने में किसी प्रकार की समस्या आये तो उसके स्थान पर परिवार का कोई अन्य सदस्य भी इसे सम्पन्न कर सकता है अथवा इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिये किसी विद्वान आचार्य की मदद ली जा सकती है।
यद्यपि हनुमद्ववडवानल स्तोत्र Hanuman Vadvanal Stotra के संबंध में एक विशेष बात और भी देखने में आयी है कि अगर इस स्तोत्र का नियमित पूजा-अर्चना के रूप में भी हनुमानजी के मंदिर जाकर अथवा उनकी प्रतिमा अथवा चित्र के सामने बैठ कर सात, पांच, तीन अथवा ग्यारह बार पाठ करते रहा जाये तो भी इसके चमत्कारिक लाभ साधक को प्राप्त होते रहते हैं।
ऐसे साधकों को न कभी आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है और न ही उन्हें किसी प्रकार के रोग सता पाते हैं। ऐसे साधक भूत-पिशाच आदि के संताप से भी बचे रहते हैं ।
marriage of son बेटा के शीघ्र विवाह के लिए उपाय ph. 8528057364 : आज के समय में कन्याओं के माता-पिता को ही नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे, नौकरी करने वाले युवकों के माता-पिता को भी अपने पुत्रों के विवाह के मामले में परेशान होना पड़ रहा है। बहुत से युवकों का बड़े प्रयास के उपरांत लम्बे समय तक विवाह सम्पन्न नहीं हो पाता। marriage of son
पढ़े-लिखे और अच्छी नौकरी अथवा व्यवसाय होने के उपरान्त भी ऐसे युवकों को 35-40 वर्ष तक भी कुंवारेपन का सामना करना पड़ता है। युवकों के वैवाहिक विलम्ब के पीछे भी लगभग वैसे ही कारण जिम्मेदार देखे जाते हैं, जैसे कि कन्याओं के मामले में पाये जाते हैं लेकिन इनके मामले में भी यह देखा गया है कि कुछ विशिष्ट तांत्रोक्त उपायों के प्रयोगों से विवाह बाधा की समस्या दूर हो जाती है तथा शीघ्र ही घर में मांगलिक कार्य सम्पन्न होने की आशा बन जाती है । marriage of son
marriage of sonबेटा के शीघ्र विवाह के लिए उपाय इस प्रकार
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इस तांत्रोक्त अनुष्ठान को किसी भी कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से शुरू किया जा सकता है । यह अनुष्ठान भी कुल 41 दिन का है। अनुष्ठान के सम्पन्न होते-होते लड़के के रिश्ते के बारे में रुकी हुई बात फिर से होने लग जाती है। अगर इस अनुष्ठान को किसी देवी मंदिर में बैठकर अथवा शिवालय में बैठकर सम्पन्न किया जा सके, तो इसका परिणाम शीघ्र ही मिलता है । इस अनुष्ठान को घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है । marriage of son
इस अनुष्ठान की सबसे मुख्य बात यह है कि मंदिर जाकर देवी प्रतिमा अथवा शिव-पार्वती को अष्टगंध युक्त टीका लगाकर उनका अक्षत, पुष्पमाला, धूप, दीप, कपूर से पूजन करें। सामर्थ्य हो तो देवी प्रतिमा को वस्त्र अर्पित करें अन्यथा उन पर चुनरी चढ़ायें | गुड़ का नैवेद्य लगाकर किसी गाय को खिला दें। marriage of son
घर पर अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय अपने पूजास्थल पर घट की स्थापना घट पर श्रीफल की स्थापना करें । श्रीफल को चुनरी चढ़ायें तथा उसके सामने घी का दीपक जलाकर मन ही मन माँ के सामने प्रार्थना करें तथा शीघ्र गृहस्थ का सुख प्रदान कराने का अनुरोध करें। तत्पश्चात निम्न मंत्र की तीन मालाएं अथवा एक
यह वाल्मीक रामायण का मंत्र है जो अत्यन्त अद्भुत और प्रभावशाली है। मंत्रजाप के दौरान अखण्ड घी का दीपक जलते रहना चाहिये । मंत्रजाप स्वयं अपने मस्तक पर अष्टगंध का लेप लगाकर करना चाहिये । श्रीफल को भी प्रतिदिन अष्टगंध का लेप करना चाहिये। marriage of son
यह तांत्रिक अनुष्ठान 41वें दिन पूर्ण हो जाता है । अत: उस दिन मंत्रजाप सम्पन्न होने के पश्चात् सम्पूर्ण पूजा समाग्री को किसी नदी में प्रवाहित कर देना चाहिये अथवा भूमि में गड्ढा खोद कर दबा देना चाहिये । अनुष्ठान उपरांत स्वयं अपने मस्तक पर अष्टगंध का टीका लगाकर रखना चाहिये । marriage of son
इसके प्रयोग से साधक में सम्मोहन शक्ति विकसित होती है तथा किसी अज्ञात शक्ति की प्रेरणा से प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, कारोबारी या व्यवसायी हो अथवा अपरिचित ग्राहक, साधक से मेल-जोल बढ़ाने का प्रयास करने लगता है । marriage of son
इस अनुष्ठान से शीघ्र ही विवाह कार्य सम्पन्न हो जाता है, साथ ही यह अनुष्ठान संतान प्राप्ति हेतु भी चमत्कारिक सिद्ध होता है । इस अनुष्ठान के दौरान एक विशेष बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि घट स्थापना के बाद साधक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को न तो उसका स्पर्श करना चाहिये और न ही उसे अपने स्थान से हटाना चाहिये । उसका विस्थापन अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् ही होना चाहिये । घट पर रजस्वला स्त्री की छाया भी नहीं पड़े, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये। marriage of son
माँ तारा कैंसर से मुक्ति साधना maa tara cancer mukti sadhna ph.85280 57364
माँ तारा कैंसर से मुक्ति साधना maa tara cancer mukti sadhna स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें प्राचीन काल से ही मानव के साथ जुड़ी हुई हैं। प्रत्येक काल में उपलब्ध साधनों के द्वारा ही इनका उपचार किया जाता रहा है।
पहले वर्तमान समय के अनुसार रोगी को रोगमुक्त करने के लिये पर्याप्त सुविधायें नहीं थी। इसलिये तब रोगों को मंत्रजाप एवं विभिन्न अनुष्ठानों के माध्यम से दूर किया जाता था । आश्चर्य की तो यह है कि मंत्रजाप आदि से रोगी रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ हो जाते थे, मंत्रजाप द्वारा रोगों से मुक्त होने की यह एक ऐसी विधा है जो हर काल और समय में प्रभावी रही है।
आज भी मंत्रजाप द्वारा सामान्य एवं जटिल रोगों से मुक्त होना सम्भव है। कैंसर तक के रोगी मंत्रजाप से स्वस्थ होते देखे गये हैं । इसमें आवश्यकता केवल इस बात की है कि अनुष्ठान एवं मंत्रजाप विद्वान आचार्य के दिशा-निर्देश में हो। मैं यहां कैंसर से मुक्ति के बारे में एक प्रयोग लिख रहा हूं।
इस अनुष्ठान के द्वारा कैंसर का रोगी ठीक हो जाता है। माँ तारा का यह अनुष्ठान भी 31 दिन का है । इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये शुभ मुहूर्त में चांदी पर विधिवत् निर्मित तारा महाविद्या यंत्र, पंचमुखी लघु रुद्राक्ष माला, लौबान, केशर, पीली सरसों, सुपारी, लौंग, बेसन के लड्डू, ताम्र पात्र, पीले रंग के वस्त्र, पीले रंग का कम्बल आसन आदि वस्तुओं की आवश्यकता रहती है ।
माँ तारा कैंसर से मुक्ति साधना विधि maa tara cancer mukti sadhna
(तारा महाविद्या यंत्र के लिए फ़ोन करे 85280 57364 । ) यह अनुष्ठान शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू किया जाना उचित होता है लेकिन अगर रोगी की हालत अधिक खराब हो तो इसे किसी भी मंगलवार के दिन से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। अनुष्ठान के लिये प्रातःकाल का समय उपयुक्त रहता है । इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिये किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण की मदद भी ली जा सकती है। ब्राह्मण को यह अनुष्ठान प्रात: 4 बजे के आसपास ही करना चाहिये।
अनुष्ठान को प्रारम्भ करने के लिये सबसे पहले आसन बिछाकर पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठ जायें। अगर रोगी अनुष्ठान के दौरान उसी साधना कक्ष उपस्थित रहे तो अनुष्ठान का प्रभाव और भी बढ़ जाता है। अनुष्ठान कक्ष में रोगी की उपस्थिति अच्छी रहती है। अगर रोगी स्नान करने में सक्षम है तो स्नान करके अनुष्ठान कक्ष में बैठ सकता है। अक्षमता की स्थिति में हाथ, पांव तथा मुंहा का स्पंज स्नान किया जा सकता है।
यह इसलिये आवश्यक समझा जाता है कि अनुष्ठान में उच्चारित मंत्रों को रोगी सुन सके। अगर रोगी की अनुपस्थिति में अनुष्ठान किया जा रहा हो तो अनुष्ठान में उच्चारित मंत्रों को टेप कर लें। बाद में रोगी टेप चलाकर मंत्रोच्चारण को सुन सकता है। पर तारा महाविद्या यंत्र अनुष्ठान की शुरूआत लकड़ी की चौकी पर केसरी रंग का वस्त्र बिछाकर की जाती है। उस चौकी पर एक चांदी की प्लेट रखकर, उसमें केसर से त्रिकोण बनाकर उसमें तारा यंत्र को पंचामृत से स्नान करवाकर विधिवत् स्थापित किया जाता है।
इसके उपरान्त पीली सरसों की एक ढेरी बनाकर उसके ऊपर एक तांबे का पात्र रखा जाता है। उसमें थोड़ी सी पीली सरसों, पांच सुपारी, पांच लौंग, पांच बेसन के लड्डू, सप्तरंगी के थोड़े से पुष्प और तीन सप्तमुखी रुद्राक्ष रखे जाते हैं । इन तीनों रुद्राक्षों को अनुष्ठान शुरू करने से पहले रोगी के शरीर पर धारण कराया जाता है और अनुष्ठान समाप्त होने पर रोगी के शरीर से उतारकर तामपात्र में रख दिया जाता है।
पीली सरसों, सुपारी, लौंग, लड्डू, सप्तरंगी पुष्प आदि को भी रोगी के हाथों से स्पर्श करवाया जाता है। ताम्रपात्र की स्थापना के बाद उसके सामने गाय के घी का एक दीपक प्रज्ज्वलित कर रख दें। साथ ही शुद्ध लौबान का चूर्ण बनाकर उसी घी में मिला दें। शुद्ध लौबान के प्रयोग से शीघ्र ही साधना कक्ष सुगन्धित होने लग जाता है।
यदि रोगी साधना कक्ष में उपस्थित नहीं रह सकता तो उसके कक्ष में भी मंत्र पाठ सुनाने के दौरान इसी तरह का दीपक जलाकर रखने की व्यवस्था करनी पड़ती है । दीप और पात्र स्थापना के बाद यंत्र को 21 बार माँ के तांत्रोक्त मंत्र के साथ केसर तिलक अर्पित करना चाहिये और साथ ही बार – बार माँ का आह्वान करते रहना चाहिये।
माँ के आह्वान के बाद शुद्ध आचरण एवं पूर्ण भक्तिभाव युक्त होकर माँ के सामने अनुष्ठान के संकल्प को दोहराना चाहिये। फिर माँ की आज्ञा शिरोधार्य करके रुद्राक्ष माला से 21 मालाएं अग्रांकित मंत्र की जपनी चाहिये। मंत्र जाप पूर्ण हो जाने के उपरान्त 21 बार माँ के तांत्रोक्त स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिये ।
स्तोत्र पाठ के बाद भी एक माला मंत्र जाप और करना चाहिये । मंत्रजाप और स्तोत्र पाठ पूर्णत: समर्पित भाव एवं श्रद्धा के साथ करना चाहिये । इस दौरान मंत्रजाप करने वाले ब्राह्मण की पूर्ण एकाग्रता अपने इष्ट पर बनी रहनी चाहिये। दीपक अखण्ड रूप से निरन्तर जलते रहना चाहिये ।
साधना कक्ष में किसी अन्य के आने पर पूर्णत: पाबन्दी रहनी चाहिये । यद्यपि इसमें रोगी को सुनाने के लिये मंत्रजाप और स्तोत्र पाठ को टेपरिकोर्डर में टेप करने के लिये एक व्यक्ति उपस्थित रह सकता है। इस प्रकार जब प्रथम दिन का मंत्रजाप और स्तोत्र पाठ पूर्ण हो जाये तो माँ के सामने एक बार पुनः अपने संकल्प को दोहराना चाहिये । माँ का आह्वान करते हुये उन्हें वापि अपने लोक को लौट जाने की प्रार्थना करें।
इसके उपरांत अपने आसन से उठना चाहिये। उठने के पश्चात् आसन को भी एक ओर उठा कर रख कर साधना कक्ष को बंद कर देना चाहिये। वैसे विधान तो यह है कि रात्री के समय भी माँ का आह्वान के साथ दीप प्रज्ज्वलित करके और आसन पर पुनः बैठकर एक माला मंत्रजाप एवं एक स्तोत्र पाठ पूरा करना चाहिये। पूरे अनुष्ठान के दौरान मंत्रजाप करने वाले ब्राह्मण को शुद्ध आचरण बनाये रखना चाहिये ।
अनुष्ठान का यह क्रम पूरे 31 दिन तक इसी प्रकार से बनाये रखें। इस दौरान प्रत्येक दिन प्रातःकाल यंत्र का पंचामृत से स्नान, केसर तिलक और दीप समर्पण, माँ का आह्वान एवं संकल्प क्रम को दोहरा कर मंत्रजाप व स्तोत्र पाठ करते रहना चाहिये। उसी प्रकार दिन के कार्यक्रम को विश्राम देना चाहिये।
इस दौरान प्रत्येक सातवें दिन ताम्रपात्र में भरी सामग्री को किसी केसरी वस्त्र में बांधकर सात ताजे बेसन लड्डू के साथ किसी भिखारी को दे दें अथवा वस्त्र एवं बेसन के लड्डू भिखारी को देकर शेष सामग्री को किसी बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें ।
ताम्रपात्र को पुनः पहले की तरह ही उन्हीं सामग्रियों से भरकर यंत्र की बगल में स्थापित कर दें । 31वें दिन अनुष्ठान के पूर्ण होने की प्रक्रिया में मंत्रजाप और स्तोत्र पाठ पूर्ण करके और माँ के आह्वान के उपरान्त
परिवार एवं आस पड़ोस में माँ के प्रसाद के रूप में बेसन के लड्डू वितरण करवा देने चाहिये । पूजा सामग्री को पूर्णवत् किसी भिखारी अथवा बहते जल में पात्र एवं दीपक सहित ही प्रवाहित करवा देना चाहिये । माँ के यंत्र को अपने पूजास्थान पर स्थापित कर दें तथा रुद्राक्ष की माला को रोगी के गले में धारण करवा दें।
अनुष्ठान सम्पन्न होने पर ब्राह्मण देवता को भोजन करायें और दान-दक्षिणा देकर उन्हें प्रसन्नतापूर्वक विदाई दें। अनेक अवसरों पर इस अनुष्ठान के दौरान ही रोगी को लाभ मिलने लगता है। इस रोग के कारण रोगी के जो कष्ट निरन्तर बढ़ रहे होते हैं, उनका बढ़ता रुक जाता है और इसके बाद धीरे-धीरे रोगी स्वयं को पहले से अच्छा महसूस करने लगता है।
कुछ रोगियों को अनुष्ठान के 21वें दिन से लाभ मिलता देखा गया है। इसके बाद लाभ मिलने की कुछ धीमी होती है किन्तु रोगी का रोग धीरे-धीरे ही दूर होने लगता है।
इसमें सबसे बड़ी बात यह देखने में आती है कि जो दवायें अपना प्रभाव नहीं दे पा रही थी, अब उनका असर भी रोगी पर दिखाई देने लगता है। इसमें एक केस ऐसा देखने में आया जहां कैंसर के एक रोगी के बचने की आशा लगभग समाप्त हो गई थी। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था।
फिर एक परिचित द्वारा इस अनुष्ठान के बारे में जानकारी मिली। एक विद्वान आचार्य की देख-रेख में इस अनुष्ठान को करवाने का मन बना लिया। परिवार वालों ने यह अनुष्ठान केवल इसलिये करवाया कि चलो, अन्तिम प्रयास है, करके देख लेते हैं। बाद में इसी अनुष्ठान के कारण से रोगी के प्राणों की रक्षा हुई थी ।
विद्वान आचार्यों का मत है कि एक बार के अनुष्ठान से अगर लाभ का अंशमात्र भी दिखाई दे, तो आशा छोड़नी नहीं चाहिये। एक अनुष्ठान के बाद दूसरा अनुष्ठान भी करवाने का प्रयास करना चाहिये । यदि कोई साधक किसी गंभीर रोग से ग्रस्त है तो उसे उपरोक्त अनुसार अनुष्ठान सम्पन्न करना चाहिये ।
मेरा विश्वास है कि उसे अवश्य ही स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी ।
किसी भी प्रकार के तांत्रिक अनुष्ठानों की शुरूआत करने से पहले इस संबंध में विद्वान आचार्य से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिये। किसी अनुष्ठान के लिये मंत्र का चुनाव अथवा स्तोत्र आदि का पाठन पुस्तकीय आधार पर स्वयं शुरू कर लेना खतरनाक सिद्ध हो सकता है । अत: इन्हें किसी आचार्य अथवा गुरु के माध्यम से ही ग्रहण करना चाहिये
Tarapith Tantrik तारा पीठ के तंत्रोपासक भैरवानन्द जी महाराज ph.85280 57364
Tarapith Tantrik तारा पीठ के तंत्रोपासक भैरवानन्द जी महाराज
Tarapith Tantrik तारा पीठ के तंत्रोपासक भैरवानन्द जी महाराज : बंगाल के प्राचीन तारा पीठ पर मेरे ऊपर भी एक महातांत्रिक की कृपा दृष्टि हुई थी। वह महातांत्रिक कामाख्या के पास रहते थे और वर्ष में कम से कम दो बार अपने साधना स्थल से निकल कर माँ तारा का आशीर्वाद लेने के लिये तारापीठ आया करते थे ।
इन्हें महातांत्रिक भैरवानंद Tarapith Tantrik के नाम से जाना जाता है। बंगाल के दक्षिणेश्वर के पास बारह वर्ष तक उन्होंने अपने गुरु के सान्निध्य में रह कर कई तरह की तांत्रिक साधनाएं सम्पन्न की थी, लेकिन उनके गुरु अघोर पंथ से संबंध रखते थे। भैरवानंद Tarapith Tantrik का लक्ष्य तारा महाविद्या को सम्पूर्णता के साथ स्वयं में आत्मसात करना और तंत्र की उच्च सिद्धियां प्राप्त करना था । अपने मुख्य लक्ष्य के विषय में भैरवानंद जी ने कई बार अपने गुरु के सामने प्रकट भी किया, किन्तु उनके गुरु ने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
फिर एक दिन अचानक उन्होंने गुरु आज्ञा लेकर दक्षिणेश्वर के अपने आश्रम का परित्याग कर दिया। बंगाल छोड़कर वह बनारस में रहने लगे, लेकिन वहां भी उनका मन नहीं लगा, तो वह बनारस से नेपाल चले गये । नेपाल में वह कई वर्ष तक रहे और इस दौरान उन्होंने कई तरह की साधनाएं सिद्ध की। नेपाल से आकर वह हिमाचल प्रदेश में कई वर्ष भटकते रहे तथा कई तांत्रिकों के साथ रहकर अपना अनुभव एवं ज्ञान बांटते रहे।
अन्ततः वह अपनी यात्रा के अन्त में कामाख्या के तंत्र क्षेत्र में पहुंच गये । कामाख्या में ही उनकी भेंट एक सिद्ध तारा साधक से हुई और उन्हीं के मार्गदर्शन में रहकर उन्होंने तारा महाविद्या को आत्मसात करने में सफलता प्राप्त की । तारा महाविद्या को पूर्णतः से सिद्ध करने में इस महातांत्रिक को सात वर्ष का समय लगा।
असम के कामाख्या क्षेत्र में तांत्रिक Tarapith Tantrik भैरवानन्द की इतनी प्रसिद्धि है कि उनकी एक झलक पाने के लिये लोग घंटों नहीं कई-कई दिनों तक इंतजार में बैठे रहते हैं, परन्तु . भैरवानन्द Tarapith Tantrikमनमौजी तांत्रिक हैं। अपनी मर्जी से ही लोगों से भेंट करते हैं। उनकी मर्जी न हो तो, डांट-डपट कर अपने पास पहुंचे लोगों को दूर हटवा देते हैं अथवा स्वयं ही लोगों की भीड़ से बचने के लिये कुछ दिनों के लिये अन्यत्र किसी गुप्त स्थान पर चले जाते हैं।
सैंकड़ों लोगों के ऐसे अनुभव रहे हैं कि जिस किसी पर एक प्रसन्न होकर तांत्रिक भैरवानन्द Tarapith Tantrik ने आशीर्वाद प्रदान कर दिया तो उस व्यक्ति का भाग्य स्वतः ही चमक जाता है । रातोंरात उस व्यक्ति की स्थिति में बदलाव आ जाता है, लेकिन हर किसी के भाग्य में किसी सिद्ध साधक का आशीर्वाद प्राप्त करना नहीं होता ।
Bhutni Sadhna प्राचीन नव भूतनी साधन रहस्य ph.85280 57364
Bhutni Sadhna प्राचीन नव भूतनी साधन रहस्य ph.85280 57364
Bhutni Sadhna प्राचीन नव भूतनी साधन रहस्य ph.85280 57364 नव भूतनी साधना इस साधना से साधक अपनी की सभी अभिलाषा पूरी करती है और साधक ऐश्वर्य और सुख प्रदान करती है इस साधना को आप पत्नी, बहन अथवा माता के रूप में कर सकते है।
भूतनी देवी के अनेक प्रकार के स्वरूप हैं । उसमें मुख्य स्वरूप यह है- १. महाभूतनी, २. कुण्डल धारिणी अथवा कुण्डलवती, ३. सिन्दू- रिणी, ४. हारिणी, ५. नटी ६. प्रतिनटी अथवा महानटी, ७. चेटिका, ८. कामेश्वरी और 8. कुमारिका भूतनी देवी के उक्त रूपों के साधन मन्त्र तथा सावन-विधि का वर्णन नीचे किया गया है।
भूतनी मन्त्र भूतनी देवी के पूर्वोक्त किसी भी स्वरूप का ध्यान करने के लिये निम्नलिखित मन्त्र का जप किया जाता है। मन्त्र में जिस स्थान पर अमुक शब्द का प्रयोग हुधा है, उस स्थान पर, भूतनी देवी के जिस स्वरूप की उपासना करनी हो, उस स्वरूप के नाम का उच्चारण करना चाहिये ।
साधन विधि – रात्रि के समय चम्पा के वृक्ष के नीचे बैठकर उक्त मन्त्रका आठ सहस्र की संख्या में जप करे। इस प्रकार तीन दिन तक जप करते हुये महा पूजा करनी चाहिये। तदुपरान्त गूगल की धूनी देकर पुनवर जप में प्रवृत्त होना चाहिये। अर्द्धरात्रि के समय जब महाभूतनी देवी सम्मुख उपस्थित हो, उस समय चन्दन के जल से अर्घ्य देना चाहिये। इस विधि से भूतनी देवी प्रसन्न होकर साधक की अभिलाषा के अनुसार पत्नी, बहन अथवा माता के रूप में प्रकट होती हैं।
माता के रूप में वह साधक को आठ सौ वस्त्र, आभूषण तथा आहार प्रदान करती है। बहन के रूप में अनेक प्रकार के रसायन तथा आहार प्रदान करती है एवं साधक के लिये दूर से सुन्दर स्त्री लाकर देती है। यदि स्त्री के रूप में प्राती है तो साधक को पीठ पर चढ़ाकर स्वर्ग लोक को ले जाती है तथा अनेक प्रकार के सरस भाज्य पदार्थ एवं प्रतिदिन एक सहस्र स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है । साधक को चाहिये कि वह भूतनी देवी को माता वहन अथवा पत्नी – जिस रूप में भी प्राप्त करना चाहता हो, उसी स्वरूप में देवी का ध्यान करे ।
साधन विधि – रात्रि के समय श्मशान में बैठकर उक्त मन्त्र का पूजनादि की क्रियायें पूर्वोक्त देवी प्रकट न हो तब तक जप आठ सहस्र की संख्या में जप करे प्रकार से करनी चाहिये। जब तक करते रहना चाहिये। जिस समय कुण्डलवती भूतनी साधक के समीप प्रकट हो, उस समय साधक को चाहिये कि वह उसे रक्त से अर्घ्य दे । इस प्रकार यक्षिणी भैरव सिद्धि देवी प्रसन्न होकर माता के समान साधक की रक्षा करती है और उसे पच्चीस स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है।
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साधन विधि – रात्रि के समय सूने देव मन्दिर में बैठकर उक्त मन्त्र का आठ सहस्र की संख्या में जप तथा पूर्वोक्त प्रकार से पूजन करे तो सिन्दूरिणी भूतनी प्रसन्न होकर साधक की पत्नी के रूप में उसकी सब इच्छाओं को पूरा करती है तथा बारहवें दिन प्रसन्न होकर वस्त्र, भोजनादि तथा पच्चीस स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है।
4 साधन विधि – किसी शिवलिंग के समीप बैठकर रात्रि के समय में उक्त मन्त्र का आठ सहस्र की संख्या में तब तक जप करना चाहिये जब तक देवी प्रकट न हो । पूजन आदि पूर्वोक्त विधि से ही करना चाहिये । जब देवी प्रकट होकर साधक से पूछे कि मैं तुम्हारा क्या कार्य करूँ ? उस समय साधक को यह कहना चाहिये कि श्राप मेरी पत्नी बनें। यह सुनकर हारिणी देवी प्रसन्न होकर साधक की अभिलाषा को पूर्ण करती है तथा उसे पाठ स्वर्ण मुद्रा एवं भोज्य पदार्थ प्रदान करती है।
साधन विधि-वज्रपाणि के मन्दिर में जाकर नटी देवी की प्रति मूर्ति अकित कर कनेर के फूलों द्वारा उसकी पूजा करे तथा पूर्वोक्त विधि से पूजन कर उक्त मन्त्र का आठ सहस्र की संख्या में जप करे । जब तक देवी प्रकट न हो, तब तक जप करता रहे।
जिस दिन अर्द्ध रात्रि के समय देवी प्रकट हो, तब उन्हें लाल चन्दन के जल से अर्घ्य दे। इस प्रकार देवी प्रसन्न होकर साधक के पास आकर पूछती है- मैं तुम्हारा क्या करूँ ? उस समय साधक कहे हे देवी! तुम मेरी टहलनी हो जाओ।
तब वह साधक की टहलनी होकर उसे प्रतिदिन वस्त्र, आभूषण एवं भोज्य पदार्थ समर्पित करती है। इस मन्त्र का जप करते समय नटी भूतनी का टहलनी के रूप में ही चिन्तन और स्मरण करना चाहिये |
साधन विधि-नदी के संगम स्थल पर जाकर उक्त मन्त्र का आठ सहस्र की संख्या में जप करे तथा पूर्वोक्त प्रकार से पूजन करे। इस प्रकार सात दिन तक पूजन करे तदुपरान्त आठवे दिन जब सूर्यास्त हो, उस समय चन्दन द्वारा धूप दे तब ‘महानटी भूतनी प्रसन्न होकर अर्द्धरात्रि के समय साधक के समीप भार्या रूप में जाती है तथा साधक को प्रतिदिन सौ स्वर्ण मुद्रा देकर एवं उसकी अन्य अभिलाषाएँ पूर्ण कर प्रातःकाल के समय लौट जाती है।
साधन विधि – रात्रि के समय अपने घर के द्वार पर बैठकर उक्त ( १५० ) मन्त्र को आठ सहल की संख्या में जप तथा पूर्वोक्त विधि से पूजन करे । इस प्रकार तीन दिन तक जप करने से चेटिका भूतनी साधक के समीप ग्राकर, उसकी दासी के रूप में गृह संस्कार ( घर का भाड़ना बुहारना आदि ) कार्य करती है तथा उसकी अन्य इच्छाओं को पूरा करती है।
साधन विधि – रात्रि के समय मातृगृह में जाकर मत्स्य, मांस अर्पण कर पूर्वोक्त विधि से पूजन कर, उक्त मन्त्र का एक सहस्र संख्या में जप करे। इस प्रकार सात दिन तक जप करने से ‘कामेश्वरी भूतनी प्रसन्न होकर साधक के समीप आती है ।
उस समय साधक को भक्तिपूर्वक अर्घ्य देना चाहिए। जब देवी प्रसन्न होकर साधक से यह प्रश्न करे कि तुम्हारी क्या आज्ञा है ? उस समय साधक को उससे कहना चाहिए — तुम मेरी पत्नी हो जाओ। यह सुनकर कामे- श्वरी साधक पर प्रसन्न होकर पत्नी रूप में उसके सब मनोरथों को पूरा करती हैं तथा उसे राज्याधिकार भी प्रदान करती है ।
साधन विधि – रात्रि के समय किसी देवमन्दिर में जाकर उत्तम शैया बनाकर चमेली के पुष्प, वस्त्र तथा श्वेत चन्दन से पूजन कर, गूगल की धप देकर उक्त मन्त्र का पाठ सहस्र की संख्या में जप करे। जब तक देवी प्रकट न हो, तब तक जप करना चाहिए ।
प्रसन्न होने के दिन कुमारिका भूतनी साधक के समीप आकर उसका चुम्बन, आलिंगन आदि करके प्रसन्नता प्रदान करती है तथा सुसज्जित पत्नी रूप में सहवास आदि से संतुष्ट कर, साधक को आठ स्वर्ण मुद्रा, दो ( १८१ ) वस्त्र तथा सुन्दर भोजन – ये सब वस्तुयें तथा कुबेर के घर से धन लाकर देती है। इस प्रकार प्रतिदिन रात्रि भर साधक के समीप रहकर, प्रातः काल चली जाती है ।
विशेष – जो साधक किसी की भूतनी का पत्नी के रूप में वर करे, उसे चाहिए कि वह अन्य किसी भी स्त्री के साथ सम्पर्क न रखे ।
गायत्री मंत्र के लाभ The Benefits Of Chanting Gayatri Mantra ph.85280 57364
गायत्री मंत्र के लाभ The Benefits Of Chanting Gayatri Mantra
गायत्री मंत्र के लाभ The Benefits Of Chanting Gayatri Mantra
शिव गायत्री मंत्र के लाभ
सवा लाख गायत्री मंत्र के लाभ
गायत्री gayatri मंत्र के लाभ The Benefits Of Chanting Gayatri Mantra दोस्तों आज के इस post में, मैं आपको बताने जा रहा हूँ गायत्री gayatri मंत्र का जाप करने के क्या लाभ हैं? गायत्री gayatri के जप से कुछ अंदाजा लग जाता है कि यह कितना महत्वपूर्ण है, यह निम्नलिखित प्रमाणों में से कुछ से जाना जा सकता है। इसे विशेष रूप से आवश्यक कहा जाता है ब्राह्मण के लिए क्योंकि ब्राह्मणवाद का पूरा आधार किस पर निर्भर है?
गायत्री gayatri में बताए गए मार्ग पर चलने से बुद्धि और वह ज्ञान प्राप्त होता है। गायत्री gayatri सभी वेदों और गुहया उपनिषदों का सार है। इसलिए नियमित रूप से गायत्री gayatri मंत्र का जाप करें। गायत्री gayatri मंत्र की पूजा सभी वेदों का सार है। ब्रह्मदी देवता भी शाम के समय गायत्री gayatri का ध्यान और जप करते हैं।
केवल गायत्री gayatri की पूजा करने वाला ब्राह्मण भी मोक्ष को प्राप्त करता है। गायत्री gayatri का जाप करने वाले को सांसारिक और पारलौकिक सुख के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। एक व्यक्ति जो तीन साल तक हर दिन गायत्री gayatri का जाप करता है ब्रह्म को अवश्य प्राप्त होता है और वायु की तरह मुक्त है।
इस तरह मनु ने खुद कहा है कि क्या या अन्य देवताओं की पूजा न करें, गायत्री gayatri का जाप करने मात्र से ही द्विज अक्षय मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ और क्या कहना है? सुप्रचारित गायत्री gayatri को द्विजों की मनोकामना पूरी करने वाला कहा जाता है।
गायत्री gayatri की sadhna से सभी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है और उन्होंने न केवल गायत्री gayatri की पूजा की लेकिन सातों लोकों की पूजा भी की। जो ब्रह्मचर्य, ओंकार, महा व्याहृतियों के साथ गायत्री gayatri मंत्र का जाप करता है, वह श्रोत्रिय होता है। एक ब्राह्मण जो दोनों शाम को प्रणव में गायत्री gayatri मंत्र का जाप करता है।
उसे वेदों के पाठ का फल प्राप्त होता है। एक ब्राह्मण जो हमेशा शाम और सुबह जल्दी गायत्री gayatri का जाप करता है यहां तक कि अगर कोई ब्राह्मण अयोग्य पूर्ववर्ती लेता है, तो वह सर्वोपरि हो जाता है। यदि कोई विद्वान एक बार भी उत्तम अक्षरों से गायत्री gayatri का जाप करे तो वह तत्काल सिद्धि प्राप्त करता है और वह ब्रह्म की व्यवहार्यता प्राप्त करता है।
ब्राह्मण कुछ और कर भी सकता है और नहीं भी कर सकता है, लेकिन वह गायत्री gayatri का जाप करके ही सिद्धि प्राप्त कर सकता है। अन्य अनुष्ठान करना है या नहीं, द्विज, जो केवल गायत्री gayatri की पूजा करता है, कृतज्ञता का कार्य बन जाता है।
सुनो! शाम को सूर्य को अर्घ्यदान देकर और जप करने मात्र से प्रतिदिन तीन हजार नर देवता भी पूजनीय हो जाते हैं। गायत्री gayatri के एक अक्षर की सिद्धि से देवता गण इस प्रकार हैं हरिशंकर ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि आदि भी साधक का मुकाबला करते हैं।
दस हजार जपित गायत्री gayatri परम शोधक है। समस्त पापों और समस्याओं का नाश करके दस हजार गायत्री gayatri का जप करने से परम शोधक होता है। वह जो गायत्री gayatri का उच्चारण करता है यह सही है कि वह इस लोक में और परलोक में ब्रह्मा की व्यवहार्यता को प्राप्त करता है। इसलिए हमें गायत्री gayatri मंत्र नित्यप्रति का जाप करना चाहिए। और गायत्री gayatri माता का ध्यान करें
सवा लाख गायत्री मंत्र के लाभ
सवा लाख गायत्री मंत्रका जाप करने से साधक के सभी पापो से मुक्ति मिलेगी और साधना की मनोकामना पूरी होगी
शिव गायत्री मंत्र के लाभ
शिव गायत्री मंत्र के जप से शिव की कृपा प्रपात होगी और साधक को भक्ति और मुक्ति मिलेगी
Pataal Bhairavi – पाताल भैरवी बंगाल का जादू की मंत्र साधना Pataal Bhairavi bangal ka jadu mantra sadhna ph.8528057364
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Pataal Bhairavi – पाताल भैरवी बंगाल का जादू की मंत्र साधना Pataal Bhairavi bangal ka jadu mantra sadhna ph.8528057364 मैं जय श्री महाकाल जय माता रानी की आप सभी का माता रानी कल्याण करें और सभी को सुखी रखें हम आशा करते हैं। आप सभी चुके होंगे आज एक विशेष प्रयोग बताएंगे भैरवी साधना के बारे में आपसे निवेदन ने आप हमारी वेबसाइट को को सब्सक्राइब जरूर करें ,और हमें आशा है कि आपको हमारे वेबसाइट से बहुत अच्छी जानकारी मिलती होगी ।
और वह से लोग साधना करते भी है वह मैं मैसेज भी भेजते हैं । उनके कुछ अनुभवों के बारे में भी बताते हैं वह मंत्र के बारे में और उनकी भेद के बारे में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो पूछते हैं और बहुत से लोगों ने हमसे साधना भी लिए उनके अनुभव वगैरा के बारे कई सारे मैसेज पढ़ है । टेलीग्राम पर तो आपसे भी निवेदन करते हैं कि आपको भी अगर किसी प्रकार की तंत्र-मंत्र में कोई सहायता चाहिए । तो आप हमें संपर्क कर सकते हैं है अब मैं किसी भी समय संपर्क कर सकते हैं ।
टेलीग्राम पर किसी भी समय आप मैसेज कीजिएगा जब भी देखेंगे आपको रिप्लाई कर दिया जाएगा है । इसके अलावा अगर आप बात करना चाहते हैं तो यह नंबर पर फ़ोन करे 85280 57364 हम आपकी पूरी मदद करेंगे जितना हो सकेगा ।आपको पूरी सहायता की जाएगी और जो भी मंत्र साधना और विधि लेना चाहते हैं वह टेलीग्राम पर मैसेज कर के ले सकते हैं ।
आज जो भैरवी साधना के बारे में तो बेहतर भी एक विशेष साधना है, ऐसी साधनाओं को तमसा कि श्मशान में किया जाता है । कि यह साथ तामसिक विधि से जितनी करेंगे उचित तरीके से उतनी जल्दी फलदाई रहेगी और सफलता भी इसमें मिलेगी और हुआ, है कि आप अगर भैरवी साधना करते हैं करना चाहते हैं । तो हम आपको इस वीडियो में पाताल भैरवी का मंत्र बताएंगे इसके अलावा उसके भेद के बारे में कुछ जानकारी देंगे, कि जब भी आप भैरवी साधना करें । तो आप किसी श्मशान को सुनने जहां पर उनकी भसम वगैरह होती है और आप वेगरा होती है ।
वहां पर आपको कुछ क्रिया करनी पड़ती है जो कोई हर कोई करने में असमर्थ रहता है । कुछ गुप्त क्रियाएं होती है कुछ विशेष तांत्रिक प्रयोग होते हैं । उनमें कि श्मशान भूमि में जो भी किरया करता है उनकी साधना आएं बहुत जल्दी सफल होती है और वह एक विशेष तांत्रिक के तौर पर जाना पहचाना लगता है । कि श्मशान भूमि एक ऐसी पवित्र भूमि है कि जहां पर बहुत सी शक्तियों का वास होता है ।
और यहां पर साधना करने वाला कोई विशेष साधक होता है वहीं कर सकता है। क्योंकि श्मशान भूमि में साधना करने के लिए एक तो अपने पास में विशिष्ट शक्ति का साथ होना अत्यावश्यक है इसके अलावा अपने पास में कुछ रक्षा के तौर पर विशिष्ट मंत्रों को किए बिना वहां पर यह नहीं बैठ सकते हैं।
दूसरी बात यह कि डरावने लोग बिल्कुल भी वहां यह टिक नहीं सकते हैं है और श्मशान भूमि का तो एक रहस्य बहुत ही निराला है वहां पर हर कोई तो दिन को भी नहीं जा सकता रात की तो बात ही छोड़ दें और जो भी साधना होती है वह ज्यादातर रात्रिकालीन में ही होती है क्योंकि वहां पर जो भी मंत्र जप करते हैं तो उन मंत्रों का बहुत ज्यादा प्रभाव रहता है और बहुत सी एक्टिविटीज होती है
वहां पर शक्तियां होती है वह बहुत उपद्रव मचा आती है और अलग-अलग तरीके से यह वह शायद फिर सामने भी पेश होती है या साधक की आस पास में कुछ खींचाताणी को उलट-पुलट भी होते रहते हैं कि यह जब साधक स्वयं वहां पर साधना करता है तब जाकर इनको महसूस होता है कि वास्तव में कुछ शक्तियां हैं है भैरवी साधना करना चाहते हैं चुके हैं तो आप ऐसी भूमि में करें जहां परिचित हो सकें बाकी अन्य जगहों में अपना समय बर्बाद ना करें उसके लिए तामसिक प्रयोग में आपको मांस मदिरा का प्रयोग करना पड़ेगा
इसके अलावा मिष्टान वगैरह चावल वगैरह बहुत सी सामग्री होती है वह सात्विक और तामसिक दोनों मिलाकर वहां पर विशेष उनमें तामसिक प्रयोग किया जाता है लेकिन भोग के लिए आप चाहें तो अनेक प्रयोग कर सकते हैं
कि उनके क्रियाविधि रात्रिकालीन में की जाती है और रात्रिकालीन में इनका जब किया जाता है जब यह जप करते हैं तो आपको माला प्रतिदिन का जप करना पड़ेगा तब जाकर ऐसी सत्य सिद्ध होगी और इनके साथ में बहुत सी सकती है सूत्रों की कि जब यह मंत्र जप करेंगे तो आपके आसपास पर कई सारी यक्षिणियां जैसे बहुत से भूत बेतालें बहुत सी ऐसी शक्तियां होगी
जो आपको डराएगी धमका आएगी कुछ भी करेगी इसके लिए वहां पर अपने सुरक्षा कवच होना अत्यावश्यक है और इस शक्ति का साथ होना अत्यावश्यक है ऐसी शक्तियां ज्यादातर अघोर पद्धति के जो गुरु होते हैं उनके सानिध्य में ही की जानी आवश्यक रहती है कि बाकी हर कोई ऐसी शक्तियों को ना तो ललकारने के बारे में कभी सोचा ना चाहिए
वहां जाकर करें क्योंकि एक बार यह साधना करने के बाद में वहां की शक्तियां होती और जाग्रत हो जाती है उन शक्तियों को फिर शांत करना बहुत मुश्किल होता है और वहां से अगर आपके निकलते हैं
तो फिर आना मुश्किल होता है है ऐसी स्थिति में हर साधक यह सोचता है कि अपनी जान कैसे बचाएं है तो हमारा निवेदन है यही को कोई भी तामसिक प्रयोग कि अगर साधना एक विशेष तरीके से करते हैं तो वह शमशान जैसी भूमि में करें या किसी की देखरेख में करें ताकि वह साधना जल्दी सफ हो ऐसी क्रियाएं होती है जो घरों में करना बहुत मुश्किल है
यह साधना घरों में तभी करें जब आप वहां की कुछ दिनों की साधना संपन्न करने के बाद में अगर आप घर पर करना चाहिए तो फिर सामान्य तौर पर फिर आप इसको घर पर कर सकते बात करते हैं
Pataal Bhairavi – पाताल भैरवी बंगाल का जादू की मंत्र साधना विधि
आप छोटा सा मंत्र आएं इस मंत्र कि आप 51 माला जप करके आप स्वयं का अगर शमशान में नहीं करते हैं तो शमशान के कुछ सामग्री एकांत में अन्य जगहों पर जाकर भी इनके साधना कीजिएगा आपको एक-दो दिन में अनुभव हो जाएगा।
आप स्वयं प्रसन्न जाएंगे की हकीकत में कुछ शक्तियां हैं और अपने को इनके बारे में कुछ उलट-पुलट हो रहा है कि जब आपको ऐसा अनुभव होने लगे तो आप कठोर पद्धति से उपचार ना को करें फिर उस साधना में आगे बढ़ते नहीं इस मंत्र चुन लीजिए गा आप ध्यान से
Pataal Bhairavi – पाताल भैरवी बंगाल का जादू की मंत्र
यह छोटा सा मंत्र जिनकी आपको 51 माला जप करना है यह साधना ज्यादातर अमावस्या की रात्रि में प्रारंभ की जाती है या त्रयोदशी को प्रारंभ की जाती है इसके अलावा आप शायद शनिवार के दिन भी रात्रिकाल में यह सब शुरू करें यह अपने बहुत लंबे समय तक करनी पड़ती है लगभग डेढ़ महीने कि आप मान लो तब जाकर इंसानों के धनी बनने जाता है
Pataal Bhairavi – पाताल भैरवी बंगाल का जादू की मंत्र के लाभ
Pataal Bhairavi – पाताल भैरवी बंगाल का जादू की मंत्र के लाभ यह साधना करने के बाद में किसी भी प्रकार के खट्ट क्रम प्रयोग भी कर सकते हैं मैं इसमें सह मारण मोहन सम्मोहन कोई भी वशीकरण वगैरह होते हैं सब किए जा सकते हैं
इसके अलावा आप किसी दूर दूसरी शक्तियों को भी जानना पहचानना उनके बारे में क्या स्थिति है वह किस तरीके से अपना काम कर सकती है किसी विशेष आत्माओं का आगमन करवाना किसी भी प्रकार की किसी मृत जी उसे किसी मृत आत्मा आशीर्वाद प्रपात करना
उनके बारे में कुछ जानना यह बहुत सी क्रिया ऐसी साधना करने के बाद में अपने को प्राप्त होती हैं कोई भी इंसान मृत्यु को प्राप्त हो गया है उसकी आत्मा को बुलाकर उनसे वार्तालाप भी ऐसी शक्तियों के जरिए कर सकते हैं कि यह साधना विशिष्ट तरीके से की जाती है हर कोई करने में बहुत मुश्किल रहता है लेकिन जब करेंगे तो इससे बहुत सी कुछ हासिल होता है कि आप भी करना चाहें तो अगर पद्धति से यह साधना कीजिएगा आपको हर तरीके से सफलता मिलेगी जय श्री महाकाल जय माता रानी की