maa tara sadhna माँ तारा साधना और माँ तारा साधना के लाभ ph. 85280 57364
maa tara sadhna माँ तारा साधना और माँ तारा साधना के लाभ ph. 85280 57364 तारा महाविद्या और उनकी साधना का रहस्य तंत्र शास्त्र में माँ तारा का उल्लेख दूसरी महाविद्या के रूप में किया गया है । शाक्त तांत्रिकों में प्रथम महाविद्या के रूप में महाकाली का स्थान रखा गया है। तंत्र में महाकाली को इस चराचर जगत की मूल आधार शक्ति माना गया है।
इन्हीं की प्रेरणा शक्ति से यह जगत और उसके समस्त प्राणी जीवन्त एवं गतिमान रहते हैं । समस्त जीवन के प्राण स्रोत माँ काली के साथ संलग्न रहते हैं । इसीलिये इस शक्ति से विहीन जगत तत्क्षण निर्जीव हो जाता है। तंत्र के अति प्राचीन प्रतीकों में महाकाली को शिव पर आरूढ़ दिखाया गया है। यह भी इसी तथ्य का प्रतीक है कि ‘शक्ति’ हीन ‘शिव’ भी निर्जीव ‘शव’ के रूप में रूपान्तरित हो जाते हैं।
महाकाली के रूप में इस आद्यशक्ति का रहस्य बहुत अद्भुत है, क्योंकि चेतना के समस्त सूत्र इसी महाशक्ति में समाहित रहते हैं । इसीलिये महाकाली का ‘श्याम’ रूप माना गया है। जिस प्रकार सभी तरह के रंग काले रंग में विलीन हो जाते हैं, ठीक वैसे ही समस्त जगत काली में समाहित हो जाता है
जो साधक महाकाली को पूर्णत: समर्पित हो जाता है, उस साधक के समस्त कष्टों का माँ काली स्वतः ही हरण कर लेती है । इसीलिये महाकाली को समर्पित साधक समस्त प्रकार के दुःख, दर्द, पीड़ाओं, अभावों, कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। बहुत से लोग अज्ञानवश महाकाली को भय, क्रोध और मृत्यु का प्रतीक भर मानते हैं । इस विश्वास से उनकी अज्ञानता ही उजागर होती है। वास्तव में महाकाली मृत्यु पर विजय और भयहीन होने की प्रतीक है।
महाकाली की भयानक एवं क्रोधयुक्त मुद्रा एवं उनका अति उग्र प्रदर्शन उनकी अनंत शक्ति का द्योतक है। तंत्र शास्त्र में प्रथम महाविद्या के रूप में महाकाली का अधिपत्य रात्रि के बारह बजे से प्रातः सूर्योदय तक रहता है। घोर अंधकार महाकाली का साधना काल है, जबकि सूर्योदय की प्रथम किरण के साथ ही द्वितीय महाविद्या के रूप में तारा विद्या का साम्राज्य चारों ओर फैलने लग जाता है।
महाकाली चेतना का प्रतीक है तो तारा महाविद्या बुद्धि, प्रसन्नता, सन्तुष्टि, सुख, सम्पन्नता और विकास का प्रतीक है। इसीलिये तारा का साम्राज्य फैलते ही अर्थात् सूर्य की प्रथम रश्मि के भूमण्डल पर अवतरित होते ही सृष्टि का प्रत्येक कण चेतना शक्ति युक्त होता चला जाता है ।
रात्रि के अंधकार में जो जीव-जन्तु निद्रा के आवेश में आकर सुस्त और निष्क्रिय पड़ जाते हैं, फूलों की प्रफुल्लित हुई कलियां मुर्झा जाती हैं, प्राणियों में जो पशु भाव उतर जाता है, वह सब प्रातःकाल होते ही अपने मूल स्वरूप में लौट आता है ।
तारा महाविद्या का रहस्य बोध कराने वाली हिरण्यगर्भ विद्या मानी गई है। इस विद्या के अनुसार वेदों ने सम्पूर्ण विश्व (सृष्टि) का मुख्य आधार सूर्य को स्वीकार किया है। सूर्य अग्नि का एक रूप है। अग्नि का एक नाम हिरण्यरेता भी है। सौरमण्डल हिरण्यरेत (अग्नि) से आविष्ट है। इसीलिये इसे हिरण्यमय कहा जाता है।
आग्नेयमंडल के नाभि में सौर ब्रह्म तत्त्व प्रतिष्ठित है, इसलिये सौरब्रह्म को हिरण्यगर्भ कहा गया है । जिस प्रकार विश्वातीत कालपुरुष की महाशक्ति महाकाली है, उसी प्रकार सौरमण्डल में प्रतिष्ठित हिरण्यगर्भ पुरुष की महाशक्ति ‘तारा’ को माना गया है।
जिस प्रकार गहन अन्धकार में छोटा दीपक भी अत्यन्त प्रकाशमान प्रतीत होता है, उसी तरह महानतम के अर्थात् अंतरिक्ष में तारा शक्ति युक्त सूर्य सदैव प्रकाशमान बना रहता है, इसलिये श्रुतियों में सूर्य नक्षत्र’ नाम से भी जाने गये हैं।
तलाक divorce की समस्या का निराकरण करने वाला एक तांत्रोक्त प्रयोग A tantrok experiment to solve the problem of divorce ph.85280 57364
तांत्रोक्त प्रयोग A tantrok experiment to solve the problem of divorce ph.85280 57364
divorce तलाक के समस्या निराकरण लिए तांत्रोक्त प्रयोग : विज्ञान की उन्नति और औद्योगिक क्रांतियों ने समाज को अनेक उपहार प्रदान किये हैं । इन्होंने लोगों के जीवन को अधिक आरामदायक बनाया है ।
समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। सुख-सुविधा के साधनों के साथ-साथ भोग-विलास के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। लोगों के जीवन स्तर में भारी बदलाव आया है ।
कठिन, दुष्कर एवं बोझल जैसी प्रतीत होने वाली जिन्दगी अब अधिक आरामदायक एवं आनन्द देने वाली लगने लगी है, लेकिन इन सभी के साथ ही लोगों के सामाजिक रिश्तों, विशेषकर पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ सोच-विचार और भावनाओं के दृष्टिकोण में जबरदस्त बदलाव आया है ।
तलाक divorce निवारण मंत्र
तलाक divorce के निवारण साधना स्तम्भंक साधना
तलाक divorce निवारण
आधुनिकता ने हमें सुख-सुविधाएं अवश्य प्रदान की हैं, लेकिन इनके साथ ही कई तरह की समस्याओं को भी जन्म दिया है। जैसे-जैसे समाज का बौद्धिक स्तर बढ़ता जा रहा है, शताब्दियों से प्रचलित रहे संस्कारों की डोर कमजोर पड़ती जा रही है। लोगों के मन में स्वैच्छिक उन्मुक्तता, स्वतंत्रता के साथ-साथ स्वार्थी प्रवृत्ति घर करती जा रही है।
इसलिये सामाजिक रिश्ते ही नहीं अपितु पारिवारिक सम्बन्धों पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी के बीच कटुता उत्पन्न होने लगी है। प्राचीन समय में समाज को एकजुट रखने तथा परिवार के रूप में प्रेमपूर्वक रहने के लिये अनेक तरह के नियम निर्धारित किये थे ।
गृहस्थाश्रम को पूर्ण उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने के लिये हिन्दू जीवन पद्धति में जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक संस्कारों का विधान रखा था, जिनमें सोलह संस्कार बहुत ही प्रमुख थे ।
इन संस्कारों में पितृदोष से ऋणमुक्त होने, पुत्र-पुत्री का गृहस्थ बसाने (कन्या दान) और पति-पत्नी के रूप में सदैव एकत्व का भाव रखने वाले संस्कार सबसे मुख्य हैं । वैवाहिक बंधन में बंध जाने के पश्चात् पति- पत्नी को सदैव के लिये एक-दूसरे के लिये समर्पित रहने के लिये वचनबद्ध रहना पड़ता है।
पति-पत्नी के संबंधों को किसी समय दो शरीर और एक आत्मा, दो मन और एक सोच, सात जन्मों तक साथ निभाने वाले, जैसी उपमायें दी गई थी, लेकिन अब इस पवित्र रिश्ते में भी गिरावट आती जा रही है। आज अधिकांश लोगों में उन्मुक्तता, स्वच्छन्द सोच, अहं और स्वतंत्रता की भावना बलवती होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ पारिवारिक रिश्तों में अविश्वास, सन्देह, संघर्ष एवं कलह की स्थिति देखने को मिल रही है । समर्पण की जगह संघर्ष ने ले ली है ।
प्रेम का स्थान अविश्वास और संदेह ने ले लिया है । इन सबका परिणाम है कि पारिवारिक कलह, हिंसा, तलाक, एक-दूसरे को धोखा देने की घटनायें बढ़ती जा रही हैं। तलाक divorce की दर भी तीव्रगति से बढ़ रही है। तलाक divorce का अर्थ है वैवाहिक जीवन में प्रेम, समर्पण, त्याग की जगह अविश्वास, घृणा एवं संघर्ष का इस सीमा तक बढ़ जाना कि पति – पत्नी दोनों को ही यह लगने लगे कि अब एक साथ रहना संभव नहीं है । ऐ
सी स्थितियों में उन दोनों का एक साथ शांतिपूर्वक रह पाना मुश्किल बन जाता है और वह शीघ्रताशीघ्र एक-दूसरे से अलग होकर स्वतंत्र हो जाना चाहते हैं। तलाक divorce के ऐसे मामलों के लिये सामाजिक परिस्थितियां तो उत्तरदायी रहती ही हैं, कई अन्य कारण भी जिम्मेदार रहते हैं ।
इस प्रकार के कारणों का उल्लेख तंत्रशास्त्र एवं अन्य दूसरे ग्रंथों में विस्तारपूर्वक दिया गया है। आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि जिन परिवारों में माता-पिता या अन्य बुजुर्ग सदस्यों को पूर्ण मान-सम्मान नहीं मिलता, उनकी संतानें भी सुखी नहीं रह पाती ।
इनकी संतानों के विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में बहुत अधिक विलम्ब होता है, उनके गृहस्थ जीवन में भी निरन्तर उथल-पुथल मची रहती है । उनकी संतानों को गृह क्लेश का सामना करना पड़ता है, जिसकी परिणिति अनेक बार तलाक divorce के रूप में सामने आती है।
इन लोगों को संतान सुख भी प्राप्त नहीं हो पाता। इसी तरह जिन परिवारों में कुल देवता, देवी का अपमान, निरादर किया जाता है या परिवार के किसी कमजोर सदस्य को सताया, दबाया जाता है या बार – बार अपमानित किया जाता है, उनकी संतानें उन्मुक्त स्वभाव को अपनाने वाली होती हैं। इनके पुत्र- पुत्रियां, दोनों का ही गृहस्थ जीवन सुचारू रूप से नहीं चल पाता। ऐसे अधिकतर मामलों में शीघ्र तलाक divorce की स्थितियां निर्मित होने लगती ।
अनुभवों में ऐसा आया है कि अगर समय रहते समुचित प्रबन्ध कर लिये जायें तो तलाक divorceजैसी स्थिति को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है तथा टूटते हुये गृहस्थ जीवन को बचाया जा सकता है । ऐसी विषम परिस्थितियों से बचने के लिये तांत्रिक सम्प्रदाय और वैदोक्त पद्धति में अनेक उपाय एवं प्रयोग दिये गये हैं, जिनको सविधि सम्पन्न करने से माता-पिता के पापकर्मों का तो प्रायश्चित हो ही जाता है, कई अन्य तरह के दोष भी समाप्त हो जाते हैं । तलाक
तलाक divorcedivorce के निवारण साधना स्तम्भंक साधना विधि शाबर प्रयोग
तलाक divorcedivorce के निवारण साधना स्तम्भंक साधना विधि शाबर प्रयोग : यद्यपि पापकर्मों से मुक्ति पाने के लिये शास्त्रों एवं वैदोक्त प्रणाली में अनेक विधान और उपाय बताये गये हैं । इन सबका इस प्रसंग में वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। आगे एक ऐसा शाबर मंत्र प्रयोग दिया जा रहा है जिसके द्वारा तलाक divorceकी स्थिति को रोका जा सकता है यह प्रयोग वशीकरण पर आधारित है ।
यह प्रयोग एक बार सिद्ध हो जाता है तो उस साधक या साधिका के सामने विशेष क्षणों में जो भी सामने आ जाता है, वही वशीभूत हो जाता है। यह शाबर प्रयोग अनेक बार अनुभूत किया हुआ है । ऐसा देखने में आया है कि अगर समय रहते पति-पत्नी में से कोई भी एक इस शाबर पद्धति पर आधारित वशीकरण प्रयोग को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेता है
तो वह तलाक divorce की स्थिति को बदल सकता है तथा वह पति – पत्नी के रूप एक परिवार के रूप में बने रह सकते हैं। यह शाबर प्रयोग 41 दिन का है । अगर इस शाबर मंत्र को पहले दीपावली, दशहरा, होली आदि की रात्रि को किसी एकान्त स्थान में बैठकर दीपक आदि जलाकर अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप कर लिया जाये तो यह मंत्र चेतना सम्पन्न हो जाता है ।
तब इस मंत्र का प्रभाव अनुष्ठान शुरू करने के दूसरे सप्ताह में ही दिखाई देने लग जाता है । यद्यपि इस शाबर अनुष्ठान को किसी भी कृष्णपक्ष के शनिवार के दिन से भी शुरू किया जा सकता है । यह शाबर अनुष्ठान शनिवार की रात्रि को दस बजे के बाद सम्पन्न किया जाता है, लेकिन इससे संबंधित थोड़ा सा विधान प्रातः काल भी सम्पन्न करना पड़ता है। प्रात:काल शुद्ध आटे से पांच रोटियां बनवायें
| उन्हें घी से चुपड़ें। एक थाली में रोटियों के साथ थोड़ा सा देशी घी, दही, शक्कर, दो लौंग और एक बताशा रखें। एक कण्डे में आग जलाकर उस पर घी की आहुतियां प्रदान करते हुये एवं बताशे के साथ दोनों लौंगों को घी में भिगोकर अग्नि को समर्पित कर दें। साथ ही अपने देवताओं को स्मरण करते हुये उनका आह्वान करते रहें
। बताशे के बाद प्रत्येक रोटी से थोड़ा-थोड़ा अंश तोड़कर क्रमशे : घी, दही, शक्कर में लगाकर अग्नि को अर्पित करें। इस प्रकार पांचों रोटियों का थोड़ा-थोड़ा अंश अग्नि को चढ़ा दें। तत्पश्चात् घी की एक आहुति प्रदान करके अंगुलियों में थोड़ा सा पानी लेकर अग्नि की प्रदक्षिणा करें। अपने कुल देव या देवियों से अपने और अपने माता-पिता के अपराधों को क्षमा करने की प्रार्थना करें। बाद में उन पांचों रोटियों को क्रमशः गाय, कुत्ता, कौआ, पीपल के वृक्ष के नीचे और जल में प्रवाहित कर दें ।
रात्रि को घर के मुख्यद्वार पर एक दीपक जलाकर रखें। ऐसा कुल सात शनिवार तक रखना है। रात्रि को अनुष्ठान के रूप में किसी सुनसान एकान्त स्थान, किसी प्राचीन खण्डहर अथवा किसी प्राचीन शिव मंदिर या अपने ही घर के किसी कक्ष में बैठकर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करें।
सबसे पहले रात्रि को नेहा धोकर तैयार हो जायें । संभव हो तो लाल रंग के वस्त्र पहन कर अपने साधना स्थल पर जाकर लाल ऊनी आसन पर पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जायें । अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शुद्ध मिट्टी का ढेला रखें और उस पर तेल – सिन्दूर का लेप करके पांच लौंग, पांच कालीमिर्च, पांच पान के पत्ते, सिन्दूर से रंगी पांच सुपारी तथा ग्यारह की संख्या में पंच- चक्रा सीप भी सिन्दूर में रंग कर अर्पित करें।
इसके पश्चात् तेल का दीपक जलाकर एवं खीर का प्रसाद रखकर हकीक माला से अग्रांकित मंत्र की पांच माला जाप करें । जाप के पश्चात् खीर को स्वयं ही खा लें । अन्य किसी को न दें।
तलाक divorce निवारण मंत्र
तलाक divorce निवारण मंत्र अनुष्ठान में प्रयुक्त मंत्र इस प्रकार है–
मंत्रजाप के लिये हकीक माला या पंचमुखी लघु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करें । जाप करने से पहले स्वयं अपने मस्तष्क पर भी सिन्दूर का टीका लगा लें । अनुष्ठान अवधि में ब्रह्मचर्य पालन करने के साथ-साथ भूमि पर शयन करें। संभव हो तो साधना स्थल पर ही सोयें। इस शाबर अनुष्ठान में प्रतिदिन पूजा का क्रम यही रहता है। अनुष्ठान के अन्तिम दिन मंत्रजाप के उपरान्त पूजा की समस्त सामग्री को किसी नये वस्त्र में बांधकर अथवा किसी कोरे मिट्टी के बर्तन में भरकर जल में प्रवाहित कर दें।
पूजा में प्रयोग की गई हकीक माला या रुद्राक्ष माला को स्वयं अपने गले में पहन लें अथवा घर के पूजास्थल पर स्थापित कर दें । अनुष्ठान समाप्त होने के पश्चात् जब आप सिन्दूर पर सात बार उपरोक्त मंत्र को पढ़ कर अपने माथे पर टीका लगाकर अपनी पत्नी या पति के सामने जाते हैं, तो उसका गुस्सा तत्काल शांत हो जाता है तथा संदेह अथवा अविश्वास की जगह आकर्षण उमड़ने लग जाता है। इसी प्रकार नाराज अधिकारी के सामने सिन्दूर लगाकर जाने से उसका भी वशीकरण होता है। वह भी आपसे शत्रुता भुलाकर सम्मान देने वाला व्यवहार करने लग जाते हैं।
प्रेम विवाह के लिए तांत्रिक प्रयोग ph. 85280 57364 Guru Gorakhnath ji’s tantric experiment for love marriage
प्रेम विवाह जल्दी होने के उपाय
प्रेम विवाह के लिए मंत्र
प्रेम ज्योतिष उपाय
प्रेम विवाह के लिए मंत्र
जल्दी होने के उपाय
प्रेम विवाह के लिए गुरु गोरखनाथ जी का तांत्रिक प्रयोग ph. 85280 57364 यह प्रयोग उन के लेया है जिनके माँ बाप जाती बंधन या किसी कारणवश शादी के लेया नहीं मान रहे है। यह प्रयोग करने के बाद शादी को कोई नहीं रोक सकता।
प्रेम विवाह और तांत्रिक प्रयोग नीतिशास्त्र का कथन है कि धन की आमद नित बनी रहे, शरीर निरोगी रहे, गृहस्थाश्रम पालन के लिये सुन्दर, सुशील, स्त्री पत्नी के रूप ‘ प्राप्त हो जाये तथा संतान का सुख मिलता रहे, तो व्यक्ति का जीवन सार्थक सिद्ध हो जाता है ।
विवाह संस्कार को नीतिशास्त्र में गृहस्थ जीवन की आधारशिला बताया गया है । विवाह संस्कार का मुख्य आधार परस्पर अपनत्व के भाव एवं प्रेम की डोर पर निर्भर रहता है । विवाह के बारे में सभी जानते हैं कि परिवारजनों द्वारा निश्चित किये गये सम्बन्ध ही विवाह में रूपान्तरित हो जाते हैं ।
इस संयोजित विवाह पद्धति का आज भी सम्मान किया जाता है। विवाह का एक अन्य रूप भी अपनी जगह बना रहा है, वह है प्रेम विवाह । अक्सर ही प्रेम विवाह परिवार के बड़े सदस्यों की सहमति के बिना, उनका विरोध करके सम्पन्न होते हैं।
इस बारे में अधिकांश लोग इसके विरोध में हैं किन्तु कुछ विद्वानों का ऐसा मानना है कि अगर पहले प्रेम करके लड़का-लड़की एक-दूसरे को ठीक से समझ लेते हैं और उन्हें लगता है कि वे विवाह करके सुखी दाम्पत्य जीवन जी पायेंगे तो उनका विरोध नहीं होना चाहिये। इसके विपरीत आज भी अधिकांश अवसरों पर प्रेम विवाह का विरोध ही होता है और इसे उचित नहीं माना जाता है। अनेक अवसरों पर प्रेम विवाह के प्रति परिवार वालों का विरोध इतना भयावह और वीभत्स होता है कि व्यक्ति उसके बारे में सुन कर ही कांपने लगता है ।
इसका अधिकांश विरोध कन्यापक्ष के परिवार वालों के द्वारा किया जाता है। उन्हें लगता है कि उनकी बेटी ने ऐसा कार्य करके परिवार का नाम खराब किया है । कई बार इस विरोध का परिणाम लड़के एवं लड़की की निर्मम हत्या के रूप में सामने आता है । इसके उपरांत भी प्रेम विवाह को उचित बताने वाले कम नहीं हैं।
इसलिये यहां पर एक तांत्रोक्त उपाय बताया जा रहा है जिसे करने के पश्चात् प्रेम विवाह की राह में आने वाली बाधायें दूर होने लगती हैं। यह उपाय सामान्य अवश्य है किन्तु परिणाम सार्थक प्राप्त होते हैं:- प्रेम विवाह की बाधाएं दूर करने वाला तंत्र प्रयोग : गौरी यानी सुलेमानी हकीक (ओनेक्स अगेट) की एक ऐसी किस्म है, जो इन्द्रधनुष जैसी छटा बिखरने वाला सृष्टि का सबसे अद्भुत पत्थर माना जाता है। गौरी हकीक मानसिक शक्ति, आत्मबल, विवेक, धैर्य आदि सामाजिक प्रतिष्ठा और प्रभाव की अभिवृद्धि तो करता ही है, यह धारक की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ बनाता है।
प्राचीन समय से ही ऐसी मान्यता रही है कि इस पत्थर के धारण करने के पश्चात् जो पुरुषार्थ भरे कर्म किये जाते हैं, उनमें निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है । पश्चिम एशिया के अनेक देशों, विशेषकर मुस्लिम जगत में प्राचीन समय से ही ऐसी मान्यता चली आ रही है कि इस पत्थर में शक्तिशाली हीलिंग क्षमता रहती है ।
इसलिये यह उदास मन की मलिनता एवं उदासी के भाव को तत्काल मिटा देता है। मन को प्रसन्नता से भर देता है । यह व्यक्ति के मन में सहज बोध जगाकर उन्हें सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने के साथ-साथ प्रेम विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करके उन्हें शीघ्र ही वैवाहिक बंधनों में बंध जाने में मदद करता है ।
अनेक बार ऐसा देखने में आया है कि जिन युवक या युवतियों की उम्र 35-36 वर्ष से अधिक हो जाती है और उनके किसी भी तरह का वैवाहिक कार्य सम्पन्न हो पा रहा है. अथवा जिन युवक या युवतियों को अपने प्यार को प्रेम विवाह में रूपान्तरित करने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, अगर ऐसे युवक या युवतियों को अभिमंत्रित गौरी नामक यह हकीक पत्थर धारण करवा दिया जाये तो उनका प्रेम विवाह शीघ्र ही सम्पन्न हो जाता है ।
प्रेम विवाह के लिए तांत्रिक विधि
प्रेम विवाह के लिए तांत्रिक विधि इसका प्रयोग बहुत आसान है। इसे शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुवार को सम्पन्न करें तो लाभ मिलने की आशा बढ़ जाती है । इस प्रयोग को प्रातः काल सम्पन्न करना ठीक रहता.. है। इसके लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता नहीं रहती है ।
जिस दिन प्रयोग करना हो, उस दिन प्रातः स्नान-ध्यान करके पवित्र एवं स्वच्छ हो जायें। सफेद रंग की स्वच्छ धोती धारण करें। पीला सूती अथवा ऊनी आसन उपाय स्थल पर बिछा लें।
यज्ञ करने के लिये एक मिट्टी का बर्तन भी चाहिये ।
अपने सामने लकड़ी की चौकी रख लें और उस पर पीला कोरा वस्त्र एक मीटर लेकर उसकी चार तह करके चौकी पर बिछा लें। उसके ऊपर गौरी हकीक पत्थर रख दें । समिधा के रूप में लोबान का प्रयोग ही किया जाना है । इसमें आगे लिखे गये मंत्र का जाप करते हुये एक जाप के साथ एक आहुति दें। इस प्रकार कुल 108 मंत्रों का जाप करना है और इतनी बार ही लोबान की आहुति देनी है।
तत्पश्चात् उस हकीक पत्थर को चांदी की अंगूठी में जड़वा कर स्वयं अपने दाहिने हाथ में धारण कर लेवें । इस मंत्रजाप एवं पत्थर को धारण करने से विवाह बाधा की समस्या दूर होती ही है, साथ ही प्रेम विवाह की बाधा भी समाप्त होती है । अगर पुरुष गौरी के साथ एक गोदन्ता मणि एवं स्त्रियां गौरी के साथ एक लाल रंग का मूंगा भी धारण कर लें, तो उनके प्रेम विवाह को कोई नहीं रोक सकता ।
प्राचीन रहस्यमयी सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana
प्राचीन रहस्यमयी सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana भगवान गणपति Ganapati की जिस साधक पर कृपा हो जाती है उस पर कभी कोई अभाव अथवा समस्या नहीं आती है । सामान्य पूजा और सच्ची श्रद्धा से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
हमारे यहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, साधना अथवा अनुष्ठान आदि किसी विशेष प्रयोजन आदि के लिये किये जाते हैं जैसे कि किसी को आर्थिक समस्या है, किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा है, किसी के विवाह आदि में बाधायें आ रही हैं अथवा अन्य किसी प्रकार की कामना पूर्ति हो ।
इसी अनुरूप यह प्रयोग भी उन लोगों के लिये विशेष लाभदायक है जो विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त हैं । यह प्रयोग करने के कुछ समय बाद ही समस्याओं में कमी आने लगती है। यह प्रयोग एक बहुत विख्यात बाबा के माध्यम से प्राप्त हुआ है ।
इन बाबा के अनेक भक्त हुआ करते ।। उन्हीं में से एक भक्त जब भी उनसे मिलता, तभी चेहरा उदास और परेशान सा लगता । बाबा ने उसे कभी मुस्कुराते हुये भी नहीं देखा था । एक दिन बाबा ने उससे उसकी समस्या के बारे में पूछा । तब उसने बताया कि उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है ।
वह कपड़े की एक मिल में प्रबंधन कार्य देख रहा है । जितना पैसा वेतन के रूप में मिलता है, उससे उसका निर्वाह ठीक से नहीं होता है । उसने बाबा को एक बहुत गंभीर बात बताई कि वर्तमान की उसे चिंता नहीं है, जैसे भी कठिन दिन हैं, वह उन्हें भोग लेगा, चिंता केवल भविष्य को लेकर है।
बच्चे अभी छोटे हैं, आने वाले समय में उनकी शिक्षा आदि पर खर्च करना पड़ेगा, घर के अन्य खर्च भी बढ़ेंगे, उनकी व्यवस्था कैसे होगी ? यही चिंता की बात है । उसकी बात में इतनी करुणा थी कि बाबा का दिल पसीस गया।
उन्होंने उसे शाम के समय बुलाया और सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana के बारे में बताया और इस प्रयोग की विधि भी बताई। उस भक्त ने बाबा के निर्देशानुसार इस प्रयोग को किया । इसके दो महीने बाद ही परिस्थितियों में परिवर्तन आने लगा था।
एक अन्य बड़ी मिल ने इसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर पहले वाले वेतन से तीन गुना अधिक पर अपने यहां नौकरी पर रख लिया । इसके दो साल बाद एक व्यक्ति ने इस साधक के साथ साझीदारी से मिल खोल ली । चार साल के भीतर ही इस साधक की सभी प्रकार की समस्यायें समाप्त होकर धन की वर्षा होने लगी ।
वास्तव में यह सौभाग्य गणपति साधना Ganapati Sadhana का फल इसके नाम के अनुरूप ही प्राप्त हुआ था। बाद इस साधक का मेरे साथ परिचय हुआ । इन्होंने मुझे इस साधना के बारे में बताया और आग्रह किया कि जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से परेशान है और जो इस उपाय को कर सकता है, उसे मैं अवश्य इसके बारे में बताऊं ।
फिर मैंने अनेक लोगों से यह उपाय सम्पन्न कराया। सभी ने इस उपाय को चमत्कारिक प्रभाव के बारे मुझे बताया। इस उपाय को मैं अपने असंख्य पाठकों के लिये यहां बता रहा हूं। जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से परेशान है, अत्यधिक श्रम करने के पश्चात् भी पैसों की परेशानी रहती है, उन सभी के लिये यह प्रयोग अत्यन्त प्रभावी एवं लाभ देने वाला है।
प्राचीन रहस्यमयी सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana विधि Ganapati Sadhana विधि इस उपाय में सबसे पहले चांदी के पत्र पर अग्रांकित गणेश यंत्र उत्कीर्ण करवा कर उसे चेतना सम्पन्न कर लें । फिर उसे शुभ मुहूर्त में अपने उपासना कक्ष में स्थापित करके उसकी विधिवत उपासना करें।
अगर चांदी के पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करना सम्भव नहीं हो तो इसी गणेश यंत्र को भोजपत्र के ऊपर पंचगंध की स्याही एवं चमेली की कलम से लिखकर उसकी भी विधिवत् पूजा-अर्चना कर लें, ताकि यंत्र चेतना सम्पन्न बन जाये ।
इसके पश्चात् इस यंत्र को त्रिधातु निर्मित ताबीज में भर कर अपने कंठ अथवा बाहूमूल में लाल धागे से बांध लें । इस साधना में निर्मित किया जाने वाला गणेश यंत्र इस प्रकार है- यंत्र निर्माण के लिये पंचगंध की स्याही का प्रयोग किया जाता है। पंचगंध स्याही बनाने के लिये गोरोचन, श्वेत चंदन, केसर, ब्रह्म कमल पंखुड़ियां, अगर अथवा सुगन्धबाला की आवश्यकता होती है ।
सबसे पहले उपरोक्त गंधों को एकत्रित करके अच्छी तरह से घिस कर अथवा बारीक पीस कर परस्पर मिलाकर चंदन जैसा लेप बना लें । फिर किसी शुभ मुहूर्त, जैसे रवि पुष्प नक्षत्र या अमृत सिद्धि योग अथवा सर्वार्थ सिद्धि योग के अवसर पर चमेली की कलम द्वारा इस पंचगंध स्याही द्वारा विधिवत भोजपत्र के ऊपर लिख कर यंत्र तैयार कर लें ।
जब गणपति यंत्र तैयार हो जाये तो इनकी उपासना के लिये अगले शुभ मुहूर्त का चुनाव करें। इस Ganapati Sadhana गणपित अनुष्ठान को गणेश चतुर्थदशी के दिन से अथवा किसी भी शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि के दिन भी शुरू किया जा सकता है ।
अतः जिस दिन इस अनुष्ठान को शुरू करने का निश्चय करें, उस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर एवं नित्यकर्म से निवृत्त होकर तैयार हो जायें । एक स्वच्छ वस्त्र पहन कर अपने पूजाकक्ष में उत्तराभिमुख होकर आराम से बैठ जायें। बैठने के लिये कम्बल आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करें ।
आसन पर बैठकर अपने सामने लकड़ी की एक चौकी बिछाकर उसके ऊपर एक श्वेत रंग का वस्त्र बिछा लें। चौकी पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करके चांदी पर उत्कीर्ण किये गये सौभाग्यप्रद गणपति यंत्र को प्रतिष्ठित करें । इसके पश्चात् यंत्र पर पंचगंध युक्त स्याही से ग्यारह बार गंध अर्पित करते हुये ॐ गं गणपति नमः नामक मंत्र का उच्चारण करते रहें।
चांदी के यंत्र के साथ ही भोजपत्र पर बनाये यंत्र को भी प्रतिष्ठित कर लें । रजत पत्र पर उत्कीर्ण गणपति यंत्र को गंध लेपन के पश्चात् धूप, दीप अर्पित करें। घी का एक दीपक जलाकर चौकी पर रख दें और स्वयं गणपति को यंत्र में प्रतिष्ठित होने के लिये उनका आह्वान करें ।
धूप, दीप, पुष्प, गंध आदि चढ़ाने के पश्चात् चौकी के ऊपर गणपति के लिये पंचमेवा और लड्डूओं का भोग लगाकर रखें। अंत में गणपति के सामने अपनी प्रार्थना करें। उनसे जो मांगना चाहे मांगें तथा उनकी आज्ञा प्राप्त करके अग्रांकित मंत्र की कम से कम तीन मालाओं का जाप करें। अगर अधिक संख्या में मंत्रजाप संभव हो तो वैसा कर लें ।
। इस मंत्र का जाप स्फटिक माला अथवा मूंगा माला के ऊपर किया जाये, यह सर्वश्रेष्ठ रहता है । यद्यपि मंत्रजाप के लिये हकीक की माला का भी उपयोग किया जा सकता है। जब आपका मंत्रजाप पूर्ण हो जाये तो उसके उपरांत गणपति से एक बार पुनः अपनी प्रार्थना कर लें तथा उनकी आज्ञा लेकर आसन से उठ जायें।
गणपति Ganapati को जो नैवेद्य अर्पित किया गया है, उसमें से थोड़ा सा प्रसाद स्वयं ग्रहण कर लें, शेष प्रसाद को घर के अन्य सदस्यों में बांट दें । इस तरह निरन्तर 21 दिन तक इस अनुष्ठान को जारी रखें। प्रत्येक दिन प्रातः काल स्वच्छ होकर अपने पूजाकक्ष में बैठकर सौभाग्यप्रद गणपति यंत्र की पूर्जा – अर्चना करें ।
प्रतिदिन यंत्र को गंगाजल अथवा शुद्ध जल से धोकर पंचगंध लेपन करें। गंध लेपन के समय ग्यारह बार ॐ गं गणपति नमः मंत्र का जाप करते रहें । इसके पश्चात् यंत्र की धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजा-अर्चना करें । गणपति Ganapati Sadhana का आह्वान करें और उनसे प्रार्थना करके एवं उनकी आज्ञा प्राप्त करके गणपति के उपरोक्त मंत्र की कम से कम तीन माला मंत्रजाप करते रहें । जाप के पश्चात् गणपति Ganapati से प्रार्थना करना एवं आसन से उठने की आज्ञा लेना नहीं भूले । यह गणपति की नियमित पूजा का क्रम है ।
इस पूजा में एक बात का ध्यान रखा जा सकता है कि प्रतिदिन गणपति Ganapati को पंचमेवा का नैवेद्य लगाना ही पर्याप्त रहता है। लड्डूओं का नैवेद्य प्रथम दिन और अनुष्ठान के आखिर दिन अर्थात् 21वें दिन ही लगाना होता है। 21वें दिन, जिस दिन आपका अनुष्ठान सम्पन्न होता है, उस दिन एक माला अतिरिक्त मंत्रजाप करें तथा गणपति यंत्र के आगे रखे हुये नैवेद्य को घर-परिवार के अलावा आस- पड़ौस में भी बंटवा दें। विशेषकर बच्चों में प्रसाद बंटवाना अति शुभ रहता है। इस तरह 21वें दिन यह अनुष्ठान सम्पन्न हो जाता है।
अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् चांदी पर निर्मित गणेश यंत्र को पूजास्थल पर ही बने रहने दें तथा नियमित रूप से उसके सामने धूप, दीप आदि अर्पित करते रहें।
इसके साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ संख्या में मंत्रजाप भी नियमित रूप से जारी रखें, जबकि दूसरा गणपति Ganapati Sadhana यंत्र, जो भोजपत्र पर निर्मित किया गया है और जिसे त्रिधातु से बने ताबीज के अन्दर रखा जाता है, उसे लाल रेशमी धागे से अपने गले अथवा बायें हाथ की बाजू पर बांध लें।
21 दिन के दौरान जो पूजा सामग्री चौकी के ऊपर व इसके इर्द-गिर्द इकट्ठी हो जाती है, उसको एक जगह एकत्र करके किसी जल स्रोत में अथवा किसी नदी आदि में प्रवाहित करवा दें। इस प्रकार 21 दिन का गणपति Ganapati Sadhana का यह अनुष्ठान पूर्णता के साथ सम्पन्न हो जाता है।
गणपति का यह 21 दिन का अनुष्ठान बहुत ही प्रभावशाली है । इसको सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है । अनेक तरह की बाधायें एवं आपदायें स्वतः ही शांत हो जाती हैं ।
गणपति Ganapati Sadhana यंत्र को प्रतिष्ठित करने एवं इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से धन आगमन के स्रोत खुलते हैं, व्यापार वृद्धि होती है, मित्र एवं पारिवारिक सदस्यों से भरपूर सहयोग प्राप्त होता है तथा आर्थिक स्थिति दिनोंदिन सुदृढ़ होती जाती है।
गणपति के १२ नमो का जाप करना चाहिए गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।
विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran
विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran
विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran वर्तमान में एक विशेष स्थिति देखने में आ रही है । जैसे-जैसे समाज का भौतिक आधार बढ़ता जा रहा है और लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरती जा रही है, वैसे-वैसे सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य के साधन बढ़ते जा रहे हैं ।
इसके साथ यह स्थिति भी देखने में आ रही है कि जैसे-जैसे लोगों का बौद्धिक स्तर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही अनेक प्रकार की सामाजिक समस्यायें सामने आती जा रही हैं ।
शिक्षा के प्रसार, आर्थिक स्थिति के सुधार और सुख-सम्पन्नता के साधन जुटाने के साथ-साथ परस्पर विश्वास एवं निर्भरता की कड़ी कमजोर पड़ती जा रही है । इसलिये विवाह के साथ-साथ गृहस्थ जीवन, पारिस्परिक सम्बन्धों, प्रेम, अपनत्व एवं विश्वास की भावना में भी निरन्तर गिरावट आने लगी है।
शिक्षा के प्रसार और आर्थिक स्थिति सुधरने का सबसे अधिक प्रभाव वैवाहिक संबंधों में देखा जाने लगा है। अधिकतर सम्पन्न और पढ़े-लिखे परिवारों को अब अपने बेटों या बेटियों के लिये सुयोग्य वर या वधू के लिये लम्बे समय तक प्रयास व इंतजार करना पड़ता है।
उनके भावी संबंध स्थायी बने रह पायेंगे अथवा नहीं, इसका भी हमेशा संशय बना रहता है। युवाओं में स्वतंत्रता एवं निर्णय लेने की भावना के बढ़ते जाने और समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन शुरू हो जाने के उपरांत बच्चों का विवाह कार्य सम्पन्न करना एक जटिल समस्या बनता जा रहा है ।
चाहे वैवाहिक कार्य के समय पर सम्पन्न न हो पाने, रिश्तों का बनते-बनते रह जाना अथवा अकारण ही बीच में रिश्ता टूट जाने के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, पर एक बात सर्वमान्य है कि वैवाहिक विलम्ब एक सामान्य समस्या बन गयी है ।
विवाह बाधा अथवा विवाह विलम्ब के पीछे कोई भी कारण क्यों न हो, तंत्र के पास उसका समाधान है । तंत्र आधारित ऐसे अनुष्ठानों को सम्पन्न करते ही अनेक बार वैवाहिक कार्य तत्काल सम्पन्न होने की स्थितियां बनने लगती हैं । इस अध्याय में शिव-पार्वती की तांत्रोक्त उपासना पर आधारित एक अनुभूत अनुष्ठान दिया जा रहा है।
यह तांत्रिक अनुष्ठान अनेक लोगों द्वारा प्रयोग किया गया है। अधिकांश अवसरों पर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से वांछित कामनाओं की पूर्ति अतिशीघ्र होने लगती है। जिस समस्या को दूर करने की कामना से यह अनुष्ठान किया जाता है, वह समस्या दूर होने लगती है ।
अगर इस तांत्रोक्त अनुष्ठान को पूर्ण भक्तिभाव एवं श्रद्धायुक्त होकर सम्पन्न किया जाये तो तीन महीनों के भीतर ही वैवाहिक कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाता है। इस अनुष्ठान की सबस बड़ी विशेषता यह है कि इसे सम्पन्न करने के पश्चात् विवाह में आने वाली बाधायें तो दूर होती ही है, साथ ही मनवांछित जीवनसाथी भी मिलता है ।
विवाह में यह बात बहुत महत्त्व रखती है कि विवाह में उत्पन्न होने वाली बाधायें दूर होने के बाद जीवनसाथी कैसा मिलता है। अगर किसी अनुष्ठान को करने से एक पच्चीस- छब्बीस वर्ष की आयु वाली युवती का विवाह किसी प्रौढ़ व्यक्ति अथवा किसी विदुर से होता है तो इसका क्या औचित्य है ?
विवाह हमेशा ही सात जन्मों का सम्बन्ध माना गया है, अगर किसी व्यक्ति अथवा युवती के विवाह के बाद एक जन्म का साथ भी ठीक से न चल पाये, विवाह सुख की प्राप्ति के स्थान पर जीवन अनेक प्रकार की समस्याओं से भर जाये तो इसे किस प्रकार का विवाह माना जाये, इस पर विचार किया जाना आवश्यक है । अगर जीवनसाथी मन अनुरूप मिलता है तो जीवन सुख से व्यतीत होने लगता है।
जीवन में कभी किसी प्रकार की समस्या अथवा परेशानियां आती हैं तो उसका मिलजुल कर सामना करके उन पर विजय प्राप्त की जाती है । इस दृष्टि से शिव-पार्वती के इस अनुष्ठान का महत्त्व बढ़ जाता है । यह अनुष्ठान करते समय कन्या किस प्रकार का वर चाहती है, इसकी कल्पना मन ही मन करे ।
इसी प्रकार किसी युवक को यह अनुष्ठान करना है तो उसे भी मानसिक रूप में उस कन्या का स्मरण करना होगा जिसे वह पत्नी के रूप में प्राप्त करना चाहता है ।
इसमें यह विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि अपनी स्थिति के अनुसार ही पति अथवा पत्नी की कल्पना करें। अगर एक युवक कल्पना में किसी अभिनेत्री से विवाह की कल्पना करता है तो ऐसी कामना पूर्ण नहीं होती है । यही स्थिति कन्या के साथ भी लागू होती है । ऐसी स्थिति में कामना पूर्ण न होने का दोष अनुष्ठान के परिणामों को न दें ।
हनुमान जी की तंत्र साधना Hanuman Tantra Sadhana हनुमान जी की तंत्र साधना रामभक्त हनुमान Hanuman के पराक्रम से भला कौन परिचित नहीं है । अंजनी नंदन भगवान हनुमान जी सर्वमान्य देव हैं । उन्हें अतुलित बल के धाम, बल – बुद्धि निधान, ज्ञानियों में अग्रमान्य, ध्यानियों में ध्यानी, योगियों में योगी और अनन्त नामों से विभूषित किया गया है ।
पवन पुत्र हनुमान Hanuman को शिव का अवतार माना गया है । तंत्र में उन्हें एकादश रुद्र माना गया है । पवन पुत्र इतने बलशाली हैं कि बाल्यकाल में ही उन्होंने सूर्य को अपने मुंह में रख लिया था । हनुमान Hanuman जी के विषय में सब जगह कई अन्य बातें प्रचलित हैं।
एक बात यह है कि कलियुग में जहां भी रामकथा का गुणगान किया जाता है, वहां पूरे समय कथास्थल पर भगवान श्री हनुमान Hanuman जी उपस्थित रहते हैं । यह विश्वास एक अन्य तथ्य से भी सिद्ध होता है । संसार में सात चिरंजीवी माने गये हैं । इन सात चिरंजीवियों में अश्वत्थामा, परशुराम और हनुमान तो सर्वविख्यात हैं । चिरंजीवी का अर्थ है जो मृत्यु के रूप में शरीर का परित्याग नहीं करते, बल्कि स्वेच्छा से दृश्य-अदृश्य होने की शक्ति का उपयोग करते हैं।
Veer Bulaki Sadhna – प्राचीन रहस्यमय वीर बुलाकी साधना PH.85280 57364 गुरु मंत्र साधना में आप का स्वागत है दोस्तों बाबा वीर बुलाकी कोण है कैसे इनका जन्म हुआ कैसी या कितनी बड़ी शक्ति है इन सब के बारे में बहुत सारी कथाएं बहुत सारे लोगों को जो आपने सुना होगा यूट्यूब पर भी बहुत सारे देखा और सुना होगा
गोगा जाहरवीर के पुत्र के जाते हैं यमुना में बहा दिए गए थे उनके बरून और कई लोग धोने से यह जन्मे है कई कहानियां कहानियां है। मैं एन के बारे में बताने जा रहा हु और शायद आपने यह जानकारी कहीं थोड़ी बहुत सुनी होगी और पूरी जानकारी कहीं नहीं सुनी होगी।
तो आज जो मैं आपको बताने जा रहा हूं बाबा वीर बुलाकी के बारे में जो कि आगरा की सच्ची सरकार कहीं जाते हैं। इन का जो स्थान है वह आगरा में है उससे पहले मैं आपको बता दूं कि अगर आपने हमारे वेबसाइट को सब्सक्राइब नहीं किया। तो सीधे हाथ पर जो बटन उसे दबा दो ताकि हमारी आने वाली जो और जानकारियां है वह भी आपको मिल जाए गा।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki का स्वरूप तो मैं आपको बता दूं जो बाबा वीर बुलाकी हैं इनके जन्म की तो जो कथाएं हैं वह एक अलग नहीं आए जिसे प्राचीन हम लोग कह सकते हैं। जो अभी तक किसी के सामने नहीं आई है वही सुनी सुनाई बात है वह चल रही है। बाबा वीर बुलाकी वह बहुत शक्तिशाली देवता है,बालक का जो स्वरूप है बाबा वीर बुलाकी का पूजा जाता है, उनके एक हाथ में सोटा और एक हाथ में मदिरा है।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki जी का स्थान बाबा वीर बुलाकी जी सबसे ज्यादा जमुना माता को मानते हैं जमुना को अपनी माता मानते हैं। जमुना जी आगरा तक जाती है और इनके मंदिर और मठ जमुना किनारे बनाए जाते है ! इनका सबसे बड़ा स्थान आगरा में ही है !
यह जमुना माता को इतना मानते अगर इनको जमुना माता की आन दी जाए तो यह वही रुक जाते है। और कमाल खा सयद इन के मिन्दर के पास कमाल खा सयद की मजार है. यह उनको अपना गुरु मानते थे ! कमाल खा मसानी माता काली और श्मशान आग वाणी शक्ति इनके साथ चलती है।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki किस रूप में आते है
बाबा वीर बुलाकीVeer Bulaki किस रूप में आते है- वह बाबा वीर बुलाकी के साथ बाबा वीर बुलाकी बहुत उग्र देवता है जब इनकी सवारी आती है। तो यह जोर जोर से हाथ हलाते है। भगत के दिल की धड़कन बहुत बढ़ जाती है जैसे कितने किलोमीटर से दौड़ लगा कर आया हो बाबा वीर बुलाकी जो है वह उग्र देवता है जब आते है।
तो हाथ जो है यह हाथ जोर जोर से हलती हुए आते है। जब इनकी की सवारी आती है तो अलग ही रूप इनका देखने को मिलता है जो इनकी जो साधना है इनकी जो सेवा है वह 99 परसेंट फलदाई होती है। अगर आप इसे करते हैं जमुना घाट पर घर के मुकाबले में जायदा प्रभावशाली है।
आप अगर इसे जमुना घाट की सेवा करते इनका भोग देते हैं तो अति शीघ्र फलदाई होती है। जमुना घाट पर किया जाता है जमुना जी किनारे इनकी जब पूजा भोग दिया जाता है।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki जी इस भोग पर चलते है
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki जी इस भोग पर चलते है बाबा वीर बुलाकी जो है वाल्मीकि समाज में के कुल देवता माने जाते हैं देव तो है वह पर वाल्मीकि समाज में यह बहुत सारे लोगों की जो है वह कुल देवता है यह जो है यह सूर का बच्चा बकरा मुर्गा और दारू इस पर चलते हैं . शक्तियां जो हैं वह कोई बुरी नहीं होती पर जो लोग हैं जो भगत हैं वो उन्हें बुरा बना देते हैं वंदन करके करके उनको कुछ शक्तियां है जो कार्य करने के लिए तत्पर हो जाती हैं पूजा लेकर काम करते है
तो पहले तो मैं आपको एक बात बता दूं बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो बाबा वीर बुलाकी को गालियां उल्टी-सीधी बोलते हैं और भी देवी देवता एक चीज नहीं है दिमाग में रख लेना हम हैं इंसान हम जो हैं वह कर्म बंद है पर शक्तियां कर्म बंद नहीं होती कोई भी कार्य करेंगे तो पाप पूण्य नहीं लगता !किसी की बात ओ में आकर इनके बारे में कुछ उल्टा मत बोल देना अगर यह बिगड़ जाते है तो घर को श्मशान बना देते है
गुरमुख होकर जब किसी गुरु के द्वारा पूरे परंपरागत चलते हैं पूरे कुल में चलते रहते तो पीड़ी दर पीड़ी चलते है अगर कुल में कोई भोग नहीं देता तो यह कोई संकेत नहीं देते है भवाल मचाना शुरू कर देते है अगर आपने इनकी पूजा भोग दिया है जाता है तो यह आपकी पीढ़ी को भी पूजे जाते है
वाल्मीकि समाज में सबको पता होता है इसलिए वह सब पूजा करते है अगर कुल कोई और समाज का व्यक्ति बाबा वीर बुलाकी को लेना चाहता है तो बहुत सोच समझ कर ले क्योंकि बहुत उग्र शक्ति है बहुत शक्तिशाली शक्ति है उनकी पूजा सेवा टाइम पर नियम जो इनके वह बहुत कड़े होते हैं वह कर करते है तो बाबा वीर बुलाकी जो है वह अति शीघ्र प्रसन्न होने वाले है
वीर बुलाकी Veer Bulaki साधना विधि जैसे मैंने आपको बता दिया उनका स्वरूप जो है वह काला है शनिवार के दिन माना जाता है। शनिवार के दिन की पूजा की जाए बहुत ज्यादा बहुत जल्दी प्रसन्न होते मैंने आपको बता दिया कि बाबा बुलाकी कमाल का सैयद और जमुना माता इन तीनों का भोग ज्यादा जमीन की पूजा की जाती है।
इनकी जो साधना है वह वैसे 41 दिन की साधना इनकी जब की जाती है। अगर आप घर पर साधना कर रहे हैं जमुना किनारे भोग देकर आना होता है शनिवार की घर पर आपको जो भी आप ध्यान लगाना है। फिर मंत्र जाप करना होता है इनकी पूजा में जो चीजें इस्तेमाल होती हैं वह बूंदी का लड्डू बर्फी है दूध है।
अगरबत्ती लोग कपूर सिगरेट शराब की बोतल और छुआरा सामग्री जो है इन के भोग के लिए प्रयुक्त की जाती है यह प्रयोग किया जाती और एक इनका जो है वह दीपक जलाया जाता है।
इनकी जो सेवा है कि जो पूजा है जो इनकी सेवा पूजा करते हैं वह जल्दी कह सकते हैं। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं जो है और जिन कामो को करने के लिए उनकी शक्ति बिल्कुल चुटकी भर से काम करती है। इनकी साधना में जो है वह लाल और काले कपड़े का प्रयोग किया जाता है और साथ-साथ माला होनी है। वह हकीक की माला जो है वह प्रयोग की जाती है।
वीर बुलाकी Veer Bulaki की सिद्धि के लाभ
वीर बुलाकी Veer Bulaki की सिद्धि के लाभ इनका जो भगत है अगर इनका भगत जो है वह किसी के घर में पैर रख देता तो सारी चीजों का अनुभव हो जाता है। और बहुत सारी सारी चीजें जो है वह अपने आप ही घर छोड़कर भाग जाती हैं किसी के घर घर की देवताओं को मानते हैं उस घर की जो देवता है वह पहले खुद ही साइड हो जाते हैं , हर जगह पर ही चले जाते हैं किसी चीज का परहेज नहीं है। गंदी अच्छी हर जगह पर चले जाते हैं कार्य करते है आप के बड़े से बड़े कम इन की साधना चुटकी में हो जाते है यह बहुत ही तीव्र गति से काम करते है।
कभी भी अगर कोई करने के लिए सोच मेरा वैसे तो वाल्मीकि समाज में बहुत आसानी से इनकी सेवा पूजा मिल जाती है जैसे यह हुक्का लगाया जाता और जब इनकी सवारी आ जाती है का प्रसाद दिया जाता है यह साधना बिल्कुल किसी को नहीं करनी चाहिए क्योंकि बिना गुरु के बहुत हानिकारक हो सकती है साथ यह साधना साधना ऐसी होती जो बिना गुरु ले कर सकते बस कुछ साधना ऐसी होती है जो बिना गुरु की करनी ही नहीं चाहिए साधना है
बिना गुरु के इस साधना को भी मत करना बहुत अचूक साधना है बहुत कहते हैं कि उग्र साधना है। अगर आप वाल्मीकि समाज से तो आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। साधना को करना साधना आपको पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती है अपने गुरु से मिलती और बात करें।
अगर मंत्र की बात करें तो देखो मंत्र जो मैं आपको बताने जा रहा हूं। इनका बहुत ही शक्तिशाली शाबर मंत्र है और देखो बात होती कि कोई भी देवता है ना उसके मंत्र तो सही होते हैं गुरु से के द्वारा जो मिले होते हैं। सिद्ध मंत्र होते वह जो किसी ने नेट पर बात होती है परंतु जो मंत्र होते हैं. वह सही में नहीं चलते हैं और मंत्र जब जागृत होते हैं। जब आपकी सेवा आपके भक्ति मंत्रों को जागृत करते है.
बोलना चाहूंगा कि बहुत उग्र साधना है बहुत सोच समझकर साधना को करिएगा अगर करना चाहते हैं ,तो और मैं तो आपसे पर यह बोलूंगा कि देखो जानकारी के लिए यह सारी चीजें आपको उपलब्ध होती हैं।
आप जानकारी बहुत से लोगों को होती है। जानकारी के किस तरीके कौन देवता क्या है कैसा है। कहां क्या कैसे काम करता है कैसे साधना करना जानकारी लेने में फर्क होता है मैंने बाबा वीर बुलाकी के बारे में थोड़ा सा आपको बता दिया बाकी मेरी कोशिश है कि आपको ज्यादा ज्यादा जानकारी बता सकूं बाकी जैसे मैंने आपको बताया है कि
1 बाबा वीर बुलाकी का सात्विक भोग क्या है ?
बूंदी का लड्डू बर्फी है दूध है अगरबत्ती लोग कपूर सिगरेट शराब की बोतल और छुआरा बतासे
२ बाबा वीर बुलाकी साधना किस रूप में आते है ?
वह बाबा वीर बुलाकी के साथ बाबा वीर बुलाकी बहुत उग्र देवता है जब इनकी सवारी आती है तो यह जोर जोर से हाथ हलाते है भगत के दिल की धड़कन बहुत बढ़ जाती है जैसे कितने किलोमीटर से दौड़ लगा कर आया हो बाबा वीर बुलाकी जो है वह उग्र देवता है जब आते है तो हाथ जो है यह हाथ जोर जोर से हलती हुए आते है जब इनकी की सवारी आती है तो अलग ही रूप इनका देखने को मिलता है
३ बाबा वीर बुलाकी के साधना में शीघ्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए क्या करना होगा ?
बाबा वीर बुलाकी जी की साधना अगर जमुना दे किनारे पर की जाए तो जल्दी सिद्धि प्राप्त हो सकती है
4 बाबा वीर बुलाकी की पूजा किस दिन होती है ?
बाबा वीर बुलाकी की पूजा शनिवार से होती है इस का भोग शुभ महूरत में होता है जैसे के दीवाली होली पर
5 वीर बुलाकी Veer Bulaki तामसिक भोग
बाबा वीर बुलाकी जो है वाल्मीकि समाज में के कुल देवता माने जाते हैं देव तो है वह पर वाल्मीकि समाज में यह बहुत सारे लोगों की जो है वह कुल देवता है यह जो है यह सूर का बच्चा बकरा मुर्गा और दारू इस पर चलते हैं . शक्तियां जो हैं वह कोई बुरी नहीं होती पर जो लोग हैं जो भगत हैं वो उन्हें बुरा बना देते हैं
चमत्कारी प्राचीन लोना चमारी lona chamari साधना शाबर मंत्र lona chamari ph.85280 57364
लोना चमारी साधना lona chamari sadhna
लोना चमारी lona chamari का भोग
लोना चमारी lona chamari साधना विधि
लोना चमारी lona chamari मंत्र
लोना चमारी lona chamari साधना के लाभ
चमत्कारी प्राचीन लोना चमारी lona chamari साधना शाबर मंत्र lona chamari – पलभर में सिद्ध करे सभी काम, कामरु देश लूना चमारी साधना गुरु मंत्र साधना .कॉम में आपका हार्दिक स्वागत है । दोस्तों तंत्र मंत्र में जहां 52वीर 56 कलवा चौसठ योगिनी का बहुत बड़ा स्थान है साथ में लोक देवताओं का स्थान है । जिसमें गोगा जाहरवीर मीरा पहलवान और भी हमारे बहुत सारे लोक देवता का स्थान है ! lona chamari
और भी हमारे देवता हो बाबा नागार सेन हो चाहे ग्राम खेड़े हो चौक चौराहे वाली माता हो उसी प्रकार एक ऐसी तंत्र की देवी हैं जिनको लूना चमारी के नाम से जाना जाता है । लूना जोगन के नाम से जाना जाता है जो कामरु देश कामाख्या की हैं अपने आप में असीम शक्तियों को समाहित करने वाली यह देवी एक बहुत बड़ी जादूगरनी के नाम पर बहुत बड़ी जादूगरनी के रूप में पूजी जाती हैं । जिसमें बहुत सारे लोगों के घर की कुलदेवी के रूप में पूजते हैं ,तो कुछ लोगों की देवी कहीं जाती है ।
लूना जोगन को लूणा जोगन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनके जो गुरु थे । इस्माइल जोगी थे तो जिस तरीके से नाथ परंपरा चली गुरु गोरखनाथ के बाद उनके शिष्य थे । वह नाथ कहलाए चौरंगीनाथ भरतरी नाथ उसी प्रकार से इस्माइल जोगी की जो शिष्या थी । वह लूना चमारी और लूना जोगन के नाम से प्रसिद्ध हुई । जिनका नाम आज तंत्र की दुनिया में बड़े सम्मान से लिया जाता है ,और साथ-साथ जितने भी शाबर मंत्र हैं उन शाबर मंत्रों में लूना चमारी का एक विशेष स्थान है ।
अगर लूना चमारी की आन किसी मंत्र में दे दी जाए शाबर मंत्र में तो निश्चित रूप से उस देवता को वह कार्य करना पड़ता है । या फिर उस देवता को अपनी शक्ति का अंश प्रदान करना पड़ता है, यह बहुत बढ़िया जादूगरनी थी इनाम तांत्रिक कह सकते हैं । जिन्होंने बहुत सारी साधना की थी और साथ साथ में गुरु गोरखनाथ जी को खुश किया था । गुरु गोरखनाथ जी से 56 कलवो का वरदान प्राप्त किया था । मां भगवती मां दुर्गा की साधना करके इन्होंने असीम शक्तियां हासिल की थी और गुरु इस्माइल जोगी उनसे इन्होंने बहुत सारी कलाएं बहुत सारी तंत्र मंत्र की दीक्षा जो है वह ग्रहण की थी ।
जब इन के पास ५६ कालवे आ गए थे तो बहुत काम करने के लाइक हो गई थी । बहुत सारे कार्य को करने में सक्षम हो गई मैं आपको बता दूं जब 56 कलवे जैसे हम बोलते हैं गोगा जाहरवीर के पास में गोगा जाहरवीर जी महाराज से पांच बावरियों को 56 कलवे मिले उन पांच बावरियों का 56 कलवे प्रदान किए गए, तो अगर आपने उनकी कहानी पढ़ी हो तो जब उनके सर कट गए थे ।
तब भी वह युद्ध में लड़ते रहे थे और सा साथ में वह जैसे पीर अस्तबली उनके स्थान पर जाकर अमर हो गए और पांच बावरियों की कई स्थान है । जहां पर उनकी पूजा होती है चाहे सफीदों धाम मुरथल खेड़ा हो इसी प्रकार जब 56 कल्वो की जो शक्ति होती है ।
वह असीम होती है जिस जिस ने 56 कल्वो को प्राप्त किया है । उसका नाम इस जग में अमर हो गया है और यहां तक कि वह पूजनीय हो गया है अगर 56 कलवे कर लेते है । यह बहुत अद्भुत कार्य करते हैं जैसे कि किसी की खबर मंगवानी हो उनकी शक्ति के द्वारा किसी को पीड़ा देनी हो शमशान की शक्ति का काट करना हो वह बांधनी कोख खोलनी हो ।
हाजिरी मंगवानी हो मारण करना हो आकर्षण करना हो वशीकरण करना हो उच्चाटन करना हो । इस सभी क्रियाएं 56 कलुआ के द्वारा की जा सकती है और साथ ही किसी की भी पूछा देना किसी भगत के द्वारा वह भी 56 कलवे करते हैं उस कार्य को भी 56 कलवे सिद्ध करते हैं । 56 कलवे के द्वारा किसी भी व्यक्ति की सालों पुरानी बातें वह भगत खोल के रख सकता है
Masani Meldi माता मेलडी मसानी प्रत्यक्ष दर्शन साधना और रहस्य ph. 85280 57364
guru mantra sadhna .com me आप का स्वागत है माता मेलडी के परिचय के बारे में परिचय देंगे दोस्तों माडी गुजराती का शब्द है ,माडी का हिंदी में अर्थ होता है माता माता को ही माडी कहते हैं। जो मसानी श्रेणी की शक्ति होती है , यह मिसाइल की तरह होती है यह शक्तिया साधक के सब काम करती है। कोई भी कार्य हो उचित अनउचित सब काम करती है और वो कार्य भी कम समय में करती है। मिसाइल का उद्धरण देने का कारन यह शक्ति कम समय में काम करती है , शक्ति यह नहीं देखती के सामने वाला कोण है कैसा बिलकुल मिसाइल की तरह काम करती है। अगर आप शक्ति से गलत काम भी करवाओ गए कर देंगी पर इस का फल आप को भोगना होगा कुछ समय के पश्चात् कर्मो से आज तक कोई नहीं बच पाया है। Masani Meldi माता मेलडी मसानी मैली शकितया की सवारी करती है इन्होंने भूत प्रेत मसान मंत्रिका तंत्रिका सब मैली शकितो को बकरा बना कर उस पर सवार हो गई थी Masani Meldi माता मेलडी मसानी सभी मैली शक्तिओ के स्वामी है । आगे की कथा में आप को इस बारे में विस्तार सहित जानकारी मिलेगी।
मेलडी माता का भोग
माता मेलडी मसानी साधना
मेलडी माता का मंत्र
मेलडी माता का इतिहास
माता मेलडी मसानी साधना विधि
Masani Meldi माता मेलडी मसानी सिद्धि के लाभ
मेलडी माता का मंदिर
Masani Meldi मेलडी माता का इतिहास – माता मेलडी मसानी उत्पति की कथा
मेलडी माता का इतिहास – सत्ययुग की समाप्ति के समय बहुत प्रतापी मायावी और मर्दानी था असुर था जिसका नाम अमरूवा था उसके अत्याचारों से कुहराम मच गया था और देवताओं का महासंग्राम हुआ था। और उसमें देवता पराजित हो गए थे। उन्होंने महाशक्ति की स्तुति की और वहां आदि शक्ति जगदंबा सिंह वाहिनी दुर्गा प्रकट हुए और उन्होंने नौ रूप धारण किए उनके साथ दसमहाविद्या और अन्य सभी शक्तियां प्रकट हुई। महा भयंकर युद्ध चला और 5000 वर्षों तक लगातार युद्ध हुआ। अपने प्राणों को संकट में देखकर भागा वह रहा में देखता है कि किसी मृत गां के देह का पिंजरा पड़ा है।
उसे लगा कि इस पिंजरे में शरण लू तो के देव देवी नजदीक नहीं आएंगे और असुर पिंजरे में समा गया देवी शक्तियां पीछा करते हुए वहां पर आए तो शत्रु के पिंजरे में जा घुसा है। सभी देव या वहीं पर ठिठक कर खड़ी हो गई मृत गां का पिंजरा अशुभ माना जाता है तब देविया सोच में पड़ गई कि इस आशुद्ध पिंजरे से दैत्य को निकालना वह भी पिंजरे में घुसकर यह तो असंभव है, और पिंजरे से बाहर निकाले बिना वध भी नहीं किया जा सकता है। ऐसी अजीब स्थिति में देवी शक्तियां मजबूरी में अपने हाथ मलने लगी हथेली पर हथेली की रगड़ से उर्जा उत्पन्न हुई। और मैल के रूप में बाहर आई श्री उमा देवी ने युक्ति लगाई और सारे मेल को एकत्र करें
मूर्ती का रूप दिया सभी देवी और देव मिलकर आदिशक्ति की स्तुति करने लगे तत्काल उस मूर्ति से आदिशक्ति वह हाथ में खंजर ले 5 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गए। और पूछा है माताओं मुझे बताओ क्यों मेरा आव्हान किया देवियों ने सारी व्यथा कह सुनाई और सारा माजरा समझ गई।
देवियों के कहे अनुसार गाउ के पिंजरे में प्रवेश कर गई। जब उस असुर ने यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो गया , और वहां से बाहर भागा और स्याल सरोवर में जाकर कीड़े के रूप में छिप गया कन्या स्याल सरोवर में प्रवेश करके असुर का वध किया और सब देवताओ ने जयजयकार किया और अपने धाम को लोट गए। अगर कन्या खुद उत्पन होती तो कार्य पूरा करने के पश्चात् खुद चली जाती। यहाँ पर तो उस कन्या की रचना कर आवाहन किया गया था ।
उस कन्या ने उमिया माता को पकड़ा और अपना नाम धाम और काम पूछा उमिया माता ने उन्हें चामुंडा के पास भेज दिया। सत्य हमेशा कसौटी पर कसा जाता है। और सत्य की परीक्षा होती है चामुंडा नाम कन्या को कामरूप कामाख्या विजय हेतु भेजा चामुंडा जानती थी ,कि कामाख्या तंत्र मंत्र जादू टोना और आसुरी शक्तियों की सिद्धि स्थली है। यदि यह वहां से विजय होकर लौटती है , तो अभी इनकी वास्तविक शक्ति का अंदाजा होगा फिर उसी के अनुसार नाम और काम सौंपा जा सकेगा।
कन्या काम रूप में लगे पहरे को ध्वस्त कर दिया, मुख्य पहरेदार नोरिया मसान को पराजित कर दिया। कामाख्या नगरी में प्रवेश के साथ उन्होंने देखा कि तंत्र मंत्र जादू टोना काली विद्या माया के ढेर इन सब को समझने में ही अमूल्य समय जाया हो जाएगा। उन्होंने सब को घोल बनाकर बोतल में भर लिया भूत प्रेत मंत्रीका का तंत्रिका सभी दोस्तों को बकरा बनाकर उस पर बैठकर बोतल लेकर बाहर आ गई और माँ चामुंडा पास पहुंची।
देवता दानव सब उनका जयघोष किया, चामुंडा ने कहा जिस विद्या का प्रयोग दूसरों को दुख देने के लिए होता है उसे मैली विद्या कहते हैं ,तुमने उसी मैली विद्या पर विजय पाई है। एवं समस्त शक्तियों के हस्त रगड़ से तुम्हारी उत्पति हुई है। इसलिए तुम्हारा नाम मेलडी माता होगा तुम्हारा स्वरूप कलयुग की महाशक्ति रूप के लिए हुआ है तुम कलयुग के विकार अर्थात में काम क्रोध मद लोभ मोह का नाश करने वाली शक्ति हो।
सारा संसार तुम्हें श्री मेलडी के रूप में पूजा अर्चना करेगा तुमने समस्त दुष्टो को बकरा बना दिया है अब यही तुम्हारा वाहन होगा संस्कृत में बकरे को अज कहां जाता है अज का अर्थ ब्रह्मांड होता है। बकरे के ऊपर या ब्रह्मांड के भी ऊपर विराज ने वाली आदिशक्ति हो रूप में गुजरात की भूमि तुम्हारा वा स्थान होगा। परंतु तात्विक रुप से देह धारियों की जीवनी शक्ति के रूप सारी सृष्टि में तुम्हारा बात स्थान होगा कलयुग में तुम बकरे वाली मेलडी मां घर-घर पूजी जाओगी।
शिव तंत्र रहस्य – Shiv Tantra Rahasyamaya Ph. 85280 57364
शिव तंत्र रहस्य – Shiv Tantra Rahasyamaya Ph. 85280 57364
शिव तंत्र रहस्य – Shiv Tantra Rahasyamaya Ph. 85280 57364 तंत्र क्रियामक पद्धति साधना जगत में एक की अपेक्षा किसी हैं। इस बहुता व्यवस्था की ही दूसरी संज्ञा है बात की पुष्टि होती है कि प्रत्येक सम्प्रदाय का अपना विशिष्ट के इस तथ्य से, है। तंत्र रहा है, चाहे वह वैष्णव सम्प्रदाय चाह हो
अथवा अन्यान्य कोई भी सम्पदा निय ज्यो और प्रत्येक तंत्र का आधार रही है शिवोपासना ! तं शब्द से आज का समाज सन्तुष्ट नहीं है। तंत्र के प्रति समवेत् विरोध का स्वर सुनाई देता है दूसरी ओर समाज का महत्वाकाक्षी वर्ग तांत्रिक साहित्य की ओर आकर्षित हो रहा है।
प्रायः जादुई क्रियाकलाप की सीमा में ही मि अनैतिक या और सृजित विद्या में शिव रूप में मान्यता प्राप्त है समय के परिवर्त्तमान चक्र से तंत्र शब्द की सामाजिक क्रिया-पक्ष को समाज के साथ अविरत सुनियोजित नहीं किया जा सकता है।
आत्मा के परिज्ञान के परिवेश को जब जगत से उठाकर बाह्य मंडल में आरोपित करने की स्थिति की अवस्थिति को इसमें प्रत्यभिज्ञान कहा गया है. | लेकिन गर्हित कार्य की सर्वदा निन्दा की गई है। साधना के क्षेत्र में भौतिक सुखों की उपेक्षा ही नहीं इनकी अप्रस्तुति भी की गई है।
तंत्र में कुल कुण्डलिनी को जगाकर मणिपुर निवासी आनन्दमयी शक्ति के साथ जीव के विलीनीकरण का आयकरण किया गया है। इस | ब्रह्ममयी शक्ति के सम्पर्क से जीव शिव स्वरूप को प्राप्त करता है तंत्र निश्चित से वह दिया है, जिसमें जीव | की माया का साक्षात्कार योगमाया से होता है।
योग समत्व की अमिधा शक्ति है। समय की इसी शक्ति की पाविद्या है। माया अहेतुक और हेतुक ज्ञान से सम्बन्धित है। तांत्रिकगण माया को ज्ञान का भी प्रतीक मानते हैं। आत्मचेतना के उन्नयन की विद्या के रूप में तंत्र का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। तंत्र प्रकाशमार्ग का सोपान है।
मानव अपने जीवन के अंधकार को निर्वासित करने के लिए मंत्र की प्रत्यभिज्ञा की ज्योति को प्राप्त करना चाहता है। तंत्र का मूल उद्देश्य भौतिक अंधकार से निवृत्ति प्राप्त करना है।
वस्तुतः तंत्र सनातन सात्विक ज्योतिर्मयी शक्ति की उपासना है तमोगुण और रजोगुण के भयावह चक्र से दूर रहकर सहस्र सूर्य के आलोक में प्राप्त और प्राप्ति के नियम के विनियमन की व्यवस्था ही तंत्र है।
तंत्र कभी भी निकृष्ट कर्म का परिचायक नहीं है। आत्मशक्ति की चेतना से मानव पूर्णत्व की ओर अग्रसर होता है और इसके विपरीत की अवस्था में मानव निर्बल होकर सत्यज्ञान से दंचित हो जाता है। तंत्र साधना का सम्बन्ध आत्म प्रत्यक्षीकरण से है स्वयं के प्रति बोध को उद्बोधित करना ही तंत्र का कार्य है। तंत्र इससे समता की भावना उत्पन्न होती है।
समता से सत् असत्, त्याज्य और अत्याज्य का भेद समाप्त होता है। आत्मज्ञान की ज्योति इससे प्रज्ज्वलित होती है इसलिए यह कहा जा सकता है, कि आत्मज्ञान की प्रत्यभिज्ञावेजा में शंकर शिष्यों की अपने अनुभूति-जन्य सादृश्यता की वाचितानुवृत्ति में नहीं उलझते हैं. अपितु सहज दर्शन की अनुभूति होती है। तंत्र चेतना की की अवस्था को वहां तक पहुंचा देता है जहां चित की चिन्ता चिन्मयी में सिमट जाती है।
समदर्शीत्य के ना मौलिक आयाम को तंत्र की भित्ती पर ही चित्रित किया की जा सकता है। को व हरु प्त गम्भीर, गूड़, चिन्तनयुक्त, विद्वतपूर्ण लेखनी से युक्त ‘डॉ० मोहनावन्द मिश्र का लेख प्रामाणिक ज्ञान का ही परिचायक है।
नीव नत्व की तात्रिक साधना के साथ में अनेक सम्प्रदायों का रूप स्थिर हुआ चाहे शैव, शाकत, वैष्णव और बौद्ध हो सबने तंत्र की वीणा के तारों पर अपने विचारों को राग और तान दिया तंत्र के विचारों की प्रक्रिया को विशेषता यह है कि जीवन और शक्ति के उभय सिद्धान्त पर यह अवलम्बित है।
शक्ति के अभाव में शिव तो शव ही हो जाते है अतः प्रधानता शक्ति की है। वैष्णवगण इसे राधाकृष्ण तथा सीताराम की संज्ञा के नाम से सम्बोधित करते हैं बौद्ध उपासक इसे शून्यता तथा प्रशोन्याय के रूप में परिभाषित करते हैं। अनादिकाल से ही तंत्र साधना की परम्परा इस देश में वर्तनान है। योगी इस रहस्यमयी साधना में शिव | और शक्ति की उपासना करते आ रहे है। इस रहस्यमय |
साधना को तंत्र साधना के नाम से जाना जाता है। इस | साधना का प्रभाव सभी सम्प्रदायों पर पड़ा है। यह एक उदात साधना है, लेकिन नौतिकवादी साधकों ने इसे गति रूप में जीवित रखने का प्रयास किया।
वैद्यनाथ धाम एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहां तंत्र साधना की परम्पर प्राचीनकाल से ही वर्तमान है। वैद्यनाथ धान एक प्रसिद्ध तीर्थ भी है। यहां द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नवम् वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर है।
उत्तर गुप्त युग में आदित्यसेन गुप्त इस भूभाग का शासक था। पाल काल में बंगाल के शासकों ने इस पीठ को शिव की प्रशस्ति में अंकित किया 9 वीं सदी के बटेश्वर लेख से भी वैद्यनाथधाम के शिवमंदिर की महत्ता का प्रतिपादन होता है।
सेन वंशीय राजाओं ने भी वैद्यनाथ की प्रशस्ति का गायन किया है। मुस्लिम शासकों के युग में भी इस तीर्थ की लोकप्रियता थी। प्राचीनकाल में वैद्यनाथधाम में कामालिक और नाथसिद्धों की अधिकता थी पूर्व मध्यकाल में यहां शिव की उपासना पद्धति में तात्रिक विधि का ही वर्चस्व था।
मुस्लिम शासन के कुछ पूर्व ही यहां की तांत्रिक उपासना की परम्परा में कुछ ढीलापन आया। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर में लिखा है कि आदिशंकर यहां आये थे। उनके दिग्विजय की गाथा में भी कापालिकों के साथ उनके विवाद की चर्चा है। उत्त समय यहाँ नाथ मत प्रचलित था। नाथ मत भी शैव परम्परा से सम्बन्धित है, जो शव-पाशुपत कापालिक और योगिनी कौल मतों की परम्परा से विकसित है। मत्स्यन्द्रनाथ योगिनी कॉलमत के प्रवर्तक थे गोरखनाथ का संबंध पाशुपत-व से था।
इन्होंने अपनी साधना की दुरुहता और विभिन्नता के कारण इस मार्ग को कष्टकर और भयावह बना दिया वैद्यनाथ स्थित नाथबाडी नाथों और रिद्धों की परम्परा का साक्षी है। यहां आज भी नाथों की अनेक समाधियां है। स्थानीय तीर्थपुरोहितों के बीच इनकी अनेक गधा प्रचलित है नाथों का यह सम्मम स्थल महाराजा गिद्धौर के अधिकार में है। वैद्यनाथयम एक शैवपी के रूप में ही नहीं शक्तिपीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। सती का हृदय यहां अवस्थित है शिव और शक्ति का प्रबल समर्थन इससे होता है। धर्म के सदृश्यात्मक धरतल पर मातृशक्ति की पूजा की परम्परा यहां प्राचीनकाल से ही प्रचलित है।
नौवी सदी से ही तांत्रिक उपासना की मध्यकालीन यहां प्रचलित है। मध्यकालीन भारत में शून्यता की उनला की प्रबलता बढ़ी और व्यापक रूप में पूर्वाचल में इसकी साधना को साधकों और आराधकों ने अपनाया 12 वी सदी के बाद मिथिला के उपासकों को सामाजिक परम्परा यहां स्थापित होने लगी।
मिथिला में “भैरवो यत्र लिगम के उपासकों की संख्या अधिक है। यहां भी मैथिल तीर्थों का हुआ और तांत्रिक विधि की साधना का प्रचलन हुआ पौराणिक साहित्य में भी इस शक्तिपीठ का वर्णन है। तंत्र में भी प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में इस क्षेत्र का उल्लेख है। इस पीठ की अधिष्ठात्री देवी के रूप में गला महाविद्या का महत्व है। किसी-किसी पुराण में जयदुर्गा का यह की पीठाविष्ठात्री देवी के रूप में उल्लेख है। यहां चौबीत नेतृकाओं की भी पूजा होती है।
पशुबलि की प्रथा भी यह प्रचलित है. यहां शक्ति की उपासना के अनेक विग्रह है जैसे सध्या काली, मनसा बंगला, अन्नपूर्णा जयदुर्गा त्रिपुरसुन्दरी जगज्जननी संकष्टा सीता राधा तारा और महागौरी भीतर खण्ड के प्राचीन कुण्ड में महाप्रसाद से हवन की प्रथा आज भी प्रचलित है की भी नित्य पूजा होती है।
श्रीविद्या आदि विद्या है इसकी उपासना से पराशकिका अगहन किया जाता है। यहां गायत्री की उपासना भी व्यापक स्तर पर होती है। शक्ति की उपासना का आदिरूप ही है। गायत्री शक्ति भी श्री विद्या की उपासना से सम्बन्धित है। आज भी शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठों में श्रीविद्या की उपासना की परम्परा विद्यमान है। वैद्यनाधाम में हमशान साधना होती है।
बंगाल के अनेक साधक यहां आकर राधना करते थे. वैद्यनाध्यान के रक्षक वैद्यनाथ ही भैरव के रूप में विराज है। समस्त वैद्यनाथधाम के भौगोलिक स्वरूप को शिवपुराण में चिताभूमि के नाम से जाना जाता है। यह आज भी शक्ति साधना की भूमि है।