कर्ण पिशाचिनी सिद्धि मंत्र | कर्ण पिशाचिनी विद्या ph.85280 57364
कर्ण पिशाचिनी साधना कर्ण पिशाचिनी का प्रयोग लोकसिद्धि के लिए बहुत ही प्रभावी है। यह साधना उग्र श्रेणी में आती है। अतः किन्हीं सिद्ध गुरुदेव का सहारा लेना चाहिये; अन्यथा सङ्कट में पड़ सकते हैं।
कर्णपिशाचिनी की उग्रता को कम करने के लिए घी कुवार या घृत-कुमारी नामक पौधे की जड़ और उसके पत्तों का गूदा बहुत उपयोगी है। जड़ को विधिवत् उखाड़कर सिद्ध कर अपने पास रखने से और उसके पत्तों के गूदे या रस को सारे शरीर तथा मस्तक में लगाने से उग्रता सौम्यता में बदल जाती है ।
1 कर्ण पिशाचिनी सिद्धि मंत्र
लोहे का एक त्रिशूल बनाकर पञ्चोपचारों या षोडशोपचारों से उसका पूजन कर साधनास्थल में जमीन में गाड़ दें। दिन में घी का दिया जलाकर मन्त्र का ११०० जप करें। फिर आधी रात को त्रिशूल का पूजन कर घी और तेल के दीपक जलाकर ग्यारह दिन तक ग्यारह सौ मन्त्रजप करें। अन्त में ‘कर्णपिशाचिनी’ प्रकट होकर वर प्रदान करेंगी, जिससे किसी भी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर ज्ञात होने लगेगा। यह अति उग्र साधना है। अतः सिद्ध गुरुदेव के सान्निध्य में ही करें।
साधन विधि- सर्व प्रथम इस मंत्र का १०००० जप करना चाहिए। तदुपरान्त किसी कृष्ण वर्ण ( काले रंग) की क्वारी कन्या को अभिमंत्रित कर उसका पूजन करे और उसके हाथों, पाँवों में कुकुम लगाये । अलकों में मल्लिका- पुष्प तथा कनेर के पुष्प लगाकर लाल रंग के डोरे से वेष्टित करे। इस साधन के द्वारा कर्णं पिशाचिनी यक्षिणी साधक के वशीभूत होकर उसे तीनों लोक और तीनों काल के शुभाशुभ का ज्ञान कराती रहती है। साधक को चाहिये कि वह मंत्र सिद्ध हो जाने पर अभिमंत्रित लाल सूत्र, मल्लिका पुष्प तथा लाल कनेर के पुष्प को धारण किये रहे ।
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साधन विधि – रात्रि के समय उच्छिष्ट मुख से श्मशान में बैठ- कर उक्त मन्त्र का जप करे। दस लाख की संख्या में जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है तथा पिशाची साधक के समक्ष प्रकट होकर उसे अभिलाषित वर प्रदान करती और सदैव उसके वशीभूत रहती है । पिशाची जिस समय प्रकट हो, उस समय साधक को अर्ध्य, गंधादि द्वारा उसका पूजन करना चाहिए तथा जन काल में भी पूजनादि करना चाहिए । यह ध्यान रखना चाहिए कि मन्त्र जाप के समय में न तो साधक ही किसा व्यक्ति को देखे और न कोई अन्य प्राणी ही साधक को देख पाये । किसी के देख लेने पर जप निष्फल हो जाता है ।
गुरु गोरखनाथ का भूत भविष्य वर्तमान मंत्र – नाथ पंथ की साधना guru gorakhnath ka bhoot bhavishya vartman mantra ph. 85280 57364
गुरु गोरखनाथ का भूत भविष्य वर्तमान मंत्र
guru gorakhnath ka bhoot bhavishya vartman mantra गुरु गोरखनाथ का भूत भविष्य वर्तमान मंत्र बताइए यह बहुत समय से साधक जानो की डिमांड थी। आज आप को प्राचीन नाथ पंथ का मंत्र की जानकारी देने वाला हु इस गुरु गोरखनाथ मंत्र से भूत भविष्य वर्तमान मंत्र से आप को त्रिकाल ज्ञान की प्रपात होगा। आप निश्चित ही त्रिकाल ज्ञान को हासिल करोगे और आप को इस की अच्छी जानकारी हो जाएगी यह नाथ पंथ का प्राचीन मंत्र है
गुरु गोरखनाथ का भूत भविष्य वर्तमान मंत्र guru gorakhnath ka bhoot bhavishya vartman mantra भूत भविष्य वर्तमान शाबर मंत्र
guru gorakhnath ka bhoot bhavishya vartman mantra गुरु गोरखनाथ का भूत भविष्य वर्तमान मंत्र विधि विधान
वैसे यह मन्त्र पर्व काल ग्रहण काल या दीपावली होली, नवरात मे एक हजार आठ संख्या में सिद्ध हो जाता है मगर उसके अलावा ४१ दिन में सवा लाख जाप पूर्ण करने का विधान है साधना के अंतिम दिन दशांश का हवन जरूर करे और श्रीफल अग्नि में भेंट दें भोग भी लगाए मन्त्र सिद्ध हो जाएगा जब कभी इस मेन्त्र का प्रयोग करना हो तो व्यक्ति को सामने बिठा कर गूगल की धूनी करे और इस मन्त्र का २१,या ४१ बार जाप मन मे करे और मन्त्र अमुक की जगह उस व्यक्ति का नाम ले कर ध्यान करे आपको उस व्यक्ति के बारे में जो जानना हो वो में उसे बता सकते हो इस प्रयोग को जन कल्याण के लिए प्रयोग में लाये । जय अलख जय गिरनारी । आदेश ।
कर्ण पिशाचिनी साधना के छुपे रहस्य उजागर करेंगे इस पोस्ट में Deep secrets of Karna Pishachini Sadhana ph. 85280-57364
कर्ण पिशाचिनी कौन है कर्ण पिशाचिनी विद्या क्या है
कर्ण पिशाचिनी साधना के छुपे रहस्य उजागर करेंगे इस पोस्ट में Deep secrets of Karna Pishachini Sadhana कर्ण पिशाचिनी भौतिक आकांक्षाओं से पीड़ित लोग कर्ण पिशाचिनी की आराधना करने को लालायित रहते हैं ।
यह सिद्ध होने पर भूतकाल और वर्तमान काल की बातें बतला देती है, असाधारण परिस्थितियों में भविष्यत् को बत- लाने की क्षमता भी आती है किन्तु इसके लिए अधिक श्रम और साहस की आवश्यकता रहती है।
निम्न विषयो पर चर्चा होगी
कर्ण पिशाचिनी कौन है
कर्ण पिशाचिनी विद्या क्या है
कर्ण पिशाचिनी क्या क्या कर सकती है
कर्ण पिशाचिनी कितने दिन में सिद्ध हो जाती है
वर्तमान में चाहे विश्व के किसी भी हिस्से की जात पूछी जाय यह सही उत्तर दे देती है, एक हद तक यह व्यक्ति के अन्तः स्तल के विचारो को भी जान सकती है। किन्तु किसी के विचारों की बदले की शक्ति इसमे नही है ।
लोगों को चमत्कृत करने के लिए, अपना प्रभाव जमाने के लिए और इन प्रदर्शनों के फलस्वरूप धन अर्जन के लिए कर्ण पिशाचिनी के प्रति लोग अधिक आकृष्ट होते हैं । इसके संबंध में कुछ भी लिखने से पहले एक बात स्पष्ट कर दूं कि मैं ज्ञान मार्ग में प्रवृत्त हो चुका हूँ, ये आनन्दमार्गी चुटकुले हैं, इनके प्रति मुझे कोई भी दिलचस्पी नही चमत्कार जैसी चीज मेरे मे नही है और जब नही है तो दिखावा कैसे करू ?
सच यह है कि अर्थ और सुविधाओं के मामले मे आवश्यकता तक सोचता हूं मुझे किसी भी प्रकार की कोई सिद्धि नही मिली फिर भी भारतीय मन्त्रो की शक्ति का परिचय मुझे है । ज्ञान मार्ग जिस विराट् शून्य में रमना चाहता है उसमे प्रदर्शनीय, सिद्धि या चमत्कार नाम को कोई चीज होती ही नहीं। गोपीनाथ कविराज नौर. योगीराज अरविन्द के पास लोगों ने कौन – सा चमत्कार देखा ।
किन्तु तो उनको मिला उसके लिए कौन लालायत नहीं है ? ज्ञान मार्ग का यह भाव है। कामनाओं से प्रेरित होकर जो प्रयोग किये जाते हैं वे ऐसे ही ४८ रहते हैं जैसे किसी को एक शहर से दूसरे शहर जाना होता है ।
ऐसे लोग एक सीमित दिशा और दृश्य का अनुभव प्राप्त करते है किन्तु जिनको केवल चलना है उनके अनुभव मे सारे नगर वन, पहाड़, मैदान आ जाते हैं । ज्ञानमार्ग मे इन सारी सिद्धियो का रहस्य खुल जाता है या यों कहे कि पोल खुल जाती है और अभिरुचि समाप्त हो जाती है।
एक बार एक सज्जन आये और मुझसे उलझ पड़े, बार-बार कहने लगे तुम ऐसी पुस्तकें क्यो लिखते हो ? एक मोह उपजा देते हो, मन मे वैचारिक विप भर देते हो मेरा उत्तर था आप क्यों पढ़ते हो ? अपवाद स्वरूप ही ऐसे लोगों से साबका पड़ा और मेरे मन में यह आया कि चलो, इस विषय पर कुछ भी नही कहेंगे किन्तु इसके साथ ही उन पत्रों का क्या करूं जिन्होंने मेरी पूर्ण लिखित लेख में दिये गये प्रयोग किये और सफल हुए,
जिन लोगो ने विश्वास पूर्वक उन प्रयोगो के बारे मे पूछा जो अपने वेबसाइट लेख इस विशाल वर्ग की आस्था ने मुझे चुप नही रहने दिया और मैंने फिर कतम उठा ली यही सोचकर कि यदि वर्ष भर मे पांच व्यक्ति भी इन प्रयोगों मे लाभ उठाते हैं तो यह पुण्य का ही काम है। जो लोग सफल नहीं हो रहे वे भी कम-से-कम भगवान का स्मरण कर रहे हैं, अपने पाप धो रहे हैं कोई दुष्कर्म नही कर रहे, न मैं कोई घटिया उपन्यास लिखकर लोगों की वासना उभार रहा हूं ।
हरेक व्यक्ति का अपना मिशन होता है। आस्तिकता का प्रसार और भारतीय संस्कृति एवं विज्ञान के प्रति लोगों की रुचि जागृत करना मेरा जीवन का लक्ष्य है । धर्मनेता नही होना चाहता, न अपने नाम से कोई . सम्प्रदाय चलाना चाहता हूं, मुझे मेरे देश वासियों से स्नेह है और जीवन भारत के प्रति आस्था जगाना मेरा नशा है। यह व्यवसाय नहीं शोक है ।
वे हजारों लोग मेरे इस कथन के साक्षी हैं जिनके विस्तृत पत्रो के उत्तर मैंने एक पूरे लेख के आकार में निःशुल्क दिये हैं अब भी दे रहा हूं, भले ही इससे मेरे निजी जीवन मे गतिरोध उत्पन्न हो जाता हो । उन अनजान लोगों के दुःख में भागीदार होने में मुझे बढ़ा सन्तोष मिलता है । आध्यात्मिक साधना करने से उनका आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है ।
४ε प्रस्तुत पुस्तक उन अनेक प्रश्नों का उत्तर है जो कृपालु पाठको ने किये हैं और उसके लिए है जो प्रश्न नही कर सके । जिन रहस्यों को प्रकट करने में कोई बाधा नहीं थी उनको स्पष्ट करने में मैंने कोई संकोच नही किया किन्तु जिनको सार्वजनिक रूप से घोषित करने के हित की अपेक्षा अहित हो सकता था उनका उल्लेख या संकेत मैंने नही किया है ।
प्रश्न उठता है क्या ये प्रयोग मैंने किये हैं? में एक ही उत्तर देता हूं- नही क्या ये अनुष्ठान सच हैं- इस प्रश्न के उत्तर में मैं कहूंगा- मैंने जीवन पग-पग पर इनकी शक्ति को देखा है, इनको झूठ या अविश्वसनीय मानने का अपराध मैं नहीं कर सकता । – आदमी का जीवन बहुत छोटा होता है और वह सारे अनुष्ठान कर ले यह संभव ही नहीं फिर भी अनेकों प्रयोग मैंने किये हैं अथवा कराये हैं ।
कर्ण पिशाचिनी के संबंध में सूक्ष्म और रहस्य को बातें प्राप्त करने के लिये मुझे बहुत कुछ करना पड़ा है। जिन लोगो को यह प्रयोग सिद्ध है वे कुछ भी बतलाने के लिए तैय्यार नही और मैं स्वयं करूं – यह पसन्द नही । इसलिए उन लोगों से रहस्य उगलवाने के लिए इस साधना के गूढ रहस्यो पर इस तरह विवेचन करने लगता जिससे वे समझें कि यह भी पूरा जानता है और फिर मेरे कहे में संशोधन कराने जैसी ही स्थिति रहने देता।
इस तरह से इस प्रयोग के जटिल रहस्यो का स्पष्टीकरण मेरे सन्तोष तक प्राप्त करने के बाद ही लिखने का साहस कर रहा हूं । जाने क्यों पाठकों का इस प्रयोग के प्रति इतना रुझान है और इन लोगों का इतना दबाव रहा है कि मुझे इस प्रयोग के बारे में बहुत कुछ जानना पड़ा और उसको प्रामाणिक स्तर पर पेश करने के लिए सभी पक्षों पर विचार करना पड़ा।
कर्ण पिशाचिनी के अनेक मंत्र हैं और उनकी साधना विधि में भी थोड़ा बहुत अन्तर है इस मन्त्र को सतर तरह से लिखने को विधि मैंने देखी है उसी तरह कर्ण पिशाचिनी में भी चालीस से अधिक मंत्र हैं । कौन-सा मंत्र किसके अनुकूल पड़ेगा इसका निर्णय कुलाकुल चक्र और मित्रार चक्र को देखकर कर लेना चाहिए ये चक्र ‘ मंत्र विज्ञान’ में दिये गये हैं ।
एक स्थान पर ग्रहण के दिन खाट में बैठकर बहुत कम मात्रा मे जप करने पर कर्ण पिशाचिनी सिद्ध होने की बात मैंने लिखी थी। यह मेरा इस प्रयोग मे ग्रहणकाल की स्वत: निर्णय नही था शास्त्रोक्त बात थी। पवित्र अतः मंत्र साधन के उपयुक्त समझ कर खाट को श्मशान पीठ के रूप माना गया है किन्तु इतनी कम मात्रा मे जप करने पर सिद्धि उनको ही मिलती है जिन्होने इस संबंध में कुछ किया है।
जिसने पहले कुछ भी नही किया या जो इससे विपरीत गुण वाले प्रयोग कर चुके हैं उनको इतनी संख्या मे जप करने से सफलता नही मिल सकती । जैसा इसका नाम है वैसा ही इसका स्वरूप और स्वभाव है । स्वा- भाविक है इस प्रकार के प्रयोग करने के लिए अतिरिक्त साहस की आव- श्यकता होगी इसलिए साहसी और वीर व्यक्ति इस संबंध मे सोचें ।
कई लोगों ने शंका की थी कि व्यक्ति की मृत्यु के समय ऐसी साधनायें कष्ट कर रहती हैं, ऐसी बात नही है । पिशाचवर्गी होने के कारण इनमे क्रूरता तो रहती ही है, दूसरी बात यह भी है कि इनके अति संपर्क से व्यक्ति के स्वभाव में पैशाचिकता प्रकट होने लगती है।
हालांकि मंत्र के कारण वचन बद्ध होकर ये हमारे काम तक सीमित रहते हैं फिर भी इनके कागुण लुप्त नही होते और हम उनसे प्रभावित होते ही हैं। पिशाचिनी होने के कारण इसकी साधना घर मे नही करनी चाहिए ।
श्मशान एकान्त वन प्रान्त और शिव मंदिर इस साधना क्रे उपयुक्त स्वल हैं। घर करने से सफलता देर मे मिलती है और घर का वातावरण दूषित होता है । सिद्ध होने के बाद तो यह नियंत्रित हो जाती है इसलिए दूषित नही कर पाती किन्तु सिद्ध होने से पहले स्वतंत्र रहती है ।
इस तीन रूपों में माना जा सकता है मां, बहन और पत्नी मां और बहन के रूप में मानने पर इसमें इतनी शक्ति नही आती पत्नी के रूप मे मानने पर इसकी सामथ्यं पूर्ण रूप से प्रकट होती है । किन्तु अपने स्वभाव के अनुसार यह पत्नी सुख में बाधा पहुंचाती है।
हां, व्यभिचारी बनाकर वैयमिक सुख में कमी नही आने देती पर पत्नी के नाम से जो व्यक्ति हमारे घर में है उसे कष्ट देती है। आवेश या दिखने जैसे कष्ट नही बल्कि उसके स्वास्थ्य मे ह्रासमोर चिन्तायें उत्पन्न करती है। मां और बहन रूप में मानने पर इनके सुखो मे बाधा पहुंचाती है ।
कर्ण पिशाचिनी क्या क्या कर सकती है
कर्ण पिशाचिनी भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी दे सकती है।
कर्ण पिशाचिनी आपके आदेश अनुसार आपके के अन्य कार्य भी कर सकती है।
कर्ण पिशाचिनी आपके आदेश के अनुसार शत्रु का नाश भी कर सकती है।
कर्ण पिशाचिनी लाटरी सटे का नंबर दे सकती है।
कर्ण पिशाचिनी खजाने का रहस्य बता सकती है।
शेयर मार्किट में शेयर की जानकारी दे सकती।
किसी रोग को ख़तम कर सकती है और रोग को ख़तम करने की दवा बता सकती है
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि कैसे प्राप्त करें
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि प्रपात करने के लिए एक गुरु की आवश्यकता होती है जो आप को इस साधना की जानकारी प्रदान करता है। गुरु के बिना यह साधना में भारी नुकसान हो सकता है बिना गुरु के न करे। इस साधना से पहले किसी रक्षा मंत्र को सिद्ध करे।
कर्ण पिशाचिनी कितने दिन में सिद्ध हो जाती है
कर्ण पिशाचिनी को सिद्ध करने की अलग अलग विधि विधान है कोई विधान २१ है कोई ११ और कोई ४० दिन का है। यह डिपेंड करता आप कोन सा विधि विधान कर रहे हो
कर्ण पिशाचिनी का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य History of Karna Pishachini
कर्ण पिशाचिनी का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य History of Karna Pishachini कर्ण पिशाचिनी एक पिशाच वर्ग की शक्ति है जो कान में भूत भविष्य वर्तमान बताती है। भौतिक आकांक्षाओं से पीड़ित लोग कर्ण पिशाचिनी की साधना करने को लालायित रहते हैं ।
यह सिद्ध होने पर भूतकाल और वर्तमान काल की बातें बतला देती है, असाधारण परिस्थितियों में भविष्यत् को बत- लाने की क्षमता भी आती है किन्तु इसके लिए अधिक श्रम और साहस की आवश्यकता रहती है।
कर्ण पिशाचिनी का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य History of Karna Pishachini
वर्तमान में चाहे विश्व के किसी भी हिस्से की जात पूछी जाय यह सही उत्तर दे देती है, एक हद तक यह व्यक्ति के अन्तः स्तल के विचारो को भी जान सकती है। किन्तु किसी के विचारों की बदले की शक्ति इसमे नही है ।
पिशाचि शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े होने लगते हैं ऐसा लगता है कि कोई मांसाहारी भूत प्रेत जैसी ही कोई शक्ति होगी पिसाची शक्ति शक्ति के ह्रदय चक्र शरीर में विद्यमान है इन्हीं शब्द चक्र में एक हृदय चक्र है स्वामिनी अधिकांश रोग हमारे शरीर में जितने वह सब हमें पिशाचिनी शक्ति की वजह से ही लगते हैं।
पिशाचि शब्द की आधार की परिभाषा आती है समझ सकते हैं कि किसी एक विषय अथवा वस्तु में हृदय का लगातार लगे रहना किसी एक विषय को जब हम इतना अधिक पसंद करने लग जाए कि अपना तन मन धन यहां तक की अपना आत्मा को शांत करने के लिए तैयार हो जाए तो। हमारा मन धन के लिए कभी वैभव के लिए और भी न जाने कितने विषय वस्तुओं के लिए हम प्रयासरत रहते हैं और हमारा हृदय इस दुनिया से हटना ही नहीं चाहता इस सुभाव को पिसाच सुभाव कहा जाता है।
Karna Pishachini पिशाची देवी का सवरूप
लेकिन बावजूद इसके देवी पिसाची बहुत ही सुंदर है कमल के आसान पर बैठी हाथ में दिव्या पुष्प पकडे हुए और एक हाथ में एक अग्नि से जलता हुआ एक कटोरा पकड़े हुए बैठे हुए है। दिव्या पिशाची देवी की आराधना का और कुलांतक पीठ से निकलता है। मानसिक और बौद्धिक रोग है और मनोज जनित जितने भी रोग हैं। नष्ट करने में देवी पिशाची के मंत्र सर्वश्रेष्ठ है उनका ध्यान स्तुति बहुत लाभदायक है।
लोगों को चमत्कृत करने के लिए, अपना प्रभाव जमाने के लिए और इन प्रदर्शनों के फलस्वरूप धन अर्जन के लिए कर्ण पिशाचिनी के प्रति लोग अधिक आकृष्ट होते हैं । इसके संबंध में कुछ भी लिखने से पहले एक बात स्पष्ट कर दूं कि मैं ज्ञान मार्ग में प्रवृत्त हो चुका हूँ, ये आनन्दमार्गी चुटकुले हैं, इनके प्रति मुझे कोई भी दिलचस्पी नही चमत्कार जैसी चीज मेरे मे नही है और जब नही है तो दिखावा कैसे करू ?
सच यह है कि अर्थ और सुविधाओं के मामले मे आवश्यकता तक सोचता हूं मुझे किसी भी प्रकार की कोई सिद्धि नही मिली फिर भी भारतीय मन्त्रो की शक्ति का परिचय मुझे है । ज्ञान मार्ग जिस विराट् शून्य में रमना चाहता है उसमे प्रदर्शनीय, सिद्धि या चमत्कार नाम को कोई चीज होती ही नहीं। गोपीनाथ कविराज नौर. योगीराज अरविन्द के पास लोगों ने कौन – सा चमत्कार देखा ।
किन्तु तो उनको मिला उसके लिए कौन लालायत नहीं है ? ज्ञान मार्ग का यह भाव है। कामनाओं से प्रेरित होकर जो प्रयोग किये जाते हैं वे ऐसे ही ४८ रहते हैं जैसे किसी को एक शहर से दूसरे शहर जाना होता है ।
ऐसे लोग एक सीमित दिशा और दृश्य का अनुभव प्राप्त करते है किन्तु जिनको केवल चलना है उनके अनुभव मे सारे नगर वन, पहाड़, मैदान आ जाते हैं । ज्ञानमार्ग मे इन सारी सिद्धियो का रहस्य खुल जाता है या यों कहे कि पोल खुल जाती है और अभिरुचि समाप्त हो जाती है। एक बार एक सज्जन आये और मुझसे उलझ पड़े, बार-बार कहने लगे तुम ऐसी पुस्तकें क्यो लिखते हो ?
एक मोह उपजा देते हो, मन मे वैचारिक विप भर देते हो मेरा उत्तर था आप क्यों पढ़ते हो ? अपवाद स्वरूप ही ऐसे लोगों से साबका पड़ा और मेरे मन में यह आया कि चलो, इस विषय पर कुछ भी नही कहेंगे किन्तु इसके साथ ही उन पत्रों का क्या करूं जिन्होंने मेरी पूर्ण लिखित पोस्ट में दिये गये प्रयोग किये और सफल हुए, जिन लोगो ने विश्वास पूर्वक उन प्रयोगो के बारे मे पूछा जो लेख इस विशाल वर्ग की आस्था ने मुझे चुप नही रहने दिया और मैंने फिर कलम उठा ली यही सोचकर कि यदि वर्ष भर मे पांच व्यक्ति भी इन प्रयोगों मे लाभ उठाते हैं
तो यह पुण्य का ही काम है। जो लोग सफल नहीं हो रहे वे भी कम-से-कम भगवान का स्मरण कर रहे हैं, अपने पाप धो रहे हैं कोई दुष्कर्म नही कर रहे, न मैं कोई घटिया उपन्यास लिखकर लोगों की वासना उभार रहा हूं । हरेक व्यक्ति का अपना मिशन होता है।
आस्तिकता का प्रसार और भारतीय संस्कृति एवं विज्ञान के प्रति लोगों की रुचि जागृत करना मेरा जीवन का लक्ष्य है । धर्म नेता नही होना चाहता, न अपने नाम से कोई . सम्प्रदाय चलाना चाहता हूं, मुझे मेरे देश वासियों से स्नेह है और जीवन भारत के प्रति आस्था जगाना मेरा नशा है। यह व्यवसाय नहीं शोक है ।
वे हजारों लोग मेरे इस कथन के साक्षी हैं जिनके विस्तृत पत्रो के उत्तर मैंने एक पूरे लेख के आकार में निःशुल्क दिये हैं अब भी दे रहा हूं, भले ही इससे मेरे निजी जीवन मे गतिरोध उत्पन्न हो जाता हो । उन अनजान लोगों के दुःख में भागीदार होने में मुझे बढ़ा सन्तोष मिलता है । आध्यात्मिक साधना करने से उनका आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है ।
जिन रहस्यों को प्रकट करने में कोई बाधा नहीं थी उनको स्पष्ट करने में मैंने कोई संकोच नही किया किन्तु जिनको सार्वजनिक रूप से घोषित करने के हित की अपेक्षा अहित हो सकता था उनका उल्लेख या संकेत मैंने नही किया है ।
प्रश्न उठता है क्या ये प्रयोग मैंने किये हैं?
कर्ण पिशाचिनी का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य History of Karna Pishachini
में एक ही उत्तर देता हूं- नही क्या ये अनुष्ठान सच हैं- इस प्रश्न के उत्तर में मैं कहूंगा- मैंने जीवन पग-पग पर इनकी शक्ति को देखा है, इनको झूठ या अविश्वसनीय मानने का अपराध मैं नहीं कर सकता ।
आदमी का जीवन बहुत छोटा होता है और वह सारे अनुष्ठान कर ले यह संभव ही नहीं फिर भी अनेकों प्रयोग मैंने किये हैं अथवा कराये हैं । कर्ण पिशाचिनी के संबंध में सूक्ष्म और रहस्य को बातें प्राप्त करने के लिये मुझे बहुत कुछ करना पड़ा है। जिन लोगो को यह प्रयोग सिद्ध है वे कुछ भी बतलाने के लिए तैय्यार नही और मैं स्वयं करूं – यह पसन्द नही ।
इसलिए उन लोगों से रहस्य उगलवाने के लिए इस साधना के गूढ रहस्यो पर इस तरह विवेचन करने लगता जिससे वे समझें कि यह भी पूरा जानता है और फिर मेरे कहे में संशोधन कराने जैसी ही स्थिति रहने देता। इस तरह से इस प्रयोग के जटिल रहस्यो का स्पष्टीकरण मेरे सन्तोष तक प्राप्त करने के बाद ही लिखने का साहस कर रहा हूं ।
जाने क्यों पाठकों का इस प्रयोग के प्रति इतना रुझान है और इन लोगों का इतना दबाव रहा है कि मुझे इस प्रयोग के बारे में बहुत कुछ जानना पड़ा और उसको प्रामाणिक स्तर पर पेश करने के लिए सभी पक्षों पर विचार करना पड़ा। कर्ण पिशाचिनी के अनेक मंत्र हैं
और उनकी साधना विधि में भी थोड़ा बहुत अन्तर है इस मन्त्र को सतर तरह से लिखने को विधि मैंने देखी है उसी तरह कर्ण पिशाचिनी में भी चालीस से अधिक मंत्र हैं । कौन-सा मंत्र किसके अनुकूल पड़ेगा इसका निर्णय कुलाकुल चक्र और मित्रार चक्र को देखकर कर लेना चाहिए ये चक्र ‘ मंत्र विज्ञान’ में दिये गये हैं ।
एक स्थान पर ग्रहण के दिन खाट में बैठकर बहुत कम मात्रा मे जप करने पर कर्ण पिशाचिनी सिद्ध होने की बात मैंने लिखी थी। यह मेरा इस प्रयोग मे ग्रहणकाल की स्वत: निर्णय नही था शास्त्रोक्त बात थी। पवित्र अतः मंत्र साधन के उपयुक्त समझ कर खाट को श्मशान पीठ के रूप माना गया है किन्तु इतनी कम मात्रा मे जप करने पर सिद्धि उनको ही मिलती है जिन्होने इस संबंध में कुछ किया है।
जिसने पहले कुछ भी नही किया या जो इससे विपरीत गुण वाले प्रयोग कर चुके हैं उनको इतनी संख्या मे जप करने से सफलता नही मिल सकती । जैसा इसका नाम है वैसा ही इसका स्वरूप और स्वभाव है । स्वा- भाविक है इस प्रकार के प्रयोग करने के लिए अतिरिक्त साहस की आव- श्यकता होगी इसलिए साहसी और वीर व्यक्ति इस संबंध मे सोचें ।
. कई लोगों ने शंका की थी कि व्यक्ति की मृत्यु के समय ऐसी साधनायें कष्ट कर रहती हैं, ऐसी बात नही है । पिशाचवर्गी होने के कारण इनमे क्रूरता तो रहती ही है, दूसरी बात यह भी है कि इनके अति संपर्क से व्यक्ति के स्वभाव में पैशाचिकता प्रकट होने लगती है।
हालांकि मंत्र के कारण वचन बद्ध होकर ये हमारे काम तक सीमित रहते हैं फिर भी इनके कागुण लुप्त नही होते और हम उनसे प्रभावित होते ही हैं।
कर्ण पिशाचिनी का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य History of Karna Pishachini
पिशाचिनी होने के कारण इसकी साधना घर मे नही करनी चाहिए । श्मशान एकान्त वन प्रान्त और शिव मंदिर इस साधना क्रे उपयुक्त स्वल हैं। घर करने से सफलता देर मे मिलती है और घर का वातावरण दूषित होता है । सिद्ध होने के बाद तो यह नियंत्रित हो जाती है इसलिए दूषित नही कर पाती किन्तु सिद्ध होने से पहले स्वतंत्र रहती है ।
कर्ण पिशाचिनी Karna Pishachini साधना को किस रूप में करें
इस तीन रूपों में माना जा सकता है मां, बहन और पत्नी मां और बहन के रूप में मानने पर इसमें इतनी शक्ति नही आती पत्नी के रूप मे मानने पर इसकी सामथ्यं पूर्ण रूप से प्रकट होती है । किन्तु अपने स्वभाव के अनुसार यह पत्नी सुख में बाधा पहुंचाती है।
हां, व्यभिचारी बनाकर वैयमिक सुख में कमी नही आने देती पर पत्नी के नाम से जो व्यक्ति हमारे घर में है उसे कष्ट देती है। आवेश या दिखने जैसे कष्ट नही बल्कि उसके स्वास्थ्य मे ह्रासमोर चिन्तायें उत्पन्न करती है। मां और बहन रूप में मानने पर इनके सुखो मे बाधा पहुंचाती है ।
कर्ण पिशाचिनी कितने दिन में सिद्ध हो जाती है ?
कर्ण पिशाचिनी का इतिहास और सम्पूर्ण रहस्य History of Karna Pishachini
बहुत काम समय में सिद्ध हो जाती है इसकी बहुत सारी विधि है वाम मार्ग दिक्षण मार्ग किश मार्ग से कर रहे हो यह डिपेंड करता है कुछ २१ , ११ , ४१ , दिन की होती है अघोर मार्ग में यह साधना जल्दी सिद्ध हो सकती है
कर्ण पिशाचिनी क्या क्या कर सकती है
आज के समय में हर व्यक्ति करना चाहता है क्योंकि एकमात्र यह ऐसी सिद्धि है पिशाचिनी की जो अपने जातक को बहुत सारी शक्तियां प्रदान करती है ऐसी शक्तियां प्रदान करती है जिससे कि व्यक्ति कहीं से भी धन को अर्जित करने लगता है किसी भी व्यक्ति का जटिल से जटिल अगर कार्य कहीं रुक गया है या कोई कार्य फस गया है तो इस कार्य को आसानी से करने के लिए भी कर्ण पिशाचिनी कार्य करती है दोस्तों आज हम आपको बताएंगे कि किन लोगों को इस साधना को पूरा करना चाहिए
कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव karna pishachini sadhna anubhav
कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव karna pishachini sadhna anubhav एक कर्ण पिशाचिनी साधक का अनुभव तंत्र के पारस्परिक ग्रन्थों में काल के आवरण को भेद कर अतीत व भविष्य को देखने के अनेक प्रयोग बताये गये हैं हाजरात, वार्ताली, चक्रेश्वरी, यक्षिणी, कर्ण पिशाचिनी आदि अनेक मंत्र हैं, जो भूत-भविष्यत् का ज्ञान करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
ये स्वप्न दृष्टि और शब्द के माध्यम से काम करते हैं । जैसा इनका नाम है वैसा इनका स्वरूप और शक्ति है । इनको सिद्ध करने में कोई अधिक कष्ट या विशेष शुद्धि को आवश्यकता नहीं रहती ।
कर्ण पिशाचिनी साधना अनुभव karna pishachini sadhna anubhav
बहुत_सभव है—हम मे से अधिकांश ने ऐसे व्यक्तियो को देखा हो जो हमारे विचारों को ही पढ-सुन लेते हों, वे हमे देखते ही हमारे प्रश्नों को कागज पर लिखकर रख लेते हों, हमारे परिवार को सारी पृष्ठभूमि मे नामोल्लेख’ करके बतला देते हो, और तो और उन्होंने अपने कागज पाच प्रश्न लिखे हो और आपने तीन ही प्रश्न सोचे हो शेष दो प्रश्न आप बाद में सोचें और आपको आश्चर्य हो कि उस व्यक्ति ने आपके प्रश्न पहले हो कैसे लिख दिये !
हमारी सामान्य बुद्धि के लिए यह बहुत बड़ा चमत्कार है किन्तु तंत्र मार्ग में यह निकृष्ट और साधारण-सी पैशाचिक साधना है। पूछने पर ऐसे व्यक्ति ज्योतिष को गणित, किसी देवता की कृपा या अपने आपको अंतर्द्रष्टा होने की बात कहेंगे किन्तु ऐसा है नहीं उनके पास पिशाचिनी है|
जिन लोगों के पास यह शक्ति है वे लोगों को चमत्कृत करके अपना प्रभाव जमा सकते हैं, उनके पास पैसे की कमी नही रहती । किन्तु उनका जीवन सुखमय नही रहता – इसके कई कारण हैं, पहली बात तो यह है कि पैशाचिक साधना होने के कारण व्यक्ति पिशाच बुद्धि और चरित्र वाला हो जाता है । स्नानादि करके स्वच्छ और दिव्य रहना उसके स्वभाव नही रहता ।
यों अपने को प्रदर्शित करने या पोश लोगो की संगति मे बैठने के कारण वे राजसी वैभव और कपड़ों का शौक कर लेते हों। किन्तु यह उनका धर्म नही होता। दूसरी बात यह कि ऐसे लोगो में असत्य भाषण की आदत भी पड़ जाती है।
शास्त्र कहते हैं—“सत्य संघाः देवा. असत्य सधाः राक्षसा:” इसलिए राक्षसी साधना के प्रभाववश वे असत्य बोलने लगें तो कोई आश्चर्य नही । कर्ण पिशाचिनो को स्वयं को शक्ति होती है, इसका स्वयं का वातावरण होता है।
वर्तमान मे इसकी अव्याहत गति है, भूतकाल मे भी यह चलती है किन्तु भविष्यत् में गमन करने के लिए इसे पूरी सामय्यं मिलनी चाहिए और यह सामर्थ्य साधक स्वयं प्रकट करता है। समय के पार देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए और दिव्य दृष्टि मिलती है मन की निर्मलता से मन पर छाये मैल उसकी अनुभव शक्ति को मन्द कर देते हैं हमारे आस-पास के आग्रहो मे मन की शक्ति बिखरे-बिखरी रहती है ।
यद्यपि कर्ण पिशाचिनी हमारी अर्जित शक्ति है और वह मशीन की * तरह अथक भाव से हमारा काम करती रहती है फिर भी वह हमारी शक्ति नही है, वह हमसे भिन्न है, मानसिक निर्मलता से जो कुछ भी मिलता है वह हमारे मन का हो जाता है ।
साधना के उच्च स्तर मे जाने पर ऐसी शक्ति स्वतः प्रस्फुटित हो जाती है और उसके साथ ही उसमे इतनी शक्ति आ जाती है कि वह अनिष्ट निवारण भी कर सकता है। अब प्रस्तुत है एक कर्ण पिशाचिनी की साधना करने वाले का अनुभव |
शंकर समझता है आज की दुनिया में चमत्कार को नमस्कार करते हैं । साधारण आदमी की तरह जीने से क्या लाभ कुछ विशेष किया जाय, कुछ अतिरिक्त पाया जाय । कर्ण पिशाचिनी उसे सरल नजर आती है ।
उसकी साधना विधि समझकर अनुकूल मुहूर्त में साधना प्रारंभ कर देता है । पांचवे दिन ठीक दो पहर में जब वह विश्राम कर रहा होता है। तो धर्म निद्रित अवस्था मे उसे एक स्त्री नजर आती है स्त्री कोई घोर रूपा नही है किन्तु इतनी मौम्य और सुन्दर भी नही है कि उसकी तरफ देखता ही रह जाय साधारण श्यामल शरीर, मध्यम कद, अलंकार रहित किन्तु उसके ललाट में आडा एक नेत्र जिसमें से तेज रोशनी-सो निकलती लगती है और उसकी तरफ देखा नही जा सकता ।
उसके पीछे घडी मारी फौज रहती है जिसमें वे सारे लोग मौजूद हैं जिनको शंकर ने देखा था और मर गये थे । ऐसे अनेकों लोग हैं। उस पिशाचिनी ने शंकर के मस्तक पर धर रखा है किन्तु वह इतना भयभीत हो जाता है कि कुछ बोलना तो दूर आंख मूंद कर देवी कवच का पाठ करने लगता है और उठ जाता है । क्षण भर में सारा दृश्य लुप्त हो जाता है ।
प्रयोग अधूरा रह जाता है । अगर शकर भयभीत न होता और उससे बात करता तो कर्ण पिशाचिनी उसके साथ सदा के लिए आ जाती। यह साधना पिशाच वर्ग की है। इसलिए इसे वचन बद्ध किया जाता है। यद्यपि यह मूर्तिमान रूप मे साथ नही रहती फिर भी इसे रहने के लिए एक नियत रूप और आकार देना ही पडता है और एक बार जिस रूप मे रहने के लिए कह दिया उस व्यक्ति के घर में वह चीज रह नही सकेगी।
माना हमने उसे चिडिया के रूप में रहने के लिए वचन दे दिया तो अब हमारे घर में चिड़िया जैसी चीज रह नहीं सकेगी। पत्नी के रूप में यह सबसे अधिक शक्तिशाली और आज्ञाकारी रहती है पर इस रूप मे रखने पर वैध पत्नी का मुध नहीं मिलने का ।
इसकी मादा करते समय आसन को विधाये ही रहना पड़ता है। ऐसा नही कि काम करते समय आसन बिछा दिया और फिर समेटकर य दिया । मंत्र जप करते समय ग्वार पाठा सदा हाथ में रखना पड़ता है । ग्यार पठे के प्रभाव मे यह उम्र रूप में नहीं आती।
ग्वारपाठे को संस्कृत मै कुमारी कहते हैं, आयुर्वेद को दृष्टि से यह बात दोष को कम करती है। इन दोनो दृष्टियों से यह ग्वार पाठा तमोगुण को उग्रता कम करने वाला .हता है। यह प्रत्येक तमोगुणों या पैशाचिक योनियों का गुण है कि वे साधना करते समय दिये गये वचन का पालन करने के लिए मजबूर हैं ।
इस प्रकार का वचन भंग करना उनको व्यवस्था में दण्डनीय होता है फिर त्र बल से ये लोक बरबस रोच कर लाये जाते हैं, ये प्रसन्न अपनी इच्छा नही होते । भूत साधना से वश में आया प्रेत अपने आप मे सुखी और बसन्न नही होता क्योकि उसको गुलाम बनाया जाता है किन्तु साधना की क्ति और मंत्र के प्रभाव के आगे वे विवश हैं ।
पिशाचिनी की साधना करते समय सभी को इसी प्रकार के दृश्य दिखाई दें यह आवश्यक नही, किसी को भिन्न प्रकार के आभास भी हो सकते हैं और किसी को कोई रूप या आकार दिखाई न देकर केवल कान ने ही सुनाई पड़ सकता है और स्पष्ट आवाज आने से पहले भयंकर गर्जन चिंघाड़ सुनाई दे सकती है इनसे डरे बिना जो सुने उसका उत्तर दे देना चाहिए।
swapna matangi स्वप्न मातंगी साधना और स्वप्न वाराही साधना स्वप्न मातंगी साधना इस साधना से मातंगी देवी और वीणावादिनी वाराही अपनी साधक को स्वप्ने में दर्शन दे करके भूत भविष्य वर्तमान का सब रहस्य बता देती आप इस साधना भूत सारे रहस्य जान सकते है इस का मंत्र आप को निम्न है
swapna matangi mantra स्वप्न मातंगी साधना और स्वप्न वाराही मंत्र
पहला मन्त्र मातङ्गी माता का है। यदि एक दिन में ही शुभा शुभ जानना हो तो निराहार रहकर ११ माला जप कर सो जायँ। सब कुछ स्वप्न में दिखाई देगा । ५ माला नित्य जपते रहने से जब आवश्यकता हो, सभी शुभ-अशुभ ध्यान में या स्वप्न में दिखाई देने लगता है।
प्रत्येक अष्टमी को कभी खीर, कभी हलुआ और कनेर या गुड़हल के फूल, कमलगट्टा, गुग्गुल आदि से जप का दशांश होम करते रहना चाहिये। तीनों मन्त्रों की विधि समान है। सदैव श्रद्धा से जप करने से ‘वीणावादिनी’ या ‘वाराही’ दोनों में से कोई नित्य दर्शन देती हैं और सभी कार्यों को पुत्रवत् बताती रहती हैं।
कर्ण पिशाचिनी विद्या | कर्ण पिशाचिनी सिद्धि मंत्र इस पोस्ट का उद्देश्य केवल ज्ञान और जानकारी के लिए है, यदि आप इसका अभ्यास करना चाहते हैं, तो इसे एक सिद्ध व्यक्ति की देख रेख में करें, अन्यथा आप स्वयं इसे नुकसान करेंगे।
मैं यहाँ सच्चाई जान सकता हूँ, यह आपको किसी भी व्यक्ति का अतीत का वर्तमान बताने में सक्षम है, इसलिए कर्ण पिशाच की उपलब्धि के लिए सभी प्रयास शुरू कर देता है, लेकिन एक बात भूल जाता है कि हर योनि की एक गरिमा होती है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोग इसका नाम सुनकर ही उसे प्राप्त करना चाहते हैं, वह इसको प्रपात ले लेते हैं, लेकिन 6 महीने से अधिक समय तक उसे संभाल नहीं पाते हैं, कारण है अधूरा ज्ञान, सबसे महत्वपूर्ण बात आपको बता दें कि कर्ण पिशाचिनी की सफलता, आम आदमी।
यह आम आदमी के लिए नहीं है और आम आदमी को कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि भी नहीं करनी चाहिए, जो इसे प्राप्त करता है वह हमेशा परिवार से अलग रहता है और ध्यान में जरा सी भी चूक हो जाए तो कर्ण पिशाचिनी उसकी सारी कुछ ले लेती है, जिसके कारण उसके परिवार में अकाल मृत्यु भी हो जाती है।
ऐसा लगता है कि परिवार का नाश हो जाता है, इसलिए जो वामपंथी साधक तांत्रिक या अघोरी है, वही कर्ण पिशाचिनी को प्राप्त कर सकता है, परिवार में रहकर कभी प्राप्त नहीं हो सकता, अगर वह भी चली जाती है, तो परिवार का विनाश हो जाता है। लोगों को इसे हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
मित्रों, हिन्दू धर्म में मरने वाले लोगों को गति और कर्म के अनुसार बांटा जाता है। पिशाच क्या है? लेकिन पिशाच योनि में चले जाते हैं। पिशाच योनि में जाने का सबसे महत्वपूर्ण कारण अकाल मृत्यु है। वहां जानवरों द्वारा आकस्मिक मृत्यु या यूं कहें कि अधूरी इच्छाओं से दुर्घटनावश मरने वाले लोग पिशाच पिशाच बन जाते हैं। यही कारण है कि पिशाच योनि में भी जाते हैं दोस्त पिशाच एक नकारात्मक ऊर्जा पर अपना प्रभाव डालते हैं जिस पर पिशाच सवारी करता है
कर्ण पिशाचिनी: परिवार की रक्षा या नाश?
कर्ण पिशाचिनी एक ऐसी सिद्धि है जो आम आदमी के लिए नहीं है और उसे प्राप्त करने की सलाह नहीं दी जाती है। जो भी इसे प्राप्त करता है, वह हमेशा अपने परिवार से अलग रहता है और ध्यान में छोटी सी भूल होने पर भी कर्ण पिशाचिनी उसकी सारी आवाज सुन लेती है, जिसके परिणाम स्वरूप उसके परिवार के सदस्यों की मौत हो सकती है।
परिवार का पूर्ण विनाश हो जाता है। इसलिए कर्ण पिशाचिनी को प्राप्त करने के लिए केवल वामपंथी साधक, तांत्रिक या अघोरी ही सक्षम होते हैं, जो परिवार से अलग रहकर इसे प्राप्त कर सकते हैं। इसे परिवार में रहते हुए प्राप्त करना संभव नहीं है। यदि कर्ण पिशाचिनी भी इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति परिवार से अलग हो जाता है, तो उसके परिवार का नाश हो जाता है।
इसलिए हमें इसे हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मित्रों, हिन्दू धर्म में मरने वाले व्यक्तियों को उनके कर्मों और गति के आधार पर फल दिया जाता है। पिशाच शब्द का अर्थ क्या है? यहां परिवार में ही पिशाच योनि में प्रवेश होते हैं।
पिशाच योनि में प्रवेश का सबसे महत्वपूर्ण कारण अकाल मृत्यु होती है। यहां जानवरों द्वारा अकस्मात मृत्यु या अपूर्ण इच्छाओं के परिणाम स्वरूप मरने वाले व्यक्तियों को पिशाच बनना पड़ता है। इसलिए पिशाच योनि में प्रवेश होता है। दोस्तों, पिशाच एक नकारात्मक ऊर्जा पर अपना प्रभाव डालते हैं, जिस पर पिशाच सवारी करता है।
परिवार के रिश्तों के बारे में आपको अवगत करते रहते हैं। यदि किसी प्रयासकर्ता ने इस तत्व को प्राप्त कर लिया हो और किसी अनजान व्यक्ति के सामने चला जाए, तो कर्ण पिशाचिनी उसकी सभी जानकारी को कुछ ही मिनटों में साधक के कानों में बता देती है। खाने के बाद वह यह पता लगा सकती है कि उसने क्या खाया है, उसके पास कितना धन है, रास्ते में कितना खर्च हुआ है, उसके परिवार में कौन-कौन हैं, उसके सभी रिश्तेदारों के नाम, और वहाँ तक कि उसके पूरे परिवार के सदस्यों के नाम भी कर्ण पिशाचिनी अपने साधक को बता सकती है कि किसी भी समय परिवार के सभी लोगों की जानकारी उपलब्ध हो।
यह स्थिति में समाज एक-दूसरे के बारे में अच्छी और बुरी बातें करता रहता है। इसका साधक पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और वह पागल हो सकता है। मित्रों, यह पिशाच शीघ्र ही प्राप्त हो सकता है, लेकिन साधक की यह उम्मीद रखी जाती है कि वह इसमें पूरी आस्था और विश्वास के साथ रहें। पिशाच के साथ-साथ इस संसार से इन पिशाच साधकों का मुक्ति भी संभव नहीं है, जब तक कि विपदा आने से पहले।
“कर्ण पिशाच साधना”
कर्ण पिशाच साधना के लिए आपको चौघड़िया मुहूर्त में ध्यान देना चाहिए। इस साधना के दौरान आपको एक पीतल या कांसे की थाली में सिंदूर के साथ अपनी उंगली से एक त्रिशूल बनाना होगा। इसके बाद, आपको शुद्ध गाय और तेल के दो दीपक जलाने होंगे, और सामान्य तरीके से पूजा करनी होगी। इसके बाद, आपको मंत्र का 11 बार जाप करना होगा।
कर्ण पिशाच साधना करने से पहले कुछ ज्ञान अवश्य प्राप्त किया जा सकता है। इस साधना को करने के लिए ध्यान देने वाले व्यक्ति को ध्यान देना चाहिए कि कुछ छोटी सी भूल हो जाए तो कर्ण पिशाचिनी क्रोधित होकर दंड दे सकती है। जो लोग कर्ण पिशाच की पूजा करते हैं, वे पिशाच दुनिया से चले जाते हैं। ऐसे लोगों को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। पिशाचिनी अपने भेष को बदलकर साधक के पास ही रहती है।
मोक्ष प्राप्त करने के लिए केवल मानव जीवन ही संभव है। मानव योनि को दुर्लभ माना जाता है, क्योंकि यह मानव शरीर मिलना महान भाग्य है। भगवान भी मानव शरीर के लिए तृष्णा करते हैं। तृष्णा को पूरा करने के लिए, आपको नीच योनियों की पूजा करनी चाहिए। ध्यान देना चाहिए कि पिशाच को भी मुक्त होने की इच्छा होती है, लेकिन उसके पास मनुष्य का शरीर नहीं होता है, और न ही कोई अन्य साधन होता है। वह आपकी सभी इच्छाओं को पूरा कर सकता है।
इस प्रकार, कर्ण पिशाच साधना एक प्रभावशाली तकनीक है जो मनुष्य को उच्चतम स्तर की मुक्ति तक पहुंचा सकती है। यह साधना आपके जीवन को सकारात्मकता और समृद्धि के नए मार्गों की ओर ले जा सकती है। इसलिए, इसे यथाशक्ति और श्रद्धा से अपनाएं और इसके लाभों का आनंद लें।
त्रिकालदर्शी बनने की मातंगी साधना Matangi sadhna ph.85280 57364
Matangi sadhna त्रिकालदर्शी बनने की मातंगी साधना हमारे गुरु मंत्र साधना में आपका स्वागत है! हर हर महादेव जय श्री महाकाल! आपने कई मंत्रों को देखा, सुना और पढ़ा होगा, लेकिन आज हम आपको एक बहुत ही विशेष मंत्र के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। यह मंत्र हमें एक साधक से मिला है और इसकी शक्ति अद्भुत है।
हमारे वेबसाइट पर आपको कई सारे मंत्र मिलेंगे, जिन्हें अभी तक आपने देखा नहीं होगा। इसलिए कृपया उन्हें भी जरूर सुनें और उन्हें अपने मित्रों के साथ शेयर करें। हमारे वेबसाइट पर आपको सभी प्रकार के मंत्र और तरीकों के बहुत सारे पोस्ट मिलेंगे।
आज हम एक विशेष और प्राचीन मंत्र के बारे में बात करेंगे, जिसे सनातन तंत्र में सिद्ध किया जाता है। इस मंत्र का सिद्ध करने से आपको लाभ प्राप्त हो सकता है। इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए आपको शिव को अपना गुरु मानना चाहिए।
मातंगी Matangi साधना कैसे करें
गुरु से दीक्षा ले कर मातंगी साधना करे ध्यान दें, शिव साधना को शुरू करने से पहले आपको एक योग्य गुरु की गाइडेंस लेनी चाहिए और उनके मार्गदर्शन में किसी के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से आपको कोई चिंता नहीं होगी।
देवी मातंगी Matangi कौन थी?
देवी मातंगी कौन थी दस महाविद्या में से एक महाविद्या है जो सम्मोहन वशीकरण की विद्या है
मातंगी Matangi की पूजा किस दिन करनी है?
मातंगी Matangi की पूजा किसी भी दिन से शुरू कर सकते है इस में दिन का किसी भी दिन किया जा सकता है किया जा सकता नहीं है
मातंगी Matangi मंत्र से क्या लाभ है?
मातंगी साधना Matangi sadhna से आप किसी को भी सम्मोहन कर सकते है यह सम्मोहन की महा शक्ति है दूसरा इस का साधक भूत भविष्य वर्तमान का अच्छा जानकर होता है
सर्व ज्ञानी बनने का मंत्र मातंगी साधना Matangi sadhna ph.85280 57364
आपको कुछ दिनों तक शिव साधना करनी चाहिए और उसे किसी भी क्षेत्र में इस मंत्र का आचरण करना चाहिए। इस मंत्र की सिद्धि आपको व्यापार, धन, स्वास्थ्य या किसी अन्य मांग में मदद कर सकती है।
इस मंत्र का नियमित जाप करने से आपको आत्मसंयम, मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति मिल सकती है। इसके अलावा, शिव साधना से आपको शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है। यह मंत्र आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है और आपको सफलता की ओर ले जा सकता है।
अगर आप इस मंत्र की आचरणा करना चाहते हैं, तो पहले इसे अच्छी तरह से सीखें और इसकी विधि का पालन करें। ध्यान दें कि इस मंत्र को सही ढंग से चंद्रवम्दळ समय पर जपना चाहिए। आपको इस मंत्र का नियमित जाप करते हुए शिव साधना में समर्पित रहना चाहिए और उम्र भर के लिए इसका लाभ प्राप्त करने की कोशिश करें।
ध्यान दें, शिव साधना को शुरूकरने से पहले आपको एक योग्य गुरु की गाइडेंस लेनी चाहिए और उनके मार्गदर्शन में
किसी के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से आपको कोई चिंता नहीं होगी। हालांकि, अगर किसी के साथ कोई घटना होती है, तो इसमें हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। लेकिन इसके बावजूद, मैं आपको एक मंत्र बता रहा हूँ, जिसके अनुसार कोई भी समस्या उत्पन्न नहीं होगी। इसके लिए आपको अपने गुरु को शिव मान लेना चाहिए।
आपको कुछ दिन तक इसका जाप करना चाहिए। जब भी इनकी साधना करें, आपको पहले “ओम नमः शिवाय” का मंत्र जपना चाहिए। फिर आप इस साधना को शुरू कर सकते हैं। इसके लिए आपको पंच उपचार का पूजन करना चाहिए और एक छोटा सा स्थान बनाना चाहिए, जहां आप जप कर सकते हैं।
इसके लिए नियमित रूप से स्थान की पूजा करें। यदि ऐसा नहीं हो सकता है, तो कोई बात नहीं। जब आपकी साधना सिद्ध हो जाएगी, तब आप वहां से स्थान हटा सकते हैं। आप अपनी प्राथना और पूजा को अपने हिसाब से कर सकते हैं।
अगर किसी के साथ किसी भी प्रकार का नुकसान होता है, तो आपको कोई चिंता नहीं होगी। यद्यपि, यदि किसी के साथ कोई घटना घटित होती है, तो उसमें हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। फिर भी, मैं आपको एक मंत्र दे रहा हूँ जिसके अनुसार कोई भी समस्या उत्पन्न नहीं होगी। आपको अपने गुरु को भगवान शिव के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
आपको कुछ दिनों तक इसका जाप करना चाहिए। जब भी आप इनकी साधना करें, आपको पहले से “ओम नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके बाद आप इस साधना को आरंभ कर सकते हैं। इसके लिए आपको पंच उपचार की पूजा करनी चाहिए और एक छोटे से स्थान को बनाना चाहिए जहां आप जप कर सकते हैं।
नियमित रूप से उस स्थान की पूजा करें। यदि ऐसा संभव नहीं है, तो यह बात नहीं। जब आपकी साधना सिद्ध हो जाएगी, तब आप वहां से स्थान हटा सकते हैं। आप अपनी प्रार्थना और पूजा को अपनी पसंद के अनुसार कर सकते हैं।
अपने मन में एक तंत्र के प्रति उत्सुक होने की इच्छा है, अपने मन को जागृत करने की इच्छा है और शक्ति को अपने मस्तिष्क में स्थापित करने की इच्छा है। मातंगी की साधना करने के लिए, आप किसी भी स्थान से माता की तस्वीर यहां से प्राप्त कर सकते हैं और आप उनकी पूजा पाठ भी कर सकते हैं।
यह आपको बाजार में आसानी से मिलेगा, चाहे आप यूट्यूब पर खोजें या गूगल पर सर्च करें, आपको मातंगी की तस्वीर मिल जाएगी। आप तस्वीर को प्रिंट करके अपने पूजा स्थल पर रख सकते हैं, इसमें कोई दिक्कत नहीं है। जब भी आपकी साधना पूरी होती है, आप उसे किसी नदी, दरिया, तालाब या किसी अन्य जलस्रोत में छोड़ सकते हैं।
आपको उसे सामान्य ढंग से विसर्जित करना है। आप उसके ऊपर सूरज की रोशनी, अगरबत्ती, कुमकुम आदि चीजें रख सकते हैं। विसर्जन के बाद आपको किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। मात्रा जाप के लिए आपको इस मंत्र का 11 माला का जप करना होगा, आप इससे अधिक माला का जप भी कर सकते हैं।
तो आपको इसमें यह मंत्र है जो आपको बता देते हैं मंत्र सुन लीजिएगा आप आपको स्क्रीन पर भी यह दिख जाएगा मंत्र का आपको जप करना आपको स्क्रीन पर दिख जाएगा इसमें कोई ज्यादा टेंशन की बात नहीं है इस मंत्र को आप आराम से कागज पर likhiyega ठीक है
मंत्र मातंगी साधना विधि Matangi mantra sadhna vidhi
सामन्य सामग्री है जो आपको सामान्य सी होती है आपको सबको पता ही है उसी के अनुसार आपको कम से कम पंच उपसर्ग मतलब पंच प्रकार की कुछ सामग्री रखनी है उससे आपको पूजा करनी है जैसे धूप दीप कुमकुम ये सारे होते सावन वगैरा फूल ऐसे पंच सामग्री से उनकी पूजा करनी वही सामान्य तौर पर आपको समझा रहा हूं ठीक है और उनकी साधना शुरू करने आपको गुरु मंत्र के तौर पर आप शिव को गुरु मान सकते उनकी 1 माला जप कीजिएगा
आप संकल्प ले सकते हो उसी शिव मंत्र से और फिर निमंत्रण से जो मैंने आपको बताया इस मंत्र से भी आप संकल्प तीन बार हाथ में पानी लेकर संकल्प लेकर करे मैं इतने रोजाना इतनी माला जब करूंगा आप सिद्धि के लिए आसन दीजिएगा फिर पानी छोड़िएगा और साधना शुरू कर दीजिएगा ये होता है सामान्य क्रिया का इसके बाद में आपको जो शक्तियां हैं। वो जैसे-जैसे आप जप करते-करते आगे जाते रहेंगे और शक्तियां आपसे जुड़ती रहेगी अ
गर मन लीजिए आप इतनी लंबी साधना ही नहीं कर सकते तो किसी भी दिन से शुरू कीजिएगा और आपकी जब भी सवाल आप कम से कम जब शुरू हो जाता है उसके बाद में आपको धीरे-धीरे कुछ खाओ मैं किसी प्रकार से कुछ ना कुछ छोटी सी साधना दी मैंने आपको बता दी पोस्ट अच्छा लगे लाइक शेयर और सब्सक्राइब जरूर करना हर-हर महादेव
तीसरा नेत्र त्रिकाल ज्ञान रहस्य – दिव्य दृष्टि प्राप्त करने का आसान तरीका An easy way to attain divine sight ph.85280 57364
तीसरा नेत्र त्रिकाल ज्ञान रहस्य – दिव्य दृष्टि प्राप्त करने का आसान तरीका An easy way to attain divine sight ph.85280 57364
तीसरा नेत्र त्रिकाल ज्ञान रहस्य – दिव्य दृष्टि प्राप्त करने का आसान तरीका ph.85280 57364 आपने काफी लोगों को ऐसे देखा होगा जो चेहरा देख कर ही केवल भूत भविष्य और वर्तमान बता देते हैं कि जैसे कि आपके पिता का क्या नाम है. आपके साथ क्या हुआ था क्या होने वाला है।
आपका घर कहां पर है क्या आप जानना चाहते हैं कि आपके मन में सवाल चल रहा है ऐसी चीजें आपने काफी बार सुनी होंगी और शायद भी देखी भी होंगी।
तो आपको बता दें कि इसे त्रिकाल दर्शन सिद्ध कहा जाता है। यानि कि जिस व्यक्ति के पास त्रिकाल दर्शन से अधिक होती है व्यक्ति भूत भविष्य और वर्तमान का पता लगा सकता है।
जैसे कि अगर यह सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं तो इस सिद्धि को प्राप्त करने से जिस भी चेहरे को आप देखेंगे उस व्यक्ति की आंखों में देखकर केवल आप यह जान सकते हैं ,कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है और किन चीजों को वह जानना चाहता है किन परेशानियों का उसमें सामना किया है।
यहां तक कि त्रिकाल दर्शन सिद्धि से आप यह भी उसकी आंखों से खुद ही पूछ सकते हैं ,कि उसके पिता तो क्या नाम है उसकी माता का क्या नाम है। और उसका घर कहां पर है काफी लोग तो आपने खुद भी ऐसी देखेंगे कि यह भी बताते हैं कि आपकी जेब में क्या रखा है और आप कब पहुंचेंगे और कितने बजे पहुंचेंगे किस कारण की वजह से यहां पर आए हैं। तो यह सभी जितनी भी चीजें होती हैं। यह केवल त्रिकाल दर्शन सिद्ध से प्राप्त होती है। तो आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस प्रकार त्रिकाल दर्शन सिद्धि प्राप्त की जाती है .
और किस प्रकार छोटे-छोटे त्रिकाल दर्शन सिद्धि के जो प्रयोग होते हैं उनका इस्तेमाल करते हुए भी आप अपने जीवन में अपने भूत भविष्य और वर्तमान को जान सकते हैं वैसे एक बात और आपको बता दें कि यह जो सिद्ध होती है
यह काफी सारे लोगों में ऑटोमेटिक होती है यानि कि आपने ऐसे लोग भी अवश्य ही देखे होंगे जो यह कहते हैं कि ऐसा होने वाला था यह हमें पहले ही पता था कि हमने सपने में देख लिया था तो ऐसे लोगों के पास ऑटोमेटिक ही त्रिकाल दर्शन सिद्ध होती है लेकिन इसकी इस्तेमाल कैसे करना है इन संकेतों को किस प्रकार समझना है
इस बारे में संपूर्ण ज्ञान न हो पाने के कारण वह इस ऑटोमेटिक विधायक का लाभ नहीं उठा पाते हैं बल्कि काफी लोगों में तो ऐसी भी शक्ति ऑटोमेटिक होती है कि अपने पितरों से अपनी कुल देवी से अपने कुलदेवता उसे बात भी कर पाते हैं यह भी त्रिकाल दर्शन सिद्धि के ही अंतर्गत आता है तो आपको बता दें कि किस प्रकार यह प्रयोग कर सकते हैं और किन-किन चीजों को आपको ध्यान रखना है
कौन-कौन से संकेत आपको फॉलो करने हैं लेकिन उससे पहले भगवान शिव को नमस्कार आप अवश्य कर लें और कमेंट में ॐ नमः शिवाय लिखते और post को लाइक जरूर करें जिससे इसी प्रकार की खास post आप कुछ समय पर और सबसे पहले मिला करें तो दोस्तों आपको बता दे कि वैसे तो मंत्र साधनाओं में बहुत सारी ऐसी साधनाएं होती हैं जिनके माध्यम से त्रिकाल दर्शन सिद्धि प्राप्त हो जाती है
त्रिकाल का मतलब है यानि कि तीनों काल को देख कि भूत-भविष्य-वर्तमान तीन काल होते हैं जिन्हें व्यक्ति आसानी से भांप लेता है देख लेता है। देखने का मतलब यह नहीं होता है ,कि उसने आंखें बंद कर ली और उसे टीवी की तरह बिल्कुल अंदर साफ-साफ दिखाई देने लग जाता है बल्कि ऐसा होता है। कि जैसे ही वे आंखें बंद करता है कोई ना कोई शक्ति उसे सब कुछ बिल्कुल पड़ती चली जाती है और बस फिर वही चीजें बता देता है।
आपको यह भी बता दें कि जो तीसरा नेत्र होता है वह हर एक इंसान का टीवी की तरह कार्य करता है। जैसे आप खोलकर देखते हैं बिल्कुल उसी प्रकार से तीसरा नेत्र भी पूरी तरह से सक्षम होता है ,कि अंदर टीवी की तरह देख सके आपने खुद भी इस चीज को काफी बार रियलाइज़ खुद किया होगा कि जब आप आंखें बंद करते हैं।
तो लोगों के चेहरे आपको बिल्कुल साफ नजर आते हैं या फिर कुछ चीजें आपको ऐसी नजर आती हैं। जो बिल्कुल क्लियर टीवी की तरह पिक्चर की तरह दिखाई देती हैं जब की आंखें बंद करने के बाद बिलकुल अंधेरा होना चाहिए।
लेकिन काफी लोगों के पास ऐसी सिद्धि ऐसी शक्ति ऑटोमेटिक होती है कि उन्हें टीवी की तरह अंदर ही अंदर दिखाई देने लग जाता है। जबकि अंदर कोई भी आंख नहीं होती है तो यह सारा कमाल तीसरे नेत्र का थर्ड आई का होता है ,जो कि हर एक इंसान के अंदर मौजूद रहती है काफी लोगों की थोड़ी-बहुत जागृत रहती है काफी लोगों की बिल्कुल भी जागृत नहीं रहती है।
जिन लोगों की बिल्कुल भी जागृत नहीं रहती है उन्हें आंखें बंद करके घोर अंधेरा काला अंधेरा ही दिखाई देता है। क्योंकि उनकी अंदर की आंखें बिल्कुल बंद होती हैं इसीलिए अगर त्राटक तक का प्रयोग किया जाए त्राटक प्रैक्टिस किया जाए जैसा कि हमने पिछले में बताया है ,कि दीपक जलाकर अगर उसे एक टुक लगाकर देखा जाए और फिर आंखें बंद कर कर उस प्रकाश को पकड़ा जाए ,तो इससे भी तीसरा नेत्र जागृत हो जाता है या फिर किसी भी चीज पर को उजाले की चीज है जैसे सूर्य है चंद्रमा है। आप इस पर थोड़ा-थोड़ा तरह ठप करके।
अपने प्रैक्टिस को बढ़ाकर अपने त्रिनेत्र को जागृत कर सकते हैं त्रिकाल दर्शन के लिए यह जाए होना बेहद आवश्यक होता है। इसी लिए भगवान शिव के जो साधक होते हैं उनका तीसरा नेत्र अपने आप ही जागृत होता है भगवान शिव के जो परम शुद्ध होते हैं उनके पास अपने आप यह त्रिकाल दर्शन सिद्धि होती है।
जिनको सिर्फ चेहरा देख कर ही वह भूत भविष्य वर्तमान पता लगा लेते हैं बल्कि बात करते-करते भी बाहर चीजों को हर बातों को भांप लेते हैं समझ जाते हैं और जान जाते हैं त्रिनेत्र जिस भी व्यक्ति का जागृत होता है। तो ऐसे व्यक्ति की जो सेंस होते हैं समझने की शक्ति होती है। वह आम इंसान से काफी ज्यादा बड़ी होती है काफी ज्यादा विकसित होती है।
लेकिन आप यह बात ध्यान रखें कि त्रिकाल दर्शन साधना करने के लिए इसके कुछ नियम मानना बेहद आवश्यक है जो आने वाले पोस्ट में हम इस साधना की विधि भी आपको बताएंगे।
और इसकी संपूर्ण नियमों को भी आपको जरूर ही समझेंगे कि किस प्रकार यह सारी चीजें आपको करनी है। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि यह चीज आप में थोड़ी डेवलप हो जाए और खुद प्रैक्टिस करना चाहते हैं ,तो आपको तरह तक प्रैक्टिस मैं बस इसी से आपको भूत भविष्य वर्तमान की थोड़ी-बहुत झलक अपने आप ही दिखाई देने लग जाएगी आपको केवल इतना करना है कि एक दीपक जलाकर रोज शाम के समय जब सूरज ढल जाता है।
दीपक देखने का विशेष तरीका और उसके प्रभाव
आपको दीपक की लौ को देखने के लिए निचले दिए गए तरीके का पालन करना है। इसके माध्यम से, आप उस दीपक के प्रकाश को अपने अंदर देखने का अनुभव कर सकते हैं। यह तकनीक तीसरे नेत्र के माध्यम से रिकॉर्ड होती है और इसे आपको अभ्यास के लिए 5 से 10 मिनट तक करना चाहिए।
इसके बाद, जब आप अपनी आंखें बंद करेंगे, तो आपके सामने पहले जो अंधकार दिखता था, उसे एक दिव्य प्रकाश बदल जाएगा। इसके बाद, आपको उस दिव्य प्रकाश को लगातार देखते रहना है। जैसे-जैसे यह प्रकाश बढ़ता है, वह भी गोल होने लगता है।
इसका कारण है कि बहुत कम लोगों की शक्ति इसे पकड़ सकती है, और जब यह उधर जाता है, तो आपको फिर से दीपक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस तरीके का अनुसरण करने से व्यक्ति को त्रिकाल दर्शन की प्राप्ति होती है और इसे भाग्यशाली माना जाता है।
इस तकनीक का अनुसरण करने से आपको दीपक की लौ को अपने अंदर देखने का अनुभव होगा और आपके मन में शांति की अनुभूति होगी।
इस विशेष ध्यान विधि को नियमित रूप से अभ्यास करने से आप अपनी ध्यान क्षमता को सुधार सकते हैं और अपने जीवन में स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं।
इसे अपने दैनिक जीवन में एक ध्यान अभ्यास के रूप में शामिल करें और अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करें। इस विशेष तकनीक का अभ्यास करने से आपका मानसिक तंत्र स्वस्थ रहेगा और आपको शांति और सुख की अनुभूति होगी।
इस प्रकार, दीपक देखने की विशेष तकनीक से आपको आंतरिक शक्ति और मानसिक स्थिरता प्राप्त हो सकती है। इस तकनीक का अभ्यास नियमित रूप से करें और इसे अपने जीवन में शामिल करें ताकि आप ध्यान की गहराई में जा सकें और आंतरिक शांति का आनंद ले सकें। यह विशेष तकनीक आपके जीवन को प्रकाशमय बना सकती है और आपको सकारात्मकता की ओर ले जा सकती है।
भगवान शिव ने हर एक इंसान को यह शक्ति देकर भेजा होता है लेकिन अगर खास साधना कर ली जाए तो इससे इस विद्या की प्राप्ति संपूर्ण रूप से हो जाती है तो अगर आप इस प्रकार से रोज त्राटक एक दीपक पर करते हैं भगवान शिव की फोटो पर एक दीपक अवश्य जलाना है क्योंकि भगवान शिव को प्रसन्न करना उनकी कृपा प्राप्त करना बेहद आवश्यक इस साधना के लिए जरूरी होता है तो यह सब चीजें आपको करनी है
उसके बाद आपने अपने आप ही भूत-भविष्य-वर्तमान देखने की शक्ति आने लग जाएगी आप खुद ही सभी चीजों को समझने लग जाएंगे और जो चीजें होने वाली होंगी इनके संकेत आपको खुद ही पता लगने लग जाएंगे अब यह किसी भी प्रकार से हो सकता है
जैसे कि सपने के माध्यम से या फिर आंखें खुली में भी आपको अपने आप ही आवाज होने लग जाएगा कि यह ऐसा होने वाला है तो बस मैं इसी को और अधिक एडवांस लेवल पर करते हैं तो इससे क्लियर दिखता है लेकिन इसकी झलक आपको थोड़ी-थोड़ी अवश्य ही मिलने लग जाएगी
अगर आप चाहते हैं कि इस शक्ति का इस्तेमाल किसी सवाल को जानने के लिए आप करना चाहते हैं तो वह भी आप कर सकते हैं आपको केवल इतना करना है कि बरगद का पत्ता तोड़ कर लाना है बरगद के पत्ते पर आपको धतूरे के फल के रस से अपने सवालों को गूलर की लकड़ी से लिखना है और इस पत्ते को फोल्ड करके अपने तकिए के नीचे रख कर सो जाना है
उसी रात उसी सवाल का जवाब आपको निश्चित रूप से एक स्वप्न के माध्यम से सब कुछ पता चल जाएगा इसी शक्ति को इस विधि को आप किसी भी मृत व्यक्ति से बात करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं चाहे पित्त रहो या कोई भी यूनिक का कोई भी व्यक्ति हो अब किसी से भी इस शक्ति का इस्तेमाल करते हुए बात कर सकते हैं
यह जितने भी जानकारी हमने आपको बताई है यह तंत्र के अंतर्गत आती है जो कि त्रिकाल दर्शन के बारे में होती है काफी लोगों ने हमसे इस पूछा है कि भूत भविष्य और वर्तमान देखने के लिए कृपया आप इस पर थोड़ा प्रकाश डालें तो इस पोस्ट में हमने आपको बताया है कि
किस प्रकार यह सभी चीजे कार्य करते हैं किस प्रकार आप अपने अंदर भी बड़ी आसानी से इसे विकसित कर सकते हैं और थोड़ी बहुत झलक खुद भी अवश्य देखकर प्राप्त कर सकते हैं और जैसे ही आप इस प्रयोग को करना शुरू करेंगे तो हो सकता है कि आपको अगले दिन से ही आवास होने लगे और यह भी हो सकता है कि आपको कम से कम एक महीना लग जाए लेकिन आपको बिल्कुल भी रोकना नहीं है
जब हम विज्ञान की बात करते हैं, तो इसका एक विशेष महत्वपूर्ण संबंध हमारे त्रिकाल दर्शन से है। यह विज्ञान की एक पूर्णरूप से प्रभावी विधि है जिससे हम अपनी आत्मा की उन्नति कर सकते हैं। जब हम इसे सही ढंग से अपनाते हैं, तो हमें उस प्रभाव को प्राप्त होता है जो हम चाहते हैं। आइए हम इस विषय पर गहराई से बात करें।
त्रिकाल दर्शन एक अद्वैत साधना है, जिसमें हम अपने तीनों नेत्रों का प्रयोग करते हैं। यदि हम एक दीपक जलाकर और त्राटक करके अपने तीसरे नेत्र को जागृत करते हैं, तो हमें चमत्कारिक परिणाम महसूस होते हैं। रात्रि को स्वप्न में, यदि हम पहले से ही अध्यात्मिक हैं, तो हमें अपने अन्दर की गहराइयों का अनुभव होता है।
तीसरे नेत्र की महत्वता इसलिए होती है क्योंकि समय के साथ, तीसरे नेत्र के आसपास एक पत्थर की परत जमा होती है। यह परत तीसरे नेत्र को पूरी तरह से अवरुद्ध कर देती है, जिसके कारण हमें कुछ दिखाई नहीं देता। हमारी याददाश्त कमजोर होती है और हम अपने वर्तमान को भूलने लगते हैं।
हालांकि, यदि हम नियमित रूप से प्रैक्टिस करते हैं, तो हमारी मानसिक शक्ति वृद्धि करती है। रोजाना की प्रैक्टिस से हमारा तीसरा नेत्र पूर्णतया सक्रिय हो जाता है और हमें आकर्षित करने की क्षमता प्राप्त होती है।
तीसरे नेत्र को जागृत करना सबसे आसान है, और यह सभी चक्रों में विस्तार से बताया जाता है। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए, हम आपको आने वाले lekh में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। यह आपकी साधना को सही ढंग से करने में मदद करेगा।
हालांकि, आपको यह भी ध्यान देना चाहिए कि त्रिकाल दर्शन का प्रयोग करना सबसे अच्छा है जब आप इसके बारे में समझ जाते हैं। अपनी ज्ञानवर्धकता के लिए, आपको लेख को एक बार और देखकर पढ़ना चाहिए। इस रूप में, आप अपने अंदर के त्रिकाल दर्शन की शक्तियों को जाग्रत कर सकेंगे। हम आशा करते हैं कि आपको हमारी जानकारी पसंद आई होगी। ओम नमः शिवाय। हर हर महादेव।
Sapneshwari sadhna – स्वप्नेश्वरी त्रिकाल दर्शन साधना Ph.85280 57364
Sapneshwari sadhna – स्वप्नेश्वरी त्रिकाल दर्शन साधना Ph.85280 57364 यह साधना प्रत्येक मानव के लिए आवश्यक है, जो साधक ऊंचे स्तर की साधना नहीं कर पाते या जिन्हें इतना अवकाश नहीं मिलता, उन्हें स्वप्नेश्वरी साधना Sapneshwari sadhna सम्पन्न करनी चाहिए जिससे कि वे जीवन में स्वयं का तथा दूसरे लोगों का कल्याण कर सकें। इस साधना से आप भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी हासिल कर सकते है हर सवाल का जवाब आपको सपने के माध्यम हासिल कर सकते है।
जीवन की अनेक समस्याएं होती है. अनेक बाधाएं होती हैं, चाहे वह प्रेम-प्रसंग का विषय हो अथवा ऋण से मुक्ति का. जिनका स्पष्ट रूप से उल्लेख भी नहीं किया जा सकता और जिनका समाधान प्राप्त करना भी आवश्यक होता है।
और ऐसी ही स्थितियों में बत जाती है सहायक ऐसी कोई विशिष्ट साधना जो त्वरित फलप्रद हो स्वप्नेश्वरी साधना Sapneshwari sadhna उसी त्वरित फलप्रद श्रेणी की साधना है। प्रयोग जब भी कोई समस्या आपके सामने हो और उसका हल नहीं मिल रहा हो, तो इस प्रकार मन्त्र जप किया हुआ साधक उस समस्या को कागज पर लिख ले और रात्रि को सिरहाने रख कर सो जाय, रात्रि को स्वप्नेश्वरी Sapneshwariदेवी स्वप्न में ही उस समस्या का हल स्पष्ट रूप से बता देती हैं,
जिससे कि साधक को निर्णय करने में आसानी होती है। साधक चाहे तो किसी भी व्यक्ति की समस्या इसी प्रकार से हल कर सकता है, उदाहरण के लिए व्यक्ति का प्रमोशन किस तारीख को होगा या मैं अमुक व्यक्ति के साथ लेन-देन कर रहा हूँ, यह ठीक रहेगा या नहीं, ऐसे प्रश्न स्पष्ट रूप से कागज पर लिख लेने चाहिए, और अपने सिरहाने रात्रि को सोते समय देख लेने चाहिये, तत्पश्चात् स्वप्नेश्वरी देवी Sapneshwari को मन ही मन प्रणाम कर सो जाना चाहिए, ऐसा करने पर उसे रात्रि को ही स्वप्न में उसका प्रामाणिक हल मिल जाता है। वस्तुतः यह महत्वपूर्ण साधना है, और साधक इसके माध्यम से साधक हजारों-लाखों लोगों का कल्याण कर सकता है।
इस साधना के लिए मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त स्वप्नेश्वरी यंत्र स्वप्नेश्वरी देवी का चित्र आवश्यक है, तथा यह यंत्र तांबे के पतरे पर या चांदी के पतरे पर बना हुआ लेना चाहिए तथा उस चित्र को मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त चैतन्य कर देना चाहिए, जिससे कि उसका प्रभाव मिल सके, यदि आपके शहर में योग्य पण्डित हो, तो प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है,
स्वप्नेश्वरी देवी के चित्र को फ्रेम में मढ़वा कर रख साधना प्रारम्भ करने से पूर्व चावल, कुकुम या केशर, जल का लोटा, दीपक, अगरबत्ती पहले से ही तैयार करके रख देनी चाहिए। यह साधना सोमवार से प्रारम्भ की जाती है।
यह मात्र पांच दिन की साधना है। इसमें नित्य 101 मालाएं फेरनी आवश्यक है, इस साधना में हकीक का ही प्रयोग किया जाता है, अन्य मालाएं वर्जित हैं। यह साधना दिन को या रात्रि को भी की जा सकती है। साधक चाहे तो पचास मालाएं दिन को तथा इक्यावन मालाएं रात्रि को भी कर सकता हैं. इस प्रकार दिन और रात में दो बार में पूर्ण मंत्र जप हो जाना चाहिए।
माला सोमवार को साधक स्नान कर धोती पहन कर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जायें, सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला रेशमी वस्त्र बिछा दें और उस पर स्वप्नेश्वरी देवी का यंत्र व स्वप्नेश्वरी देवी का चित्र स्थापित कर दें, इसके बाद अलग बर्तन में स्वप्नेश्वरी देवी के यंत्र को जल से, फिर कच्चे दूध से तथा फिर जल से धोकर पोंछकर बाजोट पर रखे किसी पात्र में यंत्र को स्थापित कर दें, यह पात्र ताम्बे का स्टील या चांदी का हो सकता है, फिर कुकुम या केशर से तिलक करें सामने अगरबत्ती व दीपक लगायें दूध का बना प्रसाद चढ़ायें और
फिर नीचे लिखे मंत्र की एक सौ एक मालाएँ नित्य जये मंत्र
इस प्रकार नित्य एक सौ एक माला मंत्र जप करें. इन पांच दिनों में साधक जमीन पर सोयं, एक समय भोजन करें। पांच दिन तक मंत्र जप के बाद छठे दिन इसी मंत्र की मात्र शुद्ध घृत से एक हजार एक आहुतिया दें, फिर पांच कुमारी कन्याओं को भोजन करायें और उन्हें यथोचित यस्त्र दान आदि देकर सन्तुष्ट करें, इस प्रकार करने पर साधना सम्पन्न मानी जाती है। ‘इस का इस्तमाल कैसे करना है वो लेख में पहले ही बता दिया गया है