प्राचीन चमत्कारी ब्रह्मास्त्र माता बगलामुखी साधना अनुष्ठान
प्राचीन चमत्कारी ब्रह्मास्त्र माता बगलामुखी साधना अनुष्ठान Ph. 85280 57364
माँ बगलामुखी की ब्रह्मास्त्र साधना लड़ाई-झगड़ा, शत्रुओं से परेशानी, मुकदमेबाजी और न्यायालय आदि में पूर्ण विजय पाने के लिये बगलामुखी महाविद्या की पूजा-अर्चना करने, उनके अनुष्ठान सम्पन्न कराने का प्रचलन अनंतकाल से चला आ रहा है। प्राचीनकाल से ही नहीं, आधुनिक समय में भी असंख्य लोगों ने माँ बगलामुखी की कृपा से शत्रु बाधाओं एवं न्यायालय में विचाराधीन मुकदमों आदि समस्याओं पर विजय पायी है तथा अन्य नाना प्रकार की आपदाओं से मुक्ति प्राप्त की है। माँ बगलामुखी की कृपा से उनके भक्त साधारण स्थिति से उठकर असाधारण रूप से उच्च पद तक पाने में सफल हुये हैं ।
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बगलामुखी बीज मंत्र
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माँ बगलामुखी की उपासना, अनुष्ठान आदि शत्रु बाधाओं के दौरान ही नहीं, अपितु अन्य अनेक कार्यों के निमित्त भी की जाती है। इनका सम्बन्ध एकाएक आर्थिक हानि से बचने, किसी अज्ञात भय से बचने, किसी के धोखे में फंस जाने, अकारण किसी के साथ लड़ाई-झगड़े में पड़ जाने, किसी अज्ञात शत्रु द्वारा परेशान किये जाने की भी समस्यायें हो सकती हैं। ऐसी समस्त प्रतिकूल स्थितियों से भी महामाई अपने साधकों को सहज ही निकाल लेती है। महामाई बगलामुखी की अनुकंपा से शीघ्र ही बिगड़े हुये काम बनने लगते हैं।
माँ बगलामुखी का दस महाविद्याओं में आठवां स्थान है। दरअसल आद्य शक्ति के दस रूप दसों दिशाओं में विद्यमान रहते हैं। उनमें दक्षिण दिशा की स्वामिनी महाविद्या बगलामुखी को माना गया है, इसलिये इनकी साधना का दक्षिण मार्ग ही अधिक प्रचलित है। शिवपुराण और देवी भागवत पुराण में शिव के दस रूपों की दस महाशक्तियां भी बताई गई हैं। यह दस महशक्तियां ही संसार में दस महाविद्याओं के रूप में पहचानी एवं पूजी जाती हैं। तंत्रशास्त्र में जगह-जगह इस बात का उल्लेख आया है कि शक्तिविहीन शिव भी शव के समान हो जाते हैं। शिव की जो भी क्षमताएं एवं शक्तियां हैं, उनके मूल में एक मात्र आद्यशक्ति ही कार्य करती है ।
शिव की दस आद्यशक्तियां हैं, जो इस प्रकार जानी जाती हैं- महाकाल शिव की शक्ति काली नामक महाविद्या है, शिव के काल भैरव रूप की शक्ति भैरवी नामक महाविद्या है, कबंध नामक शिव की शक्ति छिन्नमस्तका है, त्र्यंबकम् नामक शिव रूप की शक्ति हैं भुवनेश्वरी नामक महाविद्या, ठीक उसी प्रकार एकवक्त्र नामक महारुद्र शिव की महाशक्ति बगलामुखी नामक महाविद्या है। शिव के इस रूप को वल्गामुख शिव के नाम से भी जाना जाता है।
चमत्कारी उच्छिष्ट गणपति शाबर साधना uchchhishta ganapati sadhna उच्छिष्ट गणपति शाबर साधना समय के साथ-साथ अनेक परिवर्तन अपने आप होते चले जाते हैं। यह परिवर्तन अक्सर लोगों की मानसिकता में आने वाले बदलाव के परिणामस्वरूप परिलक्षित होते हैं। आज ऐसा समय है जहां जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत अधिक प्रतिस्पर्द्धा देखने में आ रही है।
इस स्थिति का जो ठीक से सामना कर पाते हैं, वे निरन्तर उन्नति करते चले जाते हैं। अनेक लोगों से बहुत आगे निकल जाते हैं। जो पीछे रह जाते हैं, वे आगे निकले लोगों के प्रति ईर्ष्या से भर जाते हैं। ऐसे में उनका एकमात्र प्रयास रहता है कि किसी भी प्रकार से उन्हें चोट पहुंचाना, उन्हें परेशान करना ।
इसके लिये अनेक हत्थकण्डे अपनाये जाते हैं। इन्हीं में एक हत्थकण्डा यह भी है कि किसी को झूठे केस में फंसा कर अदालतों के चक्कर काटने को विवश कर देना । अनेक लोग इन्हीं कारणों से अदालतों में फंसे नजर आते हैं। कभी-कभी तो व्यक्तिगत शत्रुता निकालने के लिये भी ऐसा गलत कार्य कर देते हैं। ऐसी स्थिति में अक्सर आम व्यक्ति ही फंसता है । कभी-कभी तो ऐसे लोग भी फंस जाते हैं जिन्होंने कभी किसी अदालत का मुंह तक नहीं देखा था । ऐसा लोगों के लिये उच्छिष्ट गणपति साधना uchchhishta ganapat बहुत लाभदायक सिद्ध होती है ।
भगवान गणपति को समस्त प्रकार के सुख एवं वैभव देने वाले तथा कष्टों का हरण करने वाले देव के रूप में माना जाता है । इसलिये इस साधना के प्रभाव से अदालत में झूठे केसों में फंसे लोगों की समस्याओं का समाधान होने लगता है । इस साधना को अनेक साधकों द्वारा सम्पन्न किया गया है। उनमें से अधिकांश को अदालत ने सम्मान सहित बरी किया है। पाठकों के लिये इस साधना का उल्लेख कर रहा हूं ।
उच्छिष्ट गणपति Uchchhishta Ganapati शाबर साधना विधि इस शाबर गणपति अनुष्ठान के लिये सबसे पहले एक वट मूल (बरगद की जड़) निर्मित गणेश प्रतिमा, पांच गोमती चक्र और एक श्वेत चन्दन माला की आवश्यकता होती है। अनुष्ठान के लिये बैठने के लिये लाल रंग का ऊनी आसन, सिन्दूर, घी, धूप, दीप, लोबान, लाल कनेर के पुष्प, लाल रेशमी वस्त्र, स्वयं के पहनने के लिये एक लाल या श्वेत रंग की धोती, केसर से रंगा जनेऊ आदि वस्तुओं की आवश्यकता रहती है ।
सबसे पहले किसी विशेष शुभ मुहूर्त जैसे कि होली, दीपावली, दशहरा अथवा ग्रहण आदि के समय किसी वट वृक्ष की जड़ खोदकर घर ले आयें और उसे गणपति प्रतिमा का रूप प्रदान करके अपने पास रख लें। उसी शुभ मुहूर्त में इस वट गणेश प्रतिमा की विधिवत् षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके चेतना सम्पन्न कर लेना चाहिये । ऐसी चेतना सम्पन्न प्रतिमा ही अनुष्ठान को सम्पन्न करने के काम में लायी जाती है ।
यह शाबर अनुष्ठान लगातार ग्यारह बुधवार को किया जाता । इसे किसी शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि अथवा शुक्लपक्ष के किसी भी बुधवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। अगर इस शाबर अनुष्ठान को किसी प्राचीन गणेश मंदिर में बैठकर रात्रि के समय सम्पन्न किया जाये तो तत्काल इसका प्रभाव दिखाई देने लग जाता है । यद्यपि इस अनुष्ठान को किसी तालाब के किनारे स्थित वट वृक्ष के नीचे बैठकर अथवा घर पर भी किसी एकान्त कक्ष में सम्पन्न किया जा सकता है। अनुष्ठान काल में अन्य सदस्यों का प्रवेश इस कक्ष में वर्जित रहे ।
इस शाबर अनुष्ठान के लिये रात्रि का समय उपयुक्त रहता है। इसे प्रातःकाल चार से सात बजे के मध्य भी किया जा सकता है। जिस दिन से इस अनुष्ठान को शुरू करना हो, उस दिन रात्रि के नौ बजे के आसपास स्नान करके शरीर शुद्धि कर लें। स्वच्छ श्वेत या लाल रंग की धोती शरीर पर धारण कर लें। शरीर का शेष भाग निवस्त्र ही रहे। इसके पश्चात् अपने पूजाकक्ष में जाकर लाल ऊनी आसन बिछाकर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जायें । अगर यह अनुष्ठान गणेश मंदिर में बैठकर सम्पन्न करना हो तो उस स्थिति में पूर्वाभिमुख होकर बैठना आवश्यक नहीं है । उस स्थिति में गणेश प्रतिमा के सामने मुंह करके बैठना ही पर्याप्त रहता है।
आसन पर बैठने के पश्चात् अपने सामने लकड़ी की एक चौकी रख कर उसके ऊपर लाल रंग का रेशमी वस्त्र बिछा लें। चौकी पर चांदी या तांबे की एक प्लेट रख कर उसमें केसर से एक स्वस्तिक की आकृति बनायें और उस पर चेतना सम्पन्न वट मूल निर्मित गणपति प्रतिमा को स्थापित कर दें । एक कांसे की कटोरी में घी और सिन्दूर को ठीक से मिला लें तथा अग्रांकित गणपति मंत्र का ग्यारह बार उच्चारण करते हुये पहले गणेश प्रतिमा को गंगाजल के छींटें दें और फिर उस पर सिन्दूर का लेप कर दें।
सिन्दूर लेपन के पश्चात् उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुये गणेश प्रतिमा पर 21 लाल कनेर के पुष्प चढ़ावें । उन्हें अक्षत, पान, सुपारी और दूर्वा अर्पित करें। फिर गणेश जी पर इसी मंत्र का उच्चारण करते हुये एक-एक करके पांचों गोमती चक्र भी अर्पित कर दें।
गोमती चक्रों को अर्पित करने से पहले एक-एक लौंग, इलाइची और थोड़े से अक्षत अर्पित करें। इनके साथ ही गणपति के सामने घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके रखें। गणपति को नैवेद्य के रूप में गुड़ और थोड़े से भुने हुये चने रखे जाते हैं। चौकी पर ही गणेश प्रतिमा के बायीं तरफ एक मिट्टी के बर्तन में गाय का जला हुआ कण्डा रखकर उसमें लोबान, सुगन्धबाला, सूखे हुये लाल गुलाब की पंखुड़ियां एवं की बार-बार धूनी दें।
तत्पश्चात् अपनी आंखें बंद करके तथा हाथों से ज्ञानमुद्रा (हथेलियों को खुला रख कर अंगुष्ठा मूल की ओर तर्जनी के प्रथम पोर का स्पर्श करना) बनाकर पूर्ण भक्तिभाव से अपनी प्रार्थना को बार-बार दोहराते रहें ।
वट मूल निर्मित यह गणपति प्रतिमा इतनी चेतना सम्पन्न बन जाती है कि जब साधक पूर्ण तन्यमयता के साथ अपनी प्रार्थना करता है, तो अनुष्ठान के प्रारम्भिक दिनों में ही वह एक विशेष प्रकार का कम्पन शरीर में अनुभव करने लग जाता है। इस अनुष्ठान के दौरान अन्तिम ग्यारहवें बुधवार तक गणपति के सवा लाख मंत्रों का जाप करना होता है। अतः प्रत्येक रात्रि को कितने मंत्रों का जाप करना है, इसका निर्णय आप ही करें। इस अनुष्ठान में मंत्रजाप के लिये श्वेत चंदन माला का प्रयोग किया जाता है।
चंदन माला की जगह स्फटिक माला का प्रयोग भी किया जा सकता है। इस प्रकार के अनुष्ठानों में कभी भी पहले पूजा-पाठ के काम में लायी गई वस्तुओं का पुनः प्रयोग नहीं करना चाहिये। इसका कारण यह बताया जाता है कि किसी भी तरह के अनुष्ठानों में त्रयुक्त की जाने वाली तांत्रोक्त वस्तुएं विशेष शक्ति सम्पन्न रहती हैं और उनकी यह शक्तियां पूजा-पाठ, अनुष्ठानों के दौरान प्रभावित होती रहती हैं ।
अतः प्रत्येक अनुष्ठान में सदैव नवीन चीजों को ही प्रयोग में लाना चाहिये । इनके अलावा भी कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिये। जैसे कि पूरे जपकाल के दौरान घी का दीपक निरन्तर जलते रहना चाहिये तथा मिट्टी के बर्तन में भी निरन्तर लोबान, घी आदि की समिधा अर्पित करते रहना चाहिये । जब प्रथम दिन का मंत्रजाप पूर्ण संख्या में सम्पन्न हो जाये तो एक बार पुनः अपनी प्रार्थना को गणपति के सामने दोहरा लेना चाहिये ।
तत्पश्चात् ही गणपति की आज्ञा लेकर आसन से उठना चाहिये । गणपति को जो गुड़ और भुने चने का नैवेद्य चढ़ाया जाता है। जप के पश्चात् उसमें से थोड़ा सा अंश निकाल कर मिट्टी के बर्तन की अग्नि को अर्पित करना चाहिये । उसका थोड़ा सा अंश कौये अथवा काले कुत्ते को खिला देना चाहिये तथा थोड़ा सा अंश स्वयं ग्रहण करके शेष को पानी में प्रवाहित कर देना चाहिये ।
इस शाबर गणपति अनुष्ठान का यह क्रम निरन्तर 31 दिन तक इसी प्रकार ही बनाये रखना चाहिये। यद्यपि इस अनुष्ठान के दौरान अपने सभी घरेलू अथवा व्यवसाय संबंधी कार्यों को पूर्ण रूप से जारी रखा जा सकता है, नौकरी आदि पर भी जाया जा सकता है, लेकिन पूरे अनुष्ठानकाल में पूर्ण सदाचार का पालन अवश्य करना चाहिये।
दिन में केवल एक समय सुपाच्य भोजन ग्रहण करें । ब्रह्मचर्य का पालन करें, अनुष्ठान के बीच-बीच में भी अपने अनुभवों पर गुरु के साथ विचार-विमर्श करते रहें । पूरे अनुष्ठान काल के दौरान मंत्रजाप के पश्चात् तेल का एक दीया जलाकर घर की मुण्डेर पर अथवा किसी वट / पीपल ( बेरी वृक्ष) के नीचे अवश्य रख दें। इस दीये का इस अनुष्ठान में विशेष महत्व होता है।
इस साधना क्रम को अगले ग्यारह बुधवार तक इस प्रकार से बनाये रखना चाहिये । प्रत्येक रात्रि को स्नान करके स्वच्छ श्वेत या लाल धोती पहन कर ही अनुष्ठान में बैठना चाहिये। चौकी पर एकत्रित हुई पूजा सामग्री को तथा मिट्टी के बर्तन की राख को किसी पात्र में भर कर एकत्रित करते रहना चाहिये ।
प्रत्येक दिन वटमूल निर्मित गणेश प्रतिमा को गंगाजल के छींटे मारकर घी मिश्रित सिन्दूर का लेपन करना चाहिये। मंत्रोच्चार के साथ नियमित रूप से 21 लाल कनेर के पुष्प, अक्षत, पान, सुपारी और पांचों गोमती चक्रों को पूर्ववत् अर्पित करते रहना चाहिये ।
इसके पश्चात् दीपदान करके गुड़ और भुने चने का नैवेद्य चढ़ाना चाहिये । तत्पश्चात् प्रथम दिन की भांति मिट्टी के बर्तन में आग जलाकर लोबान, लाल गुलाब की पंखड़ियां, सुगंधबाला और घी मिश्रित समिधा अर्प करनी चाहिये। इसके बाद अपनी आंखें बन्द करके और हाथों से ज्ञानमुद्रा बनाकर पूर्ण एकाग्रता के साथ अपनी प्रार्थना को बार-बार दोहराना चाहिये तथा गणपति से आज्ञा लेकर चंदन अथवा स्फटिक माला पर 4000 मंत्रजाप पूर्ण कर लेने चाहिये। जपोपरान्त की सम्पूर्ण प्रक्रिया को भी पूर्ववत् ही बनाये रखना चाहिये । आसन से उठने से पहले अपनी प्रार्थना को पुनः दोहरा लेना चाहिये तथा गणपति की आज्ञा लेकर ही आसन से उठना चाहिये ।
गणपति को अर्पित किये गये नैवेद्य का उपयोग भी पूर्ववत् करना चाहिये। साथ ही आसन से उठने के बाद तेल का एक दीप जलाकर घर की मुण्डेर अथवा वट या पीपल या बेरी वृक्ष के नीचे रख देना चाहिये। अनुष्ठान का यही क्रम है जो पूरे अनुष्ठान काल में बना रहता है ।
जिस दिन यह अनुष्ठान पूर्ण होने वाला होता है उस दिन नैवेद्य के रूप में गुड़ और भुने चनों के साथ मोतीचूर के लड्डू भी गणेश को अर्पित किये जाते हैं, साथ ही उस दिन मंत्रजाप पूर्ण हो जाने के पश्चात् 51 मंत्रों से घी की आहुतियां मिट्टी के बर्तन में दी जाती है। पांच कन्याओं को मिष्ठान आदि के साथ भोजन करवा कर एवं दान-दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् गणपति प्रतिमा को छोड़कर शेष समस्त सामग्रियों को नये लाल रंग के वस्त्र में बांध करके बहते हुये पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है, जबकि गणपति प्रतिमा को अपने पूजास्थल पर प्रतिष्ठित कर लिया जाता है । इस प्रकार इस शाबर गणपति अनुष्ठान को सम्पन्न करने से निश्चित ही मुकदमे के निर्णय को अपने अनुकूल बदला जा सकता है।
जब तक मुकदमे की कार्यवाही पूर्ण न हो जाये, तब तक मुकदमे की प्रत्येक तारीख पेशी से पहले पड़ने वाले बुधवार को उक्त गणेश प्रतिमा के सामने बैठकर अपना यथाशक्ति (पांच या तीन माला) मंत्रजाप के क्रम को बनाये रखना चाहिये । न्यायालय की कार्यवाही के दौरान मानसिक रूप से मंत्र का जाप करते रहना चाहिये ।
यह शाबर पद्धति पर आधारित एक अद्भुत एवं प्रभावशाली अनुष्ठान है, जिसका प्रभाव अवश्य ही सामने आता है । एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना आवश्यक है। उच्छिष्ट गणपति की यह साधना केवल वही साधक करे जो बिना किसी विशेष कारण से अदालत में किसी मुकदमे में फंसा दिया गया हो।
ऐसे व्यक्ति की ही गणपति सहायता करते हैं और उसे अवश्य समस्याओं और दुःखों से उभार लेते हैं । जो व्यक्ति जानबूझ कर किसी अपराध में लिप्त हुआ हो अथवा कोई आदतन अपराधी प्रवृत्ति का है, वह इस साधना को न करे। अगर ऐसे व्यक्ति यह साधना करते हैं तो उन्हें लाभ प्राप्त नहीं होगा ।
maa tara sadhna माँ तारा साधना और माँ तारा साधना के लाभ ph. 85280 57364
maa tara sadhna माँ तारा साधना और माँ तारा साधना के लाभ ph. 85280 57364 तारा महाविद्या और उनकी साधना का रहस्य तंत्र शास्त्र में माँ तारा का उल्लेख दूसरी महाविद्या के रूप में किया गया है । शाक्त तांत्रिकों में प्रथम महाविद्या के रूप में महाकाली का स्थान रखा गया है। तंत्र में महाकाली को इस चराचर जगत की मूल आधार शक्ति माना गया है।
इन्हीं की प्रेरणा शक्ति से यह जगत और उसके समस्त प्राणी जीवन्त एवं गतिमान रहते हैं । समस्त जीवन के प्राण स्रोत माँ काली के साथ संलग्न रहते हैं । इसीलिये इस शक्ति से विहीन जगत तत्क्षण निर्जीव हो जाता है। तंत्र के अति प्राचीन प्रतीकों में महाकाली को शिव पर आरूढ़ दिखाया गया है। यह भी इसी तथ्य का प्रतीक है कि ‘शक्ति’ हीन ‘शिव’ भी निर्जीव ‘शव’ के रूप में रूपान्तरित हो जाते हैं।
महाकाली के रूप में इस आद्यशक्ति का रहस्य बहुत अद्भुत है, क्योंकि चेतना के समस्त सूत्र इसी महाशक्ति में समाहित रहते हैं । इसीलिये महाकाली का ‘श्याम’ रूप माना गया है। जिस प्रकार सभी तरह के रंग काले रंग में विलीन हो जाते हैं, ठीक वैसे ही समस्त जगत काली में समाहित हो जाता है
जो साधक महाकाली को पूर्णत: समर्पित हो जाता है, उस साधक के समस्त कष्टों का माँ काली स्वतः ही हरण कर लेती है । इसीलिये महाकाली को समर्पित साधक समस्त प्रकार के दुःख, दर्द, पीड़ाओं, अभावों, कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। बहुत से लोग अज्ञानवश महाकाली को भय, क्रोध और मृत्यु का प्रतीक भर मानते हैं । इस विश्वास से उनकी अज्ञानता ही उजागर होती है। वास्तव में महाकाली मृत्यु पर विजय और भयहीन होने की प्रतीक है।
महाकाली की भयानक एवं क्रोधयुक्त मुद्रा एवं उनका अति उग्र प्रदर्शन उनकी अनंत शक्ति का द्योतक है। तंत्र शास्त्र में प्रथम महाविद्या के रूप में महाकाली का अधिपत्य रात्रि के बारह बजे से प्रातः सूर्योदय तक रहता है। घोर अंधकार महाकाली का साधना काल है, जबकि सूर्योदय की प्रथम किरण के साथ ही द्वितीय महाविद्या के रूप में तारा विद्या का साम्राज्य चारों ओर फैलने लग जाता है।
महाकाली चेतना का प्रतीक है तो तारा महाविद्या बुद्धि, प्रसन्नता, सन्तुष्टि, सुख, सम्पन्नता और विकास का प्रतीक है। इसीलिये तारा का साम्राज्य फैलते ही अर्थात् सूर्य की प्रथम रश्मि के भूमण्डल पर अवतरित होते ही सृष्टि का प्रत्येक कण चेतना शक्ति युक्त होता चला जाता है ।
रात्रि के अंधकार में जो जीव-जन्तु निद्रा के आवेश में आकर सुस्त और निष्क्रिय पड़ जाते हैं, फूलों की प्रफुल्लित हुई कलियां मुर्झा जाती हैं, प्राणियों में जो पशु भाव उतर जाता है, वह सब प्रातःकाल होते ही अपने मूल स्वरूप में लौट आता है ।
तारा महाविद्या का रहस्य बोध कराने वाली हिरण्यगर्भ विद्या मानी गई है। इस विद्या के अनुसार वेदों ने सम्पूर्ण विश्व (सृष्टि) का मुख्य आधार सूर्य को स्वीकार किया है। सूर्य अग्नि का एक रूप है। अग्नि का एक नाम हिरण्यरेता भी है। सौरमण्डल हिरण्यरेत (अग्नि) से आविष्ट है। इसीलिये इसे हिरण्यमय कहा जाता है।
आग्नेयमंडल के नाभि में सौर ब्रह्म तत्त्व प्रतिष्ठित है, इसलिये सौरब्रह्म को हिरण्यगर्भ कहा गया है । जिस प्रकार विश्वातीत कालपुरुष की महाशक्ति महाकाली है, उसी प्रकार सौरमण्डल में प्रतिष्ठित हिरण्यगर्भ पुरुष की महाशक्ति ‘तारा’ को माना गया है।
जिस प्रकार गहन अन्धकार में छोटा दीपक भी अत्यन्त प्रकाशमान प्रतीत होता है, उसी तरह महानतम के अर्थात् अंतरिक्ष में तारा शक्ति युक्त सूर्य सदैव प्रकाशमान बना रहता है, इसलिये श्रुतियों में सूर्य नक्षत्र’ नाम से भी जाने गये हैं।
kamakhya devi mantra for love कामाख्या देवी मंत्र फॉर लव – कामाख्या देवी वशीकरण
kamakhya devi mantra for love कामाख्या देवी मंत्र फॉर लव – कामाख्या देवी वशीकरण
kamakhya devi mantra for love कामाख्या देवी मंत्र फॉर लव – कामाख्या देवी वशीकरणवशीकरण प्रयोग के प्रति अनेक व्यक्ति लालायित रहते हैं। किसी को अपने प्रति आकर्षित करना और अपने स्वार्थ की सिद्धि करना इस वशीकरण प्रयोग का फल बताया गया है। वशीकरण मंत्र जाप बहुत पहले भी किये जाते रहे हैं किन्तु इन्हें कभी भी समाज में अच्छे रूप में नहीं देखा जाता ।
प्रायः इस प्रयोग को अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये ही किया जाता है। इस कारण से इस प्रयोग को उचित नहीं माना गया । यही कारण है कि अधिकांश लोग इस अनुष्ठान के अच्छे रूप को समझ नहीं पाते हैं। यहां पर जो वशीकरण प्रयोग दिया जा रहा है वह अत्यन्त प्रभावी है ।
इसकी एक अन्य विशेषता यह भी है कि इस प्रयोग को यदि स्वार्थ की भावना से अथवा किसी अन्य को दुःखी अथवा आहत करने के लिये किया जाता है तो इसका प्रयोग निष्फल हो जायेगा। प्रयोगकर्ता चाहे जितने मंत्रजाप कर ले, उपरोक्त अनुसार यदि यह प्रयोग होता है तो कोई लाभ नहीं मिलेगा।
कभी-कभी इसका विपरीत प्रभाव भी देखने में आता है। इसमें प्रयोग करने वाले को हानि का सामना करना पड़ता है । अग्रांकित वशीकरण सम्बन्धी जिस प्रयोग का उल्लेख किया जा रहा है, वह शाबर पद्धति पर आधारित है।
kamakhya devi mantra for love कामाख्या देवी मंत्र फॉर लव साधना विधि
अगर इस शाबर प्रयोग को पहले किसी ग्रहणकाल में अथवा दीपावली या होली की रात्रि में सिद्ध कर लिया जाये तो अति उत्तम रहता है। एक बार सिद्ध करने के पश्चात् इस प्रयोग को किसी भी रविवार या मंगलवार के दिन से शुरू किया जा सकता है। यह तांत्रिक अनुष्ठान कुल 21 दिन का है। इसमें सबसे पहले रात्रि को 10 बजे के बाद किसी एकान्त स्थान में काले कम्बल के आसन पर पश्चिम की ओर मुंह करके बैठें।
इसके बाद चार लौंग लेकर उन्हें अपने चारों दिशाओं में रखें। बीच में एक चौमुहा तिल के तेल का दीपक जला कर रखें। इसके बाद मिट्टी के पात्र में अग्नि जलाकर लोबान, पीली सरसों, भूतकेशी, बालछड़, सुगन्धबाला आदि सामग्रियों को मिलाकर उसकी आहुति देते हुए अग्रांकित मंत्र का जाप करें। साधना काल में गुड़-चने का नैवेद्य भी अपने सामने रख लें। तंत्र साधना में प्रयुक्त किया जाने वाला मंत्र इस प्रकार है-
प्रतिदिन इस मंत्र का जाप पांच माला करें। मंत्रजाप के लिये हकीक माला प्रयोग में लायें । 21 दिन में यह अनुष्ठान्न सम्पन्न हो जाता है । तत्पश्चात् सारी पूजा सामग्री को जमीन के नीचे गाढ़ देवें और हकीक माला को अपने गले में धारण कर लें । दैनिक जाप के दौरान जो नैवेद्य रखा जाता है उसे बन्दर, लंगूर आदि को खिला दें । स्वयं 21 दिन तक भूमि पर शयन करते हुये ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एक बार अनुष्ठान सम्पन्न हो जाने पर लौंग पर सात मंत्र पढ़ कर जिस किसी को खिला दी जाती है वह व्यक्ति साधक के वश में हो जाता है।
तलाक divorce की समस्या का निराकरण करने वाला एक तांत्रोक्त प्रयोग A tantrok experiment to solve the problem of divorce ph.85280 57364
तांत्रोक्त प्रयोग A tantrok experiment to solve the problem of divorce ph.85280 57364
divorce तलाक के समस्या निराकरण लिए तांत्रोक्त प्रयोग : विज्ञान की उन्नति और औद्योगिक क्रांतियों ने समाज को अनेक उपहार प्रदान किये हैं । इन्होंने लोगों के जीवन को अधिक आरामदायक बनाया है ।
समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। सुख-सुविधा के साधनों के साथ-साथ भोग-विलास के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। लोगों के जीवन स्तर में भारी बदलाव आया है ।
कठिन, दुष्कर एवं बोझल जैसी प्रतीत होने वाली जिन्दगी अब अधिक आरामदायक एवं आनन्द देने वाली लगने लगी है, लेकिन इन सभी के साथ ही लोगों के सामाजिक रिश्तों, विशेषकर पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ सोच-विचार और भावनाओं के दृष्टिकोण में जबरदस्त बदलाव आया है ।
तलाक divorce निवारण मंत्र
तलाक divorce के निवारण साधना स्तम्भंक साधना
तलाक divorce निवारण
आधुनिकता ने हमें सुख-सुविधाएं अवश्य प्रदान की हैं, लेकिन इनके साथ ही कई तरह की समस्याओं को भी जन्म दिया है। जैसे-जैसे समाज का बौद्धिक स्तर बढ़ता जा रहा है, शताब्दियों से प्रचलित रहे संस्कारों की डोर कमजोर पड़ती जा रही है। लोगों के मन में स्वैच्छिक उन्मुक्तता, स्वतंत्रता के साथ-साथ स्वार्थी प्रवृत्ति घर करती जा रही है।
इसलिये सामाजिक रिश्ते ही नहीं अपितु पारिवारिक सम्बन्धों पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी के बीच कटुता उत्पन्न होने लगी है। प्राचीन समय में समाज को एकजुट रखने तथा परिवार के रूप में प्रेमपूर्वक रहने के लिये अनेक तरह के नियम निर्धारित किये थे ।
गृहस्थाश्रम को पूर्ण उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने के लिये हिन्दू जीवन पद्धति में जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक संस्कारों का विधान रखा था, जिनमें सोलह संस्कार बहुत ही प्रमुख थे ।
इन संस्कारों में पितृदोष से ऋणमुक्त होने, पुत्र-पुत्री का गृहस्थ बसाने (कन्या दान) और पति-पत्नी के रूप में सदैव एकत्व का भाव रखने वाले संस्कार सबसे मुख्य हैं । वैवाहिक बंधन में बंध जाने के पश्चात् पति- पत्नी को सदैव के लिये एक-दूसरे के लिये समर्पित रहने के लिये वचनबद्ध रहना पड़ता है।
पति-पत्नी के संबंधों को किसी समय दो शरीर और एक आत्मा, दो मन और एक सोच, सात जन्मों तक साथ निभाने वाले, जैसी उपमायें दी गई थी, लेकिन अब इस पवित्र रिश्ते में भी गिरावट आती जा रही है। आज अधिकांश लोगों में उन्मुक्तता, स्वच्छन्द सोच, अहं और स्वतंत्रता की भावना बलवती होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ पारिवारिक रिश्तों में अविश्वास, सन्देह, संघर्ष एवं कलह की स्थिति देखने को मिल रही है । समर्पण की जगह संघर्ष ने ले ली है ।
प्रेम का स्थान अविश्वास और संदेह ने ले लिया है । इन सबका परिणाम है कि पारिवारिक कलह, हिंसा, तलाक, एक-दूसरे को धोखा देने की घटनायें बढ़ती जा रही हैं। तलाक divorce की दर भी तीव्रगति से बढ़ रही है। तलाक divorce का अर्थ है वैवाहिक जीवन में प्रेम, समर्पण, त्याग की जगह अविश्वास, घृणा एवं संघर्ष का इस सीमा तक बढ़ जाना कि पति – पत्नी दोनों को ही यह लगने लगे कि अब एक साथ रहना संभव नहीं है । ऐ
सी स्थितियों में उन दोनों का एक साथ शांतिपूर्वक रह पाना मुश्किल बन जाता है और वह शीघ्रताशीघ्र एक-दूसरे से अलग होकर स्वतंत्र हो जाना चाहते हैं। तलाक divorce के ऐसे मामलों के लिये सामाजिक परिस्थितियां तो उत्तरदायी रहती ही हैं, कई अन्य कारण भी जिम्मेदार रहते हैं ।
इस प्रकार के कारणों का उल्लेख तंत्रशास्त्र एवं अन्य दूसरे ग्रंथों में विस्तारपूर्वक दिया गया है। आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि जिन परिवारों में माता-पिता या अन्य बुजुर्ग सदस्यों को पूर्ण मान-सम्मान नहीं मिलता, उनकी संतानें भी सुखी नहीं रह पाती ।
इनकी संतानों के विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में बहुत अधिक विलम्ब होता है, उनके गृहस्थ जीवन में भी निरन्तर उथल-पुथल मची रहती है । उनकी संतानों को गृह क्लेश का सामना करना पड़ता है, जिसकी परिणिति अनेक बार तलाक divorce के रूप में सामने आती है।
इन लोगों को संतान सुख भी प्राप्त नहीं हो पाता। इसी तरह जिन परिवारों में कुल देवता, देवी का अपमान, निरादर किया जाता है या परिवार के किसी कमजोर सदस्य को सताया, दबाया जाता है या बार – बार अपमानित किया जाता है, उनकी संतानें उन्मुक्त स्वभाव को अपनाने वाली होती हैं। इनके पुत्र- पुत्रियां, दोनों का ही गृहस्थ जीवन सुचारू रूप से नहीं चल पाता। ऐसे अधिकतर मामलों में शीघ्र तलाक divorce की स्थितियां निर्मित होने लगती ।
अनुभवों में ऐसा आया है कि अगर समय रहते समुचित प्रबन्ध कर लिये जायें तो तलाक divorceजैसी स्थिति को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है तथा टूटते हुये गृहस्थ जीवन को बचाया जा सकता है । ऐसी विषम परिस्थितियों से बचने के लिये तांत्रिक सम्प्रदाय और वैदोक्त पद्धति में अनेक उपाय एवं प्रयोग दिये गये हैं, जिनको सविधि सम्पन्न करने से माता-पिता के पापकर्मों का तो प्रायश्चित हो ही जाता है, कई अन्य तरह के दोष भी समाप्त हो जाते हैं । तलाक
तलाक divorcedivorce के निवारण साधना स्तम्भंक साधना विधि शाबर प्रयोग
तलाक divorcedivorce के निवारण साधना स्तम्भंक साधना विधि शाबर प्रयोग : यद्यपि पापकर्मों से मुक्ति पाने के लिये शास्त्रों एवं वैदोक्त प्रणाली में अनेक विधान और उपाय बताये गये हैं । इन सबका इस प्रसंग में वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। आगे एक ऐसा शाबर मंत्र प्रयोग दिया जा रहा है जिसके द्वारा तलाक divorceकी स्थिति को रोका जा सकता है यह प्रयोग वशीकरण पर आधारित है ।
यह प्रयोग एक बार सिद्ध हो जाता है तो उस साधक या साधिका के सामने विशेष क्षणों में जो भी सामने आ जाता है, वही वशीभूत हो जाता है। यह शाबर प्रयोग अनेक बार अनुभूत किया हुआ है । ऐसा देखने में आया है कि अगर समय रहते पति-पत्नी में से कोई भी एक इस शाबर पद्धति पर आधारित वशीकरण प्रयोग को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेता है
तो वह तलाक divorce की स्थिति को बदल सकता है तथा वह पति – पत्नी के रूप एक परिवार के रूप में बने रह सकते हैं। यह शाबर प्रयोग 41 दिन का है । अगर इस शाबर मंत्र को पहले दीपावली, दशहरा, होली आदि की रात्रि को किसी एकान्त स्थान में बैठकर दीपक आदि जलाकर अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप कर लिया जाये तो यह मंत्र चेतना सम्पन्न हो जाता है ।
तब इस मंत्र का प्रभाव अनुष्ठान शुरू करने के दूसरे सप्ताह में ही दिखाई देने लग जाता है । यद्यपि इस शाबर अनुष्ठान को किसी भी कृष्णपक्ष के शनिवार के दिन से भी शुरू किया जा सकता है । यह शाबर अनुष्ठान शनिवार की रात्रि को दस बजे के बाद सम्पन्न किया जाता है, लेकिन इससे संबंधित थोड़ा सा विधान प्रातः काल भी सम्पन्न करना पड़ता है। प्रात:काल शुद्ध आटे से पांच रोटियां बनवायें
| उन्हें घी से चुपड़ें। एक थाली में रोटियों के साथ थोड़ा सा देशी घी, दही, शक्कर, दो लौंग और एक बताशा रखें। एक कण्डे में आग जलाकर उस पर घी की आहुतियां प्रदान करते हुये एवं बताशे के साथ दोनों लौंगों को घी में भिगोकर अग्नि को समर्पित कर दें। साथ ही अपने देवताओं को स्मरण करते हुये उनका आह्वान करते रहें
। बताशे के बाद प्रत्येक रोटी से थोड़ा-थोड़ा अंश तोड़कर क्रमशे : घी, दही, शक्कर में लगाकर अग्नि को अर्पित करें। इस प्रकार पांचों रोटियों का थोड़ा-थोड़ा अंश अग्नि को चढ़ा दें। तत्पश्चात् घी की एक आहुति प्रदान करके अंगुलियों में थोड़ा सा पानी लेकर अग्नि की प्रदक्षिणा करें। अपने कुल देव या देवियों से अपने और अपने माता-पिता के अपराधों को क्षमा करने की प्रार्थना करें। बाद में उन पांचों रोटियों को क्रमशः गाय, कुत्ता, कौआ, पीपल के वृक्ष के नीचे और जल में प्रवाहित कर दें ।
रात्रि को घर के मुख्यद्वार पर एक दीपक जलाकर रखें। ऐसा कुल सात शनिवार तक रखना है। रात्रि को अनुष्ठान के रूप में किसी सुनसान एकान्त स्थान, किसी प्राचीन खण्डहर अथवा किसी प्राचीन शिव मंदिर या अपने ही घर के किसी कक्ष में बैठकर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करें।
सबसे पहले रात्रि को नेहा धोकर तैयार हो जायें । संभव हो तो लाल रंग के वस्त्र पहन कर अपने साधना स्थल पर जाकर लाल ऊनी आसन पर पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जायें । अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शुद्ध मिट्टी का ढेला रखें और उस पर तेल – सिन्दूर का लेप करके पांच लौंग, पांच कालीमिर्च, पांच पान के पत्ते, सिन्दूर से रंगी पांच सुपारी तथा ग्यारह की संख्या में पंच- चक्रा सीप भी सिन्दूर में रंग कर अर्पित करें।
इसके पश्चात् तेल का दीपक जलाकर एवं खीर का प्रसाद रखकर हकीक माला से अग्रांकित मंत्र की पांच माला जाप करें । जाप के पश्चात् खीर को स्वयं ही खा लें । अन्य किसी को न दें।
तलाक divorce निवारण मंत्र
तलाक divorce निवारण मंत्र अनुष्ठान में प्रयुक्त मंत्र इस प्रकार है–
मंत्रजाप के लिये हकीक माला या पंचमुखी लघु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करें । जाप करने से पहले स्वयं अपने मस्तष्क पर भी सिन्दूर का टीका लगा लें । अनुष्ठान अवधि में ब्रह्मचर्य पालन करने के साथ-साथ भूमि पर शयन करें। संभव हो तो साधना स्थल पर ही सोयें। इस शाबर अनुष्ठान में प्रतिदिन पूजा का क्रम यही रहता है। अनुष्ठान के अन्तिम दिन मंत्रजाप के उपरान्त पूजा की समस्त सामग्री को किसी नये वस्त्र में बांधकर अथवा किसी कोरे मिट्टी के बर्तन में भरकर जल में प्रवाहित कर दें।
पूजा में प्रयोग की गई हकीक माला या रुद्राक्ष माला को स्वयं अपने गले में पहन लें अथवा घर के पूजास्थल पर स्थापित कर दें । अनुष्ठान समाप्त होने के पश्चात् जब आप सिन्दूर पर सात बार उपरोक्त मंत्र को पढ़ कर अपने माथे पर टीका लगाकर अपनी पत्नी या पति के सामने जाते हैं, तो उसका गुस्सा तत्काल शांत हो जाता है तथा संदेह अथवा अविश्वास की जगह आकर्षण उमड़ने लग जाता है। इसी प्रकार नाराज अधिकारी के सामने सिन्दूर लगाकर जाने से उसका भी वशीकरण होता है। वह भी आपसे शत्रुता भुलाकर सम्मान देने वाला व्यवहार करने लग जाते हैं।
काला जादू black magic क्या है? और इस के क्या रहस्य है।
काला जादू black magic क्या है? और इस के क्या रहस्य है।
काला जादू black magic औरअंधेरेआध्यात्मिककलाऐसेविषयनहींहैंजिनपरलोगलापरवाहीसेचर्चाकरतेहैं।औरयहीकारणहैकिज्यादातरलोगइसबारेमेंअनभिज्ञहैंकिकाला जादू black magic कितनाबड़ाखतराहोसकताहै।लोगोंकोनहींपताकियहकितनागंभीरहोसकताहै।यहीकारणहैकिदुनियाभरकेलाखोंलोगअनावश्यकरूपसेपीड़ितहैं।जीवननष्टहोजाताहै, शादियांटूटजातीहैंऔरकालेजादूकेकारणकरियरबर्बादहोजातेहैं।लोगजितनाअधिकसमयतकपीड़ितहोतेहैं, उससेकहींअधिकसमयतकपीड़ितहोतेहैंक्योंकिवेइसबातपरविचारनहींकरेंगेकिउनकीसमस्याआध्यात्मिकहोसकतीहै।हालांकि, यहअक्सरमामलाहै।औरयहीकारणहैकिइसलेखमें; आपकालेजादूकेबारेमेंसबकुछसीखेंगेजोआपकोपताहोनाचाहिए।
काला जादू black magic क्या है?
काला जादू black magic का एक अंधेरा अभ्यास है । काला जादू black magic काली शकिताओ को वश में करके उन शक्तिओ से मनचाहा काम करवाया जाता है। काली जदू black magic की शक्तिओ में ख़मीस ,काला जीनत ,भूत प्रेत ,बुरे जिन शामिल है और इस में शैतान की पूजा की जाती है। यह बुरी शकितया बुरे ही काम जायदा करती है।
यह आत्मिक दुनिया में शुरू हुआ जब शैतान ने मनुष्यों के खिलाफ अपना धर्मयुद्ध शुरू किया। जो लोग इसके अभ्यासों में संलग्न हैं, उन्हें काला जादूगर कहा जाता है। ये चिकित्सक काले जादू black magic में संलग्न हैं क्योंकि यह उन्हें अस्थायी अलौकिक शक्तियां प्रदान करता है। लेकिन, वे इसे कैसे करते हैं? काले जादूगर विभिन्न जटिल और विशिष्ट अनुष्ठानों के माध्यम से अपने बुरे कर्म करते हैं। इनमें से कई बलिदान हफ्तों और महीनों तक फैले हुए हैं, और वे कुछ वास्तव में भयानक विवरण शामिल करते हैं। यह इन बुरे अनुष्ठानों के माध्यम से है, कि वे अंडरवर्ल्ड के साथ संवाद करने में सक्षम हैं। अनुष्ठान उन्हें बुरी आत्माओं की शक्ति को बुलाने की शक्ति प्रदान करते हैं और शैतान खुद को अपने बुरे उद्देश्यों को लागू करने के लिए। तब वे इन बुरी आत्माओं को अपनी इच्छाओं से बांध सकते हैं, और उनका उपयोग कर सकते हैं।
काला जादू black magic कैसे किया जाता है कई काले जादूगर अपने निजी कारणों से मंत्र प्रदर्शन करते हैं। हालांकि, ज्यादातर मामलों में, यह एक अलग कहानी का एक सा है। आम लोग नफरत और लालच से प्रेरित होते हैं, अक्सर इन जादूगरों को अपनी बुरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए खोजते हैं। और यह उतना मुश्किल नहीं है जितना आप सोच सकते हैं। काला जादू black magicहजारों वर्षों से अस्तित्व में है। अब, दुनिया भर में अंधेरे जादू अभ्यास के विभिन्न रूप हैं। वे सभी अभी भी एक ही सिद्धांत साझा करते हैं, लेकिन अनुष्ठान और बलिदान एक संस्कृति से दूसरे में भिन्न होते हैं। हालांकि, मंत्रों में अभी भी कुछ समानताएं हैं कि उन्हें कैसे रखा जा सकता है।Black magic spells can
शत्रु पर काला जादू black magic करने के लिए यह सामान चाहिए होगा
तस्वीर और व्यक्तिगत जानकारी। व्यक्तिगत कपड़े, गहने, अन्य सामान, या बाल। एक बार जब एक काला जादूगर उपरोक्त में से किसी को भी प्राप्त कर लेता है, तो वे लोगों पर काला जादू black magicकर सकते हैं। इनके बिना, एक जादू रखना अधिक कठिन हो जाता है, और उन्हें आपका पूरा नाम और मां का नाम खोजने के लिए सहारा लेना पड़ता है।
काले जादू black magic के लक्षण
काले जादू black magic के लक्षण अब, काले जादू के लक्षण काफी व्यापक हो सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक वर्तनी एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता है। सामान्य कारण में बदला, लालच, ईर्ष्या, और इतने पर शामिल हैं। इसलिए, काले जादू black magic के लक्षण हमेशा जादू के लिए जिम्मेदार व्यक्ति के इरादे से मेल खाने के लिए भिन्न होंगे। लक्षणों में अक्सर अस्पष्टीकृत बुरी किस्मत, खराब शरीर की गंध, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बीमारी, बांझपन के मुद्दे और बहुत कुछ शामिल होते हैं।
जैसा कि आप देख सकते हैं, काला जादू black magic बहुत सारी सामान्य बीमारियों और तनाव के संकेतों की नकल करता है। हालांकि, ऐसे कारक हैं जो अन्य प्राकृतिक समस्याओं से काले जादू
को अलग करते हैं। यह तथ्य यह है कि लक्षण आमतौर पर अचानक और अस्पष्ट होते हैं! वैज्ञानिक परिणामों से पता चलेगा कि आपके साथ कुछ भी गलत नहीं है। और पारंपरिक इलाज भी काम नहीं करेगा। इसके अलावा यह नकारात्मक ऊर्जा है जो काले जादू के शिकार से चिपक जाती है। यह कभी-कभी मौजूद नकारात्मक ऊर्जा के परिणामस्वरूप अवसाद और व्यामोह हो सकता है। पीड़ित हमेशा दुखी होते हैं, और वे महसूस करते हैं कि उन पर एक दुर्भावनापूर्ण उपस्थिति है।
आप कैसे संरक्षित किया जा सकता है
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आप काले जादू की सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रार्थना करना और परमेश्वर के करीब आना अक्सर खूबसूरती से काम करता है। हालांकि, कभी-कभी प्रार्थना में समय लगता है और भगवान के पास इसके लिए अपने कारण हैं। सावधानी बरतने का एक और तरीका यह है कि इस बात से अवगत होना है कि आपके चित्रों और सामानों तक किसकी पहुंच है। हालांकि, सबसे अच्छा संरक्षण विधि जो हम अनुशंसा करते हैं वह एक आध्यात्मिक मरहम लगाने वाले को काम पर रखना है। एक सच्चा और अनुभवी मरहम लगाने वाला आपकी समस्या का निदान करने और इसके साथ उचित रूप से निपटने में सक्षम होगा।
Khetarpal Sadhna खेत्रपाल साधना और खेत्रपाल रहस्य कौन है ph.85280 57364
Khetarpal Sadhna खेत्रपाल साधना और खेत्रपाल रहस्य कौन है
Khetarpal Sadhna खेत्रपाल साधना और खेत्रपाल रहस्य कौन है गुरु मंत्र साधना में आप का स्वागत है। आज हम साधना के khetarpal क्षेत्रपाल सम्बन्धी चर्चा करेंगे ,एक हमारे भाई जी है उन्होंने मुझे khetarpal क्षेत्रपाल साधना सम्बन्धी जानकारी के लिए एक लेख लिखने के लेया कहा था।
आज में इस के सम्बन्धी एक लेख आप के समक्ष रख रहा हु आप इस को पूरा पढ़े। इस लेख में हम जानेगे के khetarpal क्षेत्रपाल कोण होते है। इनका हमारे जीवन में किया महत्व है।
इनकी साधना से हमें किया लाभ हो सकते है। इस सब विषय पर विस्तार सहित चर्चा करेंगे khetarpal क्षेत्रपाल को कई नमो से जाना जाता है जैसे के ग्रामखेड़ा , ग्रामदेवता खेतरपाल इन नमो से जाना जाता है है पर यह एक ही पर नाम अलग अलग है क्षेत्र को पंजाबी में खेत्र कहते है इस लिए पंजाबी हरियाणा हिमाचल में इनको खेतरपाल के नाम से जाना जाता है।
khetarpal क्षेत्रपाल सम्बन्धी परिचय
khetarpal क्षेत्रपाल सम्बन्धी परिचय – जहाँ भी आप रहते हो विलेज कसबे शहर में रहते हो इस की एक सीमा है के यह क़स्बा यहाँ तक है यह शहर यहाँ तक है उस क्षेत्र का एक देवता होता है जिसे नगर खेड़ा , khetarpal क्षेत्रपाल के नाम से जाना जाता है।
वो उस नगर का एक देवता होता है। इस की मानता शहर में कम है पर इस को गाओ में इस की पूजा और भोग दिया जाता है। और होली दिवाली और शादी के दिनों में इस की वशेष पूजा की जाती है। गाओ में इस का विशेष स्थान बनाया जाता है जहाँ पर इस को स्नान करवाया जाता है और वहाँ पर ही इसको भोग दिया जाता है।
khetarpal क्षेत्रपाल का महत्व
khetarpal क्षेत्रपाल की बहुत अहम भूमिका है कोई ऊपरी क्षत आता है या कोइ ऊपरी बाधा उत्पन होती है तो किसी तांत्रिक के द्वारा कोइ कुकरम किया गया हो भूत प्रेत जिनात कोइ भी शक्ति उस साधक पर छोड़ी गयी हो ,उसका घर के शेटरपाल होता है उस शक्ति को उस जगह के khetarpal क्षेत्रपाल जी को अपना पूरा विवरण देना होगा। वो क्यों उस क्षेत्र में जाना चाहती है , किस लिए जाना चाहती है।
khetarpal क्षेत्रपाल उस सहक्ति की पूरी बात सुनते है अगर उनको उचित लगता है वो जाने देते है। नहीं तो वो शक्ति वापस चली जाती है। जो साधक पूजा पाठ करता है। और भगवन को मानता है। और khetarpal क्षेत्रपाल जी को भी मंटा है तो khetarpal क्षेत्रपाल खुद उसकी रक्षा करते है किसी भी बुरी शक्ति को उस के पास आने से रोकते है। आपके अगल बगल पूरी सुरक्षा का इंतजाम khetarpal क्षेत्रपाल जी करते है।
जब आप सो जाती है तो यह रात के समय आप के पूरे क्षेत्र चक्र लगाते है। कोई बुरी शक्ति भीतर प्रवेश न कर सके। कोई तांत्रिक आप पर कोइ बुरी शक्ति नहीं भेज सकता अगर khetarpal क्षेत्रपाल जी की किरपा आप पर हो khetarpal क्षेत्रपाल कभी भी उस शक्ति को आने की अनुमति नहीं दे सकते।
khetarpal क्षेत्रपाल कोइ शक्ति को आपके क्षेत्र में परेश से उन शक्तिओ को रोक देते है, वहीं पर जो पितृ होते है वो गलत शक्तिओ को आप के घर पर आने से रोक देते है। khetarpal क्षेत्रपाल अगर अनुमति दे देते है तो आप के पितृ आप के सहायक होंगे वैसे तो पतिरो और khetarpal क्षेत्रपाल दोनों को पूजना चाहिए।
khetarpal खेत्रपाल देवता कोण कोण है इस का उद्धरण
khetarpal खेत्रपाल देवता कोण कोण है इस का उद्धरण – खेत्रपाल देवता कोण कोण है इस का उद्धरण – कुछ जगह पर काल भैरव भी होते है कुछ जगह पर शनिदेव भी khetarpal खेत्रपाल है। जैसे के शनिशिग्ना पुर जो एक जगह है आज भी शनिदेव उस जगह की सुरक्षा करते है कोई भी अपना समान तजोरी में नहीं रखता वह पर आज भी षणदेव सुरक्षा करते है।
कुछ ऐसा उद्धरण उत्तराखंड में भी था। एक जगह है भैरव गड़ी जहा के गाओ में जब शेर आ जाता था तो उन गाओ वालो को ज़ोर से भैरव जी आवाज लगा कर बोलते थे के शेर आगया सावधान हो जाओ भैरव जी खुद से क्षेत्र की सुरक्षा करते थे।
तंत्र में khetarpal छेत्रपाल जी का तंत्र में विद्या में लाभ
तंत्र में khetarpal छेत्रपाल जी का तंत्र में विद्या में लाभ – तंत्र जगत में भी khetarpalछेत्रपाल जी का विशेष महत्व है , जब कोई साधक लम्बे समय तक साधना करता है तो कोई शक्ति परत्यक्ष नहीं हो रही है। तो आप समझ सकते है के khetarpalछेत्रपाल उनको आप के पास आने से रोक रहे है। क्यों की कोइ भी शक्ति khetarpal छेत्रपाल जी की बिना आज्ञा से नहीं आ सकती।
इस लिए आप को पहले khetarpal छेत्रपाल जी को मनाना होगा तब जाकर वो शक्ति आप के पास आ सकती है। बहुत सारे तांत्रिक khetarpal छेत्रपाल जी को इस लेया सिद्ध करते है के उनको जल्दी सफलता मिल सके सफलता में कोइ बाधा उत्पन न हो। जैसे आप किसी विद्या की साधन कर रहे है तो उस शक्ति के जो सेवक या दूत होते है वो आप की साधना को भंग करने के लिए आते है
तो अगर आप के ऊपर khetarpal छेत्रपाल जे की किरपा है तो वो आपके पास आने से उस शक्ति को तुरंत रोक देंगे। इसे आप की सफलता के चास बढ़ जाते है। अगर आप khetarpal छेत्रपाल जी को सिद्ध कर लेते हो तो उस क्षेत्रकी जितनी भी सात्विक तामसिक मुस्लिम भूत प्रेत सब बड़ी छोटी शक्तिया आप के आधीन हो जाती है। इस साधना के बाद आप को अथाह शक्तिओ की प्रापति होती है। आज के लेया बस इतना ही जय श्री महाकाल
अगर आप कोई इस साधना के सम्बन्धी जानकारी लेना चाहते है तो नीचे दिए गए नंबर पर फ़ोन करो ph 85280 57364
प्रेम विवाह के लिए तांत्रिक प्रयोग ph. 85280 57364 Guru Gorakhnath ji’s tantric experiment for love marriage
प्रेम विवाह जल्दी होने के उपाय
प्रेम विवाह के लिए मंत्र
प्रेम ज्योतिष उपाय
प्रेम विवाह के लिए मंत्र
जल्दी होने के उपाय
प्रेम विवाह के लिए गुरु गोरखनाथ जी का तांत्रिक प्रयोग ph. 85280 57364 यह प्रयोग उन के लेया है जिनके माँ बाप जाती बंधन या किसी कारणवश शादी के लेया नहीं मान रहे है। यह प्रयोग करने के बाद शादी को कोई नहीं रोक सकता।
प्रेम विवाह और तांत्रिक प्रयोग नीतिशास्त्र का कथन है कि धन की आमद नित बनी रहे, शरीर निरोगी रहे, गृहस्थाश्रम पालन के लिये सुन्दर, सुशील, स्त्री पत्नी के रूप ‘ प्राप्त हो जाये तथा संतान का सुख मिलता रहे, तो व्यक्ति का जीवन सार्थक सिद्ध हो जाता है ।
विवाह संस्कार को नीतिशास्त्र में गृहस्थ जीवन की आधारशिला बताया गया है । विवाह संस्कार का मुख्य आधार परस्पर अपनत्व के भाव एवं प्रेम की डोर पर निर्भर रहता है । विवाह के बारे में सभी जानते हैं कि परिवारजनों द्वारा निश्चित किये गये सम्बन्ध ही विवाह में रूपान्तरित हो जाते हैं ।
इस संयोजित विवाह पद्धति का आज भी सम्मान किया जाता है। विवाह का एक अन्य रूप भी अपनी जगह बना रहा है, वह है प्रेम विवाह । अक्सर ही प्रेम विवाह परिवार के बड़े सदस्यों की सहमति के बिना, उनका विरोध करके सम्पन्न होते हैं।
इस बारे में अधिकांश लोग इसके विरोध में हैं किन्तु कुछ विद्वानों का ऐसा मानना है कि अगर पहले प्रेम करके लड़का-लड़की एक-दूसरे को ठीक से समझ लेते हैं और उन्हें लगता है कि वे विवाह करके सुखी दाम्पत्य जीवन जी पायेंगे तो उनका विरोध नहीं होना चाहिये। इसके विपरीत आज भी अधिकांश अवसरों पर प्रेम विवाह का विरोध ही होता है और इसे उचित नहीं माना जाता है। अनेक अवसरों पर प्रेम विवाह के प्रति परिवार वालों का विरोध इतना भयावह और वीभत्स होता है कि व्यक्ति उसके बारे में सुन कर ही कांपने लगता है ।
इसका अधिकांश विरोध कन्यापक्ष के परिवार वालों के द्वारा किया जाता है। उन्हें लगता है कि उनकी बेटी ने ऐसा कार्य करके परिवार का नाम खराब किया है । कई बार इस विरोध का परिणाम लड़के एवं लड़की की निर्मम हत्या के रूप में सामने आता है । इसके उपरांत भी प्रेम विवाह को उचित बताने वाले कम नहीं हैं।
इसलिये यहां पर एक तांत्रोक्त उपाय बताया जा रहा है जिसे करने के पश्चात् प्रेम विवाह की राह में आने वाली बाधायें दूर होने लगती हैं। यह उपाय सामान्य अवश्य है किन्तु परिणाम सार्थक प्राप्त होते हैं:- प्रेम विवाह की बाधाएं दूर करने वाला तंत्र प्रयोग : गौरी यानी सुलेमानी हकीक (ओनेक्स अगेट) की एक ऐसी किस्म है, जो इन्द्रधनुष जैसी छटा बिखरने वाला सृष्टि का सबसे अद्भुत पत्थर माना जाता है। गौरी हकीक मानसिक शक्ति, आत्मबल, विवेक, धैर्य आदि सामाजिक प्रतिष्ठा और प्रभाव की अभिवृद्धि तो करता ही है, यह धारक की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ बनाता है।
प्राचीन समय से ही ऐसी मान्यता रही है कि इस पत्थर के धारण करने के पश्चात् जो पुरुषार्थ भरे कर्म किये जाते हैं, उनमें निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है । पश्चिम एशिया के अनेक देशों, विशेषकर मुस्लिम जगत में प्राचीन समय से ही ऐसी मान्यता चली आ रही है कि इस पत्थर में शक्तिशाली हीलिंग क्षमता रहती है ।
इसलिये यह उदास मन की मलिनता एवं उदासी के भाव को तत्काल मिटा देता है। मन को प्रसन्नता से भर देता है । यह व्यक्ति के मन में सहज बोध जगाकर उन्हें सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने के साथ-साथ प्रेम विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करके उन्हें शीघ्र ही वैवाहिक बंधनों में बंध जाने में मदद करता है ।
अनेक बार ऐसा देखने में आया है कि जिन युवक या युवतियों की उम्र 35-36 वर्ष से अधिक हो जाती है और उनके किसी भी तरह का वैवाहिक कार्य सम्पन्न हो पा रहा है. अथवा जिन युवक या युवतियों को अपने प्यार को प्रेम विवाह में रूपान्तरित करने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, अगर ऐसे युवक या युवतियों को अभिमंत्रित गौरी नामक यह हकीक पत्थर धारण करवा दिया जाये तो उनका प्रेम विवाह शीघ्र ही सम्पन्न हो जाता है ।
प्रेम विवाह के लिए तांत्रिक विधि
प्रेम विवाह के लिए तांत्रिक विधि इसका प्रयोग बहुत आसान है। इसे शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुवार को सम्पन्न करें तो लाभ मिलने की आशा बढ़ जाती है । इस प्रयोग को प्रातः काल सम्पन्न करना ठीक रहता.. है। इसके लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता नहीं रहती है ।
जिस दिन प्रयोग करना हो, उस दिन प्रातः स्नान-ध्यान करके पवित्र एवं स्वच्छ हो जायें। सफेद रंग की स्वच्छ धोती धारण करें। पीला सूती अथवा ऊनी आसन उपाय स्थल पर बिछा लें।
यज्ञ करने के लिये एक मिट्टी का बर्तन भी चाहिये ।
अपने सामने लकड़ी की चौकी रख लें और उस पर पीला कोरा वस्त्र एक मीटर लेकर उसकी चार तह करके चौकी पर बिछा लें। उसके ऊपर गौरी हकीक पत्थर रख दें । समिधा के रूप में लोबान का प्रयोग ही किया जाना है । इसमें आगे लिखे गये मंत्र का जाप करते हुये एक जाप के साथ एक आहुति दें। इस प्रकार कुल 108 मंत्रों का जाप करना है और इतनी बार ही लोबान की आहुति देनी है।
तत्पश्चात् उस हकीक पत्थर को चांदी की अंगूठी में जड़वा कर स्वयं अपने दाहिने हाथ में धारण कर लेवें । इस मंत्रजाप एवं पत्थर को धारण करने से विवाह बाधा की समस्या दूर होती ही है, साथ ही प्रेम विवाह की बाधा भी समाप्त होती है । अगर पुरुष गौरी के साथ एक गोदन्ता मणि एवं स्त्रियां गौरी के साथ एक लाल रंग का मूंगा भी धारण कर लें, तो उनके प्रेम विवाह को कोई नहीं रोक सकता ।
सम्पूर्ण तंत्र Tantra साधना ज्ञान रहस्य Tantra Mantra Rahasya PH. 85280 57364 तंत्र Tantra का विषय बहुत विस्तृत और स्वयं में परिपूर्ण रहा है । इसलिये तंत्र Tantra शास्त्र को सहजरूप में, साधारण बुद्धि के साथ पूर्णरूपेण समझ पाना हर किसी के लिये संभव कभी नहीं रहा। अगर बात तंत्र Tantra साधनाओं के माध्यम से हस्तगत होने वाली क्षमताओं की, की जाये उन्हें तो समझ पाना और भी कठिन काम रहा है, क्योंकि कभी तो तांत्रिकों की बातेंपूर्णतः कपोल कल्पित और साधारण ज्ञान से परे की चीजें लगती हैं और कभी तांत्रिकों के क्रियाकर्म, व्यवहार विक्षिप्तों जैसे प्रतीत होते हैं। वास्तविक रूप में तो तंत्र Tantra का सम्पूर्ण विज्ञान स्थूल ज्ञान से परे आत्म अनुभूतियों पर आधारित रहा है। इसलिये तंत्र Tantra साधना की समस्त अनुभूतियां चेतन जगत से परे, साधक के अवचेतन जगत पर अवतरित होती हैं ।
तंत्र Tantra साधना के लिये माध्यम तो साधक का स्थूल शरीरही बनता है, लेकिन साधना की दिव्य अनुभूतियां सूक्ष्म शरीर के माध्यम से ही अवतरित होती हैं । यह बात हमें ठीक से समझ लेनी चाहिये कि सूक्ष्म शरीर की तथा आत्मिक शरीर की अनुभतियां, स्थूल शरीर की अनुभूतियों से बहुत भिन्न रूप में रहती हैं । हमारा स्थूल शरीर पंच ज्ञानेन्द्रियोंके माध्यम से अनुभूतियां संग्रहित करता है, लेकिन इन ज्ञानेन्द्रियों की अपनी-अपनी सीमाएं हैं। अपनी सीमा से परे के ज्ञान को यह ज्ञानेन्द्रियां पकड़ नहीं पाती हैं, किन्तु हमारे सूक्ष्म शरीर अथवा कहें कि आत्मिक शरीर की क्षमताएं स्थूल शरीर की अपेक्षा बहुत विस्तृत रूप में रहती हैं । इसलिये तंत्र Tantraादि साधनाओं के माध्यम से जो दिव्यानुभूतियां सूक्ष्म शरीर पर अवतरित होती हैं, उनके बहुत थोड़े से अंश को ही हमारा स्थूल शरीर पकड़ पाता है। यहां एक बात और भी ठीक से समझ लेने की है कि हमारे स्थूल शरीर से संबंधित जो ज्ञानेन्द्रियां हैं उनके ज्ञान का विकास समाज और वातावरण की देन है ।
इसलिये समाज हमें नाम प्रदान कर देता है । किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान आदि से जिस नाम से परिचित करवा देता है, वही हमारा ज्ञान हो जाता है। उससे आगे की हमें कोई जानकारी नहीं होती । यही मुख्य कारण है कि किसी अपरिचित व्यक्ति के विषय में हम कुछ भी नहीं बता पाते । अगर किसी पुरुष ने अपने जीवन में पहले कभी भी किसी स्त्री को न देखा हो और न ही स्त्री से संबंधित कोई जानकारी सुनी हो, तो वह पुरुष एकाएक अपने सामने किसी स्त्री को पाकर दंग रह जायेगा, और संभव है कि वह उसे कोई भूत, प्रेत या पशु आदि समझ कर उसके सामने से भाग खड़ा हो जबकि स्वयं उसका जन्म स्त्री शरीर से ही हुआ होता है।
सूक्ष्म शरीर पर अवतरित होने वाली अनुभूतियां वैसे भी चेतना जगत से परे की चीजेंहोती हैं । इन अनुभूतियों के विषय में समाज लगभग संज्ञाहीन ही रहता है। शायद आपने अनेक बार इस बात को तो समझा होगा कि हमारे अनुभव करने की जितनी सीमाएं हैं, उसके हजारवें अंश के बराबर भी हम अपनी अनुभूतियों को प्रकट नहीं कर पाते हैं। हम अपनी अचेतना के द्वारा अपने सूक्ष्म शरीर पर जितना अनुभव कर पाते हैं, उसके हजारवें अंश के बराबर भी सोच-विचार नहीं कर पाते ।
इसी प्रकार हम जितना कुछ सोच-विचार कर पाते हैं, जितनी कल्पनाओं, जितने विचारों को अपने मन में जन्म दे पाते हैं, उनके हजारवें अंश के बराबर भी हम उन्हें शब्दों के रूप में प्रकट नहीं कर पाते। अपनी भावनाओं, अपनी अनुभूतियों को लिखने की सामर्थ्य हमारे सोचने- विचारने की क्षमता के मुकाबले हजारवें अंश के बराबर भी नहीं होती । इसलिये कोई व्यक्ति अपने अन्तस में उठने वाले विचारों को थोड़ा अधिक अंश में पकड़ कर उन्हें बोलकर अथवा लिखकर प्रकट करने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है, वही समाज में सबसे अलग प्रतीत होने लग जाता है ।
फिर वह महान विचारक, महान लेखक, महान कवि, एक अद्भुत विद्वान के रूप में मान्यता प्राप्त कर लेता है । उसकी थोड़ी सी अधिक स्थूल क्षमता उसे सामान्य पुरुष से विशेष पुरुष अथवा महापुरुष बना देती है। लगभग यही बात तांत्रिक साधनाओंऔर उनके माध्यमों से उत्पन्न होने वाली क्षमताओं के विषय में भी कही जा सकती है । तांत्रिक साधनाओं और तांत्रिक अनुष्ठानों से जो क्षमताएं उत्पन्न होती हैं, उनकी दिव्य अनुभूतियां चेतना से परे रहने वाले सूक्ष्म शरीर पर उतरती हैं, किन्तु उन तांत्रिक अनुष्ठानों को सम्पन्न करने का मुख्य आधार साधक का स्थूल शरीर और बाह्य चेतना ही बनती है। इसलिये तंत्र Tantra के माध्यम से जो दिव्य अनभूतियां साधकों को अनुभव होती हैं, वह साधारणतः स्थूल शरीर पर पूर्णत: से प्रकट ही नहीं हो पाती हैं, क्योंकि उन्हें व्यक्त करने के लिये चेतना से संबंधित ज्ञानेन्द्रियों की सीमाएं सूक्ष्म पड़ जाती हैं।
प्राचीन रहस्यमयी सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana
प्राचीन रहस्यमयी सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana भगवान गणपति Ganapati की जिस साधक पर कृपा हो जाती है उस पर कभी कोई अभाव अथवा समस्या नहीं आती है । सामान्य पूजा और सच्ची श्रद्धा से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
हमारे यहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, साधना अथवा अनुष्ठान आदि किसी विशेष प्रयोजन आदि के लिये किये जाते हैं जैसे कि किसी को आर्थिक समस्या है, किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा है, किसी के विवाह आदि में बाधायें आ रही हैं अथवा अन्य किसी प्रकार की कामना पूर्ति हो ।
इसी अनुरूप यह प्रयोग भी उन लोगों के लिये विशेष लाभदायक है जो विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त हैं । यह प्रयोग करने के कुछ समय बाद ही समस्याओं में कमी आने लगती है। यह प्रयोग एक बहुत विख्यात बाबा के माध्यम से प्राप्त हुआ है ।
इन बाबा के अनेक भक्त हुआ करते ।। उन्हीं में से एक भक्त जब भी उनसे मिलता, तभी चेहरा उदास और परेशान सा लगता । बाबा ने उसे कभी मुस्कुराते हुये भी नहीं देखा था । एक दिन बाबा ने उससे उसकी समस्या के बारे में पूछा । तब उसने बताया कि उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है ।
वह कपड़े की एक मिल में प्रबंधन कार्य देख रहा है । जितना पैसा वेतन के रूप में मिलता है, उससे उसका निर्वाह ठीक से नहीं होता है । उसने बाबा को एक बहुत गंभीर बात बताई कि वर्तमान की उसे चिंता नहीं है, जैसे भी कठिन दिन हैं, वह उन्हें भोग लेगा, चिंता केवल भविष्य को लेकर है।
बच्चे अभी छोटे हैं, आने वाले समय में उनकी शिक्षा आदि पर खर्च करना पड़ेगा, घर के अन्य खर्च भी बढ़ेंगे, उनकी व्यवस्था कैसे होगी ? यही चिंता की बात है । उसकी बात में इतनी करुणा थी कि बाबा का दिल पसीस गया।
उन्होंने उसे शाम के समय बुलाया और सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana के बारे में बताया और इस प्रयोग की विधि भी बताई। उस भक्त ने बाबा के निर्देशानुसार इस प्रयोग को किया । इसके दो महीने बाद ही परिस्थितियों में परिवर्तन आने लगा था।
एक अन्य बड़ी मिल ने इसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर पहले वाले वेतन से तीन गुना अधिक पर अपने यहां नौकरी पर रख लिया । इसके दो साल बाद एक व्यक्ति ने इस साधक के साथ साझीदारी से मिल खोल ली । चार साल के भीतर ही इस साधक की सभी प्रकार की समस्यायें समाप्त होकर धन की वर्षा होने लगी ।
वास्तव में यह सौभाग्य गणपति साधना Ganapati Sadhana का फल इसके नाम के अनुरूप ही प्राप्त हुआ था। बाद इस साधक का मेरे साथ परिचय हुआ । इन्होंने मुझे इस साधना के बारे में बताया और आग्रह किया कि जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से परेशान है और जो इस उपाय को कर सकता है, उसे मैं अवश्य इसके बारे में बताऊं ।
फिर मैंने अनेक लोगों से यह उपाय सम्पन्न कराया। सभी ने इस उपाय को चमत्कारिक प्रभाव के बारे मुझे बताया। इस उपाय को मैं अपने असंख्य पाठकों के लिये यहां बता रहा हूं। जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से परेशान है, अत्यधिक श्रम करने के पश्चात् भी पैसों की परेशानी रहती है, उन सभी के लिये यह प्रयोग अत्यन्त प्रभावी एवं लाभ देने वाला है।
प्राचीन रहस्यमयी सौभाग्यप्रद गणपति साधना Ganapati Sadhana विधि Ganapati Sadhana विधि इस उपाय में सबसे पहले चांदी के पत्र पर अग्रांकित गणेश यंत्र उत्कीर्ण करवा कर उसे चेतना सम्पन्न कर लें । फिर उसे शुभ मुहूर्त में अपने उपासना कक्ष में स्थापित करके उसकी विधिवत उपासना करें।
अगर चांदी के पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करना सम्भव नहीं हो तो इसी गणेश यंत्र को भोजपत्र के ऊपर पंचगंध की स्याही एवं चमेली की कलम से लिखकर उसकी भी विधिवत् पूजा-अर्चना कर लें, ताकि यंत्र चेतना सम्पन्न बन जाये ।
इसके पश्चात् इस यंत्र को त्रिधातु निर्मित ताबीज में भर कर अपने कंठ अथवा बाहूमूल में लाल धागे से बांध लें । इस साधना में निर्मित किया जाने वाला गणेश यंत्र इस प्रकार है- यंत्र निर्माण के लिये पंचगंध की स्याही का प्रयोग किया जाता है। पंचगंध स्याही बनाने के लिये गोरोचन, श्वेत चंदन, केसर, ब्रह्म कमल पंखुड़ियां, अगर अथवा सुगन्धबाला की आवश्यकता होती है ।
सबसे पहले उपरोक्त गंधों को एकत्रित करके अच्छी तरह से घिस कर अथवा बारीक पीस कर परस्पर मिलाकर चंदन जैसा लेप बना लें । फिर किसी शुभ मुहूर्त, जैसे रवि पुष्प नक्षत्र या अमृत सिद्धि योग अथवा सर्वार्थ सिद्धि योग के अवसर पर चमेली की कलम द्वारा इस पंचगंध स्याही द्वारा विधिवत भोजपत्र के ऊपर लिख कर यंत्र तैयार कर लें ।
जब गणपति यंत्र तैयार हो जाये तो इनकी उपासना के लिये अगले शुभ मुहूर्त का चुनाव करें। इस Ganapati Sadhana गणपित अनुष्ठान को गणेश चतुर्थदशी के दिन से अथवा किसी भी शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि के दिन भी शुरू किया जा सकता है ।
अतः जिस दिन इस अनुष्ठान को शुरू करने का निश्चय करें, उस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर एवं नित्यकर्म से निवृत्त होकर तैयार हो जायें । एक स्वच्छ वस्त्र पहन कर अपने पूजाकक्ष में उत्तराभिमुख होकर आराम से बैठ जायें। बैठने के लिये कम्बल आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करें ।
आसन पर बैठकर अपने सामने लकड़ी की एक चौकी बिछाकर उसके ऊपर एक श्वेत रंग का वस्त्र बिछा लें। चौकी पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करके चांदी पर उत्कीर्ण किये गये सौभाग्यप्रद गणपति यंत्र को प्रतिष्ठित करें । इसके पश्चात् यंत्र पर पंचगंध युक्त स्याही से ग्यारह बार गंध अर्पित करते हुये ॐ गं गणपति नमः नामक मंत्र का उच्चारण करते रहें।
चांदी के यंत्र के साथ ही भोजपत्र पर बनाये यंत्र को भी प्रतिष्ठित कर लें । रजत पत्र पर उत्कीर्ण गणपति यंत्र को गंध लेपन के पश्चात् धूप, दीप अर्पित करें। घी का एक दीपक जलाकर चौकी पर रख दें और स्वयं गणपति को यंत्र में प्रतिष्ठित होने के लिये उनका आह्वान करें ।
धूप, दीप, पुष्प, गंध आदि चढ़ाने के पश्चात् चौकी के ऊपर गणपति के लिये पंचमेवा और लड्डूओं का भोग लगाकर रखें। अंत में गणपति के सामने अपनी प्रार्थना करें। उनसे जो मांगना चाहे मांगें तथा उनकी आज्ञा प्राप्त करके अग्रांकित मंत्र की कम से कम तीन मालाओं का जाप करें। अगर अधिक संख्या में मंत्रजाप संभव हो तो वैसा कर लें ।
। इस मंत्र का जाप स्फटिक माला अथवा मूंगा माला के ऊपर किया जाये, यह सर्वश्रेष्ठ रहता है । यद्यपि मंत्रजाप के लिये हकीक की माला का भी उपयोग किया जा सकता है। जब आपका मंत्रजाप पूर्ण हो जाये तो उसके उपरांत गणपति से एक बार पुनः अपनी प्रार्थना कर लें तथा उनकी आज्ञा लेकर आसन से उठ जायें।
गणपति Ganapati को जो नैवेद्य अर्पित किया गया है, उसमें से थोड़ा सा प्रसाद स्वयं ग्रहण कर लें, शेष प्रसाद को घर के अन्य सदस्यों में बांट दें । इस तरह निरन्तर 21 दिन तक इस अनुष्ठान को जारी रखें। प्रत्येक दिन प्रातः काल स्वच्छ होकर अपने पूजाकक्ष में बैठकर सौभाग्यप्रद गणपति यंत्र की पूर्जा – अर्चना करें ।
प्रतिदिन यंत्र को गंगाजल अथवा शुद्ध जल से धोकर पंचगंध लेपन करें। गंध लेपन के समय ग्यारह बार ॐ गं गणपति नमः मंत्र का जाप करते रहें । इसके पश्चात् यंत्र की धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजा-अर्चना करें । गणपति Ganapati Sadhana का आह्वान करें और उनसे प्रार्थना करके एवं उनकी आज्ञा प्राप्त करके गणपति के उपरोक्त मंत्र की कम से कम तीन माला मंत्रजाप करते रहें । जाप के पश्चात् गणपति Ganapati से प्रार्थना करना एवं आसन से उठने की आज्ञा लेना नहीं भूले । यह गणपति की नियमित पूजा का क्रम है ।
इस पूजा में एक बात का ध्यान रखा जा सकता है कि प्रतिदिन गणपति Ganapati को पंचमेवा का नैवेद्य लगाना ही पर्याप्त रहता है। लड्डूओं का नैवेद्य प्रथम दिन और अनुष्ठान के आखिर दिन अर्थात् 21वें दिन ही लगाना होता है। 21वें दिन, जिस दिन आपका अनुष्ठान सम्पन्न होता है, उस दिन एक माला अतिरिक्त मंत्रजाप करें तथा गणपति यंत्र के आगे रखे हुये नैवेद्य को घर-परिवार के अलावा आस- पड़ौस में भी बंटवा दें। विशेषकर बच्चों में प्रसाद बंटवाना अति शुभ रहता है। इस तरह 21वें दिन यह अनुष्ठान सम्पन्न हो जाता है।
अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् चांदी पर निर्मित गणेश यंत्र को पूजास्थल पर ही बने रहने दें तथा नियमित रूप से उसके सामने धूप, दीप आदि अर्पित करते रहें।
इसके साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ संख्या में मंत्रजाप भी नियमित रूप से जारी रखें, जबकि दूसरा गणपति Ganapati Sadhana यंत्र, जो भोजपत्र पर निर्मित किया गया है और जिसे त्रिधातु से बने ताबीज के अन्दर रखा जाता है, उसे लाल रेशमी धागे से अपने गले अथवा बायें हाथ की बाजू पर बांध लें।
21 दिन के दौरान जो पूजा सामग्री चौकी के ऊपर व इसके इर्द-गिर्द इकट्ठी हो जाती है, उसको एक जगह एकत्र करके किसी जल स्रोत में अथवा किसी नदी आदि में प्रवाहित करवा दें। इस प्रकार 21 दिन का गणपति Ganapati Sadhana का यह अनुष्ठान पूर्णता के साथ सम्पन्न हो जाता है।
गणपति का यह 21 दिन का अनुष्ठान बहुत ही प्रभावशाली है । इसको सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है । अनेक तरह की बाधायें एवं आपदायें स्वतः ही शांत हो जाती हैं ।
गणपति Ganapati Sadhana यंत्र को प्रतिष्ठित करने एवं इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से धन आगमन के स्रोत खुलते हैं, व्यापार वृद्धि होती है, मित्र एवं पारिवारिक सदस्यों से भरपूर सहयोग प्राप्त होता है तथा आर्थिक स्थिति दिनोंदिन सुदृढ़ होती जाती है।
गणपति के १२ नमो का जाप करना चाहिए गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।