विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran
विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran
विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran वर्तमान में एक विशेष स्थिति देखने में आ रही है । जैसे-जैसे समाज का भौतिक आधार बढ़ता जा रहा है और लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरती जा रही है, वैसे-वैसे सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य के साधन बढ़ते जा रहे हैं ।
इसके साथ यह स्थिति भी देखने में आ रही है कि जैसे-जैसे लोगों का बौद्धिक स्तर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही अनेक प्रकार की सामाजिक समस्यायें सामने आती जा रही हैं ।
शिक्षा के प्रसार, आर्थिक स्थिति के सुधार और सुख-सम्पन्नता के साधन जुटाने के साथ-साथ परस्पर विश्वास एवं निर्भरता की कड़ी कमजोर पड़ती जा रही है । इसलिये विवाह के साथ-साथ गृहस्थ जीवन, पारिस्परिक सम्बन्धों, प्रेम, अपनत्व एवं विश्वास की भावना में भी निरन्तर गिरावट आने लगी है।
शिक्षा के प्रसार और आर्थिक स्थिति सुधरने का सबसे अधिक प्रभाव वैवाहिक संबंधों में देखा जाने लगा है। अधिकतर सम्पन्न और पढ़े-लिखे परिवारों को अब अपने बेटों या बेटियों के लिये सुयोग्य वर या वधू के लिये लम्बे समय तक प्रयास व इंतजार करना पड़ता है।
उनके भावी संबंध स्थायी बने रह पायेंगे अथवा नहीं, इसका भी हमेशा संशय बना रहता है। युवाओं में स्वतंत्रता एवं निर्णय लेने की भावना के बढ़ते जाने और समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन शुरू हो जाने के उपरांत बच्चों का विवाह कार्य सम्पन्न करना एक जटिल समस्या बनता जा रहा है ।
चाहे वैवाहिक कार्य के समय पर सम्पन्न न हो पाने, रिश्तों का बनते-बनते रह जाना अथवा अकारण ही बीच में रिश्ता टूट जाने के पीछे अनेक कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, पर एक बात सर्वमान्य है कि वैवाहिक विलम्ब एक सामान्य समस्या बन गयी है ।
विवाह बाधा अथवा विवाह विलम्ब के पीछे कोई भी कारण क्यों न हो, तंत्र के पास उसका समाधान है । तंत्र आधारित ऐसे अनुष्ठानों को सम्पन्न करते ही अनेक बार वैवाहिक कार्य तत्काल सम्पन्न होने की स्थितियां बनने लगती हैं । इस अध्याय में शिव-पार्वती की तांत्रोक्त उपासना पर आधारित एक अनुभूत अनुष्ठान दिया जा रहा है।
यह तांत्रिक अनुष्ठान अनेक लोगों द्वारा प्रयोग किया गया है। अधिकांश अवसरों पर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से वांछित कामनाओं की पूर्ति अतिशीघ्र होने लगती है। जिस समस्या को दूर करने की कामना से यह अनुष्ठान किया जाता है, वह समस्या दूर होने लगती है ।
अगर इस तांत्रोक्त अनुष्ठान को पूर्ण भक्तिभाव एवं श्रद्धायुक्त होकर सम्पन्न किया जाये तो तीन महीनों के भीतर ही वैवाहिक कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाता है। इस अनुष्ठान की सबस बड़ी विशेषता यह है कि इसे सम्पन्न करने के पश्चात् विवाह में आने वाली बाधायें तो दूर होती ही है, साथ ही मनवांछित जीवनसाथी भी मिलता है ।
विवाह में यह बात बहुत महत्त्व रखती है कि विवाह में उत्पन्न होने वाली बाधायें दूर होने के बाद जीवनसाथी कैसा मिलता है। अगर किसी अनुष्ठान को करने से एक पच्चीस- छब्बीस वर्ष की आयु वाली युवती का विवाह किसी प्रौढ़ व्यक्ति अथवा किसी विदुर से होता है तो इसका क्या औचित्य है ?
विवाह हमेशा ही सात जन्मों का सम्बन्ध माना गया है, अगर किसी व्यक्ति अथवा युवती के विवाह के बाद एक जन्म का साथ भी ठीक से न चल पाये, विवाह सुख की प्राप्ति के स्थान पर जीवन अनेक प्रकार की समस्याओं से भर जाये तो इसे किस प्रकार का विवाह माना जाये, इस पर विचार किया जाना आवश्यक है । अगर जीवनसाथी मन अनुरूप मिलता है तो जीवन सुख से व्यतीत होने लगता है।
जीवन में कभी किसी प्रकार की समस्या अथवा परेशानियां आती हैं तो उसका मिलजुल कर सामना करके उन पर विजय प्राप्त की जाती है । इस दृष्टि से शिव-पार्वती के इस अनुष्ठान का महत्त्व बढ़ जाता है । यह अनुष्ठान करते समय कन्या किस प्रकार का वर चाहती है, इसकी कल्पना मन ही मन करे ।
इसी प्रकार किसी युवक को यह अनुष्ठान करना है तो उसे भी मानसिक रूप में उस कन्या का स्मरण करना होगा जिसे वह पत्नी के रूप में प्राप्त करना चाहता है ।
इसमें यह विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि अपनी स्थिति के अनुसार ही पति अथवा पत्नी की कल्पना करें। अगर एक युवक कल्पना में किसी अभिनेत्री से विवाह की कल्पना करता है तो ऐसी कामना पूर्ण नहीं होती है । यही स्थिति कन्या के साथ भी लागू होती है । ऐसी स्थिति में कामना पूर्ण न होने का दोष अनुष्ठान के परिणामों को न दें ।
हनुमान जी की तंत्र साधना Hanuman Tantra Sadhana हनुमान जी की तंत्र साधना रामभक्त हनुमान Hanuman के पराक्रम से भला कौन परिचित नहीं है । अंजनी नंदन भगवान हनुमान जी सर्वमान्य देव हैं । उन्हें अतुलित बल के धाम, बल – बुद्धि निधान, ज्ञानियों में अग्रमान्य, ध्यानियों में ध्यानी, योगियों में योगी और अनन्त नामों से विभूषित किया गया है ।
पवन पुत्र हनुमान Hanuman को शिव का अवतार माना गया है । तंत्र में उन्हें एकादश रुद्र माना गया है । पवन पुत्र इतने बलशाली हैं कि बाल्यकाल में ही उन्होंने सूर्य को अपने मुंह में रख लिया था । हनुमान Hanuman जी के विषय में सब जगह कई अन्य बातें प्रचलित हैं।
एक बात यह है कि कलियुग में जहां भी रामकथा का गुणगान किया जाता है, वहां पूरे समय कथास्थल पर भगवान श्री हनुमान Hanuman जी उपस्थित रहते हैं । यह विश्वास एक अन्य तथ्य से भी सिद्ध होता है । संसार में सात चिरंजीवी माने गये हैं । इन सात चिरंजीवियों में अश्वत्थामा, परशुराम और हनुमान तो सर्वविख्यात हैं । चिरंजीवी का अर्थ है जो मृत्यु के रूप में शरीर का परित्याग नहीं करते, बल्कि स्वेच्छा से दृश्य-अदृश्य होने की शक्ति का उपयोग करते हैं।
Veer Bulaki Sadhna – प्राचीन रहस्यमय वीर बुलाकी साधना PH.85280 57364 गुरु मंत्र साधना में आप का स्वागत है दोस्तों बाबा वीर बुलाकी कोण है कैसे इनका जन्म हुआ कैसी या कितनी बड़ी शक्ति है इन सब के बारे में बहुत सारी कथाएं बहुत सारे लोगों को जो आपने सुना होगा यूट्यूब पर भी बहुत सारे देखा और सुना होगा
गोगा जाहरवीर के पुत्र के जाते हैं यमुना में बहा दिए गए थे उनके बरून और कई लोग धोने से यह जन्मे है कई कहानियां कहानियां है। मैं एन के बारे में बताने जा रहा हु और शायद आपने यह जानकारी कहीं थोड़ी बहुत सुनी होगी और पूरी जानकारी कहीं नहीं सुनी होगी।
तो आज जो मैं आपको बताने जा रहा हूं बाबा वीर बुलाकी के बारे में जो कि आगरा की सच्ची सरकार कहीं जाते हैं। इन का जो स्थान है वह आगरा में है उससे पहले मैं आपको बता दूं कि अगर आपने हमारे वेबसाइट को सब्सक्राइब नहीं किया। तो सीधे हाथ पर जो बटन उसे दबा दो ताकि हमारी आने वाली जो और जानकारियां है वह भी आपको मिल जाए गा।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki का स्वरूप तो मैं आपको बता दूं जो बाबा वीर बुलाकी हैं इनके जन्म की तो जो कथाएं हैं वह एक अलग नहीं आए जिसे प्राचीन हम लोग कह सकते हैं। जो अभी तक किसी के सामने नहीं आई है वही सुनी सुनाई बात है वह चल रही है। बाबा वीर बुलाकी वह बहुत शक्तिशाली देवता है,बालक का जो स्वरूप है बाबा वीर बुलाकी का पूजा जाता है, उनके एक हाथ में सोटा और एक हाथ में मदिरा है।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki जी का स्थान बाबा वीर बुलाकी जी सबसे ज्यादा जमुना माता को मानते हैं जमुना को अपनी माता मानते हैं। जमुना जी आगरा तक जाती है और इनके मंदिर और मठ जमुना किनारे बनाए जाते है ! इनका सबसे बड़ा स्थान आगरा में ही है !
यह जमुना माता को इतना मानते अगर इनको जमुना माता की आन दी जाए तो यह वही रुक जाते है। और कमाल खा सयद इन के मिन्दर के पास कमाल खा सयद की मजार है. यह उनको अपना गुरु मानते थे ! कमाल खा मसानी माता काली और श्मशान आग वाणी शक्ति इनके साथ चलती है।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki किस रूप में आते है
बाबा वीर बुलाकीVeer Bulaki किस रूप में आते है- वह बाबा वीर बुलाकी के साथ बाबा वीर बुलाकी बहुत उग्र देवता है जब इनकी सवारी आती है। तो यह जोर जोर से हाथ हलाते है। भगत के दिल की धड़कन बहुत बढ़ जाती है जैसे कितने किलोमीटर से दौड़ लगा कर आया हो बाबा वीर बुलाकी जो है वह उग्र देवता है जब आते है।
तो हाथ जो है यह हाथ जोर जोर से हलती हुए आते है। जब इनकी की सवारी आती है तो अलग ही रूप इनका देखने को मिलता है जो इनकी जो साधना है इनकी जो सेवा है वह 99 परसेंट फलदाई होती है। अगर आप इसे करते हैं जमुना घाट पर घर के मुकाबले में जायदा प्रभावशाली है।
आप अगर इसे जमुना घाट की सेवा करते इनका भोग देते हैं तो अति शीघ्र फलदाई होती है। जमुना घाट पर किया जाता है जमुना जी किनारे इनकी जब पूजा भोग दिया जाता है।
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki जी इस भोग पर चलते है
बाबा वीर बुलाकी Veer Bulaki जी इस भोग पर चलते है बाबा वीर बुलाकी जो है वाल्मीकि समाज में के कुल देवता माने जाते हैं देव तो है वह पर वाल्मीकि समाज में यह बहुत सारे लोगों की जो है वह कुल देवता है यह जो है यह सूर का बच्चा बकरा मुर्गा और दारू इस पर चलते हैं . शक्तियां जो हैं वह कोई बुरी नहीं होती पर जो लोग हैं जो भगत हैं वो उन्हें बुरा बना देते हैं वंदन करके करके उनको कुछ शक्तियां है जो कार्य करने के लिए तत्पर हो जाती हैं पूजा लेकर काम करते है
तो पहले तो मैं आपको एक बात बता दूं बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो बाबा वीर बुलाकी को गालियां उल्टी-सीधी बोलते हैं और भी देवी देवता एक चीज नहीं है दिमाग में रख लेना हम हैं इंसान हम जो हैं वह कर्म बंद है पर शक्तियां कर्म बंद नहीं होती कोई भी कार्य करेंगे तो पाप पूण्य नहीं लगता !किसी की बात ओ में आकर इनके बारे में कुछ उल्टा मत बोल देना अगर यह बिगड़ जाते है तो घर को श्मशान बना देते है
गुरमुख होकर जब किसी गुरु के द्वारा पूरे परंपरागत चलते हैं पूरे कुल में चलते रहते तो पीड़ी दर पीड़ी चलते है अगर कुल में कोई भोग नहीं देता तो यह कोई संकेत नहीं देते है भवाल मचाना शुरू कर देते है अगर आपने इनकी पूजा भोग दिया है जाता है तो यह आपकी पीढ़ी को भी पूजे जाते है
वाल्मीकि समाज में सबको पता होता है इसलिए वह सब पूजा करते है अगर कुल कोई और समाज का व्यक्ति बाबा वीर बुलाकी को लेना चाहता है तो बहुत सोच समझ कर ले क्योंकि बहुत उग्र शक्ति है बहुत शक्तिशाली शक्ति है उनकी पूजा सेवा टाइम पर नियम जो इनके वह बहुत कड़े होते हैं वह कर करते है तो बाबा वीर बुलाकी जो है वह अति शीघ्र प्रसन्न होने वाले है
वीर बुलाकी Veer Bulaki साधना विधि जैसे मैंने आपको बता दिया उनका स्वरूप जो है वह काला है शनिवार के दिन माना जाता है। शनिवार के दिन की पूजा की जाए बहुत ज्यादा बहुत जल्दी प्रसन्न होते मैंने आपको बता दिया कि बाबा बुलाकी कमाल का सैयद और जमुना माता इन तीनों का भोग ज्यादा जमीन की पूजा की जाती है।
इनकी जो साधना है वह वैसे 41 दिन की साधना इनकी जब की जाती है। अगर आप घर पर साधना कर रहे हैं जमुना किनारे भोग देकर आना होता है शनिवार की घर पर आपको जो भी आप ध्यान लगाना है। फिर मंत्र जाप करना होता है इनकी पूजा में जो चीजें इस्तेमाल होती हैं वह बूंदी का लड्डू बर्फी है दूध है।
अगरबत्ती लोग कपूर सिगरेट शराब की बोतल और छुआरा सामग्री जो है इन के भोग के लिए प्रयुक्त की जाती है यह प्रयोग किया जाती और एक इनका जो है वह दीपक जलाया जाता है।
इनकी जो सेवा है कि जो पूजा है जो इनकी सेवा पूजा करते हैं वह जल्दी कह सकते हैं। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं जो है और जिन कामो को करने के लिए उनकी शक्ति बिल्कुल चुटकी भर से काम करती है। इनकी साधना में जो है वह लाल और काले कपड़े का प्रयोग किया जाता है और साथ-साथ माला होनी है। वह हकीक की माला जो है वह प्रयोग की जाती है।
वीर बुलाकी Veer Bulaki की सिद्धि के लाभ
वीर बुलाकी Veer Bulaki की सिद्धि के लाभ इनका जो भगत है अगर इनका भगत जो है वह किसी के घर में पैर रख देता तो सारी चीजों का अनुभव हो जाता है। और बहुत सारी सारी चीजें जो है वह अपने आप ही घर छोड़कर भाग जाती हैं किसी के घर घर की देवताओं को मानते हैं उस घर की जो देवता है वह पहले खुद ही साइड हो जाते हैं , हर जगह पर ही चले जाते हैं किसी चीज का परहेज नहीं है। गंदी अच्छी हर जगह पर चले जाते हैं कार्य करते है आप के बड़े से बड़े कम इन की साधना चुटकी में हो जाते है यह बहुत ही तीव्र गति से काम करते है।
कभी भी अगर कोई करने के लिए सोच मेरा वैसे तो वाल्मीकि समाज में बहुत आसानी से इनकी सेवा पूजा मिल जाती है जैसे यह हुक्का लगाया जाता और जब इनकी सवारी आ जाती है का प्रसाद दिया जाता है यह साधना बिल्कुल किसी को नहीं करनी चाहिए क्योंकि बिना गुरु के बहुत हानिकारक हो सकती है साथ यह साधना साधना ऐसी होती जो बिना गुरु ले कर सकते बस कुछ साधना ऐसी होती है जो बिना गुरु की करनी ही नहीं चाहिए साधना है
बिना गुरु के इस साधना को भी मत करना बहुत अचूक साधना है बहुत कहते हैं कि उग्र साधना है। अगर आप वाल्मीकि समाज से तो आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। साधना को करना साधना आपको पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती है अपने गुरु से मिलती और बात करें।
अगर मंत्र की बात करें तो देखो मंत्र जो मैं आपको बताने जा रहा हूं। इनका बहुत ही शक्तिशाली शाबर मंत्र है और देखो बात होती कि कोई भी देवता है ना उसके मंत्र तो सही होते हैं गुरु से के द्वारा जो मिले होते हैं। सिद्ध मंत्र होते वह जो किसी ने नेट पर बात होती है परंतु जो मंत्र होते हैं. वह सही में नहीं चलते हैं और मंत्र जब जागृत होते हैं। जब आपकी सेवा आपके भक्ति मंत्रों को जागृत करते है.
बोलना चाहूंगा कि बहुत उग्र साधना है बहुत सोच समझकर साधना को करिएगा अगर करना चाहते हैं ,तो और मैं तो आपसे पर यह बोलूंगा कि देखो जानकारी के लिए यह सारी चीजें आपको उपलब्ध होती हैं।
आप जानकारी बहुत से लोगों को होती है। जानकारी के किस तरीके कौन देवता क्या है कैसा है। कहां क्या कैसे काम करता है कैसे साधना करना जानकारी लेने में फर्क होता है मैंने बाबा वीर बुलाकी के बारे में थोड़ा सा आपको बता दिया बाकी मेरी कोशिश है कि आपको ज्यादा ज्यादा जानकारी बता सकूं बाकी जैसे मैंने आपको बताया है कि
1 बाबा वीर बुलाकी का सात्विक भोग क्या है ?
बूंदी का लड्डू बर्फी है दूध है अगरबत्ती लोग कपूर सिगरेट शराब की बोतल और छुआरा बतासे
२ बाबा वीर बुलाकी साधना किस रूप में आते है ?
वह बाबा वीर बुलाकी के साथ बाबा वीर बुलाकी बहुत उग्र देवता है जब इनकी सवारी आती है तो यह जोर जोर से हाथ हलाते है भगत के दिल की धड़कन बहुत बढ़ जाती है जैसे कितने किलोमीटर से दौड़ लगा कर आया हो बाबा वीर बुलाकी जो है वह उग्र देवता है जब आते है तो हाथ जो है यह हाथ जोर जोर से हलती हुए आते है जब इनकी की सवारी आती है तो अलग ही रूप इनका देखने को मिलता है
३ बाबा वीर बुलाकी के साधना में शीघ्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए क्या करना होगा ?
बाबा वीर बुलाकी जी की साधना अगर जमुना दे किनारे पर की जाए तो जल्दी सिद्धि प्राप्त हो सकती है
4 बाबा वीर बुलाकी की पूजा किस दिन होती है ?
बाबा वीर बुलाकी की पूजा शनिवार से होती है इस का भोग शुभ महूरत में होता है जैसे के दीवाली होली पर
5 वीर बुलाकी Veer Bulaki तामसिक भोग
बाबा वीर बुलाकी जो है वाल्मीकि समाज में के कुल देवता माने जाते हैं देव तो है वह पर वाल्मीकि समाज में यह बहुत सारे लोगों की जो है वह कुल देवता है यह जो है यह सूर का बच्चा बकरा मुर्गा और दारू इस पर चलते हैं . शक्तियां जो हैं वह कोई बुरी नहीं होती पर जो लोग हैं जो भगत हैं वो उन्हें बुरा बना देते हैं
चमत्कारी प्राचीन लोना चमारी lona chamari साधना शाबर मंत्र lona chamari ph.85280 57364
लोना चमारी साधना lona chamari sadhna
लोना चमारी lona chamari का भोग
लोना चमारी lona chamari साधना विधि
लोना चमारी lona chamari मंत्र
लोना चमारी lona chamari साधना के लाभ
चमत्कारी प्राचीन लोना चमारी lona chamari साधना शाबर मंत्र lona chamari – पलभर में सिद्ध करे सभी काम, कामरु देश लूना चमारी साधना गुरु मंत्र साधना .कॉम में आपका हार्दिक स्वागत है । दोस्तों तंत्र मंत्र में जहां 52वीर 56 कलवा चौसठ योगिनी का बहुत बड़ा स्थान है साथ में लोक देवताओं का स्थान है । जिसमें गोगा जाहरवीर मीरा पहलवान और भी हमारे बहुत सारे लोक देवता का स्थान है ! lona chamari
और भी हमारे देवता हो बाबा नागार सेन हो चाहे ग्राम खेड़े हो चौक चौराहे वाली माता हो उसी प्रकार एक ऐसी तंत्र की देवी हैं जिनको लूना चमारी के नाम से जाना जाता है । लूना जोगन के नाम से जाना जाता है जो कामरु देश कामाख्या की हैं अपने आप में असीम शक्तियों को समाहित करने वाली यह देवी एक बहुत बड़ी जादूगरनी के नाम पर बहुत बड़ी जादूगरनी के रूप में पूजी जाती हैं । जिसमें बहुत सारे लोगों के घर की कुलदेवी के रूप में पूजते हैं ,तो कुछ लोगों की देवी कहीं जाती है ।
लूना जोगन को लूणा जोगन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनके जो गुरु थे । इस्माइल जोगी थे तो जिस तरीके से नाथ परंपरा चली गुरु गोरखनाथ के बाद उनके शिष्य थे । वह नाथ कहलाए चौरंगीनाथ भरतरी नाथ उसी प्रकार से इस्माइल जोगी की जो शिष्या थी । वह लूना चमारी और लूना जोगन के नाम से प्रसिद्ध हुई । जिनका नाम आज तंत्र की दुनिया में बड़े सम्मान से लिया जाता है ,और साथ-साथ जितने भी शाबर मंत्र हैं उन शाबर मंत्रों में लूना चमारी का एक विशेष स्थान है ।
अगर लूना चमारी की आन किसी मंत्र में दे दी जाए शाबर मंत्र में तो निश्चित रूप से उस देवता को वह कार्य करना पड़ता है । या फिर उस देवता को अपनी शक्ति का अंश प्रदान करना पड़ता है, यह बहुत बढ़िया जादूगरनी थी इनाम तांत्रिक कह सकते हैं । जिन्होंने बहुत सारी साधना की थी और साथ साथ में गुरु गोरखनाथ जी को खुश किया था । गुरु गोरखनाथ जी से 56 कलवो का वरदान प्राप्त किया था । मां भगवती मां दुर्गा की साधना करके इन्होंने असीम शक्तियां हासिल की थी और गुरु इस्माइल जोगी उनसे इन्होंने बहुत सारी कलाएं बहुत सारी तंत्र मंत्र की दीक्षा जो है वह ग्रहण की थी ।
जब इन के पास ५६ कालवे आ गए थे तो बहुत काम करने के लाइक हो गई थी । बहुत सारे कार्य को करने में सक्षम हो गई मैं आपको बता दूं जब 56 कलवे जैसे हम बोलते हैं गोगा जाहरवीर के पास में गोगा जाहरवीर जी महाराज से पांच बावरियों को 56 कलवे मिले उन पांच बावरियों का 56 कलवे प्रदान किए गए, तो अगर आपने उनकी कहानी पढ़ी हो तो जब उनके सर कट गए थे ।
तब भी वह युद्ध में लड़ते रहे थे और सा साथ में वह जैसे पीर अस्तबली उनके स्थान पर जाकर अमर हो गए और पांच बावरियों की कई स्थान है । जहां पर उनकी पूजा होती है चाहे सफीदों धाम मुरथल खेड़ा हो इसी प्रकार जब 56 कल्वो की जो शक्ति होती है ।
वह असीम होती है जिस जिस ने 56 कल्वो को प्राप्त किया है । उसका नाम इस जग में अमर हो गया है और यहां तक कि वह पूजनीय हो गया है अगर 56 कलवे कर लेते है । यह बहुत अद्भुत कार्य करते हैं जैसे कि किसी की खबर मंगवानी हो उनकी शक्ति के द्वारा किसी को पीड़ा देनी हो शमशान की शक्ति का काट करना हो वह बांधनी कोख खोलनी हो ।
हाजिरी मंगवानी हो मारण करना हो आकर्षण करना हो वशीकरण करना हो उच्चाटन करना हो । इस सभी क्रियाएं 56 कलुआ के द्वारा की जा सकती है और साथ ही किसी की भी पूछा देना किसी भगत के द्वारा वह भी 56 कलवे करते हैं उस कार्य को भी 56 कलवे सिद्ध करते हैं । 56 कलवे के द्वारा किसी भी व्यक्ति की सालों पुरानी बातें वह भगत खोल के रख सकता है
sham Kaur Mohini माता श्याम कौर मोहिनी की साधना और इतिहास
sham Kaur Mohini माता श्याम कौर मोहिनी की साधना और इतिहास बहुत सारे sadhak जनो के अनुरोध पर आज हम आप लोगों को देवी श्याम कौर मोहिनी के विषय में पूर्व और प्रमाणिक जानकारी देंगे ,और इनके साधना का भी ध्यान भी आपको देंगे की देवी श्याम कौर मोहिनी के विषय में जितनी भी जानकारी गूगल पर है। 99% जानकारी गलत है। इनके विषय में जितनी भी जानकारी आप लोगों को गुरु देते हैं वह भी 99 प्रसिद्ध झूठी है। कोई इसे जोड़े में चलता है बताते हैं कोई इसे धर्म की बहन बताते हैंकोई इसे पांच बावरियों की बहन बताते हैं।
माता श्याम कौर sham Kaur Mohini मोहिनी परिचय
माता श्याम मोहिनी sham Kaur Mohini का इतिहास
माता श्याम कौर sham Kaur Mohini मोहिनी मंत्र रहस्य
माता श्याम कौर sham Kaur Mohini मोहिनी साधना के लाभ
Masani Meldi माता मेलडी मसानी प्रत्यक्ष दर्शन साधना और रहस्य ph. 85280 57364
guru mantra sadhna .com me आप का स्वागत है माता मेलडी के परिचय के बारे में परिचय देंगे दोस्तों माडी गुजराती का शब्द है ,माडी का हिंदी में अर्थ होता है माता माता को ही माडी कहते हैं। जो मसानी श्रेणी की शक्ति होती है , यह मिसाइल की तरह होती है यह शक्तिया साधक के सब काम करती है। कोई भी कार्य हो उचित अनउचित सब काम करती है और वो कार्य भी कम समय में करती है। मिसाइल का उद्धरण देने का कारन यह शक्ति कम समय में काम करती है , शक्ति यह नहीं देखती के सामने वाला कोण है कैसा बिलकुल मिसाइल की तरह काम करती है। अगर आप शक्ति से गलत काम भी करवाओ गए कर देंगी पर इस का फल आप को भोगना होगा कुछ समय के पश्चात् कर्मो से आज तक कोई नहीं बच पाया है। Masani Meldi माता मेलडी मसानी मैली शकितया की सवारी करती है इन्होंने भूत प्रेत मसान मंत्रिका तंत्रिका सब मैली शकितो को बकरा बना कर उस पर सवार हो गई थी Masani Meldi माता मेलडी मसानी सभी मैली शक्तिओ के स्वामी है । आगे की कथा में आप को इस बारे में विस्तार सहित जानकारी मिलेगी।
मेलडी माता का भोग
माता मेलडी मसानी साधना
मेलडी माता का मंत्र
मेलडी माता का इतिहास
माता मेलडी मसानी साधना विधि
Masani Meldi माता मेलडी मसानी सिद्धि के लाभ
मेलडी माता का मंदिर
Masani Meldi मेलडी माता का इतिहास – माता मेलडी मसानी उत्पति की कथा
मेलडी माता का इतिहास – सत्ययुग की समाप्ति के समय बहुत प्रतापी मायावी और मर्दानी था असुर था जिसका नाम अमरूवा था उसके अत्याचारों से कुहराम मच गया था और देवताओं का महासंग्राम हुआ था। और उसमें देवता पराजित हो गए थे। उन्होंने महाशक्ति की स्तुति की और वहां आदि शक्ति जगदंबा सिंह वाहिनी दुर्गा प्रकट हुए और उन्होंने नौ रूप धारण किए उनके साथ दसमहाविद्या और अन्य सभी शक्तियां प्रकट हुई। महा भयंकर युद्ध चला और 5000 वर्षों तक लगातार युद्ध हुआ। अपने प्राणों को संकट में देखकर भागा वह रहा में देखता है कि किसी मृत गां के देह का पिंजरा पड़ा है।
उसे लगा कि इस पिंजरे में शरण लू तो के देव देवी नजदीक नहीं आएंगे और असुर पिंजरे में समा गया देवी शक्तियां पीछा करते हुए वहां पर आए तो शत्रु के पिंजरे में जा घुसा है। सभी देव या वहीं पर ठिठक कर खड़ी हो गई मृत गां का पिंजरा अशुभ माना जाता है तब देविया सोच में पड़ गई कि इस आशुद्ध पिंजरे से दैत्य को निकालना वह भी पिंजरे में घुसकर यह तो असंभव है, और पिंजरे से बाहर निकाले बिना वध भी नहीं किया जा सकता है। ऐसी अजीब स्थिति में देवी शक्तियां मजबूरी में अपने हाथ मलने लगी हथेली पर हथेली की रगड़ से उर्जा उत्पन्न हुई। और मैल के रूप में बाहर आई श्री उमा देवी ने युक्ति लगाई और सारे मेल को एकत्र करें
मूर्ती का रूप दिया सभी देवी और देव मिलकर आदिशक्ति की स्तुति करने लगे तत्काल उस मूर्ति से आदिशक्ति वह हाथ में खंजर ले 5 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गए। और पूछा है माताओं मुझे बताओ क्यों मेरा आव्हान किया देवियों ने सारी व्यथा कह सुनाई और सारा माजरा समझ गई।
देवियों के कहे अनुसार गाउ के पिंजरे में प्रवेश कर गई। जब उस असुर ने यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो गया , और वहां से बाहर भागा और स्याल सरोवर में जाकर कीड़े के रूप में छिप गया कन्या स्याल सरोवर में प्रवेश करके असुर का वध किया और सब देवताओ ने जयजयकार किया और अपने धाम को लोट गए। अगर कन्या खुद उत्पन होती तो कार्य पूरा करने के पश्चात् खुद चली जाती। यहाँ पर तो उस कन्या की रचना कर आवाहन किया गया था ।
उस कन्या ने उमिया माता को पकड़ा और अपना नाम धाम और काम पूछा उमिया माता ने उन्हें चामुंडा के पास भेज दिया। सत्य हमेशा कसौटी पर कसा जाता है। और सत्य की परीक्षा होती है चामुंडा नाम कन्या को कामरूप कामाख्या विजय हेतु भेजा चामुंडा जानती थी ,कि कामाख्या तंत्र मंत्र जादू टोना और आसुरी शक्तियों की सिद्धि स्थली है। यदि यह वहां से विजय होकर लौटती है , तो अभी इनकी वास्तविक शक्ति का अंदाजा होगा फिर उसी के अनुसार नाम और काम सौंपा जा सकेगा।
कन्या काम रूप में लगे पहरे को ध्वस्त कर दिया, मुख्य पहरेदार नोरिया मसान को पराजित कर दिया। कामाख्या नगरी में प्रवेश के साथ उन्होंने देखा कि तंत्र मंत्र जादू टोना काली विद्या माया के ढेर इन सब को समझने में ही अमूल्य समय जाया हो जाएगा। उन्होंने सब को घोल बनाकर बोतल में भर लिया भूत प्रेत मंत्रीका का तंत्रिका सभी दोस्तों को बकरा बनाकर उस पर बैठकर बोतल लेकर बाहर आ गई और माँ चामुंडा पास पहुंची।
देवता दानव सब उनका जयघोष किया, चामुंडा ने कहा जिस विद्या का प्रयोग दूसरों को दुख देने के लिए होता है उसे मैली विद्या कहते हैं ,तुमने उसी मैली विद्या पर विजय पाई है। एवं समस्त शक्तियों के हस्त रगड़ से तुम्हारी उत्पति हुई है। इसलिए तुम्हारा नाम मेलडी माता होगा तुम्हारा स्वरूप कलयुग की महाशक्ति रूप के लिए हुआ है तुम कलयुग के विकार अर्थात में काम क्रोध मद लोभ मोह का नाश करने वाली शक्ति हो।
सारा संसार तुम्हें श्री मेलडी के रूप में पूजा अर्चना करेगा तुमने समस्त दुष्टो को बकरा बना दिया है अब यही तुम्हारा वाहन होगा संस्कृत में बकरे को अज कहां जाता है अज का अर्थ ब्रह्मांड होता है। बकरे के ऊपर या ब्रह्मांड के भी ऊपर विराज ने वाली आदिशक्ति हो रूप में गुजरात की भूमि तुम्हारा वा स्थान होगा। परंतु तात्विक रुप से देह धारियों की जीवनी शक्ति के रूप सारी सृष्टि में तुम्हारा बात स्थान होगा कलयुग में तुम बकरे वाली मेलडी मां घर-घर पूजी जाओगी।
Sifli ilm सिफली इलम रहस्य हिंदी में विस्तार सहित सिफली इलम का नाम आप ने ज़िंदगी में जरूर सुना होगा। पर आप को इस बारे में जानकारी नहीं होगी के यह सिफली इलम क्या होता है। आज हम इस विषय पर ही बात करेंगे हमने पहले भी तंत्र के ऊपर बहुत सारी जानकारीया इस ब्लॉग में बताई है आप वो पोस्ट भी जरूर देखो। तंत्र के बारे में आपको बहुत जानकारी हो जाएगी हमारा यही उदेश्य है के तंत्र क़ी छोटी से छोटे जानकारी को आप को प्रदान करना।
सिफली इल्मSifli ilm क्या है ?
सिफली इल्म Sifli ilm क्या है ? सिफली इल्म
Sifli ilmएक तंत्र की प्रकार है तंत्र कई तरह का होता हैसिफली इल्म भी एक तंत्र का परकार है। yeh साधरण तंत्र से जायदा खतरनाक होता है। इस तंत्र के द्वारा शैतानी शक्तिओ को जागृत किया जाता है। जो शक्तिया शमशान और कबरस्तान में निवास करती है जिसे में काळा जिन में काली जिन्नात और भूत प्रेत ख़मीस शामिल है।इन काली शक्तिओ का इस्तमाल गलत कामो के लेया किया जाता है।
सिफली इल्म Sifli ilm की काट और सिफली इल्म का इलाज
सिफली इल्म Sifli ilm का तोड़ अगर किसी पर सिफली इलम किया गया है। और वो वियक्ति इस इलम से परेशान है तो उसे आयतुल कुर्सी का पथ करना चाहिए उसे इसे आराम मिलेगा। अगर आयतुल कुर्सी पढ़ने नहीं आता है तो किसी और से जप करवा कर जल को आयतुल कुर्सी के पाठ से अभिमंत्रित करवाकर उस जल को ग्रहण करे। अगर इलम घर में किया गया है तो आप अभिमंत्रित जल का छिड़काओ घर में भी कर सकते है।
सिफली इल्म
Sifli ilm
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शिव तंत्र रहस्य – Shiv Tantra Rahasyamaya Ph. 85280 57364
शिव तंत्र रहस्य – Shiv Tantra Rahasyamaya Ph. 85280 57364
शिव तंत्र रहस्य – Shiv Tantra Rahasyamaya Ph. 85280 57364 तंत्र क्रियामक पद्धति साधना जगत में एक की अपेक्षा किसी हैं। इस बहुता व्यवस्था की ही दूसरी संज्ञा है बात की पुष्टि होती है कि प्रत्येक सम्प्रदाय का अपना विशिष्ट के इस तथ्य से, है। तंत्र रहा है, चाहे वह वैष्णव सम्प्रदाय चाह हो
अथवा अन्यान्य कोई भी सम्पदा निय ज्यो और प्रत्येक तंत्र का आधार रही है शिवोपासना ! तं शब्द से आज का समाज सन्तुष्ट नहीं है। तंत्र के प्रति समवेत् विरोध का स्वर सुनाई देता है दूसरी ओर समाज का महत्वाकाक्षी वर्ग तांत्रिक साहित्य की ओर आकर्षित हो रहा है।
प्रायः जादुई क्रियाकलाप की सीमा में ही मि अनैतिक या और सृजित विद्या में शिव रूप में मान्यता प्राप्त है समय के परिवर्त्तमान चक्र से तंत्र शब्द की सामाजिक क्रिया-पक्ष को समाज के साथ अविरत सुनियोजित नहीं किया जा सकता है।
आत्मा के परिज्ञान के परिवेश को जब जगत से उठाकर बाह्य मंडल में आरोपित करने की स्थिति की अवस्थिति को इसमें प्रत्यभिज्ञान कहा गया है. | लेकिन गर्हित कार्य की सर्वदा निन्दा की गई है। साधना के क्षेत्र में भौतिक सुखों की उपेक्षा ही नहीं इनकी अप्रस्तुति भी की गई है।
तंत्र में कुल कुण्डलिनी को जगाकर मणिपुर निवासी आनन्दमयी शक्ति के साथ जीव के विलीनीकरण का आयकरण किया गया है। इस | ब्रह्ममयी शक्ति के सम्पर्क से जीव शिव स्वरूप को प्राप्त करता है तंत्र निश्चित से वह दिया है, जिसमें जीव | की माया का साक्षात्कार योगमाया से होता है।
योग समत्व की अमिधा शक्ति है। समय की इसी शक्ति की पाविद्या है। माया अहेतुक और हेतुक ज्ञान से सम्बन्धित है। तांत्रिकगण माया को ज्ञान का भी प्रतीक मानते हैं। आत्मचेतना के उन्नयन की विद्या के रूप में तंत्र का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। तंत्र प्रकाशमार्ग का सोपान है।
मानव अपने जीवन के अंधकार को निर्वासित करने के लिए मंत्र की प्रत्यभिज्ञा की ज्योति को प्राप्त करना चाहता है। तंत्र का मूल उद्देश्य भौतिक अंधकार से निवृत्ति प्राप्त करना है।
वस्तुतः तंत्र सनातन सात्विक ज्योतिर्मयी शक्ति की उपासना है तमोगुण और रजोगुण के भयावह चक्र से दूर रहकर सहस्र सूर्य के आलोक में प्राप्त और प्राप्ति के नियम के विनियमन की व्यवस्था ही तंत्र है।
तंत्र कभी भी निकृष्ट कर्म का परिचायक नहीं है। आत्मशक्ति की चेतना से मानव पूर्णत्व की ओर अग्रसर होता है और इसके विपरीत की अवस्था में मानव निर्बल होकर सत्यज्ञान से दंचित हो जाता है। तंत्र साधना का सम्बन्ध आत्म प्रत्यक्षीकरण से है स्वयं के प्रति बोध को उद्बोधित करना ही तंत्र का कार्य है। तंत्र इससे समता की भावना उत्पन्न होती है।
समता से सत् असत्, त्याज्य और अत्याज्य का भेद समाप्त होता है। आत्मज्ञान की ज्योति इससे प्रज्ज्वलित होती है इसलिए यह कहा जा सकता है, कि आत्मज्ञान की प्रत्यभिज्ञावेजा में शंकर शिष्यों की अपने अनुभूति-जन्य सादृश्यता की वाचितानुवृत्ति में नहीं उलझते हैं. अपितु सहज दर्शन की अनुभूति होती है। तंत्र चेतना की की अवस्था को वहां तक पहुंचा देता है जहां चित की चिन्ता चिन्मयी में सिमट जाती है।
समदर्शीत्य के ना मौलिक आयाम को तंत्र की भित्ती पर ही चित्रित किया की जा सकता है। को व हरु प्त गम्भीर, गूड़, चिन्तनयुक्त, विद्वतपूर्ण लेखनी से युक्त ‘डॉ० मोहनावन्द मिश्र का लेख प्रामाणिक ज्ञान का ही परिचायक है।
नीव नत्व की तात्रिक साधना के साथ में अनेक सम्प्रदायों का रूप स्थिर हुआ चाहे शैव, शाकत, वैष्णव और बौद्ध हो सबने तंत्र की वीणा के तारों पर अपने विचारों को राग और तान दिया तंत्र के विचारों की प्रक्रिया को विशेषता यह है कि जीवन और शक्ति के उभय सिद्धान्त पर यह अवलम्बित है।
शक्ति के अभाव में शिव तो शव ही हो जाते है अतः प्रधानता शक्ति की है। वैष्णवगण इसे राधाकृष्ण तथा सीताराम की संज्ञा के नाम से सम्बोधित करते हैं बौद्ध उपासक इसे शून्यता तथा प्रशोन्याय के रूप में परिभाषित करते हैं। अनादिकाल से ही तंत्र साधना की परम्परा इस देश में वर्तनान है। योगी इस रहस्यमयी साधना में शिव | और शक्ति की उपासना करते आ रहे है। इस रहस्यमय |
साधना को तंत्र साधना के नाम से जाना जाता है। इस | साधना का प्रभाव सभी सम्प्रदायों पर पड़ा है। यह एक उदात साधना है, लेकिन नौतिकवादी साधकों ने इसे गति रूप में जीवित रखने का प्रयास किया।
वैद्यनाथ धाम एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहां तंत्र साधना की परम्पर प्राचीनकाल से ही वर्तमान है। वैद्यनाथ धान एक प्रसिद्ध तीर्थ भी है। यहां द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नवम् वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर है।
उत्तर गुप्त युग में आदित्यसेन गुप्त इस भूभाग का शासक था। पाल काल में बंगाल के शासकों ने इस पीठ को शिव की प्रशस्ति में अंकित किया 9 वीं सदी के बटेश्वर लेख से भी वैद्यनाथधाम के शिवमंदिर की महत्ता का प्रतिपादन होता है।
सेन वंशीय राजाओं ने भी वैद्यनाथ की प्रशस्ति का गायन किया है। मुस्लिम शासकों के युग में भी इस तीर्थ की लोकप्रियता थी। प्राचीनकाल में वैद्यनाथधाम में कामालिक और नाथसिद्धों की अधिकता थी पूर्व मध्यकाल में यहां शिव की उपासना पद्धति में तात्रिक विधि का ही वर्चस्व था।
मुस्लिम शासन के कुछ पूर्व ही यहां की तांत्रिक उपासना की परम्परा में कुछ ढीलापन आया। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर में लिखा है कि आदिशंकर यहां आये थे। उनके दिग्विजय की गाथा में भी कापालिकों के साथ उनके विवाद की चर्चा है। उत्त समय यहाँ नाथ मत प्रचलित था। नाथ मत भी शैव परम्परा से सम्बन्धित है, जो शव-पाशुपत कापालिक और योगिनी कौल मतों की परम्परा से विकसित है। मत्स्यन्द्रनाथ योगिनी कॉलमत के प्रवर्तक थे गोरखनाथ का संबंध पाशुपत-व से था।
इन्होंने अपनी साधना की दुरुहता और विभिन्नता के कारण इस मार्ग को कष्टकर और भयावह बना दिया वैद्यनाथ स्थित नाथबाडी नाथों और रिद्धों की परम्परा का साक्षी है। यहां आज भी नाथों की अनेक समाधियां है। स्थानीय तीर्थपुरोहितों के बीच इनकी अनेक गधा प्रचलित है नाथों का यह सम्मम स्थल महाराजा गिद्धौर के अधिकार में है। वैद्यनाथयम एक शैवपी के रूप में ही नहीं शक्तिपीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। सती का हृदय यहां अवस्थित है शिव और शक्ति का प्रबल समर्थन इससे होता है। धर्म के सदृश्यात्मक धरतल पर मातृशक्ति की पूजा की परम्परा यहां प्राचीनकाल से ही प्रचलित है।
नौवी सदी से ही तांत्रिक उपासना की मध्यकालीन यहां प्रचलित है। मध्यकालीन भारत में शून्यता की उनला की प्रबलता बढ़ी और व्यापक रूप में पूर्वाचल में इसकी साधना को साधकों और आराधकों ने अपनाया 12 वी सदी के बाद मिथिला के उपासकों को सामाजिक परम्परा यहां स्थापित होने लगी।
मिथिला में “भैरवो यत्र लिगम के उपासकों की संख्या अधिक है। यहां भी मैथिल तीर्थों का हुआ और तांत्रिक विधि की साधना का प्रचलन हुआ पौराणिक साहित्य में भी इस शक्तिपीठ का वर्णन है। तंत्र में भी प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में इस क्षेत्र का उल्लेख है। इस पीठ की अधिष्ठात्री देवी के रूप में गला महाविद्या का महत्व है। किसी-किसी पुराण में जयदुर्गा का यह की पीठाविष्ठात्री देवी के रूप में उल्लेख है। यहां चौबीत नेतृकाओं की भी पूजा होती है।
पशुबलि की प्रथा भी यह प्रचलित है. यहां शक्ति की उपासना के अनेक विग्रह है जैसे सध्या काली, मनसा बंगला, अन्नपूर्णा जयदुर्गा त्रिपुरसुन्दरी जगज्जननी संकष्टा सीता राधा तारा और महागौरी भीतर खण्ड के प्राचीन कुण्ड में महाप्रसाद से हवन की प्रथा आज भी प्रचलित है की भी नित्य पूजा होती है।
श्रीविद्या आदि विद्या है इसकी उपासना से पराशकिका अगहन किया जाता है। यहां गायत्री की उपासना भी व्यापक स्तर पर होती है। शक्ति की उपासना का आदिरूप ही है। गायत्री शक्ति भी श्री विद्या की उपासना से सम्बन्धित है। आज भी शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठों में श्रीविद्या की उपासना की परम्परा विद्यमान है। वैद्यनाधाम में हमशान साधना होती है।
बंगाल के अनेक साधक यहां आकर राधना करते थे. वैद्यनाध्यान के रक्षक वैद्यनाथ ही भैरव के रूप में विराज है। समस्त वैद्यनाथधाम के भौगोलिक स्वरूप को शिवपुराण में चिताभूमि के नाम से जाना जाता है। यह आज भी शक्ति साधना की भूमि है।
वैदिक मंत्र महाकाली साधना Vedic Mahakali Sadhana तांत्रिक मान्यता में महाकाली को आदि शक्ति का साकार प होने के कारण आद्या काली भी कहा गया है। आदि शक्ति होने के फलस्वरूप वे अपने साधक को शक्ति प्रदान करती हो रहती हैं।
रुद्र यामल में स्पष्ट किया गया है, कि बेता गुग में सुर असुर संग्राम के दौरान, जब रक्त बाज नामक दानव सुरों पर भारा पड़ने लगा, तो आदि शनि ने अपने तेज से एक आल्यंत नेजस्वी एवं भयंकर स्वरूपा देवी-महाकाली को प्रकट किया। रकबीन और अन्य दानवों को तो उसने क्षणभर में ही नष्ट कर दिया, परन्तु |
फिर भी उसका क्रोध शांत नहुआ.. उस समय क्रोध से बह इतनी प्रचण्ड हो गई थीं, कि असुरों के साथ-साथ सुरों की सेना का भी भक्षण करने लगी। 2 स्थिति अत्यधिक संकटजनक थी, क्योंकि जिस गति से महाकाली सब का भक्षण कर रही थी, उस तरह तो समस्त ब्रह्माण्ड में ही मलय की स्थिति बनना निश्चित था . . . पर इस स्थिति का उपाय करे कोनः ऐसे समय में महाकाली को समझाए कौन?
उनके समझा जाने को मिल करे कौन? काफी मंत्राणा के बाद ब्रह्मा, विधा. इन्द्र आदि ने महादेव की शरण में जाना निश्चित किया। महादेवनो हमेशा की तरह ही समाधि में लीन थे, देवताओं ने काफी स्तुति, अर्चना आदि कर किसी तरह उनका ध्यान अपनी और आकृष्ट किया, तो शिव ने उन सबसे कैलाश आने का कारण पूछा।
तब श्रीहरि ने सारा वृत्तांत सुनाकर अंत में कहा-हे रूद्र अब आपका ही हमें आसरा है, क्योंकि शक्ति के इस क्रोध के बेग को आपके सिवा कोई झेल नहीं सकता। हे शिब’ जिस प्रकार से भयंकर हलाहल को आपके सिवा कोई नहीं धारण कर सकता था, उसी प्रकार आज आपके सिवा शक्ति का कोई सामना नहीं कर सकता…कृपा करे, प्रभु!
हमें इस दुविधा से उचारिए, नहीं तो असमय ही प्रलय हो जाएगी… भगवान शिव को देवताओं पर अत्यधिक करुणा आई और वे ताम्माण वहां पहुंच गए जहां भयंकर दाड़ी वाली महाकाली, भयंकर मट्टाहास कर सब कुछ मक्षाण कर रही थीं… शिय ने जब यह देखा तो वे बिना समय नष्ट किए उस मार्ग पर लेट गए
जहां से महाकाली आ रही थीं बेची तो अपनी ही धुन में थी, और इस तरह उसका पांच शिव के वक्ष पार पड़ गया। गगवान शिव के वक्ष पर पांव पड़ने ही देवी एक क्षण के लिए बहुत सकुचाई और दूसरे को क्षण उनका सारा क्रोध समाप्त 4 हो गया और इस प्रकार से सृष्टि का विनाश होने से बचा। शिव जिन्हें माद भी कहते है, उनके ऊपर स्थित शक्ति के इस स्वरूप को ही महाकाली की संज्ञा से विभूषित किया गया है। महाकाली का स्वरूप बड़ा ही उग्र है।
वह विशालकाय और अत्यधिक सुन्दर है, उनकी जिल्ला रक्त से जित हमेशा बाहर निकली रहती है। उनके गले में ताजे कटे मुण्टो कीमाला है, जिनमें से रक्त टपकता रहता है। पायल और पाजेब की जगह छोटे-छोटे सो एवं हरियों को धारण कर रखा है। उनके चार हाथ हैं जिनमें क्रमशः खड्ग, यमपाश, माण्ड एवं कपाल पात्र है, उनके तीन नेत्र हैं।
महाकाली को दस महाविद्याओं में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, आखिर इसका कारण क्या है? पहला तो यह कि इस स्वरूप की साधना की सृष्टि स्वयं शिव ने की थी और यह साधना अत्यंत तेजस्वी होने के साथ-साथ अत्यधिक सरल और सहज है, कोई भी पुरुष-स्त्री, बालक-वृद्ध इसको सम्पन्न कर सकता है।
इसमें किसी भी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं। दूसरा इस साधना की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है, कि इसी एक साधना से जहां महाकाली सिद्ध होती हैं वहीं रुद्र भी वतः ही सिन्न हो जाते हैं, यानि एक ही साधना से दो दिव्य शातियों की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
अब मैं नीचे कुछ बिन्दु स्पाट कर रहाई, जो इस साधना को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने पर व्यक्ति के जीवन में स्वतःही उतर आते हैं देवी अष्ट मुण्डी की माला पहनती है, जिसका नाविक अर्थ अष्ट पाशों से है। साधक पूर्ण रूप से अष्ट पाशों समुक्त हो जाता है और तंत्र के क्षेत्र में अत्यंत ऊंचाइयों को मास कर पाता है।
महादेवी के हाथ में यमपाश है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति यमपाश मृत्यु से मुक्त हो जाता है। वह सारा जीवन स्वस्थ, निरोश और पूर्ण आयुष्य भोगता है। देवी के हाथ में नर मुण्ड भी है जिसका अर्थ है कि से साधक का अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है और उसमें एक नई चेतना एवं ज्ञान का प्रादुर्भाव होता है।
4.इस साधना के उपरांत या तो व्यक्ति के शय रहते ही नहीं और अगर होते हैं, तो वे हमेशा उसके आगे विनीत भाव से रहते हैं, उसकी हर बात स्वीकार करते ही हैं। ऐसे व्यक्ति के घर में अटूट सम्पदा, धन, धान्य की रिस्थति बन जाती है, समाज में मान, प्रतिष्ठा, पद सब कुछ सहज ही प्राप्त हो जाता है।
उसका पारिवारिक जीवन बड़ा सुखद होता है। उसे पुत्र एवं पौत्रों की प्राप्ति होती है। निश्चय हीमहाकाली साधना एक अद्गुन होरक खण्ड है. जो आपके हाथों में आने के लिए लालाधित है, लेकिन यह भी | एक सत्य है कि हीरक खण्ड मिलता सिर्फ बिरले को ली है।
साधना विधान इस साधना को साधक या किसी भी अमावस्या की रात्रि में सम्पन्न करें। साधक काले वस्त्र धारण करके काले आसन पर बैठे। अपने समक्ष स्टील की थाली में काले तिल बिछाकर, उस पर ‘महाकाली यंत्र स्थापित करें। यंत्र का पूजन कर निम्न ध्यान मंत्र द्वारा भगवती
यह 14 दिन की साधना है. पूर्णिमा को समस्त सामग्री किसी नदी में विसर्जित कर दें। येप्रयोग किसी भी अमावस्या को प्रारम्भ निरजा सकते हैं। उपरोक्त विधि से महाकानी का पूजन तथा देवी ध्यान करें। ये सभा प्रयोग रात्रि काल में ही किर जा सकते हैं। इसमें माला का प्रयोग नहीं होता। प्रयोगसमाप्ति पर समस्त सामाग्री को जल में विसर्जिन करें। –
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना Maa Bhuvaneshwari Sadhana
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना Maa Bhuvaneshwari Sadhana
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना Maa Bhuvaneshwari Sadhana भुवनेश्वरी महाविद्या दस महाविद्या में से एक है ! इस महा विद्या को करने से आप भूमि सुख राज्य सुख और भी जो इस धरती पर जो सुख है सब प्राप्त होंगे ! सब शत्रु से विजय प्राप्त होगी ! रात हनुमान ने आंखों में बिता दी थी। – हनुमान ने विनम्रता पूर्वक कहा। उन्हें पल भर नहीं आई थी… अभी हाल ही में गुप्तचर संदेश लेकर आया था कि रावण ने युद्ध में विजय हेतु महाचण्डी यश का प्रारम्भ कर दिया है। उसने देश भर के उत्कृष्ट विद्वानों को आमंत्रण था, और वे सभी इकट्ठे हो गए थे।
बस दो दिन बाद से ही इस महायज्ञ का प्रारम्भ हो जाएगा. और अगर वह यज्ञ किसी प्रकार से सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाए, तो रावण की विजय सुनिश्चित है… यही सब सोचकर अंजनी सुत सारी रात गंभीर चिंतन में इधर-उधर टहलते रहे.. पर ऋषि भी कब मानने वाले थे…. उनके बार-बार आग्रह करने पर कमिश्रेष्ठ ने एक अति विस्मित करने वाला वर मांगा, जो कि आगे जाकर राम की विजय का एक मुख्य कारण बना. महाचण्डी यज्ञ में जिस मंत्र के संपुटीकरण से हवन किया जाना था, वह था जय त्वं देविचामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते । युद्ध 斗 रावण की स्थिति दयनीय हो गई थी।Bhuvaneshwari Sadhana
उसके समस्त उच्चकोटि के योद्धा मारे गए थे. सभी काल कवलित हो गए थे और वह निःसहाय, निरुपाय मां चण्डी के आशीर्वाद के लिए लालायित था.. इसमें भूतार्तिहारिणी का अर्थ है सभी प्राणियों की पीड़ा करने वाली हनुमान ने ऋषियों से यह वर मांगा कि वे भूतार्तिहारिणी में ‘ह’ की जगह ‘क’ का उच्चारण कर दें। बेचारे ऋषि तो वचन बद्ध थे ही, उन्होंने तथास्तु कह दिया। इस प्रकार वह शब्द बन गया ‘भूतार्तिकारिणी’ जिसका अर्थ है सभी प्राणियों को कष्ट देने वाली। पर हनुमान को चैन कहां, वे तो निरन्तर इसी चिंतन में थे. कि किस प्रकार से राम के सामने आने वाली विपदा को पहले से ही ध्वस्त कर दिया जाए, किस प्रकार से उनके कंटकाकीर्ण मार्ग को पुष्पों से आच्छादित कर दिया जाए, ताकि उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े इस प्रकार एक अक्षर के बदलने मात्र से यज्ञ रावण के लिए ही अनिष्टकारी बन गया। परन्तु इसके बाद भी हनुमान चैन से नहीं बैठे। Bhuvaneshwari Sadhana
वे तत्काल भगवान राम के पास पहुंचे और विनम्रता पूर्वक कहा और इसके लिए अगले ही दिन हनुमान एक विन का रूप धर कर पहुंच गए यज्ञ स्थली पर और वहां पहुंच कर सभी ऋषि-मुनियों की पूर्ण श्रद्धा भाव से सेवा करने लगे। उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना से सभी ऋषि-मनि इतने प्रभावित कि उन्होंने विप्र के रूप में आए हनुमान को वर मांगने को कहा। “”प्रभु ! हमारे युद्ध कौशल के आगे रावण की समस्त सेना का विध्वंसहो चुका है, हमारी रणनीति और आपके आशीर्वाद द्वारा उनका अत्यधिक अहित हो चुका है, परन्तु.. 21 2 परन्तु क्या कपिश्रेष्ठ ?” – राम बोले। “नहीं नहीं महात्मन् मैंने किसी प्रयोजन से आपकी सेवा नहीं की थी मैं तो मात्र आपका साहचर्य लाभ प्राप्त परन्तु रावण अभी भी जीवित है और वही हमारा मुख्य एवं प्रबलतम शत्रु है। Bhuvaneshwari Sadhana
उसकी नाभि में अमृत कुण्ड स्थापितहै, जिससे वह सदैव चिर-यौवन वान बना रहता है और जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु संभव नहीं इसके अलावा भी वह अपने कई आत्मजों के शवों को ढो चुका है. यहां तक कि उसकी विजय का आखिरी प्रयास महाचण्डी यज्ञ भी आपकी कृपा से विफल हो चुका है। अतः यह एक घायल सिंह की भांति हो गया है और आप तो जानते ही हैं, कि सौ सिंहों से एक चायल सिंह अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकता है। और उसी क्षण राम ने अपने प्रिय शिष्य हनुमान के निवेदन पर भुवनेश्वरी साधना एवं अनुष्ठान का प्रारम्भ किया एवं उसे सफलता पूर्वक सम्पन्न किया और इतिहास भी इस बात का गवाह है, किजो | रावण नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित होने की वजह से अजेय था, अंततः कालकेविकराल पंजों से बच नहीं पाया… वैसे भी यह बड़ा मायावी और प्रपंची है। Bhuvaneshwari Sadhana
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना के लाभ Maa Bhuvaneshwari Sadhana ki labh भुवनेश्वरी साधना बेनिफिट्स
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना के लाभ Maa Bhuvaneshwari Sadhana ki labhभुवनेश्वरी साधना बेनिफिट्स1 उच्चकोटि की सिद्धियां उसके पास हैं और समस्त प्रकृति को वह अपने नियंत्रण में ले चुका है सारी प्रकृति उसके इशारों पर नृत्य करती है। साथ ही साथ उसके पास अद्वितीय दिव्यास्त्रों की भरमार है और उनमें कुछ तो ऐसे हैं जो समस्त ब्रह्माण्ड को विनष्ट करने में सक्षम है। जाता है, जिससे उसके आसपास के लोग स्वतः उसकी और आकर्षित होते हैं और उसकी हर आज्ञा का ना-नुच किए बिना पालन करते हैं।
2. यह साधना सिद्ध होते ही व्यक्ति की दरिद्रता, रोग, शत्रुभय, ऋण आदि की स्थिति स्वतः ही नष्ट हो जाती है और वह मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने लगता है। तो तुम्हारा क्या विचार है हनुमान राम ने पूछा। “प्रभु के आशीर्वाद से मुझे स्मरण आ रहा है, कि बाल्यावस्था में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान मुझे एक अद्वितीय महातेजस्वी साधना पद्धति मेरे गुरु सूर्यदेव ने प्रदान की थी, जो भुवनेश्वरी से सम्बन्धित है। उनके अनुसार समस्त देवियों की शक्ति को भुवनेश्वरी के रूप में सिद्ध कर लेने से वह साधक अजेय हो जाता है और फिर उसके सामने समस्त त्रैलोक्य के देवता, दानव, मनुष्य, गन्धर्व आदि भी युद्ध में टिक नहीं सकते। जिस क्षण यह साधना सम्पन्न होती है, उसी क्षण से शत्रु काल के सुपूर्द हो जाता है और उसका विनाश उतना ही निश्चित हो जाता है, जितना कि सूर्य और चन्द का अस्तित्व में होना।”
3. व्यक्ति के घर में निरन्तर धन का आगमन होता ही रहता है। उसका व्यापार तरक्की करता है और अगर वह नौकरी पेशा हो, तो उसकी पदोन्नति शीघ्र होती है।
4. इस साधना के प्रभाव से घर में अगर कोई तांत्रिक प्रयोग हो, तो वह नष्ट होता है।
5. कुण्डली में निर्मित दुर्योग फलहीन हो जाते हैं.. अगर दुर्घटना एवं अकाल मृत्यु का योग हो. तो वह भी अल्प हो जाता है, एक प्रकार से नष्ट हो हो जाता है। -और प्रभु राम मुस्करा दिए, प्रभु अपने भक्त की प्रसन्नता के लिए स्वयं विष्णुवतार होते हुए भी शिष्य/ भक्त हनुमान के निवेदन पर उसी क्षण भुवनेश्वरी साधना एवं अनुष्ठान का प्रारम्भ किया एवं उसे सफलता पूर्वक सम्पन्न किया.
6. साधक जिस कार्य में हाथ डालता है. उसमें विजय ही प्राप्त करता है, हर क्षेत्र में सफल होता है। इंटरव्यू परीक्षा आदि में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। – और इतिहास भी इस बात का गवाह है कि जो रावण नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित होने की वजह से अजेय था, अंततः काल के विकराल पंजों से बच नहीं पाया
7. ऐसा व्यक्ति समाज में सम्माननीय एवं पूजनीय होता है। उच्चकोटि के मंत्रीगण एवं अधिकारी भी उसकी बात को मस्तक पर धारण करते हैं। वह सभी का प्रिय होता है और जीवन में उसे किसी चीज का अभाव नहीं रहता।
8. इसके साथ ही साथ उसका पारिवारिक जीवन अत्यधिक सुखी होता है, यदि कोई क्लेश व्याप्त हो, तो भी वह समाप्त हो जाता है। वास्तव में ही यह साधना अपने आप में महातेजस्वी अद्वितीय एवं अनिवर्चनीय है। ऐसा आज तक हुआ ही नहीं, कि | व्यक्ति यह साधना सम्पन्न करे और उसका परिणाम उसे न मिले। ऊपर दिए गए संदर्भ में इस साधना का एक ही तथ्य स्पष्ट किया गया है। वैसे इसके सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर निम्न स्थितियां साधक के जीवन में अंकुरित हो जाती है-
9. उसकी समस्त इच्छाएं और कामनाएं पूर्ण होती है और वह स्वयं भी आश्चर्य चकित रह जाता है, कि किस प्रकार से उसकी सारी अभिलाषाएं स्वतः ही पूर्ण हो रही हैं।
10. भगवती भुवनेश्वरी वास्तव में सम्पूर्ण 64 कलाओं 1. साधक का व्यक्तित्व अत्यधिक आकर्षक एवं भव्य हो जाता है।
उसके इर्द-गिर्द एक तेजयुक्त आभा मण्डल निर्मित हो से परिपूर्ण है, अतः इस साधना को सम्पन्न करने से व्यक्ति को नहा भोग, धन, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, वहीं वह अन्त में मोक्ष की स्थिति प्राप्त कर बालीन हो जाता है… और आवागमन के चक्र से छूट जाता है। ऊपर बताई गई स्थितियां तो मात्र सूर्य को रोशनी दिखाने के समान हैं। वास्तव में तो वह अपने आप में ही अद्वितीय तेजस्वी युगपुरुष बन जाता है। उसके अन्दर शक्ति का वह तीव्र प्रवाह समाहित हो जाता है, जिससे काल भी उसके सामने आने से मयभीत होता है। साथ ही साथ वह समस्त ज्ञान-विज्ञान में पारंगत हो वर्तमान पीढ़ी का मार्गदर्शन करने में सक्षम हो पाता है और आने वाली पीढ़ियां उसे दिव्य पुरुष को संज्ञा से विभूषित कर आदर भाव से देखती हैं। साधना विधान यह भुवनेश्वरी साधना विधान वास्तव में शक्ति साधना का ही स्वरूप है और एक तरह से मात्र इस साधना को करने से आद्य शक्ति के समस्त स्वरूपों की साधना स्वतः ही हो जाती है।
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना की विधि Maa Bhuvaneshwari Sadhana vidhi
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना की विधि Maa Bhuvaneshwari Sadhana vidhi यह 9 दिन की साधना है और 1. 1. 99 से अथवा किसी भी मास के प्रथम दिन से इसे प्रारम्भ करना चाहिए। नवरात्रि के अवसर पर इस साधना को सम्पन्न किया जा सकता है। इस साधना में निम्न उपकरणों की आवश्यकता होती है। 1. भुवनेश्वरी यंत्र, 2. मूंगे का दाना, 3. मुक्नेश्वरी माना। निर्धारित दिवस की रात्रि में दस बजे के उपरान्त साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर श्वेत स्वच्छ धोती धारण कर श्वेन आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठें। गुरु चित्र का स्थापन करें तथा ‘दैनिक साधना विधि’ पुस्तक में दी गई विधि से गुरु पूजन करें। अपने सामने लाल वस्त्र से ढके बाजोट पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित कर उसका (कुंकुंम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प) पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। फिर साधक वाहिने हाथ में जल लेकर
तिलक कर पूजन करने के बाद ही भुवनेश्वरी माला से 101 मालाएं फिर नित्य साधना करने से पूर्व यंत्र एवं मुंगे के दाने का मंत्र जप करें। ऐसा नौ दिन तक करें, उसके उपरांत समस्त साधना सामग्री को किसी जलाशय में अर्पित कर दें। ऐसा करने से साधना निश्चय ही सिद्ध होती है। इसमें कोई संशय नहीं। निश्चित ही यह साधना एवं मंत्र परम गोपनीय और सामान्यतः अप्राप्य है, पर जिस किसी को भी यह साधना सिद्ध हो जाती है उसके
Bhuvaneshwari Sadhana
भाग्य से तो स्वयं देवी-देवता भी ईष्या करने लगते हैं और वह दिनों दिन ऊंचाई की ओर अग्रसर होता ही रहता है।