Neel Saraswati sadhna नील सरस्वती साधना रहस्य ph.85280 57364

Neel Saraswati sadhna नील सरस्वती साधना रहस्य ph.85280 57364 आदौ सरस्वती पूजा भागवत में नारद मुनि भगवान नारायण से देवी|
सरस्वती का चरित्र जानने की इच्छा प्रकट करते हैं। उनकी जिज्ञासा का शमन करते हुए भगवान नारायण कहते हैं -| सर्वप्रथम श्रीकृष्ण ने सरस्वती की पूजा की जिसकी कृपा से श्रीकृष्ण महान् विद्वान, जगद्गुरु बनें।शुक्ल यजुर्वेद की रचना महर्षि याज्ञवल्क्य ने की।
ऐसी मान्यता है कि याज्ञवल्क्य ने मां सरस्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया एवं उनकी कृपा से शुक्ल यर्जुवेद की रचनाकरने में समर्थ हुए थे। प्रसंग है कि महर्षि याज्ञवल्क्य अपना सारा ज्ञान भूल चुकेथे और उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि वे किस प्रकारनवीन वेद की रचना कर पाएंगे? फिर याज्ञवल्क्य को स्मरण आया कि जब भी देवताओं को ज्ञान प्राप्ति में बाधा आई है।
उन्होंने देवी सरस्वती की कृपा से उस संकट को पार किया है। श्री मद्भागवत् में इस प्रसंग का उल्लेख आया है। अतःयाज्ञवल्क्य सरस्वती की स्तुति करते हुए कहते हैं-हे देवी! एक बार सनत्कुमार ने ब्रह्माजी से ब्रह्मज्ञान के विषय में पूछा।
उस समय ब्रह्म सिद्धान्त की व्याख्या करने में ब्रह्मा मूक की भांति अक्षम हो गए थे। उसी समय स्वयं श्रीकृष्ण वहां आ गए एवं उन्होंने कहा, हे प्रजापते! आप भगवतीसरस्वती को अपना इष्ट देवी बनाकर उनकी स्तुति कीजिये ।
परमात्मा श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर ब्रह्माजी ने भगवती सरस्वती की स्तुति की। फिर, सरस्वती की कृपा से वे ब्रह्म ज्ञान के विषय में उत्तम सिद्धान्त का विवेचन करने में सफल हो गए। इसी प्रकार जब पृथ्वी ने शेषनाग से ज्ञान का एक रहस्य पूछा तब वे मौन हो गए।
तदुपरान्त व्यथित हृदय शेषनाग ने कश्यप ऋषि के आज्ञानुसार देवी सरस्वती का पूजन किया ।तदन्तर वे भ्रम का नाश करने वाले पवित्र सिद्धान्त का विवेचन कर सके।
इसी प्रकार जब व्यास जी ने वाल्मीकि से पुराण सूत्र पूछातब वे मौन हो गए। जगदम्बा सरस्वती का स्मरण करने के बाद ही मुनि वाल्मीकि पुराण सिद्धान्त का प्रतिपादन करने में सफल हो पाए।
भगवान श्रीकृष्ण के अंश से उत्पन्न व्यासनी उस पुराण सूत्र को सुनकर पुष्कर क्षेत्र में देवी सरस्वती की आराधनाकिए। फिर सरस्वती वर पाही और पुराणों की रचना करने में समर्थ हुए। हालांकि बाद में यहमाना गया कि व्यास मुनि नील सरस्वती की कृष्ण से पुराणों की रचना कर गए।
इन्द्र ने भी जब भगवान शंकर से तत्वज्ञान के सम्बन्ध में पूछा तब सरस्वती का ध्यान करके ही शिवजी ने इन्द्र को ज्ञानोपदेश दिया। इन्द्र ने जब देवगुरु बृहस्पति से शब्द शास्त्र के सम्बन्धमें पूछा तब ने स्वयं दिव्य पुष्कर क्षेत्र में एक हजार बरसों तक तप किया और सरस्वती कृपा से वे शब्द शास्त्र के ज्ञान में सिद्ध हुए एवं फिर एक हजार बरसों तक उन्होंने इन्द्र को शब्द शस्त्रानयाज्ञवल्क्य आगे कहते हैं कि जब पंचानन शिव, चतुराननब्रह्मा एवं सहखमुख वाले शेष नाग आपकी स्तुति नहीं करपा रहे हैं, फिर मैं आपकी स्तुति किस प्रकार कर पाऊंगा?
याज्ञवल्क्य की इस प्रकार स्तुति करने पर देवी सरस्वती ने उसे साक्षात् दर्शन दिया, जिसके प्रभाव व याज्ञवल्क्यशुक्ल यजुर्वेद की रचना कर पाए।याज्ञवल्क्य रचित सरस्वती स्तोत्र का जो व्यक्ति नियमित| रूप से पाठ करता है, वह बृहस्पति के समान मान बक्ता होजाना है।क्या नील सरस्वती, सरस्वती से भिन्न है?
सरस्वती की कल्पना तुषार द्वार (बर्फ के हार की तरह या श्वेत रूप में की गई है। परन्तु नाम तंत्र में उच्छिष्ट गणपति की संगिनी नील सरस्वती हैं, सरस्वती का नील रूपा दस महाविद्या में दूसरे स्थान पर अवस्थित देवी तारा जो संसार बंधनों से भक्तों को तार देती हैं का एक रूप नील सरस्वती है इस रूप में भगवती तारा अपने साधकों को हर प्रकार की शत्रु बाधा से मुक्त कर देती है। यह भी माना गया है कि नीलसरस्वती के रूप में महाविद्या तारा में काली का रूप समाहित| हो गया है।
इसलिए नील सरस्वती की आराधना करते हुए साधक नग कहते हैं।
के नियमित साधकों को यह ज्ञातहोगा कि महाविद्या तारा की साधना तंत्र मार्ग केअनुयायियों के लिए अत्यावश्यक है। देवी तारा भोग औरमोक्ष दोनों प्रदान करती है। पूर्ण मोक्ष की स्थिति नहीं मिलती है, थोड़ा उधेड़बुन में व्यक्ति अटका रह जाता है कि छोड़ दिया जाए कि ना छोड़ दिया जाए?
परंतु नील सरस्वती देवी तारा का एक रूप है उनकी कृपा से साधक अपने शत्रुओं का आमूल चूल विनाश कर देता है।भौतिक सुविधाओं के मार्ग में जिसे प्रेय का मार्ग भी कहा गया है, उस मार्ग पर शत्रु बाधा का शमन जीवन से कष्टों का अंत है।
नील सरस्वती देवी साधना विधि
धवल रूप में सरस्वती शुद्ध बुद्धि की परिचायक है औरनील रूप में शुद्ध बुद्धि के साथ जुड़े हुए पराक्रम की नील सरस्वती उच्छिष्ट गणपति की संगिनी है जो शत्रु संहार केलिए बेजोड़ हैं।आमतौर पर मनुष्य अपने आंतरिक शत्रुओं से जूझ रहा होता है। एक शब्द में इसे डिप्रेशन या नकारात्मकता कहाजाएगा।
नील सरस्वती ज्ञात और अज्ञात आंतरिक और बाह्य दोनों शत्रुओं का सर्वनाश कर देती है जिसके बाद परिमार्जितबुद्धि शुभ के पथ पर अग्रसर हो जाता है। यह साधना आश्विन नवरात्रि अथवा किसी भी पुष्य नक्षत्रपर प्रातः प्रारंभ की जा सकती है।
साधक श्वेत धोती पहनकर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठें। यदि अपने बालकों कोभी साधना कराना चाहते हैं तो उन्हें भी श्वेत धोती पहना कर अपने साथ बैठाएं, चन्दन का तिलक करें, सामने एक बाजोटपर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र / गुरु विग्रह / गुरुयंत्र / गुरु पादुका, सरस्वती चित्र लगाएं। शुद्ध घी का दीपक तथा अगरबत्ती जलाएं।
तांबे के पात्र में पीले पुष्प के आसनपर पीले अक्षत रखें और उस पर नील सरस्वती मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित ‘सरस्वती यंत्र’ स्थापित करें।भाग्योदय हेतु इस विशेष साधना में सरस्वती पूजन से पूर्व गुरु पूजन कर गुरुदेव से साधना में सफलता की कामना अवश्य करनी चाहिए।
इसी क्रम में सर्वप्रथम गुरु पूजन सम्पन्न करें। गुरुदेव से साधना में सफलता की प्रार्थना हेतु ध्यान करें
मंत्र जप के बाद माला को यंत्र के ऊपर रख दें और ध्यानअवस्था में बैठकर भगवती सरस्वती से शुद्ध वाणी एवं भाग्योदय हेतु प्रार्थना करें। इसके पश्चात् सरस्वती का मूलमंत्र ” का कम से कम एक घड़ी अर्थात् 24 मिनट तक जप करते रहें। इस प्रकार यह साधना सम्पन्न होती है।साधना की पूर्णता के पश्चात् अगले दिन यंत्र एवं माला को सफेद वस्त्र में बांधकर जल में विसर्जित कर दें।