Tag: महाविद्या तारा साधना कैसे करें

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    maa tara sadhna माँ तारा साधना और माँ तारा साधना के लाभ ph. 85280 57364 तारा महाविद्या और उनकी साधना का रहस्य तंत्र शास्त्र में माँ तारा का उल्लेख दूसरी महाविद्या के रूप में किया गया है । शाक्त तांत्रिकों में प्रथम महाविद्या के रूप में महाकाली का स्थान रखा गया है। तंत्र में महाकाली को इस चराचर जगत की मूल आधार शक्ति माना गया है।

    इन्हीं की प्रेरणा शक्ति से यह जगत और उसके समस्त प्राणी जीवन्त एवं गतिमान रहते हैं । समस्त जीवन के प्राण स्रोत माँ काली के साथ संलग्न रहते हैं । इसीलिये इस शक्ति से विहीन जगत तत्क्षण निर्जीव हो जाता है। तंत्र के अति प्राचीन प्रतीकों में महाकाली को शिव पर आरूढ़ दिखाया गया है। यह भी इसी तथ्य का प्रतीक है कि ‘शक्ति’ हीन ‘शिव’ भी निर्जीव ‘शव’ के रूप में रूपान्तरित हो जाते हैं।

    महाकाली के रूप में इस आद्यशक्ति का रहस्य बहुत अद्भुत है, क्योंकि चेतना के समस्त सूत्र इसी महाशक्ति में समाहित रहते हैं । इसीलिये महाकाली का ‘श्याम’ रूप माना गया है। जिस प्रकार सभी तरह के रंग काले रंग में विलीन हो जाते हैं, ठीक वैसे ही समस्त जगत काली में समाहित हो जाता है 

    जो साधक महाकाली को पूर्णत: समर्पित हो जाता है, उस साधक के समस्त कष्टों का माँ काली स्वतः ही हरण कर लेती है । इसीलिये महाकाली को समर्पित साधक समस्त प्रकार के दुःख, दर्द, पीड़ाओं, अभावों, कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। बहुत से लोग अज्ञानवश महाकाली को भय, क्रोध और मृत्यु का प्रतीक भर मानते हैं । इस विश्वास से उनकी अज्ञानता ही उजागर होती है। वास्तव में महाकाली मृत्यु पर विजय और भयहीन होने की प्रतीक है।

    महाकाली की भयानक एवं क्रोधयुक्त मुद्रा एवं उनका अति उग्र प्रदर्शन उनकी अनंत शक्ति का द्योतक है। तंत्र शास्त्र में प्रथम महाविद्या के रूप में महाकाली का अधिपत्य रात्रि के बारह बजे से प्रातः सूर्योदय तक रहता है। घोर अंधकार महाकाली का साधना काल है, जबकि सूर्योदय की प्रथम किरण के साथ ही द्वितीय महाविद्या के रूप में तारा विद्या का साम्राज्य चारों ओर फैलने लग जाता है।

    महाकाली चेतना का प्रतीक है तो तारा महाविद्या बुद्धि, प्रसन्नता, सन्तुष्टि, सुख, सम्पन्नता और विकास का प्रतीक है। इसीलिये तारा का साम्राज्य फैलते ही अर्थात् सूर्य की प्रथम रश्मि के भूमण्डल पर अवतरित होते ही सृष्टि का प्रत्येक कण चेतना शक्ति युक्त होता चला जाता है ।

    रात्रि के अंधकार में जो जीव-जन्तु निद्रा के आवेश में आकर सुस्त और निष्क्रिय पड़ जाते हैं, फूलों की प्रफुल्लित हुई कलियां मुर्झा जाती हैं, प्राणियों में जो पशु भाव उतर जाता है, वह सब प्रातःकाल होते ही अपने मूल स्वरूप में लौट आता है ।

    तारा महाविद्या का रहस्य बोध कराने वाली हिरण्यगर्भ विद्या मानी गई है। इस विद्या के अनुसार वेदों ने सम्पूर्ण विश्व (सृष्टि) का मुख्य आधार सूर्य को स्वीकार किया है। सूर्य अग्नि का एक रूप है। अग्नि का एक नाम हिरण्यरेता भी है। सौरमण्डल हिरण्यरेत (अग्नि) से आविष्ट है। इसीलिये इसे हिरण्यमय कहा जाता है।

    आग्नेयमंडल के नाभि में सौर ब्रह्म तत्त्व प्रतिष्ठित है, इसलिये सौरब्रह्म को हिरण्यगर्भ कहा गया है । जिस प्रकार विश्वातीत कालपुरुष की महाशक्ति महाकाली है, उसी प्रकार सौरमण्डल में प्रतिष्ठित हिरण्यगर्भ पुरुष की महाशक्ति ‘तारा’ को माना गया है।

    जिस प्रकार गहन अन्धकार में छोटा दीपक भी अत्यन्त प्रकाशमान प्रतीत होता है, उसी तरह महानतम के अर्थात् अंतरिक्ष में तारा शक्ति युक्त सूर्य सदैव प्रकाशमान बना रहता है, इसलिये श्रुतियों में सूर्य नक्षत्र’ नाम से भी जाने गये हैं।